History

Bhikhaji Cama | भीखाजी कामा

Bhikhaji Cama Biography in Hindi

जन्म: 24 सितम्बर 1861

मृत्यु: 13 अगस्त, 1936

कार्य: स्वतंत्रता सेनानी, पहली भारतीय क्रांतिकारी जिन्होनें विदेश में सवर्प्रथम राष्टीय झंडा फ़हराया था

भीखाजी जी रूस्तम कामा अथवा मैडम कामा भारतीय मूल की फ्रांसीसी नागरिक थीं जिन्होंने दुनिया के विभिन्न देशों में जाकर भारत के स्वतंत्रता के पक्ष में माहौल बनाने का कार्य किया। मैडम कामा ने जर्मनी के स्टटगार्ट शहर में 22 अगस्त 1907 में सातवीं अंतर्राष्ट्रीय कांग्रेस के दौरान भारतीय तिरंगा फ़हराया। उन्होंने इस तिरंगे में भारत के विभिन्न समुदायों इत्यादी को दर्शाया था। उनका तिरंगा आज के तिरंगे जैसा नहीं था।

प्रारंभिक जीवन

भीकाजी कामा का जन्म 24 सितम्बर 1861 को बम्बई में एक पारसी परिवार में हुआ था। मैडम कामा के पिता प्रसिद्ध व्यापारी थे। इनके पिता का नाम सोराबजी पटेल था। भीखाजी के नौ भाई-बहन थे। उनका विवाह 1885 में एक पारसी समाज सुधारक रुस्तम जी कामा से हुआ था।

देश की आजादी के लिए कार्य

भीकाजी ने लन्दन, जर्मनी तथा अमेरिका का भ्रमण कर भारत की स्वतंत्रता के पक्ष में माहौल बनाया था। वे जर्मनी के स्टटगार्ट नगर में 22 अगस्त 1907 में हुई सातवीं अंतर्राष्ट्रीय कांग्रेस में तिरंगा फहराने के लिए विख्यात हुईं। उन्होंने अपनी शिक्षा एलेक्जेंड्रा नेटिव गल्र्स संस्थान में प्राप्त की थी और वह शुरू से ही तीव्र बुद्धि वाली और संवेदनशील थी। वे हमेशा ब्रिटिश साम्राज्य विरोधी गतिविधियों में लगी रहती थी। वर्ष 1896 में मुम्बई में प्लेग फैलने के बाद भीकाजी ने इसके मरीजों की सेवा की थी। बाद में वह खुद भी इस बीमारी की चपेट में आ गई थीं। इलाज के बाद वह ठीक हो गई थीं लेकिन उन्हें आराम और आगे के इलाज के लिए यूरोप जाने की सलाह दी गई। वर्ष 1906 में उन्होंने लन्दन में रहना शुरू किया जहां उनकी मुलाक़ात प्रसिद्ध भारतीय क्रांतिकारी श्यामजी कृष्ण वर्मा, हरदयाल और वीर सावरकर से हुई। लंदन में रहते हुए वह दादाभाई नवरोजी की निची सचिव भी थीं। दादाभाई नोरोजी ब्रिटिश हाउस ऑफ़ कॉमन्स का चुनाव लड़ने वाले पहले एशियाई थे। जब वो हॉलैंड में थी, उस दौरान उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर क्रांतिकारी रचनाएं प्रकाशित करायी थी और उनको लोगों तक पहुंचाया भी। वे जब फ्रांस में थी तब ब्रिटिश सरकार ने उनको वापस बुलाने की मांग की थी पर फ्रांस की सरकार ने उस मांग को खारिज कर दिया था। इसके पश्चात ब्रिटिश सरकार ने उनकी भारतीय संपत्ति जब्त कर ली और भीखाजी कामा के भारत आने पर रोक लगा दी। उनके सहयोगी उन्हें भारतीय क्रांति की माता मानते थे, जबकि अंग्रेज उन्हें कुख्यात् महिला, खतरनाक क्रांतिकारी, अराजकतावादी क्रांतिकारी, ब्रिटिश विरोधी तथा असंगत कहते थे।

भीकाजी ने वर्ष 1905 में अपने सहयोगियों विनायक दामोदर सावरकर और श्यामजी कृष्ण वर्मा की मदद से भारत के ध्वज का पहला डिजाइन तैयार किया। भीकाजी द्वारा लहराए गए झंडे में देश के विभिन्न धर्मों की भावनाओं और संस्कृति को समेटने की कोशिश की गई थी। उसमें इस्लाम, हिंदुत्व और बौद्ध मत को प्रदर्शित करने के लिए हरा, पीला और लाल रंग इस्तेमाल किया गया था। साथ ही उसमें बीच में देवनागरी लिपि में ̔वंदे मातरम̕ लिखा हुआ था। भीका जी ने लिंग समानता के लिए भी कार्य किया था। भीकाजी कामा ने 22 अगस्त 1907 को जर्मनी में हुई इंटरनेशनल सोशलिस्ट कांफ्रेंस में भारतीय स्वतंत्रता के ध्वज को बुलंद किया था।

उनके सम्मान में भारत में कई स्थानों और गलियों का नाम उनके नाम पर रखा गया है। 26 जनवरी 1962 में भारतीय डाक ने उनके समर्पण और योगदान के लिए उनके नाम का डाक टिकट जारी किया था। भारतीय तटरक्षक सेना में जहाजों का नाम भी उनके नाम पर रखा गया था। देश की सेवा और स्वतंत्रता के लिए सब कुछ कुर्बान कर देने वाली इस महान महिला की मृत्यु 1936 में मुम्बई के पारसी जनरल अस्पताल में हुयी। उस वक्त उनके मुख से निकले आखिरी शब्द थे  ̔वंदे मातरम  !

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *