bihar baord 8th history note | कला क्षेत्र में परिवर्तन
bihar baord 8th history note | कला क्षेत्र में परिवर्तन
bihar baord 8th history note | कला क्षेत्र में परिवर्तन
कला क्षेत्र में परिवर्तन
पाठ का सारांश-प्राचीन एवं मध्यकाल में भारतीयों ने चित्रकला, स्थापत्य, नृत्य, संगीत, साहित्य के क्षेत्रों में महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की थीं । अठारहवीं सदी में राजाओं और नवाबों की डांवाडोल वित्तीय स्थिति के कारण कलाकार एवं साहित्यकार राजकीय संरक्षण से वंचित हो गए थे। पलासी की लड़ाई के बाद उभरी औपनिवेशिक शक्ति की सत्ता के दौरान भारतीय एवं यूरोपीय शैली एक-दूसरे के पास आई।
औपनिवेशिक कला:- कई यूरोपीय कलाकार भी अंग्रेज व्यापारियों एवं अधिकारियों के साथ भारत आए। इन्होंने भारत में नई शैलियाँ, विषयों, परम्पराओं एवं तकनीकी की शुरुआत की। ये यथार्थवादी दृष्टिकोण वाले थे। जो कुछ जैसा दिखता है, वे उसे वैसा ही चित्रित करते थे। ये कलाकार तैलचित्र की नई तकनीक को भारत में आए।
भारत के भूदृश्यों का चित्रण:- यूरोपीय कलाकारों ने पूर्व के भारत की आदिम, गरीब व पतनोन्मुख अवस्था की तस्वीर बनाई। जबकि यूरोपीय सरकार के भारत में कार्य-निर्माण को प्रमुखता से प्रस्तुत कर यूरोपीय सरकार को महिमामंडित करने का प्रयास किया। इनकी लोकप्रिय
शैली ‘रूपचित्रण’ थी। पहले राजे-नवाब किरमिच पर छोटे चित्रों में अपने वैभव का प्रदर्शन करते थे। किन्तु औपनिवेशिक कलाकार आदमकद छवि बनाने लगे।
ऐतिहासिक घटनाओं का चित्रण:- ऐतिहासिक चित्रकला की एक अन्य शैली ‘इतिहास की चित्रकारी’ थी। अंग्रेजी चित्रकारों ने अंग्रेजों की युद्धों में जीत को अपनी कला का विषय-वस्तु बनाया।
दरबारी कला और स्थानीय कलाकार:- स्थानीय भारतीय कलाकारों ने भित्ति चित्र एवं परिपेक्ष्य विधि अपनाकर साम्राज्यवादी कला शैली को चुनौती दी। उन्होंने ‘कंपनी’ यानी अंग्रेजी अधिकारियों के लिए भी चित्र बनाए । इस काल में स्थानीय कलाकारों द्वारा बनाए गए पौधों, जानवरों, ऐतिहासिक इमारतों, पर्व-त्योहारों, व्यवसायों, जाति और समुदाय की तस्वीरों को कम्पनी चित्र’ के नाम से जाना जाता है। अंग्रेजों ने भारतीय परिवेश को समझने के लिए ये चित्र बनवाए । राजदरबार के प्रभाव से मुक्त रहते हुए बिहार में कलाकारों ने ‘मधुबनी पेंटिग’ की प्रमुख चित्रशैली को विकसित और प्रसिद्ध किया।
राष्ट्रवादी चित्रकला शैली:- राजा रवि वर्मा जैसे चित्रकारों ने उन्नीसवीं सदी के अंतिम दशक एवं बीसवीं सदी के प्रारंभ में राष्ट्रवादी कला शैली, विकसित कर जनसाधारण को राष्ट्रवादी संदेश देने का महत्वपूर्ण काम किया। उन्होंने तैल चित्रकारी की यूरोपीय कला शैली को अपनी चित्रकारी का आधार बनाया। उन्होंने रामायण, महाभारत और पौराणिक कहानियों के नाटकीय दृश्यों को किरमिच पर चित्रांकित किया। कला प्रेमियों के बीच उनके बनाए चित्र अत्यंत लोकप्रिय हुए।
कलाकारों का आधुनिक स्कूल:- कलकत्ता, बम्बई, मद्रास और लाहौर में कला स्कूलों (आर्ट स्कूल) की स्थापना, अंग्रेजी सरकार ने उन्नीसवीं सदी के मध्य में की। इससे एशियाई कला आंदोलन को प्रोत्साहन मिला।
भवन निर्माण की नई शैली और नई इमारतें: -ब्रिटिश शासन को भारत में स्थिरता प्राप्त हो गयी तब अंग्रेजों ने अपने शासन व व्यापार-वाणिज्य के लिए आलीशान भवन बनवाए। इन भवनों-इमारतों के निर्माण के लिए उन्होंने मोटे तौर पर तीन स्थापत्य शैलियों का प्रयोग किया । इनमें से एक शैली थी ‘ग्रीको-रोमन स्थापत्य शैली । इसमें बड़े-बड़े स्तम्भों के पीछे रेखागणितीय संरचनाओं एवं गुम्बद का निर्माण किया जाता था यह मूलतः रोम देश की भवन निर्माण की शैली थी। एक अन्य शैली ‘गॉथिक शैली’ थी। ऊंची उठी हुई छतें, नोकदार मेहराबें बारीक साज-सज्जा की शैली का प्रयोग सरकारी इमारतों, शैक्षणिक संस्थाओं एवं गिरजाघरों में होता था ।
उन्नीसवीं सदी के आखिर और बीसवीं सदी की शुरुआत में ‘इंडो-सारासेनिक शैली’ विकसित हुई। इसमें हिन्दू के लिए ‘इंडो’ और मुसलमानों के लिए ‘सारासेन’ शब्द मिश्रित थे।
भारत की मध्यकालीन इमारतों:-गुंबदों, छतरियों, जालियों, मेहराबों से यह शैली प्रभावित थे। इस शैली का प्रयोग कर अंग्रेज साबित करना चाहते थे कि वही यहाँ के वैध व स्वाभाविक शासक हैं। बांग्ला साहित्य (1858-1854) हिन्दी साहित्य (1850-1885) और उर्दू भाषा (हिन्दी-उर्दू की साझा साहित्य संस्कृति) का भी विकास इस दौर में हुआ जिनमें विशेषकर स्वाधीनता सामाजिक सौहार्द्र का संदेश दिया गया ।
पाठ के अन्दर आए प्रश्नों के उत्तर
1. ‘उत्कीर्ण चित्र’ व ‘अलबम’ क्या थे?
उत्तर-उत्कीर्ण चित्र-लकड़ी या धातु के छापे से कागज पर बनाये गये चित्र को उत्कीर्ण चित्र कहा गया।
अलबम-चित्र रखने की किताब को अलबम कहते हैं।
2. रूपचित्र क्या था?
उत्तर-किसी व्यक्ति का ऐसा चित्र जिसमें उसके चेहरे एवं हाव-भाव पर विशेष जोर दिया गया हो। इस शैली के बने चित्र रूपचित्र कहलाते थे।
3. किरमिच क्या था?
उत्तर-गाढ़ा या मोटा कपड़ा जिस पर चित्र पर उकेरा जाता था, उसे कलाकार किरमिच कहते थे।
3. पाश्चात्य चित्रकारों ने अंग्रेजों की श्रेष्ठता को दर्शाने के लिए चित्रकला की कौन-सी विषय, शैली एवं परम्परा को अपनाया। कक्षा में इसकी चर्चा करें।
उत्तर–पाश्चात्य चित्रकारों ने अंग्रेजी की श्रेष्ठता को दर्शाने के लिए भारत के भूदृश्यों के चित्रण को अपनी चित्रकारी का विषय बनाया । वे भारत के प्राचीन भू-दृश्यों में वैसे विषय को प्रमुखता दी जिससे भारत की गरीवी झलके । साथ ही अंग्रेजों द्वारा किये गये आधुनिकीकरण कार्यों
को प्रमुखता से चित्रित कर अंग्रेजों के वैभव एवं श्रेष्ठता को सिद्ध किये।
इसके लिए यूरोपीय कलाकारों ने उत्कीर्ण चित्रों की अलबम बनायी जिसे ब्रिटेनवासी उत्सुकता से भारत को जानने के लिए महंगे दामों में भी खरीदना चाहते थे। अंग्रेजी चित्रकारों ने अंग्रेजी वैभव को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाने के लिए ‘रूपचित्रण’ को प्रचलित यूरोपीय शैली को अपनाया जिसमें चित्र आदमकद होते थे। ये उनकी परम्परागत शैली थी।
4. औपनिवेशिक चित्रकला एवं राष्ट्रवादी चित्रकला में अंतर को स्पष्ट करें।
उत्तर-औपनिवेशिक चित्रकला को परम्परागत शैली जहाँ ‘रूपचित्रण’ थी, यानी आदमकद चित्र वहीं राष्ट्रवादी चित्रकला शैली ‘तेल चित्रकारी’ थी। जहाँ औपनिवेशिक चित्रकला के अंग्रेज कलाकार अपने देशवासियों की श्रेष्ठता व वैभव को सिद्ध करना चाहते थे, वहीं भारतीय, राष्ट्रवादी चित्रकला अपने चित्रों के माध्यम से राष्ट्रवादी संदेश देते थे। साथ ही वे रामायण, महाभारत और पौराणिक कहानियों के नाटकीय दृश्यों को ‘किरमिच’ पर चित्रांकित कर वे भारत के शानदार वैभवशाली अतीत को दर्शाकर अंग्रेजों के वैभव को करारा जवाब दे रहे थे।
5. कक्षा 7 के इकाई 8 में चित्रित लघुचित्रों को देखकर चित्र 12 की तुलना कीजिए? क्या आपको कोई समानता-असमानता दिखता है?
उत्तर-कक्षा-7 के इकाई 8 में चित्रित लघुचित्रों की तुलना में प्रस्तुत पाठ में दिये गये चित्र-12 में साफ तौर पर असमानता दिखती है। जहाँ कक्षा-7 के चित्रित लघुचित्र पूरे कैनवास पर चित्रित हैं वहीं कक्षा-8 के चित्र में मूल चित्र मात्र ऊपर एक छोटे से क्षेत्र में है जबकि अधिकतर हिस्से में धुंधली पृष्ठभूमि में हल्के रंगों के उपयोग से कन्ट्रास्ट यानी विरोधाभास उत्पन करने की कोशिश की है। चित्रकार अवनीन्द्रनाथ टैगोर ने । ‘मेरी माँ’ शीर्षक की उनकी इस चित्र पर स्पष्ट रूप से जापानी कलाकारों के प्रभाव अभिव्यक्त हो रहे हैं।
6. आप अपने गाँव, कस्वा एवं शहर में स्थित भवन एवं इमारतों की सूची बनाएँ एवं यह बताएं कि उनका निर्माण किस स्थापत्य शैली में हुआ है?
उत्तर-संकेत—यह परियोजना कार्य है। अपने शिक्षक के सहयोग, परामर्श व दिशा-निर्देशन में इसे सम्पन्न करें।
7. आर्थिक राष्ट्रवाद क्या है?
उत्तर-अंग्रेजी शासन की आर्थिक आलोचना के माध्यम से भारतीय राष्ट्रवाद की आर्थिक बुनियाद तैयार करने के प्रयास को आर्थिक राष्ट्रवाद कहा जाता है।
8. साहित्यिक देशभक्ति क्या थी?
उत्तर-देशभक्तिपूर्ण विचारों की अभिव्यक्ति के लिए साहित्य को माध्यम बनाना साहित्यिक देशभक्ति कहलाया।
9. साहित्य में किन राष्ट्रवादी तत्वों को उजागर किया गया है, कक्षा में चर्चा करें।
उत्तर:- भारतीय स्वाधीनता संघर्थ में भारतीय साहित्य ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्नीसवीं सदी के अंतिम दशक में जब देश में राष्ट्रवादी विचार ठभार लेने लगा तब, विभिन्न भाषाओं के साहित्यकारों ने साहित्य को देश-भक्तिपूर्ण उद्देश्यों के लिए प्रयोग में लाने लगे।
साहित्य में देश की गुलामी को दूर करने, पराधीनता के बोध को फेंक डालने और स्वतंत्रता की जरूरत को स्पष्ट अभिव्यक्ति मिलने लगी। साथ ही, साहित्य ने देश की आजादी के लिए जनसाधारण को हर प्रकार से बलिदान करने के लिए उत्प्रेरित किया।
अभ्यास
आइए फिर से याद करें-
1. सही या गलत बताएं-
(i) साहित्य में पराधीनता के बोध एवं स्वतंत्रता की जरूरतों को स्पष्ट अभिव्यक्ति मिलने लगी थी।
(ii) प्रेमचंद ने ‘आनंदमठ’ की रचना की थी।
(iii) रमेशचन्द्र दत्त के उपन्यास में हिन्दू समर्थक प्रवृत्ति देखने को मिलती है।
(iv) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने भारतीय धन के लूट को नाटक के माध्यम से पर्दाफाश किया है।
(v) ‘वंदे मातरम्’ गीत की रचना बंकिमचन्द्र चटर्जी ने की थी।2. रिक्त स्थानों को भरें:
(क) लकड़ी या धातु के छापे से कागज पर बनाई गई तस्वीर को……
कहा जाता है।
(ख) औपनिवेशिक काल में बनाये गये छविचित्र ……..होते थे।
(ग) अंग्रेजों की विजय को दर्शाने के लिए की……. चित्रकारी की जाती थी।
(घ) एशियाई कला आंदोलन को प्रोत्साहित करने वाले…… कलाकार थे।
उत्तर-(क) उत्कीर्ण चित्र, (ख) रूपचित्रण, (ग) युद्ध के दृश्यों, (घ)जापानी।
3. निम्नलिखित के जोड़े बनाएँ:
(क) सेन्ट्रल पोस्ट ऑफिस, कलकत्ता (i) गॉथिक शैली
(ख) विक्टोरिया टर्मिनस रेलवे स्टेशन, बम्बई (ii) इंडो सारासेनिक शैली
(ग) मद्रास लॉ कोर्ट (iii) इंडो ग्रीक शैली
उत्तर-
(क) सेन्ट्रल पोस्ट ऑफिस, कलकत्ता (iii) इंडो ग्रीक शैली
(ख) विक्टोयिा टर्मिनस रेलवे स्टेशन, बम्बई (i) गॉथिक शैली
(ग) मद्रास लॉ कोर्ट (ii) इंडो सारासैनिक शैली
आइए विचार करें:
(i) मधुबनी पेंटिंग किस प्रकार की कला शैली थी? इसके अंतर्गत किन विषयों को ध्यान में रखकर चित्र बनाये जाते थे?
उत्तर-मधुबनी पेंटिंग की कला शैली विहार की कला शैली है। इसमें प्रकृति, धर्म और सामाजिक संस्कारों, पारिवारिक अनुष्ठानों जैसे विषयों को ध्यान में रखकर चित्र बनाये जाते थे।
(ii) ब्रिटिश चित्रकारों ने अंग्रेजों की श्रेष्ठता एवं भारतीयों की कमतर हैसियत को दिखाने के लिए किस तरह के चित्रों को दर्शाया है?
उत्तर-ब्रिटिश चित्रकारों ने भारत को एक आदिम देश साबित करने के लिए यहाँ के गुजरे जमाने की टूटी-फूटी भवनों एवं इमारतों के खंडहर के चित्र बनाए। ऐसी सभ्यता के अवशेष दिखाए जो पतन की ओर अग्रसर थी। ये चित्र भारतीयों की कमतर हैसियत को दिखाने के लिए बनाये गये। जबकि ब्रिटिशों या अंग्रेजों की श्रेष्ठता को दिखाने के लिए उनके द्वारा बनायी गयी चौड़ी सड़कें तथा यूरोपीय शैली में बनाई गई विशाल एवं भव्य इमारतों-भवनों को यानी उनके आधुनिकीकरण को अपने चित्र में स्थान दिया ।
(iii) “उन्नीसवीं सदी की इमारतें अंग्रेजों की श्रेष्ठता, अधिकार, सत्ता की प्रतीक एवं उनकी राष्ट्रवादी विचारों का प्रतिनिधित्व करती हैं।” इस कथन के आधार पर स्थापत्य कला शैली की विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर-जब भारत में ब्रिटिश शासन को स्थिरता प्राप्त हुई तब उन्हें बुनियादी तौर पर रक्षा, प्रशासन, आवास और वाणिज्य जैसी इमारतों की पूर्ति के लिए भवनों एवं इमारतों की जरूरत होने लगी। उन्नीसवीं सदी से शहरों में बनने वाली इमारतों में किले, सरकारी दफ्तरों, शैक्षणिक संस्थान, धार्मिक, इमारतें, व्यावसायिक भवन आदि प्रमुख थी। ये इमारतें अंग्रेजों की श्रेष्ठता, अधिकार, सत्ता की प्रतीक तथा उनकी राष्ट्रवादी विचारों का प्रतिनिधित्व भी करती हैं।
सार्वजनिक भवनों के लिए मोटे तौर पर उन्होंने तीन स्थापत्य शैलियों का प्रयोग किया। इनमें से एक ‘ग्रीको रोमन स्थापत्य शैली’ थी। मूल रूप से रोम की इस भवन निर्माण शैली को अंग्रेजों ने यूरोपीय पुनर्जागरण के दौरान पुनर्जीवित किया था। बड़े-बड़े स्तम्भों के पीछे रेखागणितीय संरचनाओं एवं गुम्बद का निर्माण इस शैली की विशेषता थी। अन्य शैलियाँ थी – गॉथिक शैली’ एवं ‘इंडो-सारासैनिक शैली’।
(iv) साहित्यिक देशभक्ति से आप क्या समझते हैं ? विचार करें।
उत्तर-जब साहित्यकार देशभक्तिपूर्ण उदेश्यों के लिए साहित्य का उपयोग करते हैं तो इसे साहित्यिक देशभक्ति कहते हैं। ऐसे साहित्य में साहित्यकारों ने जनसाधारण को पराधीनता के बोध से परिचित कराया और स्वतंत्रता की जरूरत को महसूस कराया।
(v) मॉडर्न स्कूल ऑफ आर्टिस्ट्स’ से जुड़े भारतीय कलाकारों ने राष्ट्रीय कला को प्रोत्साहित करने के लिए किन विषयों का चयन किया । चित्र 12, 13, 14 के आधार पर वर्णन करें।
उत्तर-‘मॉडर्न स्कूल ऑफ आर्टिस्ट्स’ से जुड़े भारतीय कलाकारों ने राष्ट्रीय कला को प्रोत्साहित करने के लिए यथार्थवादी विषयों (चित्र-12, ‘मेरी माँ’ अवनीन्द्रनाथ टैगोर द्वाराचित्रित), ऐतिहासिक एवं पौराणिक विषयों को अपनी चित्रकारी का विषय बनाया । जैसे चित्र-13 कालिदास की कविता का निर्वासित यक्ष, अवनिंद्रनाथ द्वारा बनाया गया यह चित्र जापानी जलरंग की तस्वीरों में देखा जा सकता था और चित्र-14 जातुगृह दाह यानी पांडवों के वनवास के दौरान लाक्षागृह के जलने का चित्र । यह चित्र अजन्ता के चित्र शैली से प्रभावित था और नन्दलाल बोस नामक चित्रकार के द्वारा बनाया गया था।
पाठ का सारांश-प्राचीन एवं मध्यकाल में भारतीयों ने चित्रकला, स्थापत्य, नृत्य, संगीत, साहित्य के क्षेत्रों में महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की थीं । अठारहवीं सदी में राजाओं और नवाबों की डांवाडोल वित्तीय स्थिति के कारण कलाकार एवं साहित्यकार राजकीय संरक्षण से वंचित हो गए थे। पलासी की लड़ाई के बाद उभरी औपनिवेशिक शक्ति की सत्ता के दौरान भारतीय एवं यूरोपीय शैली एक-दूसरे के पास आई।
औपनिवेशिक कला:- कई यूरोपीय कलाकार भी अंग्रेज व्यापारियों एवं अधिकारियों के साथ भारत आए। इन्होंने भारत में नई शैलियाँ, विषयों, परम्पराओं एवं तकनीकी की शुरुआत की। ये यथार्थवादी दृष्टिकोण वाले थे। जो कुछ जैसा दिखता है, वे उसे वैसा ही चित्रित करते थे। ये कलाकार तैलचित्र की नई तकनीक को भारत में आए।
भारत के भूदृश्यों का चित्रण:- यूरोपीय कलाकारों ने पूर्व के भारत की आदिम, गरीब व पतनोन्मुख अवस्था की तस्वीर बनाई। जबकि यूरोपीय सरकार के भारत में कार्य-निर्माण को प्रमुखता से प्रस्तुत कर यूरोपीय सरकार को महिमामंडित करने का प्रयास किया। इनकी लोकप्रिय
शैली ‘रूपचित्रण’ थी। पहले राजे-नवाब किरमिच पर छोटे चित्रों में अपने वैभव का प्रदर्शन करते थे। किन्तु औपनिवेशिक कलाकार आदमकद छवि बनाने लगे।
ऐतिहासिक घटनाओं का चित्रण:- ऐतिहासिक चित्रकला की एक अन्य शैली ‘इतिहास की चित्रकारी’ थी। अंग्रेजी चित्रकारों ने अंग्रेजों की युद्धों में जीत को अपनी कला का विषय-वस्तु बनाया।
दरबारी कला और स्थानीय कलाकार:- स्थानीय भारतीय कलाकारों ने भित्ति चित्र एवं परिपेक्ष्य विधि अपनाकर साम्राज्यवादी कला शैली को चुनौती दी। उन्होंने ‘कंपनी’ यानी अंग्रेजी अधिकारियों के लिए भी चित्र बनाए । इस काल में स्थानीय कलाकारों द्वारा बनाए गए पौधों, जानवरों, ऐतिहासिक इमारतों, पर्व-त्योहारों, व्यवसायों, जाति और समुदाय की तस्वीरों को कम्पनी चित्र’ के नाम से जाना जाता है। अंग्रेजों ने भारतीय परिवेश को समझने के लिए ये चित्र बनवाए । राजदरबार के प्रभाव से मुक्त रहते हुए बिहार में कलाकारों ने ‘मधुबनी पेंटिग’ की प्रमुख चित्रशैली को विकसित और प्रसिद्ध किया।
राष्ट्रवादी चित्रकला शैली:- राजा रवि वर्मा जैसे चित्रकारों ने उन्नीसवीं सदी के अंतिम दशक एवं बीसवीं सदी के प्रारंभ में राष्ट्रवादी कला शैली, विकसित कर जनसाधारण को राष्ट्रवादी संदेश देने का महत्वपूर्ण काम किया। उन्होंने तैल चित्रकारी की यूरोपीय कला शैली को अपनी चित्रकारी का आधार बनाया। उन्होंने रामायण, महाभारत और पौराणिक कहानियों के नाटकीय दृश्यों को किरमिच पर चित्रांकित किया। कला प्रेमियों के बीच उनके बनाए चित्र अत्यंत लोकप्रिय हुए।
कलाकारों का आधुनिक स्कूल:- कलकत्ता, बम्बई, मद्रास और लाहौर में कला स्कूलों (आर्ट स्कूल) की स्थापना, अंग्रेजी सरकार ने उन्नीसवीं सदी के मध्य में की। इससे एशियाई कला आंदोलन को प्रोत्साहन मिला।
भवन निर्माण की नई शैली और नई इमारतें: -ब्रिटिश शासन को भारत में स्थिरता प्राप्त हो गयी तब अंग्रेजों ने अपने शासन व व्यापार-वाणिज्य के लिए आलीशान भवन बनवाए। इन भवनों-इमारतों के निर्माण के लिए उन्होंने मोटे तौर पर तीन स्थापत्य शैलियों का प्रयोग किया । इनमें से एक शैली थी ‘ग्रीको-रोमन स्थापत्य शैली । इसमें बड़े-बड़े स्तम्भों के पीछे रेखागणितीय संरचनाओं एवं गुम्बद का निर्माण किया जाता था यह मूलतः रोम देश की भवन निर्माण की शैली थी। एक अन्य शैली ‘गॉथिक शैली’ थी। ऊंची उठी हुई छतें, नोकदार मेहराबें बारीक साज-सज्जा की शैली का प्रयोग सरकारी इमारतों, शैक्षणिक संस्थाओं एवं गिरजाघरों में होता था ।
उन्नीसवीं सदी के आखिर और बीसवीं सदी की शुरुआत में ‘इंडो-सारासेनिक शैली’ विकसित हुई। इसमें हिन्दू के लिए ‘इंडो’ और मुसलमानों के लिए ‘सारासेन’ शब्द मिश्रित थे।
भारत की मध्यकालीन इमारतों:-गुंबदों, छतरियों, जालियों, मेहराबों से यह शैली प्रभावित थे। इस शैली का प्रयोग कर अंग्रेज साबित करना चाहते थे कि वही यहाँ के वैध व स्वाभाविक शासक हैं। बांग्ला साहित्य (1858-1854) हिन्दी साहित्य (1850-1885) और उर्दू भाषा (हिन्दी-उर्दू की साझा साहित्य संस्कृति) का भी विकास इस दौर में हुआ जिनमें विशेषकर स्वाधीनता सामाजिक सौहार्द्र का संदेश दिया गया ।
पाठ के अन्दर आए प्रश्नों के उत्तर
1. ‘उत्कीर्ण चित्र’ व ‘अलबम’ क्या थे?
उत्तर-उत्कीर्ण चित्र-लकड़ी या धातु के छापे से कागज पर बनाये गये चित्र को उत्कीर्ण चित्र कहा गया।
अलबम-चित्र रखने की किताब को अलबम कहते हैं।
2. रूपचित्र क्या था?
उत्तर-किसी व्यक्ति का ऐसा चित्र जिसमें उसके चेहरे एवं हाव-भाव पर विशेष जोर दिया गया हो। इस शैली के बने चित्र रूपचित्र कहलाते थे।
3. किरमिच क्या था?
उत्तर-गाढ़ा या मोटा कपड़ा जिस पर चित्र पर उकेरा जाता था, उसे कलाकार किरमिच कहते थे।
3. पाश्चात्य चित्रकारों ने अंग्रेजों की श्रेष्ठता को दर्शाने के लिए चित्रकला की कौन-सी विषय, शैली एवं परम्परा को अपनाया। कक्षा में इसकी चर्चा करें।
उत्तर–पाश्चात्य चित्रकारों ने अंग्रेजी की श्रेष्ठता को दर्शाने के लिए भारत के भूदृश्यों के चित्रण को अपनी चित्रकारी का विषय बनाया । वे भारत के प्राचीन भू-दृश्यों में वैसे विषय को प्रमुखता दी जिससे भारत की गरीवी झलके । साथ ही अंग्रेजों द्वारा किये गये आधुनिकीकरण कार्यों
को प्रमुखता से चित्रित कर अंग्रेजों के वैभव एवं श्रेष्ठता को सिद्ध किये।
इसके लिए यूरोपीय कलाकारों ने उत्कीर्ण चित्रों की अलबम बनायी जिसे ब्रिटेनवासी उत्सुकता से भारत को जानने के लिए महंगे दामों में भी खरीदना चाहते थे। अंग्रेजी चित्रकारों ने अंग्रेजी वैभव को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाने के लिए ‘रूपचित्रण’ को प्रचलित यूरोपीय शैली को अपनाया जिसमें चित्र आदमकद होते थे। ये उनकी परम्परागत शैली थी।
4. औपनिवेशिक चित्रकला एवं राष्ट्रवादी चित्रकला में अंतर को स्पष्ट करें।
उत्तर-औपनिवेशिक चित्रकला को परम्परागत शैली जहाँ ‘रूपचित्रण’ थी, यानी आदमकद चित्र वहीं राष्ट्रवादी चित्रकला शैली ‘तेल चित्रकारी’ थी। जहाँ औपनिवेशिक चित्रकला के अंग्रेज कलाकार अपने देशवासियों की श्रेष्ठता व वैभव को सिद्ध करना चाहते थे, वहीं भारतीय, राष्ट्रवादी चित्रकला अपने चित्रों के माध्यम से राष्ट्रवादी संदेश देते थे। साथ ही वे रामायण, महाभारत और पौराणिक कहानियों के नाटकीय दृश्यों को ‘किरमिच’ पर चित्रांकित कर वे भारत के शानदार वैभवशाली अतीत को दर्शाकर अंग्रेजों के वैभव को करारा जवाब दे रहे थे।
5. कक्षा 7 के इकाई 8 में चित्रित लघुचित्रों को देखकर चित्र 12 की तुलना कीजिए? क्या आपको कोई समानता-असमानता दिखता है?
उत्तर-कक्षा-7 के इकाई 8 में चित्रित लघुचित्रों की तुलना में प्रस्तुत पाठ में दिये गये चित्र-12 में साफ तौर पर असमानता दिखती है। जहाँ कक्षा-7 के चित्रित लघुचित्र पूरे कैनवास पर चित्रित हैं वहीं कक्षा-8 के चित्र में मूल चित्र मात्र ऊपर एक छोटे से क्षेत्र में है जबकि अधिकतर हिस्से में धुंधली पृष्ठभूमि में हल्के रंगों के उपयोग से कन्ट्रास्ट यानी विरोधाभास उत्पन करने की कोशिश की है। चित्रकार अवनीन्द्रनाथ टैगोर ने । ‘मेरी माँ’ शीर्षक की उनकी इस चित्र पर स्पष्ट रूप से जापानी कलाकारों के प्रभाव अभिव्यक्त हो रहे हैं।
6. आप अपने गाँव, कस्वा एवं शहर में स्थित भवन एवं इमारतों की सूची बनाएँ एवं यह बताएं कि उनका निर्माण किस स्थापत्य शैली में हुआ है?
उत्तर-संकेत—यह परियोजना कार्य है। अपने शिक्षक के सहयोग, परामर्श व दिशा-निर्देशन में इसे सम्पन्न करें।
7. आर्थिक राष्ट्रवाद क्या है?
उत्तर-अंग्रेजी शासन की आर्थिक आलोचना के माध्यम से भारतीय राष्ट्रवाद की आर्थिक बुनियाद तैयार करने के प्रयास को आर्थिक राष्ट्रवाद कहा जाता है।
8. साहित्यिक देशभक्ति क्या थी?
उत्तर-देशभक्तिपूर्ण विचारों की अभिव्यक्ति के लिए साहित्य को माध्यम बनाना साहित्यिक देशभक्ति कहलाया।
9. साहित्य में किन राष्ट्रवादी तत्वों को उजागर किया गया है, कक्षा में चर्चा करें।
उत्तर:- भारतीय स्वाधीनता संघर्थ में भारतीय साहित्य ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्नीसवीं सदी के अंतिम दशक में जब देश में राष्ट्रवादी विचार ठभार लेने लगा तब, विभिन्न भाषाओं के साहित्यकारों ने साहित्य को देश-भक्तिपूर्ण उद्देश्यों के लिए प्रयोग में लाने लगे।
साहित्य में देश की गुलामी को दूर करने, पराधीनता के बोध को फेंक डालने और स्वतंत्रता की जरूरत को स्पष्ट अभिव्यक्ति मिलने लगी। साथ ही, साहित्य ने देश की आजादी के लिए जनसाधारण को हर प्रकार से बलिदान करने के लिए उत्प्रेरित किया।
अभ्यास
आइए फिर से याद करें-
1. सही या गलत बताएं-
(i) साहित्य में पराधीनता के बोध एवं स्वतंत्रता की जरूरतों को स्पष्ट अभिव्यक्ति मिलने लगी थी।
(ii) प्रेमचंद ने ‘आनंदमठ’ की रचना की थी।
(iii) रमेशचन्द्र दत्त के उपन्यास में हिन्दू समर्थक प्रवृत्ति देखने को मिलती है।
(iv) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने भारतीय धन के लूट को नाटक के माध्यम से पर्दाफाश किया है।
(v) ‘वंदे मातरम्’ गीत की रचना बंकिमचन्द्र चटर्जी ने की थी।2. रिक्त स्थानों को भरें:
(क) लकड़ी या धातु के छापे से कागज पर बनाई गई तस्वीर को……
कहा जाता है।
(ख) औपनिवेशिक काल में बनाये गये छविचित्र ……..होते थे।
(ग) अंग्रेजों की विजय को दर्शाने के लिए की……. चित्रकारी की जाती थी।
(घ) एशियाई कला आंदोलन को प्रोत्साहित करने वाले…… कलाकार थे।
उत्तर-(क) उत्कीर्ण चित्र, (ख) रूपचित्रण, (ग) युद्ध के दृश्यों, (घ)जापानी।
3. निम्नलिखित के जोड़े बनाएँ:
(क) सेन्ट्रल पोस्ट ऑफिस, कलकत्ता (i) गॉथिक शैली
(ख) विक्टोरिया टर्मिनस रेलवे स्टेशन, बम्बई (ii) इंडो सारासेनिक शैली
(ग) मद्रास लॉ कोर्ट
उत्तर-
(क) सेन्ट्रल पोस्ट ऑफिस, कलकत्ता (iii) इंडो ग्रीक शैली
(ख) विक्टोयिा टर्मिनस रेलवे स्टेशन, बम्बई (i) गॉथिक शैली
(ग) मद्रास लॉ कोर्ट
आइए विचार करें:
(i) मधुबनी पेंटिंग किस प्रकार की कला शैली थी? इसके अंतर्गत किन विषयों को ध्यान में रखकर चित्र बनाये जाते थे?
उत्तर-मधुबनी पेंटिंग की कला शैली विहार की कला शैली है। इसमें प्रकृति, धर्म और सामाजिक संस्कारों, पारिवारिक अनुष्ठानों जैसे विषयों को ध्यान में रखकर चित्र बनाये जाते थे।
(ii) ब्रिटिश चित्रकारों ने अंग्रेजों की श्रेष्ठता एवं भारतीयों की कमतर हैसियत को दिखाने के लिए किस तरह के चित्रों को दर्शाया है?
उत्तर-ब्रिटिश चित्रकारों ने भारत को एक आदिम देश साबित करने के लिए यहाँ के गुजरे जमाने की टूटी-फूटी भवनों एवं इमारतों के खंडहर के चित्र बनाए। ऐसी सभ्यता के अवशेष दिखाए जो पतन की ओर अग्रसर थी। ये चित्र भारतीयों की कमतर हैसियत को दिखाने के लिए बनाये गये। जबकि ब्रिटिशों या अंग्रेजों की श्रेष्ठता को दिखाने के लिए उनके द्वारा बनायी गयी चौड़ी सड़कें तथा यूरोपीय शैली में बनाई गई विशाल एवं भव्य इमारतों-भवनों को यानी उनके आधुनिकीकरण को अपने चित्र में स्थान दिया ।
(iii) “उन्नीसवीं सदी की इमारतें अंग्रेजों की श्रेष्ठता, अधिकार, सत्ता की प्रतीक एवं उनकी राष्ट्रवादी विचारों का प्रतिनिधित्व करती हैं।” इस कथन के आधार पर स्थापत्य कला शैली की विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर-जब भारत में ब्रिटिश शासन को स्थिरता प्राप्त हुई तब उन्हें बुनियादी तौर पर रक्षा, प्रशासन, आवास और वाणिज्य जैसी इमारतों की पूर्ति के लिए भवनों एवं इमारतों की जरूरत होने लगी। उन्नीसवीं सदी से शहरों में बनने वाली इमारतों में किले, सरकारी दफ्तरों, शैक्षणिक संस्थान, धार्मिक, इमारतें, व्यावसायिक भवन आदि प्रमुख थी। ये इमारतें अंग्रेजों की श्रेष्ठता, अधिकार, सत्ता की प्रतीक तथा उनकी राष्ट्रवादी विचारों का प्रतिनिधित्व भी करती हैं।
सार्वजनिक भवनों के लिए मोटे तौर पर उन्होंने तीन स्थापत्य शैलियों का प्रयोग किया। इनमें से एक ‘ग्रीको रोमन स्थापत्य शैली’ थी। मूल रूप से रोम की इस भवन निर्माण शैली को अंग्रेजों ने यूरोपीय पुनर्जागरण के दौरान पुनर्जीवित किया था। बड़े-बड़े स्तम्भों के पीछे रेखागणितीय संरचनाओं एवं गुम्बद का निर्माण इस शैली की विशेषता थी। अन्य शैलियाँ थी – गॉथिक शैली’ एवं ‘इंडो-सारासैनिक शैली’।
(iv) साहित्यिक देशभक्ति से आप क्या समझते हैं ? विचार करें।
उत्तर-जब साहित्यकार देशभक्तिपूर्ण उदेश्यों के लिए साहित्य का उपयोग करते हैं तो इसे साहित्यिक देशभक्ति कहते हैं। ऐसे साहित्य में साहित्यकारों ने जनसाधारण को पराधीनता के बोध से परिचित कराया और स्वतंत्रता की जरूरत को महसूस कराया।
(v) मॉडर्न स्कूल ऑफ आर्टिस्ट्स’ से जुड़े भारतीय कलाकारों ने राष्ट्रीय कला को प्रोत्साहित करने के लिए किन विषयों का चयन किया । चित्र 12, 13, 14 के आधार पर वर्णन करें।
उत्तर-‘मॉडर्न स्कूल ऑफ आर्टिस्ट्स’ से जुड़े भारतीय कलाकारों ने राष्ट्रीय कला को प्रोत्साहित करने के लिए यथार्थवादी विषयों (चित्र-12, ‘मेरी माँ’ अवनीन्द्रनाथ टैगोर द्वाराचित्रित), ऐतिहासिक एवं पौराणिक विषयों को अपनी चित्रकारी का विषय बनाया । जैसे चित्र-13 कालिदास की कविता का निर्वासित यक्ष, अवनिंद्रनाथ द्वारा बनाया गया यह चित्र जापानी जलरंग की तस्वीरों में देखा जा सकता था और चित्र-14 जातुगृह दाह यानी पांडवों के वनवास के दौरान लाक्षागृह के जलने का चित्र । यह चित्र अजन्ता के चित्र शैली से प्रभावित था और नन्दलाल बोस नामक चित्रकार के द्वारा बनाया गया था।