bihar board class 9th hindi notes | पधारो म्हारे देश
bihar board class 9th hindi notes | पधारो म्हारे देश
bihar board class 9th hindi notes
वर्ग – 9
विषय – हिंदी
पाठ 8 – पधारो म्हारे देश
पधारो म्हारे देश
-अनुपम मिश्र
लेखक – परिचय
लेखक – परिचय
अनुपम मिश्र का जन्म सन् 1948 ई में हुआ । वे हिंदी के मूर्धन्य कवि श्री भवानी प्रसाद मिश्र के सुपुत्र हैं । उनके जीवन के प्रारंभिक वर्ष छत्तीसगढ़ के एक छोटे से गांव में बीते । उनकी प्रारंभिक शिक्षा हैदराबाद एवं मुंबई में हुई । बाद में वे दिल्ली आ गए , और यहीं से संस्कृत में एम . ए , किया । उन्होंने सन् 1969 ई . में गाँधी शांति प्रतिष्ठान में कार्यभार संभाला और तभी से इस संख्या के पर्यावरण प्रकोष्ठ में सेवारत हैं ।
लंबे अरसे तक नगरीय जीवन बिताने पर भी गाँव का मोह नहीं हटा और इसलिए ग्रामीण संस्कृति को झलक उनके साहित्य में दिखाई देती है । मिश्रजी गाँधीवादी विचारक और एक सजग सामाजिक कार्यकर्ता हैं । पर्यावरण संबंधी समस्याओं पर उनकी पैनी दृष्टि रही है । पानी की समस्या पर उन्होंने विशेष ध्यान दिया और उन्हीं समस्याओं से संबंधित कार्य – क्षेत्र में ये जुटे रहते है।
अनुपम मिश्र की रचनाओं में एक और भारत के गाँवों की मिट्टी की सौंधी गंध है तो दूसरी और ज्वलंत समस्याओं के प्रति विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण । इसीलिए अकाल , वर्षा , पानी जैसी समस्याओं ने उनके लेखन में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया है । उनकी भाषा सरल सहज बोलचाल की भाषा है । आंचलिक राष्ट्र उनकी रचनाओं में खूब बोलते हैं । अनुपम मित्र की प्रमुख रचनाएँ हैं – आज भी खरे हैं तालाब राजस्थान की रजत बूंदे , हमारा पर्यावरण पुस्तक के निर्माण में भी उनकी सक्रिय भूमिका रही है । ‘
पधारो म्हारे देश में लेखक ने हमारे जन – जीवन में रचे बसे राजस्थान को जनसंस्कृति को सामाजिक किया है और उससे जुड़ी लोक परंपराओं का सुन्दर सहज शब्दावली में वर्णन किया है । उनकी दृष्टि में जलसंरक्षण हमारी ग्रामीण संस्कृति की पहचान है और जीवंत समाज एवं राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है ।
‘ जल ही जीवन है ‘ की सार्थकता को स्पष्ट करती यह रचना आज की युवा पीढ़ी की नैसर्गिक जल सोनों और जालसंरक्षण के पारंपरिक उपायों से परिचित कराती है और उनके महत्त्व के प्रति हमें नए सिरे से जागरूक बनाती है । लोकजीवन में बोली जानेवाली हिंदी के ताजे मुहावरों के साथ विषय में गंभीरता और शैली के प्रवाह का जीवंत रूप उनके गद्य को नई आभा से मंडित करता है । यह एक ऐसा गद्य है जिसमें हिंदी भाषा की आंचलिकता समृद्धि और हिंदी के लशाक का यथार्थबोध एक साथ प्रकट होता है ।
लंबे अरसे तक नगरीय जीवन बिताने पर भी गाँव का मोह नहीं हटा और इसलिए ग्रामीण संस्कृति को झलक उनके साहित्य में दिखाई देती है । मिश्रजी गाँधीवादी विचारक और एक सजग सामाजिक कार्यकर्ता हैं । पर्यावरण संबंधी समस्याओं पर उनकी पैनी दृष्टि रही है । पानी की समस्या पर उन्होंने विशेष ध्यान दिया और उन्हीं समस्याओं से संबंधित कार्य – क्षेत्र में ये जुटे रहते है।
अनुपम मिश्र की रचनाओं में एक और भारत के गाँवों की मिट्टी की सौंधी गंध है तो दूसरी और ज्वलंत समस्याओं के प्रति विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण । इसीलिए अकाल , वर्षा , पानी जैसी समस्याओं ने उनके लेखन में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया है । उनकी भाषा सरल सहज बोलचाल की भाषा है । आंचलिक राष्ट्र उनकी रचनाओं में खूब बोलते हैं । अनुपम मित्र की प्रमुख रचनाएँ हैं – आज भी खरे हैं तालाब राजस्थान की रजत बूंदे , हमारा पर्यावरण पुस्तक के निर्माण में भी उनकी सक्रिय भूमिका रही है । ‘
पधारो म्हारे देश में लेखक ने हमारे जन – जीवन में रचे बसे राजस्थान को जनसंस्कृति को सामाजिक किया है और उससे जुड़ी लोक परंपराओं का सुन्दर सहज शब्दावली में वर्णन किया है । उनकी दृष्टि में जलसंरक्षण हमारी ग्रामीण संस्कृति की पहचान है और जीवंत समाज एवं राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है ।
‘ जल ही जीवन है ‘ की सार्थकता को स्पष्ट करती यह रचना आज की युवा पीढ़ी की नैसर्गिक जल सोनों और जालसंरक्षण के पारंपरिक उपायों से परिचित कराती है और उनके महत्त्व के प्रति हमें नए सिरे से जागरूक बनाती है । लोकजीवन में बोली जानेवाली हिंदी के ताजे मुहावरों के साथ विषय में गंभीरता और शैली के प्रवाह का जीवंत रूप उनके गद्य को नई आभा से मंडित करता है । यह एक ऐसा गद्य है जिसमें हिंदी भाषा की आंचलिकता समृद्धि और हिंदी के लशाक का यथार्थबोध एक साथ प्रकट होता है ।
कहानी का सारांश
” पधारो म्हारे देस ‘ अनुपम मिश्र द्वारा रचित फीचर है । अनुपम मिश्र ने पर्यावरण के महत्व को समझते हुए पानी संरक्षण की सीख दी है । वे एक गाँधीवादी विचारक और सणण सामाजिक = कार्यकर्ता हैं ।
आज राजस्थान की धरती अथाह बालुका राशि से पटी है । यहाँ कभी समुद्र की लहरें उठा करती थी पर आज यहाँ बालू की लहरें उठती – गिरती हैं ।
यहाँ पानी की बड़ी कमी हैं । वर्षा कम होती है और गर्मी खूब पड़ती है । फिर भी यहाँ के लोग खुशहाल हैं । राजस्थान के मरुदेश में दुनिया के अन्य ऐसे प्रदेशों की तुलना में न सिर्फ जनसंख्या का घनत्व अधिक है बल्कि , उसमें जीवन की सुगंध है , जीवन का कलरव है । वहाँ के लोगों ने प्रकृति से मिलने वाले इतने कम पानी का रोना नहीं रोया बल्कि उसे चुनौती मान कर उसका विकल्प तलाशा और अपने काम में सफल भी हुए ।
यहाँ पिछले एक हजार साल के दौर में जैसलमेर , जोधपुर , बीकानेर और फिर जयपुर जैसे बड़े शहर भी बहुत व्यवस्थित ढंग से बसे हैं । इनकी आबादी भी अच्छी खासी थी । इनमें से प्रत्येक शहर – अलग दौर में लंबे समय तक सत्ता – व्यापार और कला का प्रमुख केन्द्र भी बना रहा था । जिस समय मुम्बई , कोलकाता , चेन्नई जैसे आज के बड़े शहरों का नामो निशान नहीं था उस समय राजस्थान के कई जिले विदेशी व्यापार के केंद्र थे । इतना सब कुछ प्रकृति द्वारा पानी नहीं दिए जाने के बाद भी हुआ ।
असल में वहाँ के लोगों ने परनी का संग्रह करना सीखा । उन्होंने वर्षा की बूंदों को सोने – चाँदी की तरह संजो कर रखा है । इसका उन्होंने कभी यश या प्रशंसा बटोरने के लिए प्रचार नहीं किया । आज देश के लगभग सभी छोट – बड़े शहर , कई गाँव , कई राज्यों की राजधानियाँ और देश की राजधानी तक अच्छी वर्षा के बावजूद पानी के मामले में दरिद्र हो चुकी हैं । इसके पहले की जल का अकाल पड़े सबको राजस्थान के प्राकृतिक तरीके से जल संग्रह के तरीके को अपनाना चाहिए ।
आज राजस्थान की धरती अथाह बालुका राशि से पटी है । यहाँ कभी समुद्र की लहरें उठा करती थी पर आज यहाँ बालू की लहरें उठती – गिरती हैं ।
यहाँ पानी की बड़ी कमी हैं । वर्षा कम होती है और गर्मी खूब पड़ती है । फिर भी यहाँ के लोग खुशहाल हैं । राजस्थान के मरुदेश में दुनिया के अन्य ऐसे प्रदेशों की तुलना में न सिर्फ जनसंख्या का घनत्व अधिक है बल्कि , उसमें जीवन की सुगंध है , जीवन का कलरव है । वहाँ के लोगों ने प्रकृति से मिलने वाले इतने कम पानी का रोना नहीं रोया बल्कि उसे चुनौती मान कर उसका विकल्प तलाशा और अपने काम में सफल भी हुए ।
यहाँ पिछले एक हजार साल के दौर में जैसलमेर , जोधपुर , बीकानेर और फिर जयपुर जैसे बड़े शहर भी बहुत व्यवस्थित ढंग से बसे हैं । इनकी आबादी भी अच्छी खासी थी । इनमें से प्रत्येक शहर – अलग दौर में लंबे समय तक सत्ता – व्यापार और कला का प्रमुख केन्द्र भी बना रहा था । जिस समय मुम्बई , कोलकाता , चेन्नई जैसे आज के बड़े शहरों का नामो निशान नहीं था उस समय राजस्थान के कई जिले विदेशी व्यापार के केंद्र थे । इतना सब कुछ प्रकृति द्वारा पानी नहीं दिए जाने के बाद भी हुआ ।
असल में वहाँ के लोगों ने परनी का संग्रह करना सीखा । उन्होंने वर्षा की बूंदों को सोने – चाँदी की तरह संजो कर रखा है । इसका उन्होंने कभी यश या प्रशंसा बटोरने के लिए प्रचार नहीं किया । आज देश के लगभग सभी छोट – बड़े शहर , कई गाँव , कई राज्यों की राजधानियाँ और देश की राजधानी तक अच्छी वर्षा के बावजूद पानी के मामले में दरिद्र हो चुकी हैं । इसके पहले की जल का अकाल पड़े सबको राजस्थान के प्राकृतिक तरीके से जल संग्रह के तरीके को अपनाना चाहिए ।
पाठ के साथ
प्रश्न 1. ‘ हाकड़ो ‘ राजस्थानी समाज के हृदय में आज भी क्यों रचा – बसा है ?
उत्तर – प्रकृति के एक विराट रूप को दूसरे विराट रूप में यानी समुद्र से मरुभूमि में बदलने में लाखों बरस लगे होंगे । नए रूप को आकार लिये भी आज हजारों वरस हो चुके हैं । लेकिन राजस्थान का समाज यहाँ के बदले रूप को भूला नहीं है । क्योंकि वह अपने मन की गहराई में भी उसे हाकड़ो नाम से याद रखे हैं । कोई हजार बरस पुरानी डिंगल भाषा में और आज को राजस्थानी में भी हाकड़ो शब्द उन पीढ़ियों की लहरों में तैरता रहा है जिनके पुरखों ने भी कभी समुद्र नहीं देखा था । इसीलिए हाकड़ो राजस्थानी समाज के हृदय में आज भी रचा – बसा है ।
प्रश्न 2. ” हेल ‘ नाम समुद्र के साथ – साथ अन्य कौन – कौन से अर्थों को दर्शाता है ?
उत्तर – यह समुद्र के साथ – साथ विशालता और उदारता को दर्शाता है ।
प्रश्न 3. किस रेगिस्तान का वर्णन कलेजा सुखा देता है ?
उत्तर – थार रेगिस्तान का ।
प्रश्न 4. वर्षा के मामले में कौन – सा राज्य सबसे बाद में आता है ?
उत्तर – देश के सभी राज्यों में क्षेत्रफल और आबादी की दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान रखनेवाला राजस्थान भूगोल की किताबों में वर्षा के मामले में सबसे अंतिम है ।
प्रश्न 5. भूगोल की किताबें किनको अत्यंत कंजूस महाजन की तरह देखती है और क्यों?
उत्तर – देश की औसत वर्षा 110 सेंटीमीटर आंकी गई है । उस हिसाब से भी राजस्थान का औसत आधा ही बैठता है लेकिन औसत बतानेवाले आँकड़े भी यहाँ का कोई ठीक चित्र नहीं सकते । राज्य के पश्चिमी क्षेत्र को इस महाजन का सबसे दयनीय शिकार बताती है । इस में जैसलमेर , बीकानेर , चूरू , जोधपुर और श्रीगंगानगर आते हैं । लेकिन यहाँ कंजूसी में भी कंजूसी मिलेगी । वर्षा का वितरण बहुत असमान है । पूर्वी हिस्से से पश्चिमी हिस्से की तरफ आते – आते वर्षा कम – से – कम होती जाती है । पश्चिमी तक जाते – जाते वर्षा सूरज की तरह डूबने लगती है।
यहाँ पहुँचकर वर्षा सिर्फ 16 सेंटीमीटर रह जाती है । इसीलिए भूगोल की किताबें राजस्थान की प्रकृति को अत्यंत कंजूस महाजन की तरह देखती है ।
यहाँ पहुँचकर वर्षा सिर्फ 16 सेंटीमीटर रह जाती है । इसीलिए भूगोल की किताबें राजस्थान की प्रकृति को अत्यंत कंजूस महाजन की तरह देखती है ।
प्रश्न 6. राजस्थानी समाज ने प्रकृति से मिलनेवाले इतने कम पानी का रोना क्यों नहीं रोया ?
उत्तर – राजस्थानी समाज ने इसे चुनौती की तरह लिया और अपने ऊपर से नीचे तक कुछ इस ढंग से खड़ा किया कि पानी का स्वभाव समाज के स्वभाव से मिलकर बहुत सरल ढंग से बहने लगा । जलसंग्रह की नीति अपनाकर जगह – जगह कुएँ , तालाब , इत्यादि में जलसंग्रह कर अपनी जीवंतता का परिचय दिया इसीलिए राजस्थान के समाज ने प्रकृति से मिलनेवाले इतने कम पानी का रोना नहीं रोया ।
प्रश्न 7. यह राजस्थान के मन की उदारता ही है कि विशाल मरुभूमि में रहते हुए भी उसके कंठ में समुद्र के इतने नाम मिलते हैं ? इस कथन का क्या अभिप्राय है ?
उत्तर – प्रकृति के एक विराट को दूसरे विराट रूप में यानी समुद्र से मरुभूमि में बदलने में लाखों बरस लगे होंगे । नए रूप को आकार लिये भी आज हजारों बरस हो चुके हैं । लेकिन राजस्थान का समाज यहाँ के पहले रूप को भूला नहीं है । वह अपने मन की गहराई में आज भी इसे कई नाम से याद रखे हुए हैं । संस्कृत से विरासत में मिले सिंधु , सरितापति , सागर , वाराधिप तो है ही आज , उअह , देधाण , वडनीर , वारहर , सफरा – भंडार जैसे संबोधन भी हैं ।
प्रश्न 8. जलसंग्रह कैसे करना चाहिए ?
उत्तर – गाँव – गाँव , ढाव वर्षा को वर्ष भर सहेज कर उसे तालाब , कुंड – कुंडियों , वेरियों , जोहड़ों , नाड़ियों , बावड़ियों में जल का संग्रह करना चाहिए ।
प्रश्न 9. त्रिकूट पर्वत कहाँ है ?
उत्तर – राजस्थान में ।
प्रश्न 10. ‘ धरती धोरा री ‘ किसे कहा गया है और क्यों ?
उत्तर – राजस्थान के पुराने इतिहास में मरुभूमि का या अन्य क्षेत्रों का भी वर्णन सूखे – उजड़े और एक अभिशप्त क्षेत्र की तरह नहीं मिलता । रेगिस्तान के लिए आज प्रचलित थार शब्द भी ज्यादा नहीं दिखता । अकाल पड़े हैं , कहीं – कहीं पानी का कष्ट भी रहा है पर गृहस्थों से लेकर जोगियों ने , कवियों से लेकर मांगणियारों ने , लंगाओं ने , हिन्दू – मुसलमानों ने इसे धरती धोरा री कहा है । रेगिस्तान के पुराने नामों में स्थल है , जो शायद हाकड़ो , समुद्र के सूख जाने से निकले स्थल का सूचक रहा हो ।
प्रश्न 11. मरुनायकजी कहकर किसे पुकारा गया है ? उनकी भूमिका स्पष्ट करें ।
उत्तर – मरुनायकजी कहकर श्रीकृष्ण भगवान को पुकारा गया है । महाभारत युद्ध के पश्चात् अर्जुन का रथ जब वापस द्वारिका इसी रास्ते लौट रहा था तब त्रिकूट पर्वत पर उत्तुंग ऋषि तपस्या करते हुए मिले थे । श्रीकृष्ण ने उन्हें प्रणाम किया और वर माँगने को कहा तब उन्होंने और कुछ नहीं माँगा । प्रभु से प्रार्थना की कि यदि मेरा कुछ पुण्य है तो भगवान वर दें कि इस क्षेत्र में कभी जल का अकाल न रहे । ‘ तथास्तु ‘ कहकर भगवान ने वरदान दिया था ।
प्रश्न 12. जलसंग्रह की अनोखी परंपरा को लिखिए ।
उत्तर – राजस्थान के समाज ने वर्षा के जल को इंच या सेंटीमीटर में न देखकर अनगिनत बूंदों को देख लिया और इन्हें मरुभूमि में , राजस्थान भर में ठीक बूंदों की तरह ही छिटके टाँको , कुंड – कुडियों , वेरियों , जोहड़ों , नाड़ियों , तालाबों बावड़ियों और कुएँ , कुइयों तथा पाट में भरकर उड्नेवाले समुद्र को अखंड हाकड़ों को खंड – खंड नीचे उतार लिया ।
प्रश्न 13. राजस्थान में वर्षा का क्या स्वरूप है ?
उत्तर – राजस्थान में देश की औसत वर्षा का आधा है । राज्य के एक छोर से दूसरे छोर तक कभी एक – सी वर्षा नहीं होती । कहीं यह 100 सेंटीमीटर से अधिक है तो कहीं 29 सेंटीमीटर से -भी कम । इस क्षेत्र में जैसलमेर , बीकानेर , चुरू , जोधपुर और श्री गंगानगर आते हैं । वर्षा का वितरण बहुत असमान है । पश्चिम तक जाते – जाते वर्षा सूरज की तरह डूबने लगती है । यही पहुँचकर वर्षा 16 सेंटीमीटर रह जाती है ।
प्रश्न 14. ‘ रीति ‘ के लिए राजस्थान में ‘ वोज ‘ शब्द है , यह क्या – क्या अर्थ रखता है ।
उत्तर – रचना , युक्ति और उपाय आदि तो है – सामर्थ्य , विवेक , विनम्रता के लिए यह अर्थ रखता है ।
प्रश्न 15. राजस्थान में मरुस्थल का जो स्वरूप है उसके पहले क्या रहा होगा ? पाठ के आधार पर बताएं ।
उत्तर – राजस्थान में मरुस्थल के पहले समुद्र रहा होगा । इसीलिए यहाँ के लोगों को समुद्र के कई नाम याद हैं । प्रकृति के एक विराट रूप को दूसरे विराट रूप में यानी समुद्र से मरुभूमि में बदलने में लाखों बरस लगे होंगे फिर भी उनके मन की गहराई में , उनकी भाषाओं में समुद्र के नाम बसे हुए हैं ।
प्रश्न 16. लेखक ने ‘ जसढोल ‘ शब्द का किस अर्थ में प्रयोग किया है , और क्यों ?
उत्तर – जसढोल यानी प्रशंसा करना । राजस्थान ने वर्षा के जल का संग्रह करने की अपनी अनोखी परंपरा का , उसके जस का कभी ढोल नहीं बजाया । इसीलिए लेखक ने जसढील का प्रयोग किया है ।
प्रश्न 17. इस फीचर को पढ़कर आपको क्या शिक्षा मिली आप अपने जीवन में इसका उपयोग कैसे करेंगे ?
उत्तर – इस फीचर को पढ़कर हमें यह शिक्षा मिली कि जल ही जीवन है । इसे बेकार नहीं बहने देना चाहिए । इसका अपने जीवन में उपयोग जलसंग्रहकर करना चाहिए जिससे भविष्य में जलसंकट का सामना न करना पड़े ।
प्रश्न 18. लेखक क्यों ‘ पधारो म्हारे देश ‘ कहते हैं ?
उत्तर – राजस्थान में जो जलसंग्रह की अनोखी परंपरा है उसे जाकर देखिए और अपने जीवन को सुंदर बनाइए । इसीलिए लेखक पधारो म्हारे देश कहते हैं ।
भाषा की बात
प्रश्न 1. समुद्र शब्द के पर्यायवाची बताएँ ।
उत्तर – वाराधिप , सिंधु , सरितापति ।
प्रश्न 2. निम्नलिखित शब्दों के विशेषण बताएँ और वाक्य में प्रयोग करें ।
उत्तर – जल ( जलीय ) -मछली जलीय जीव है ।
रेत ( रेतीला ) -राजस्थान में रेत ही रेत है ।
समुद्र ( समुद्रीय , सामुद्रिक ) -समुद्र विशाल आकार वाला होता है ।
पुराण ( पौराणिक ) -राजस्थान की मरुभूमि की चर्चा पुराणों में है ।
प्रकाश ( प्रकाशीय ) -सूर्य प्रकाशित है ।
स्थल ( स्थलीय ) -गाय स्थलीय जीव है ।
समाज ( सामाजिक ) -वहाँ के लोग सामाजिक हैं ।
रेत ( रेतीला ) -राजस्थान में रेत ही रेत है ।
समुद्र ( समुद्रीय , सामुद्रिक ) -समुद्र विशाल आकार वाला होता है ।
पुराण ( पौराणिक ) -राजस्थान की मरुभूमि की चर्चा पुराणों में है ।
प्रकाश ( प्रकाशीय ) -सूर्य प्रकाशित है ।
स्थल ( स्थलीय ) -गाय स्थलीय जीव है ।
समाज ( सामाजिक ) -वहाँ के लोग सामाजिक हैं ।
प्रश्न 3. दिए शब्दों के समानार्थी लिखें ।
उत्तर – विराट -विशाल
प्राचीन- पुराना
मरुभूमि -रेगिस्तान
दृष्टि- देखना
युग -एक समयावधि
जीवन- जिंदगी
प्राचीन- पुराना
मरुभूमि -रेगिस्तान
दृष्टि- देखना
युग -एक समयावधि
जीवन- जिंदगी
प्रश्न 4. ” वि ‘ उपसर्ग से शब्द बनाएँ ।
उतर – विशाल , विराट ।
प्रश्न 5. निम्नलिखित शब्दों के संधि – विच्छेद करें ।
उत्तर – संस्कृत- सम् + कृत
नायक- नै + अक
तथास्तु- तथा + अस्तु ।
नायक- नै + अक
तथास्तु- तथा + अस्तु ।
प्रश्न 6. वाक्य – प्रयोग द्वारा लिंग निर्णय करें ।
उत्तर – लहर- ( पु . ) आज गंगा की लहरें गतिमान हैं ।
देश- ( पु.) हमारा देश भारत है ।
दृष्टि- ( स्त्री . ) गाँधीजी को दूर दृष्टि थी ।
पलक ( स्त्री . ) आज रात भर मेरी पलक नहीं लगी । दरिया– ( स्त्री . ) दरिया में बाढ़ आ गई ।
नदी- ( स्त्री . ) यमुना नदी की धारा बड़ी तेज है । मरुस्थल- ( पृ . ) मरुस्थल का ऊँट मत बनो । समाज- ( पु . ) हमारा समाज ही पर्यावरण है ।
धरती – हमारी धरती शस्य श्यामला है।
आकाश- ( पृ . ) आकाश का रंग साफ है ।
पानी- ( पुं . ) पानी का रंग नीला है ।
देश- ( पु.) हमारा देश भारत है ।
दृष्टि- ( स्त्री . ) गाँधीजी को दूर दृष्टि थी ।
पलक ( स्त्री . ) आज रात भर मेरी पलक नहीं लगी । दरिया– ( स्त्री . ) दरिया में बाढ़ आ गई ।
नदी- ( स्त्री . ) यमुना नदी की धारा बड़ी तेज है । मरुस्थल- ( पृ . ) मरुस्थल का ऊँट मत बनो । समाज- ( पु . ) हमारा समाज ही पर्यावरण है ।
धरती – हमारी धरती शस्य श्यामला है।
आकाश- ( पृ . ) आकाश का रंग साफ है ।
पानी- ( पुं . ) पानी का रंग नीला है ।