BSEB class 9th sanskrit notes – संस्कृतस्य महिमा
BSEB class 9th sanskrit notes – संस्कृतस्य महिमा
BSEB class 10th sanskrit notes
वर्ग – 9
विषय – संस्कृत
पाठ 5 – संस्कृतस्य महिमा
संस्कृतस्य महिमा
(गुरुशिष्यमध्ये संस्कृतकक्षायां संस्कृतभाषायाः महत्त्वविषये रोचकः संवाद: पाठेऽस्मिन् वर्तते। अनेन संवादेन छात्राणां ज्ञानवृद्धिरः जिज्ञासा च प्रवर्तते। संस्कृतस्य व्यापकत्यं शब्दरचनाशक्तिम् अन्यमुपयोगं च दर्शयति पाठोऽयम्।)
(इस पाठ में संस्कृत कक्षा में गुरु शिष्य के बीच ‘संस्कृत भाषा का महत्त्व’ विषय पर एक रोचक संवाद है। इस संवाद के माध्यम से छात्रों के ज्ञान में वृद्धि तथा संस्कृत भाषा के प्रति उनमें जिज्ञासा पैदा करने का प्रयास किया गया है। इसके अतिरिक्त इस
पाठ में संस्कृत की व्यापकता, शब्द रचना शक्ति तथा उसके अन्य उपयोग को भी दिखाया गया है।)
1. संस्कृतशिक्षक: कक्षां प्रविशति। छात्रा: स्वस्थानादुत्थाय अभिवादनं कुर्वन्ति।
शब्दार्थ : प्रविशति = प्रवेश करता है । स्वस्थानात् = अपने स्थान से। उत्थाय =उठकर।
हिन्दी अनुवाद : संस्कृत शिक्षक कक्षा में प्रवेश करते हैं। छात्र अपने स्थान से उठकर अभिवादन करते हैं।
2. शिक्षकः – उपविशन्तु सर्वे। अद्य संस्कृतस्य महत्त्वं कथयामि ।
रमेश: – गुरुदेव! अपि संस्कृतस्य अध्ययनं लाभकरम्?
शिक्षकः – न जानासि वत्स? संस्कृतं विना न संस्कृतिः।
राजीव: – का नाम संस्कृति:?
शिक्षक: – संस्कृते एव आचारा: विचारा: भावनाश्च सन्ति। यत्रेमे भवन्ति, तत्रैव संस्कृतिः
पुष्करः – कथ्यन्ति जना:यत् इयं मृता भाषा।
शिक्षक: – वत्स! ज्ञानहीनास्ते। अस्यामेव भारतीयभाषाणां जीवनम्। अस्यामेव भारतीयाः भाषा: निर्गता:। एतदर्थं सा भाषाणां जननी कथ्यते। नेयं मृता भाषा, अपितु अजरा अमरा चैति। अद्यापि सा जीवति।
रमेशः – अस्यामेव भारतीयभाषाणां जीवनम् ?
शिक्षकः – अथ किम्? सर्वाः भारतीयभाषा: संस्कृतभाषाया: ऋणं धारयन्ति। अत्रैव प्राचीनं वेदादिशास्त्रं रचितम्।
कमालः – शब्दज्ञानाय संस्कृतकोशोऽपि वर्तते किम्?
सन्धि विच्छेद : भावनाश्च = भावनाः + च। यत्रैमें = यत्र + इमें। तत्रैव = तत्र + एव। ज्ञानहोनास्ते = ज्ञानहीना: + ते। अस्यामेव = अस्याम् + एव। चेति = च + इति। अद्यापि = अद्य + अपि! वेदादि = वेद + आदि। संस्कृतकोशोऽपि = संस्कृतकोश: + अपि। एतदर्थं = एतत् + अर्थ। नेयं = न + इयम्।
शब्दार्थ : उपविशन्तु = बैठें, बैठ जाएँ। इमे =ये (स्त्रीलिंग)। निर्गता: = निकली हैं। अस्यामेव = यह ही। एतदर्थं = इस कारण से। नेयम् = यह नहीं। अथ किम और क्या? धारयन्ति = धारण करती है। शब्द ज्ञानाय = शब्द ज्ञान के लिये।
हिन्दी अनुवाद :
शिक्षक – सब बैठ जायें। आज मैं संस्कृत भाषा का महत्व कहता हूँ (बताता हूँ)।
रमेश – गुरुदेव! क्या संस्कृत का अध्ययन लाभदायक हैं?
शिक्षक – वत्स! क्या नहीं जानते हो कि संस्कृत के बिना संस्कृति नहीं है।
राजीव – संस्कृति क्या है?
शिक्षक – संस्कृत (भाषा) में ही हमारे आचार, विचार और भावनाएँ (सुरक्षित) हैं। जहाँ ये होती हैं, वहाँ ही संस्कृति होती है।
पुष्कर – लोग कहते हैं कि यह मृत भाषा है।
शिक्षक – वत्स! ऐसा कहने वाले ज्ञानहीन हैं। यह ही भारतीय भाषाओं का जीवन है। इसी से भारतीय भाषाएँ निकली हैं। इसलिये ही वह भाषाओं की जननी कही जाती है। यह मृत भाषा नहीं है, बल्कि अजर और अमर है। आज भी वह जीवित है।
रमेश – क्या यह ही भारतीय भाषाओं का जीवन है?
शिक्षक – और क्या? सभी भारतीय भाषाएँ संस्कृत भाषा का ऋण धारण करती हैं। इसी भाषा में वेद आदि प्राचीन शास्त्र रचे गये हैं।
कमाल – क्या शब्दज्ञान के लिये संस्कृत का शब्दकोश भी है?
3. शिक्षकः– आम् आम्। प्राचीना: नवीनाश्च अनेके संस्कृतकोशाः सन्ति। शब्दरचनाविधिरपि व्याकरणे वर्तते। तेन लक्षशः शब्दा: निर्मीयन्ते, अन्यासु भाषासु प्रदीयन्ते।
पुष्करः– अस्या: व्याकरणम् अपूर्वं तर्हि।
शिक्षक: – अत्र पाणिनिंः श्रेष्ठः वैयाकरण: आसीत्। तत्सदृश: न कुत्रापि वैयाकरणो जात:।
लतिकाः – किं पाणिनिसमानः कुत्रापि वैयाकरणो नास्ति?
शिक्षक: – आम्, अस्योत्तरं सर्वत्र मौनमस्ति।
रमा: – गुरुदेव! मम पिता कथयति यत् संगणके (कंप्यूटरयन्त्रे) अपि संस्कृतं सहायकं भवति ।
शिक्षक: – सत्यं वदति ते पिता। अपि च- योगशास्त्रे पतञ्जलिकृतं योगदर्शनमपि अपूर्वम्।
कमाल: – पूज्यवर। श्रूयते यत् संस्कृते क्रियारूपाणि असंख्यानि सन्ति।
शिक्षक: – सत्यमेतत्। धातवः एव द्विसहस्राधिका: तेषां दशलकारेषु नाना रूपाणि भवन्ति। सर्वेषु लकारेषु नव-नव रूपाणि सन्ति।
पुष्कर: – धातवोऽपि त्रिधा भवन्ति इति भवान् उक्तवान्।
शिक्षकः – आम्। केचिद् आत्मनेपदिनः, केचित् परस्मैपदिनः, केचिद् उभयपदिन:। एवं त्रिधा ते भवन्ति।
रहीमः – तदा तु भाषेयम् अतीव जटिला।
सन्धि विच्छेद : नवीनाश्च = नवीना: + च। विधिरपि = विधि: + अपि। कुत्रापि = कुत्र + अपि। अस्योत्तर
= अस्य + उत्तरम्। मौनमस्ति = मौनम् + अस्ति।
सत्यमेतत् = सत्यम् + एतत्। धातवोऽपि = धातवः + अपि। भाषेयम् = भाषा + इयम्। द्विसहस्त्राधिका: = द्विसहस्त्र + अधिका: ।
शब्दार्थ : आम् = हाँ। लक्षसः = लाखों। निमीयन्ते: = बनते हैं। प्रदीयन्ते = दिये जाते हैं। तर्हि = (तब) तो। अपूर्व: = अद्वितीय है, जैसा पहले नहीं है । वैयाकरण = व्याकरण शास्त्र के ज्ञाता। द्विसहस्त्राधिका: = दो हजार से अधिक। त्रिधा = तीन प्रकार की। केचित् = कुछ। इयम् = यह (स्त्री०) । जटिला = कठिन।
हिन्दी अनुवाद ।
शिक्षक – हाँ, हाँ! प्राचीन एवं नवीन अनेक संस्कृत शब्दकोश हैं। व्याकरण में शब्द रचना विधि भी है। उनसे लाखों शब्द बनते हैं और अन्य भाषाओं में दिये जाते हैं ।
पुष्कर – तब तो इसकी व्याकरण अपूर्व हैं।
शिक्षक – यहाँ पाणिनि नाम के एक श्रेष्ठ वैयाकरण थे उनके समान कहीं भी कोई वैयाकरण नहीं हुआ।
लतिका – क्या पणिनि के समान कहीं भी कोई वैयाकरण नहीं हुआ?
शिक्षक – हाँ, इसके उत्तर में सब जगह मौन है। (अर्थात कहीं भी कोई वैयाकरण वैसा नहीं हुआ।)
रमा – गुरुदेव मेरे पिता कहते हैं कि संस्कृत कम्प्यूटर यन्त्र में भी सहायक है।
शिक्षक – तुम्हारे पिता सत्य कहते हैं। (और भी) इसके अलावे योगशास्त्र में पतञ्जलि रचित योगदर्शन भी अपूर्व है।
कमाल – पूज्यवर! सुना जाता है कि संस्कृत में क्रियारूप असंख्य हैं।
शिक्षक – यह सत्य है। धातुएँ ही दो हजार से अधिक हैं। उनमें दश लकारों में अनेकों रूप हैं। सभी लकारों में नव-नव रूप होते हैं।
पुष्कर – धातुएँ भी तीन प्रकार की होती हैं ऐसा आपने कहा है।
शिक्षक – हाँ, कुछ आत्मनेपदी, कुछ परस्मैपदी और कुछ उभयपदी होती हैं।
रहीम – तब तो यह भाषा बहुत ही कठिन है।
4. शिक्षकः – न न। सरलापि सा, कठिनापि सा। सामान्यप्रयोगे सरला, गूढविषयनिरूपणे जटिला। यथेच्छं प्रयोगः क्रियते।
रमा: – गुरुदेव! किं विज्ञानानि अपि संस्कृते सन्ति?
शिक्षक: – किं कथयसि भूगोल-खगोलविषये आर्यभटीयम्, बृहत्संहिता इत्यादयः ग्रन्थाः प्रसिद्धाः।
राजीवः – अतः परं नास्ति किमपि?
शिक्षकः – कथं नास्ति बीजगणितं चिकित्साशास्त्रं भौतिकविज्ञानं रसायनशास्त्रं वनस्पतिविज्ञानं विधिशास्त्रं संगीतशास्त्रम् इत्यादीनि नानाग्रन्थेषु प्रकाशितानि सन्ति। प्राचीनं भारतीयं विज्ञानं पठितव्यम्।
रमा: – किं प्रतियोगिपरीक्षासु संस्कृतम् उपयोगि वर्तते?
शिक्षकः – प्रायः सर्वत्र प्रशासनिकपरीक्षासु संस्कृतमपि ऐच्छिको विषयः।
रहीमः – तदा तु इयमतीव उपयोगिनी भाषा।
शिक्षकः – अथ किम्।
पुष्कर: – तर्हि नूनमेव सर्वैरस्माभिः मनोयोगेन संस्कृतं पठनीयम्। धन्येयं भाषा।
सन्धि विच्छेद :- सरलापि = सरला + अपि। कठिनापि = कठिना + अपि। यथेच्छं = यथा + इच्छ। इत्यादयः = इति । आदयः। नास्ति = न + अस्ति। किमपि = किम्+ अपि। इत्यादीनि = इति + आदीनि। संस्कृतमपि = संस्कृतम् + अपि। इयमतीव = इयम् + अतीव। नूनमेव = नूनम् + एव। सर्वैरस्माभिः = सर्वैः + अस्मभिः। धन्येयं = धन्या + इयम्।
शब्दार्थ – गूढविषयनिरूपणे = कठिन विषय के निरूपण में। इत्यादीनि-इत्यादि। एच्छिको = ऐच्छिकः = ईच्छा के अनुसार अपनाने योग्य। अतीव = बहुत ही। अथ किम् = और क्या नूनम् = अवश्य, निश्चय ही। सर्वैरस्माभिः = हम सभी के द्वारा। पठनीयम् = पढ़ने योग्य।
हिन्दी अनुवाद
शिक्षक – नहीं नहीं। यह सरल भी है और कठिन भी है। सामान्य प्रयोग में यह सरल है (किन्तु) गहन विषय के निरूपण में यह कठिन है। इच्छानुसार प्रयोग की जाती है।
रमा – गुरुदेव! क्या विज्ञान के विषय भी संस्कृत में हैं
शिक्षक – क्या कहती हो भूगोल तथा खगोल विषय पर आर्यभटीयम्, वृहत्संहिता इत्यादि प्रसिद्ध ग्रन्थ हैं।
राजीव – क्या और भी दूसरे नहीं हैं
शिक्षक – कैसे नहीं है बीजगणित, चिकित्साशास्त्र, भौतिक विज्ञान, रसायनशास्त्र, वनस्पति विज्ञान, वास्तु विज्ञान, विधिशास्त्र, संगीतशास्त्र इत्यादि अनेक ग्रन्थों में प्रकाशित हैं। प्राचीन भारतीय विज्ञान को पढ़ना चाहिए।
रमा – क्या प्रतियोगिता की परीक्षाओं में संस्कृत उपयोगी है?
शिक्षक – प्रायः सब जगह प्रशासनिक परीक्षाओं में संस्कृत भी एक ऐच्छिक विषय है।
रहीम – तब तो यह बहुत उपयोगी भाषा है।
शिक्षक – और क्या (निश्चय ही, है।)
पुष्कर – तब तो निश्चय ही हमलोगों द्वारा मन लगा कर संस्कृत पढ़ी जानी चाहिए (अर्थात् हमें निश्चय ही मनोयोग पूर्व संस्कृत पढ़ना चाहिए)। यह भाषा धन्य है।
सारांश
इस पाठ में संस्कृत भाषा के महत्त्व का वर्णन किया गया है। संस्कृत भाषा में ही संस्कार है और संस्कृति है। चारों वेद, अठारह पुराण और सारे उपनिषद् संस्कृत में हैं। सभी शास्त्र ही संस्कृत भाषा में हैं कम्प्यूटर यन्त्र में भी यह भाषा अत्यन्त सहायकहो सकती है। विज्ञान के विषय-यथा भूगोल, खगोल विज्ञान, चिकित्साशास्त्र, रसायनशास्त्र, भौतिक विज्ञान, विधि विज्ञान, वास्तु विज्ञान, संगीत शास्त्र, बीजगणित इत्यादि भी संस्कृत के विभिन्न ग्रन्थों में विद्यमान हैं। अतः प्राचीन भारतीय विज्ञान को पढ़ना चाहिए। साथ ही यह भाषा प्रशासनिक प्रतियोगी परीक्षाओं के लिये भी उपयोगी है। क्योंकि प्रायः सब जगह यह इन परीक्षाओं में यह एक ऐच्छिक विषय है। इन कारणों से हमें निश्चय ही मन लगाकर संस्कृत भाषा पढ़ना चाहिए।
व्याकरण
उत्थाय
1. प्रकृति-प्रत्ययविभाग-व्युत्पतिः
संस्कृतिः = सम् + √कृ + क्तिन्
संस्कृतम् = सम् + √कृ + क्त
उत्थान = उद् + √स्था + ल्यप्
मृता = √मृञ् + क्त + टाप्
त्रिधा = त्रि + धा (तद्धित प्रत्यय)
आर्यभटीयम् = आर्यभट + छ
तर्हि = तद् + र्हिल्
जीवनम् = √जीव्+ ल्युट्
जटिला = जटा + इलच् + टाप्
अभ्यासः (मौखिकः)
1. एकपदेन उत्तरं वदत-
उदाहरणम्-रामं विना का नास्ति–अयोध्या
(क) संस्कृतं विना का नास्ति
(ख) कस्य अध्ययनम् आवश्यकम्
(ग) संस्कृते के सन्ति
(घ) संस्कृतं प्रति जनाः किं कथयन्ति
(ङ) कस्यां भाषायां वेदाः उपलभ्यन्ते
(च) पाणिनिः कस्मिन् शास्त्रे निपुण
उत्तर-(क) संस्कृतिः
(ख) संस्कृतस्य
(ग) आचाराः विचाराः भावनाश्च (घ) मृताभाषा
(ङ) संस्कृते
(च) व्याकरणे
2. एकवाक्येन उत्तरं दत्त-
उदाहरणम्-किम् अध्ययनं आवश्यकम्
उत्तर-संस्कृताध्ययनम् आवश्यकम्
(क) कस्यां भाषायां शब्द निर्माण-पद्धतिरस्ति
(ख) कस्याः भाषायाः व्याकरणम् अपूर्वम्
(ग) संगीतरत्नाकरः कस्मिन् शास्त्रे ग्रन्थः
(घ) धातवः कतिधा सन्ति
(ङ) आर्यभटः कस्य शास्त्रस्य ग्रन्थकार
उत्तर-(क) संस्कृतभाषायां शब्दनिर्माण-पद्धतिरस्ति।
(ख) संस्कृतभाषायाः व्याकरणम् अपूर्वम्।
(ग) संगीतरत्नाकरः संगीतशास्त्रे ग्रन्थः।
(घ) धातवः त्रिधा सन्ति।
(ङ) आर्यभटः, भूगोल-खगोलशास्त्रस्य ग्रन्थकार।
अभ्यासः (लिखितः)
1. संधिविच्छेदं कुरुत-
वार्तालापः = वार्ता + अलापः
नेयम् = न + इयम्
एतदर्थम् = एतत् + अर्थम्
अत्रैव = अत्र + एव
विषयेऽस्मिन् = विषये + अस्मिन्
2. अधोलिखितवाक्येषु रेखाङ्कितपदानि आधृत्य प्रश्नान् रचयत-
(क) संस्कृतं विना न संस्कृतिः।
(ख) संस्कृते एव आचारादयः।
(ग) भारतीयः भाषा अस्याः ऋणं धारयन्ति।
(घ) दश उपनिषदः सन्ति।
(ङ) पाणिनिः वैयाकरण अस्ति।
उत्तर- (क) काम् विना न संस्कृतिः?
(ख) कस्याम् एव आचारादयः?
(ग) भारतीय भाषा अस्याः किम् धारयन्ति?
(घ) कति उपनिषदः सन्ति?
(ङ) पाणिनिः कः अस्ति?
3. अधोलिखितवाक्येषु कोष्ठकात् समुचितं पदमादाय रिक्तस्थानानि पृरयत )
(क) संस्कृतं विना न ……। (ज्ञानम्, संस्कृति:, संरक्षणम् )
(ख) भाषाणां जननी ……। (संस्कृतम्, हिन्दी, अंग्रेजी)
(ग) इयं भाषा …….अस्ति । (अजरा-अमरा, मृता)
(घ) क़ियार्थ ……लकारा: सन्ति ।(पञ्च, दश, अष्टी)
(ङ) व्याकरणशास्त्रस्य लेखकः ……। (यास्क:, पाणिनि:)
उत्तर--(क) संस्कृति:
(ख) संस्कृतम्
(ग) अजरा-अमरा
(घ) दश
(ङ) पाणिनि
4. संस्कृतभाषायामनुवादं कुरुत-
(क) विनय के बिना विद्या व्यर्थ है।
(ख) ज्ञान के बिना सुख नहीं।
(ग) राम के बिना अयोध्या नहीं।
(घ) वेद चार हैं।
(ङ) पुराण अठारह हैं।
(च) स्मृतियाँ 108 हैं।
उत्तर- (क) विनयं विना विद्या व्यर्थ: अस्ति।
(ख) ज्ञानं विना सुखं नास्ति।
(ग) राम विना अयोध्या नास्ति।
(घ) वेदा: चत्वार: सन्ति।
(ङ) पुराणा: अष्टादश: सन्ति।
(च) स्मृत्यः अष्टाधिकशतम् सन्ति।
1. संस्कृते अनुवादं कुरु-
(i) संस्कृत में ही संस्कार और संस्कृति हैं।
संस्कृते एव संस्कारा: संस्कृतयश्च वर्तन्तेः
(ii) सभी शास्त्र संस्कृत भाषा में हैं।
सर्वाणि शास्त्राणि संस्कृतभाषायां सन्ति।
(iii) क्या प्रतियोगी परीक्षाओं में संस्कृत उपयोगी हैं?
किं प्रतियोगिपरीक्षासु संस्कृतम् उपयोगि वर्तते?
(iv) क्या विज्ञान भी संस्कृत में है?
किं विज्ञानानि अपि संस्कृते सन्ति?
(v) प्राचीन भारतीय विज्ञान पढ़ना चाहिए।
प्राचीन भारतीयं विज्ञानं पठितव्यम्।
(vi) यह भाषा सामान्य प्रयोग में सरल और गूढ़ विषय निरूपण में जटिल है ।
इयं भाषा सामान्य प्रयोगे सरला गूढविषयनिरूपणे च जटिला अस्ति।
(vii) इसका व्याकरण अपूर्व है।
अस्या: व्याकरणम् अपूर्वम् अस्ति।
(viii) मेरे पिता कहते है कि कम्प्यूटर यंत्र में भी संस्कृत सहायक है।
मम पिता कथयति यत् संगणके अपि संस्कृतं सहायकं अस्ति।
(ix) तुम्हारे पिता सत्य बोलते हैं।
सत्यं वदति ते पिता।
(x) सुनते हैं कि क्रियारूप असंख्य हैं।
श्रूयते यत् क्रियारूपाणि असंख्यानि सन्ति।
(xi) यह मृतभाषा नहीं है।
इयं मृता भाषा नास्ति।
2. ‘अपि’ शब्दस्य प्रयोगः वाक्यस्य आदौ यदि भवेत् तदा स प्रश्नवाचकः । निम्नलिखित वाक्यों में ‘अपि’ का प्रयोग पहले करके प्रश्नवाचक वाक्य बनाएँ-
उदाहरण—त्वम् अपि गच्छसि।
अपि त्वं गच्छसि?
(i)भवान् अपि पठति रामायणम्।
प्रश्नवाचक-अपि भवान् पठति रामायणम्?
(ii) अहम् अपि गच्छामि विद्यालयम्।
प्रश्नवाचक-अपि अहं विद्यालयं गच्छामि ?
(iii) सोऽपि पठति पुस्तकम्।
प्रश्नवाचक-अपि स: पुस्तकं पठति?
(iv) अरविन्दोऽपि वैयाकरण: अस्ति।
प्रश्नवाचक-अपि अरविन्दः वैयाकरण: अस्ति?
(v) हिन्दी अपि सरला भाषा अस्ति।
प्रश्नवाचक-अपि हिन्दी सरलाभाषा अस्ति?
(vi) उपनिषदोऽपि अत्रैव सन्ति।
प्रश्नवाचक-अपि उपनिषदः अत्रैव सन्ति?
3. हिन्दी में अनुवाद करें-
(i) संस्कृतं विना न संस्कृति:।
अनुवाद-संस्कृत के बिना संस्कृति नहीं।
(ii) रामात् विना अयोध्या शून्या।
अनुवाद- राम के बिना अयोध्या सूनी।
(iii) तेन विना अहं न वसामि तत्र।
अनुवाद-उसके बिना मैं वहाँ नहीं रहता हूँ।
(iv) बौधायनः रेखागणितस्य ज्ञाता आसीत।
अनुवाद-बौधायन रेखागणित के ज्ञाता थे।
(v) आर्यभट: बीजगणितस्य विशेषज्ञः आसीत् ।
अनुवाद-आर्यभट बीजगणित के विशेषज्ञ थे।
(vi) भौतिकविज्ञानस्य विशेषज्ञः आसीत् कणादः।
अनुवाद कणाद भौतिक विज्ञान के विशेषज्ञ थे।
(vii) वात्स्यायनस्य कामशास्त्र: लोकप्रिय: अस्ति।
अनुवाद-वात्स्यायन का कामसूत्र लोकप्रिय है।
संस्कृतभाषा (अनुच्छेदः)
संस्कृत भाषा देवभाषा इति कथ्यते। एषा हि सुरभारती कथ्यते। यस्यां भाषायाम् एव व्यासः, वाल्मीकिः, कालिदास: भवभूति, अम्बिकादत्त व्यासः प्रभृतीनां कविपुंगवानाम् वाणी संरक्षिता वर्तते। व्याकरण-न्याय बेदान्तादि विषयेषु महती विवेचना अस्याम् एव दृश्यते। एषा एवं सर्वासाम् आधुनिकानां भाषाणाम् जननी अस्ति। अस्याः शब्दभण्डारः अक्षय: अक्षुण्णाश्च सदा वर्तते। एषा विश्वस्य प्राचीनतमा सुष्ठुतमा च भाषा सर्वाणि शास्त्राणि संस्कृतभाषायां सन्ति। सङ्गणकेऽपि अस्याः योगदानमपूर्वकम्। बीजगणित चिकित्साशास्त्रं भौतिकविज्ञानं रसायनशास्त्रं वनस्पतिविज्ञानं वास्तुविज्ञानं विध्सिशास्त्र संगीतशास्त्रम् इत्यादीनि नानाग्रन्थेषु प्रकाशितानि सन्ति। अस्यामेव भारतीय भाषाणां जीवनम्। संस्कृते एवं आचारा: विचारा: भावनाश्च सन्ति।