bihar board class 9 geography notes – वनस्पति एवं वन्य प्राणी
प्राकृतिक वनस्पति एवं वन्य प्राणी
bihar board class 9 geography notes
class – 9
subject – geography
lesson 5 – प्राकृतिक वनस्पति एवं वन्य प्राणी
प्राकृतिक वनस्पति एवं वन्य प्राणी
महत्त्वपूर्ण तथ्य-
प्राकृतिक वनस्पति से तात्पर्य वैसे पेड़-पौधे से है जो पूरी तरह प्राकृतिक वातावरण के अनुकूल उगते एवं बढ़ते हैं। हमारे देश में लगभग 47000 विभिन्न प्रजातियों के पौधे पाए जाते हैं। भारत में लगभग 15000 फूलों के पौधे हैं जो विश्व के कुल फूलों का 6% है। यहाँ लगभग 89,000 प्रजातियों के जानवर तथा विभिन्न प्रकार के ताजे पानी की मछलियाँ भी पाई जाती हैं। बड़े-बड़े वृक्षों एवं झाड़ियों द्वारा ढंके हुए विशाल क्षेत्र को वन कहते हैं।
भारत में वनस्पति एवं वन्य प्राणियों में विविधता के लिए विभिन्न कारण उत्तरदायी होते हैं। जैसे भू-भाग का स्वरूप, मिट्टी, तापमान, सूर्य का प्रकाश, वर्षण इत्यादि। पृथ्वी पर पेड़-पौधों तथा जीवों का वितरण काफी हद तक भौतिक दशाओं एवं जलवायु से प्रभावित होते हैं। किसी भी स्थान के पेड़-पौधे, जीव-जंतु तथा भौतिक वातावरण एक दूसरे से संबंधित होते हैं तथा आपस में मिलकर एक पारिस्थितिक तंत्र का निर्माण करते हैं। मनुष्य भी इस पारिस्थितिक तंत्र का एक हिस्सा है। भारत में विभिन्न प्रकार की वनस्पतियाँ पाई जाती हैं। उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन अधिक वर्षा वाले क्षेत्र में पाए जाते हैं। यहाँ औसतन 200 से. मी. वर्षा होती है तथा इनकी ऊँचाई 60 मीटर या उससे अधिक है। उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन का विस्तार 50 से. मी.-200 सें.
मी. वर्षा वाले क्षेत्र में है। इसमें वृक्ष अपनी पत्तियों को एक साथ 10-2 महीने तक के लिए गिरा देते हैं। इसलिए इन्हें पतझड़ वन कहते हैं। उष्ण कटिबंधीय कंटीले वन तथा झाड़ियाँ वहाँ उगते हैं जहाँ 50 से. मी. से कम वर्षा होती है। इस प्रकार की वनस्पति में कँटीले वन तथा झाड़ियाँ
पाई जाती हैं। इनमें खजूर, बबूल, यूफोर्बिया तथा नागफनी प्रधान हैं। धरातल पर अक्षांश के कारण तापमान में अंतर आता है। उसी प्रकार पर्वतीय क्षेत्र में बढ़ती ऊँचाई से तापमान प्रभावित होता है। इसीलिए पर्वत पर बढ़ती ऊँचाई के साथ वनस्पति का प्रकार बदलता है। हिमालय के निचले भागोंमें उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन तथा उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन पाए जाते हैं। 1000-2000
मीटर तक की ऊँचाई वाले क्षेत्रों में आई शीतोष्ण कटिबंधीय वन होते हैं। 1500-3000 मीटर की ऊँचाई तक शंकुधारी वृक्ष पाए जाते हैं। 3600 मीटर से अधिक ऊँचाई पर अल्पाइन वनस्पति पाई जाती है। समुद्र तटीय क्षेत्रों में डेल्टाई एवं दलदल प्रदेशों में मैंग्रोव वन पाए जाते हैं। भारत वन्य प्राणियों में भी धनी है। यहाँ जीवों की 89000 प्रजातियाँ मिलती हैं। 1200 से अधिक पक्षियों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं। यहाँ 2500 प्रकार की मछलियाँ पाई जाती हैं। जो विश्व की 12% है। भारत में विश्व के 5%-8% तक स्तनधारी जीव पाए जाते हैं।
पूरे विश्व में भारत ही एक ऐसा देश है जहाँ घडियाल पाया जाता है।
प्रत्येक प्रजाति का पारिस्थितिकी तंत्र के सफल संचालन में योगदान है। लेकिन अबतक 1300 पादप प्रवातियाँ संकट में है तथा 20 लगभग नष्ट हो चुकी हैं। परिस्थितिक तंत्र के असंतुलन का मुख्य कारण बढ़ती हुई जनाण्या, कृषि तथा निवास के लिए धनों को अंधाधुंध काई, रासायनिक पा औद्योगिक अवशिष्ट एवं आतीय जमाव के कारण प्रदूषण, लालची व्यवसायियों का अपने व्यवसाय के लिए अत्यधिक शिकार है। अपने देश में पादप एवं जीके को रक्षा के लिए चौदव जीवमंडल निचय अर्थत् आरक्षित क्षेत्रों की स्थापना की गई है। 1992 से सरकार द्वारा पदप उरोगे को विवीय राया तकनीकी सहायता देने की योजना बनाई है। शेर संरक्षण, गैंडा संभग, म सरबण, महिपाल संरक्षण आदि बोजनाएँ बनाई गई है तथा उनका
क्रियान्वयन भी हो रहा है। 80 शनल पार्क, 149 वन्य प्राणी अन्त्यवन और कई चिड़ियाघर राष्ट्र की पादप वं जीव के संरक्षण के लिए बनाए गए हैं।
वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
1.भारत में जीव संरक्षण अधिनियम कम लागू हुआ?
(क) 1982
(ख) 1972
(ग) 1992
(घ) 1985
उत्तर-(ख)
2. भरतपुर पक्षी बिहार कहाँ स्थित है?
(क) असम
(ख) गुजरात
(ग) राजस्थान
(घ) पटना
उत्तर-(ग)
3.भारत में कितने प्रकार की वनस्पति प्रजातियाँ पाई जाती है?
(क) 89000
(ख) 90000
(ग) 95000
(म) 85000
उत्तर-(क)
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
1. भारत में तापमान कि सर्वत्र पर्वत है अतः……….. को मात्रा वनस्पति के प्रकार को निर्धारित करती है।
2.धरातल पर एक विशिष्ट प्रकार की वनस्पति या प्रागी जीवन वाले पारिस्थितिक तंत्रको………. कहते है।
3. मनुष्य की परिस्थितिक तंत्र का एक………..अंग है।
4. घड़ियाल, मगरमच्छ को एक प्रजाति विश्व में केवल…………. में पाया जाता है।
5. देश में जीव मंडल नियय (आरक्षित क्षेत्र) की कुल संख्या………..है जिसमें…………को विश्व के जीवमंडल निचयों में सम्मिलित किया गया है।
उत्तर-
1. तापमान,
2. जोयोम,
3. महत्वपूर्ण.
4 भारत,
5. -14.4.
कारण बताएँ
प्रश्न 1. हिमालय की दक्षिणी इलान पर उत्तरी ढलान की अपेक्षा सपन वन पाए जाते हैं।
उत्तर-हिमालय की दक्षिणी दलान पर उतरी इलान की अपेक्षा ज्यादा टंट पड़ती है। इसलिए दक्षिणी जर दलात फसवन चन पाए जाते हैं।
प्रश्न 2. उष्ण कटिबंधीय वर्षा वनों में परालल लता वितानों से ढका रहता है।
उत्तर-उष्ण कटिबंधीय वर्षा बलों में पराल लता वितानों से दका रहता है क्योंकि यही वर्षा 30 सेमी. से भी कम होती है।
प्रश्न 3. जैव विविधता में भारत बहुत धनी है।
उत्तर-जैव विविधता में भारत अपनी भौगोलिक कारणों, जैसे भू-भाग का स्वरूप, मिट्टी, तापमान, सूर्य का प्रकाश तथा वर्षा की भौगोलिक विविधता की वजह से धनी है।
प्रश्न 4. झाड़ी एवं कटीले वन में पौधों की पत्तियाँ रोएँदार मोमी, गूदेदार एवं छोटी होती है।
उत्तर-झाड़ी एवं कँटीले वन में पौधों की पत्तियाँ रोएँदार मोमी, गूदेदार एवं छोटी होती हैं क्योंकि इन वनों में वर्षा अत्यंत कम होती है और पौधे अपनी पत्तियों में ही जल का संग्रह करते हैं। पत्तियों के रोएँदार, मोमी, गूदेदार एवं छोटी होने से जल का वाष्पोत्सर्जन कम होता है।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. सिमलीपाल जीवमंडल निचय कहाँ है ?
उत्तर-सिमलीपाल जीवमंडल निचय उड़ीसा में है।
प्रश्न 2. बिहार किस प्रकार के वनस्पति प्रदेश में आता है ?
उत्तर-बिहार उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन प्रदेश अर्थात् पतझड़ वन प्रदेश में पाया जाता है।
प्रश्न 3. हाथी किस वनस्पति प्रदेश में पाया जाता है ?
उत्तर-हाथी उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन अर्थात् पतझड़ वन प्रदेश में आता है।
प्रश्न 4. भारत में पाए जाने वाले कुछ संकटग्रस्त प्राणी एवं वनस्पति के नाम बताएँ।
उत्तर-भारत में पाए जाने वाले संकटग्रस्त प्राणी-शेर, गैंडा, घड़ियाल, कछुआ इत्यादि। भारत में पाए जाने वाले संकटग्रस्त वनस्पति-चंदन, शीशम, सागवान इत्यादि।
प्रश्न 5. बिहार में किस वन्य प्राणी को सुरक्षित रखने के लिए वाल्मिकी नगर में प्रोजेक्ट चलाया जा रहा है?
उत्तर-बिहार में शेर को बचाने के लिए वाल्मिकी नगर प्रोजेक्ट चलाया जा रहा है।
(दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर)
प्रश्न 1. पारिस्थितिक तंत्र किसे कहते हैं ?
उत्तर-पृथ्वी पर पेड़-पौधों तथा जीवों का वितरण काफी हद तक भौतिक दशाएँ एवं जलवायु से प्रभावित होता है। वन कुछ खास किस्म की वनस्पति तथा कुछ खास किस्म के
प्राणियों को संरक्षण प्रदान करता है। जब कोई जगह बदल जाती है, तो वहाँ के रहने वाले जीव-जंतुओं पर भी इसका बहुत प्रभाव पड़ता है। उनकी संख्या तथा किस्में बदल जाती हैं। किसी भी जगह के रहने वाले जीव-जंतु तथा वहाँ पाए जाने वाले पेड़-पौधे वहाँ के भौतिक वातावरण तथा एक-दूसरे से संबंधित होते हैं। अतः ये तीनों आपस में मिलकर एक पारिस्थितिक तंत्र का निर्माण करते हैं। मनुष्य भी इस पारिस्थितिक तंत्र का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। मनुष्य जब अपने लाभ के लिए वनों को काटता है, तो पारिस्थितिक तंत्र में बदलाव आता है तथा वहाँ के भौतिक
वातावरण की गुणवत्ता में कमी आती है। इससे पेड़-पौधों, जड़ी-बूटियों एवं जीव-जंतुओं की प्रजातियाँ लुप्त हो चुकी हैं, और कुछ लुप्त होने के कगार पर आ चुकी हैं।
पृथ्वी पर एक खास किस्म वाले वनस्पति जगत एवं प्राणी जगत वाले विशाल पारिस्थितिक तंत्र को जीवोम कहते हैं। जैसे-मौनसून जीवोम, मरुस्थलीय जीवोम इत्यादि।
प्रश्न 2. भारत में पादपों तथा जीवों का वितरण किन कारणों द्वारा प्रभावित होता है ?
उत्तर-भारत में पादपों तथा जीवों का वितरण निम्न कारणों द्वारा प्रभावित होता है-
(i) भू-भाग का स्वरूप-भू-भाग का स्वरूप का भी वनस्पति के प्रकार पर बहुत प्रभाव पड़ता है। पहाड़, पठार एवं मैदानी भागों में एक ही प्रकार की वनस्पति नहीं पायी जाती है। पहाड़ का धरातल काफी उबड़-खाबड़, ऊँचा तथा दुर्गम होता है। इसलिए इस पर अलग तरह की वनस्पतियाँ उगती हैं।
पठार कम ऊँचे होते हैं, लेकिन इनका भी धरातल मैदानी भागों की तरह समतल नहीं होता है। इसलिए यहाँ की वनस्पति अलग किस्म की होती है।
चूँकि मैदानी भाग का धरातल समतल होता है, अत: यहाँ मनुष्यों का बसाव सबसे अधिक है। लोग कृषि-कार्य एवं बस्तियों के लिए प्राकृतिक वनस्पति को काट कर साफ कर दिए हैं, इसलिए मैदानी भाग में प्राकृतिक वनस्पति का अभाव होता है।
(ii) मिट्टी-मिट्टी की अलग-अलग किस्में भी वनस्पति को प्रभावित करती हैं। राजस्थान की बलुआही मिट्टी में विशेष प्रकार की काँटेदार झाड़ियाँ मिलती हैं। गंगा के डेल्टा प्रदेश में जहाँ दलदल है, वहाँ एक खास किस्म के वृक्ष सुंदरी, पर्वतीय भागों में अधिक ऊँचाई पर वृक्ष के वन पाए जाते हैं। पथरीली मिट्टी के क्षेत्र में संकुल वन पाए जाते हैं। इसलिए उसे सुंदरवन कहते हैं।
(iii) जलवायु-(a) तापमान-पादपों तथा जीवों के वितरण को प्रभावित करने में तापमान का महत्वपूर्ण स्थान है। तापमान से वनस्पति की विविधता प्रभावित होती है। हिमालय पर्वत इसका एक उदाहरण है। हिमालय पर्वत पर जैसे-जैसे ऊँचाई बढ़ती है, वैसे-वैसे तापमान घटता जाता है और उसी के साथ-साथ पेड़-पौधों की किस्में भी बदलती जाती हैं। जहाँ तापमान बहुत कम होते हैं, वहाँ कोई पौधा नहीं उगता है।
(b) सूर्य का प्रकाश-सूर्य के प्रकाश से भी वनस्पति की विविधता पर प्रभाव पड़ता है। गर्मी के मौसम में सूर्य प्रकाश मिलने की अवधि अधिक होती है, जिस कारण पेड़-पौधे अधिक बढ़ते हैं।
(c) वर्षण-वर्षा से वनस्पति को नमी प्राप्त होती है और वनस्पति के उगने में नमी का बहुत महत्व है। जैसे-जैसे वर्षा की मात्रा घटती या बढ़ती है, वैसे-वैसे वनस्पति में
परिवर्तन होता है। उदाहरण के लिए, पूर्वोत्तर राज्य में जहाँ बहुत अधिक वर्षा होती है, वहाँ सघन वनस्पति एवं
सदाबहार वृक्ष पाए जाते हैं। जबकि पश्चिमी घाट पर्वत को पूर्वी ढलान जो वृष्टि छाया में पड़ता है वहाँ वनस्पति की सघनता, उसका प्रकार एवं उसकी ऊँचाई सभी प्रभावित होती है। इसी तरह गंगा के मैदान में पूरब से पश्चिम की ओर बढ़ने पर, वर्षा की मात्रा एवं उसकी अवधि बढ़ती जाती है जिसका प्रभाव वहाँ की वनस्पति की सघनता, वृक्षों की ऊँचाई एवं उसके किस्म पर पड़ता है।
प्रश्न 3. वनस्पति-जगत एवं प्राणी-जगत हमारे अस्तित्व के लिए क्यों आवश्यक है ?
उत्तर-वनस्पति जगत एवं प्राणी जगत हमारे अस्तित्व के लिए आवश्यक हैं। खास किस्म की वनस्पति, खास किस्म के प्राणी-जगत को संरक्षण देते हैं। जब किसी जगत की वनस्पति में परिवर्तन आता है तो वह वहाँ के रहने वाले जीव-जंतुओं को भी प्रभावित करता है। इस प्रभाव
से उनकी किस्म तथा उनकी संख्या भी बदल जाती है। अर्थात् किसी भी जगह के पेड़-पौधे जीव-जंतु तथा भौतिक वातावरण एक-दूसरे से संबंधित होते हैं तथा मिलकर एक पारिस्थितिक तंत्र का निर्माण करते हैं। मनुष्य भी इस तंत्र का एक अभिन्न अंग है। जब मनुष्य अपने लाभ के लिए वनों को काटता है तो वह भौतिक वातावरण की गुणवत्ता में गिरावट लाता है। इससे कई प्रकार के पेड़-पौधों, जड़ी-बूटियों एवं जीव-जंतुओं की प्रजातियाँ विलुप्त हो गई हैं।
हम वनस्पति जगत से विभिन्न प्रकार की जड़ी-बूटियों, कीमती लकड़ियाँ प्राप्त करते हैं। पेड़-पौधे वातावरण को शुद्ध रखते हैं। पशुओं से हमें विभिन्न प्रकार के आहार, परिवहन तथा कृषि कार्य में मदद मिलती है। बहुत से कीड़े-मकोड़े हमें फसलों एवं फूलों के परागण में मदद करतेहैं। वे हानिकारक जीवों का भक्षण भी करते हैं।
अतः वनस्पति-जगत एवं प्राणी-जगत दोनों हमारे लिए महत्त्वपूर्ण हैं।