8th class sanskrit notes | रघुदासस्य लोकबुद्धिः रघुदास की लोकबुद्धि
रघुदासस्य लोकबुद्धिः ( रघुदास की लोकबुद्धि )
8th class sanskrit notes
वर्ग – 8
विषय – संस्कृत
पाठ 6 – रघुदासस्य लोकबुद्धिः
रघुदासस्य लोकबुद्धिः ( रघुदास की लोकबुद्धि )
( लट् लकार )
[ प्रस्तुत पाठ में एक ………..पड़ते जा रहे हैं । अस्ति रामभद्र नामकं ……. कदापि कष्टं नानुभवति ।
अर्थ – रामभद्र नामक सम्पन्न एक नगर है । वहाँ बहुत लोग अपने – अपने गाँवों को छोड़कर शहर में रहने के लिए परिवार के साथ आये । नगर में अनेक सुविधाएँ हैं इसमें संदेह नहीं । किन्तु नगर के नियम ग्रामीण लोगों को पीड़ा पहुँचाते हैं । वहाँ हरि प्रसाद का एक ग्रामीण परिवार रहता है । उसका पड़ोसी रघुदास अपने परिवार के साथ सुख से रहता है । रघुदास का पुत्र बिन्दु प्रकाश बहुत मेघावी है । स्कूल में सदैव वर्ग में प्रथम आता है । आजकल शहर के कॉलेज में पढ़ रहा है । बिन्दु प्रकाश के माता – पिता अपने संतान की उन्नति को देखकर प्रसन्न रहते हैं । छोटा परिवार के कारण अधिक सम्पन्न नहीं होने के बाद भी रघुदास शहर में सुखी है । कभी – कभी उसके घर गाँव से लोग आकर रहते हैं । किन्तु उसके परिवार के लोग कभी कष्ट का अनुभव नहीं करता है ।
अपरत्त प्रतिवेशिनः …………….चर्चा ते कुर्वन्ति ।
अर्थ – वहीं पर पड़ोसी हरि प्रसाद के परिवार की कहानी विचित्र है । उसके परिवार में छ : बेटी और दो बेटे हैं । उन सबों के भरण – पोषण करने में सम्पन्न होकर भी हरि प्रसाद सदैव चिन्तित रहता है । लड़कियों में तीन ही स्कूल जाती है । अन्य तीन लड़कियाँ मैट्रिक परीक्षा पास कर घर में ही रहती है । हरि प्रसाद सदैव चिन्तित रहते हैं कि अधिक पढ़ाने से उन सबों के विवाह में बड़ी समस्या होगी । घर में रहने वाली वे सब बेटियाँ घर के कामों को करती हैं किन्तु सदैव परस्पर झगड़ा करती हैं । हरि प्रसाद के दोनों पुत्र स्कूल में पढ़ते हैं किन्तु उन दोनों की महत्वाकांक्षा सदैव पिता को पीड़ा पहुँचाता है । माता भी उन्हीं दोनों को अधिक मानती है । यह देखकर सभी लड़कियाँ बहुत दुःखी होती हैं । इस प्रकार सम्पन्न हरि प्रसाद पड़ोसी निर्धन रघुदास की प्रसन्नता के लिए ईर्ष्या करते हैं । हरि प्रसाद के विशाल घर में भी आये हुए उसके ग्रामीण लोग प्रसन्न नहीं रहते हैं । इस परिवार की दु : ख की चर्चा वे लोग करते हैं ।
अन्ततः हरि प्रसाद स्वकीयं………. सत्यमुच्यते ।
अर्थ -अन्तत : हरिप्रसाद अपने ही विशाल परिवार की सदैव निन्दा करते दिखते हैं । रघुदास के छोटा परिवार अच्छा है विशाल परिवार के पिता मुझे धिक्कार है । वर्तमान में वही लोग धन्य हैं जिस व्यक्ति का परिवार छोटा है । सत्य ही कहा गया है कि-
परिवारस्य सौभाग्यं यत्र संख्या लघीयसी ।
विशाल परिवारस्य भरणे पीडितो जनः ।।
अर्थ — उस परिवार का सौभाग्य है जिस परिवार की संख्या कम है । विशाल परिवार का भरण – पोषण करने में लोग दु : खी होते हैं ।
देशेऽपि परिवारेषु जनसंख्यानियन्त्रणात् । संसाधनानि सर्वेषां सुलभान्येव सर्वथा ॥
अर्थ – देश या परिवार में जनसंख्या को नियन्त्रित करने से सदैव सबों को संसाधन आसानी से प्राप्त हो जाते हैं ।
शब्दार्थ –
बहवः = अनेक । परित्यज्य = छोड़कर । सह = साथ । समागताः = आये । प्रतिवेशिनः = पड़ोसी । अधीते = पढ़ता है । विलोक्य = देखकर । प्रमुदितौ = प्रसन्न । यदा – कदा = कभी – कभी । आगत्य = आकर । इदानीम् = इस समय । सम्प्रति = इस समय । तिम्रः = तीन ( स्त्रीलिङ्ग ) । अपरा : = दूसरी । महती = बहुत । अवलोक्य = देखकर । प्रसीदन्ति = प्रसन्न होते हैं । ईयति = डाह करते हैं । लघीयसी = छोटी ( तुलनात्मक ) । अल्पकायः = छोटा । सर्वथा = सब प्रकार से । यतसंख्यकः = कम संख्या वाला । भरणे = पालन करने वाला ।
व्याकरणम्
सन्धिविच्छेदः-
सन्तीति = सन्ति + इति ( दीर्घ – सन्धिः ) । नातिसम्पन्नोऽपि = न + अतिसम्पन्नः + अपि ( दीर्घ सन्धिः , विसर्ग सन्धिः ) ।
कदापि = कदा + अपि ( दीर्घ – सन्धिः ) । नानुभवति = न + अनुभवति ( दीर्घ – सन्धिः ) । प्रवेशिकापरीक्षोत्तीर्णाः = प्रवेशिकापरीक्षा + उत्तीर्णाः ( गुण सन्धिः ) ।
तदवलोक्य = तत् + अवलोक्य ( व्यञ्जन सन्धिः ) । विशालेऽपि = विशाले + अपि ।
सदैव = सदा + एव ( वृद्धि सन्धिः ) ।
तावेव = तौ + एव ( अयादि सन्धिः ) ।
सर्वाधिकम् = सर्व + अधिकम् ( दीर्घ सन्धिः ) । सत्यमुच्यते = सत्यम् + उच्यते ।
प्रकृति – प्रत्यय , विभागः
परित्यज्य =परि + √ल्यज् + ल्यप्
समागताः =सम् + आ + √गम् + क्त ( बहुवचन ) विलोक्य =वि + √लोक + ल्यप्
प्रमुदितौ =प्र + √ मृद् + क्त ( पुं , द्विवचन )
आगत्य =आ +√ गम् + ल्यप्
उत्तीर्णा =उत् +तृ +क्त( बहुवचन )
स्थिरताः =√स्था + क्त ( बहुवचन )
अवलोक्य =अव+√लोक् + ल्यप्
गच्छन् =√गम्+ शतृ( पुं . )
अभ्यासः
मौखिक –
1. उच्चारणं कुरुत
नातिसम्पन्नोऽपि , नानुभवति , चिन्ताग्रस्तः , प्रवेशिकापरीक्षोत्तीर्णाः , तावेव , तदवलोक्य , निर्धनस्यापि , प्राप्नुयात् , यतसंख्यकः ।
2. एकपदेन उत्तरं वदत
( क ) रामभद्रनामकं नगरं कुत्र अस्ति ?
उत्तरम्– भारतवर्षे ।
( ख ) हरिप्रसादस्य प्रतिवेशी कः अस्ति ?
उत्तरम् – रघुदासः ।
( ग ) रघुदासस्य पुत्रः कः अस्ति ?
उत्तरम् – बिन्दुप्रकाश ।
( घ ) कस्य द्वौ पुत्रौ स्तः ?
उत्तरम् -हरिप्रसादस्य ।
( ङ ) हरिप्रसादस्य परिवारे कियत्यः कन्याः सन्ति । उत्तरम् – षष्टी ।
लिखित –
3. मञ्जूषातः अव्ययपदं चित्वा वाक्यानि पूरयत
एव , च , सदा , अपि , एवम् , अति
प्रश्नोत्तर
( क ) तस्य परिवारे षट् कन्या द्वौ च पुत्रौ वर्तन्ते । ( ख ) कन्यासु तिस्रः एव विद्यालये गच्छन्ति ।
( ग ) हरि प्रसादः सदा चिन्ता यस्तो वर्त्तते ।
( घ ) एवम् सम्पन्नः हरिप्रसादः प्रतिवेशिनः रघुदासस्य निर्धनस्य प्रसन्नतायै ईष्यति ।
( ङ ) बिन्दु प्रकाशः अति मेधावी वर्तते ।
4. निम्नलिखितानां शब्दानां प्रकृति – प्रत्यय – विभागं कुरुत-
आगत्य , विहस्य , आगताः , कुर्वन् , तिष्ठन् , पिबन् , मृतः ।
उत्तरम् -आगत्य = आ + √गम् + ल्यप् ।
विहस्य = वि +√ हस् + ल्यप् ।
आगताः = आ + √गम् + क्त ( बहुवचन ) ।
कुर्वन् =√ कृ + शतृ ( पुल्लिङ्ग ) ।
तिष्ठन् = √स्थिा + शतृ ( पुल्लिङ्ग ) ।
पिबन् =√ पिब् + शत् ( पुंल्लिङ्ग ) ।
मृतः =√ म् + क्त ( पुल्लिंग ) ।
5. अधोलिखितानां शब्दानां प्रयोगेन वाक्यं निर्माणं कुरुत
प्रश्नोत्तरम् –
गृहे = स : गृहे वसति ।
सदा = सदा सत्यम् वद् ।
जनाः = जनाः अत्र न निवसन्ति ।
सह = रामेण सह सीता वनं आगच्छत् ।
तत्र = तत्र एक : कुपः अस्ति ।
यदा – कदा = यदा – कदा मम् गृहे अतिथिः आगच्छति ।
वर्तते = पाटलिपुत्रे गोलगृहं वर्त्तते ।
6. निम्नलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तरं एक्वाक्येन लिखत-
( क ) रघुदासस्य पुत्रः कीदृशः अस्ति!
उत्तरम् – रघुदासस्य पुत्रः मेधावी अस्ति ।
( ख ) कस्य मातापितरौ निजस्य सन्तानस्य उन्नतिं विलोक्य प्रमुदिती भवतः ?
उत्तरम् – बिन्दु प्रकाशस्य माता – पितरौ निजस्य संतानस्य उन्नतिं विलोक्य प्रमुदितौ भवतः ।
( ग ) कः स्वकीय विशालं परिवार सदा निन्दति ?
उत्तरम् – हरिप्रसादः स्वकीयं विशालं परिवारं सदा निन्दति ।
( घ ) वर्तमानकाले के जनाः धन्याः ?
उत्तरम् – वर्तमान काले ते जनाः धन्याः यस्य परिवार अल्पकायः ।
( ङ ) कस्य परिवारः बहुसंख्यकः अस्ति ?
उत्तरम् -हरि प्रसाद परिवारः बहुसंख्यकः अस्ति ।
7. अधोलिखितानां पदानां लकार पुरुषं वचनञ्च लिखत ।
उत्तरम् –
पदानि धातु लकारः पुरुष. वचनम्
यथा-सन्ति अस् लट्लकार : प्रथम पु. बहुवचनम् तिष्ठन्ति स्था लट् लकार : प्रथम पु . बहुवचनम् भविष्यति भू लट् लकार : प्रथम पु. एकवचनम् वर्तते वृत् लट्लकारः प्रथम पु. एकवचनम् भवतः भू लट्लकार : प्रथम पु. द्विवचनम् अभवत् भू लङ्गलकार : प्रथम पु. एकवचनम् गच्छेयुः गम् विधिलिङ्गलकार प्रथम पु. बहुवचनम्
8. अधोलिखितानां पदानां लिङ्ग विभक्तिञ्च लिखत्।
उत्तरम् –
पदानि लिङ्गम् विभक्तिः वचन
यथा- तेषाम् पुल्लिङ्ग षष्ठी बहुवचन
तासाम् स्त्रीलिङ्ग. षष्ठी बहुवचन सन्देहः पुल्लिङ्ग प्रथमा एकवचन कन्यासु स्त्रीलिङ्ग. सप्तमी बहुवचन विद्यालये पुल्लिङ्ग सप्तमी एकवचन परिवारस्य पुल्लिङ्ग षष्ठी एकवचन
9. विशेष्य – विशेषणानाम् उचितं मेलनं कुरुत –
विशेषण पदानि विशेष्य पदानि
विशाले
एकः
स्वकीयम्
निजस्य
महती
अस्मात्
उत्तरम्
विशाले गृहे
एक : ग्रामपरिवारः
स्वकीयम् विशालम्
निजस्य. सन्तानस्य
महती समस्या
अस्मात् कारणात्
10. उदाहरणानुसृत्य लकार परिवर्तनं कुरुत-
वर्तमान काल : भूतकालः यथा – तत्र एकः नरः अस्ति तत्र एकः नरः आसीत् उत्तरम्
( क ) स : कुत्र गच्छति ? सः कुत्र अगच्छत् ( ख ) ते फलं खादन्ति । ते फलं अखादन्
( ग ) रीता विद्यालये पठति । रीता विद्यालये अपठत् ( घ ) वृक्षात् पत्राणि पतन्ति । वृक्षात् पत्राणि अपतन् ( ङ ) सः स्वपरिवारेण सह सुखेन तिष्ठत्ति –
सः स्वपरिवारेण सह सुखेन अतिष्ठत् ।
11. अधोलिखितानां पदानां विलोमपदानि लिखत
यथा – गच्छन्ति आगच्छन्ति
सर्वदा एकदा
सम्पन्नः विपन्नः
निजः पर :
मूर्खः
धनवान् धनहीनः
योग्यता – विस्तारः
प्राचीन भारत में निवासियों की संख्या बहुत कम थी । भूखण्डों पर लोग जहाँ – तहाँ बस जाते थे । भूमि के क्रय – विक्रय का प्रश्न नहीं था । विपुल मात्रा में प्राप्त प्राकृतिक संसाधनों का स्वेच्छा से लोग प्रयोग करते थे । न कहीं जल की कमी थी , न ईंधन की , न पशुओं की और न स्वपार्जित अन्न की । परिणाम था कि प्राकृतिक संकट भले आते थे किन्तु सामान्य रूप से लोग तनावमुक्त एवं प्रसन्न रहते थे । ऐसी स्थिति में ही प्राचीन संस्कृत ग्रन्थों में ” अष्टपुत्रा भव ” , पुत्रवती भव इत्यादि आशीर्वचन दिये जाते थे । सबका एक ही तात्पर्य था कि वंशवृद्धि हो , जनसंख्या बढ़े । कालक्रम से जनसंख्या इतनी बढ़ गयी कि प्राकृतिक संसाधन लोगों के लिए कम पड़ने लगे । इतना ही नहीं , जल , वायु , आकाश , पृथ्वी आदि सभी संसाधन प्रदूषित भी होने लगे । प्रकृति पर नियंत्रण रखने वाले जीव – जन्तुओं और वनस्पतियों का भयंकर संहार हुआ । विज्ञान ने मानव की सुख – सुविधा तो बढ़ा दी किन्तु समस्त पर्यावरण का प्रदूषण भी बढ़ा दिया । कहा जाता है कि विश्व में जनसंख्या का संतुलित वितरण नहीं है , किसी देश में संसाधनों से कम लोग हैं , तो किसी देश में सभी संसाधन मिलकर भी जनसंख्या की मांग पूरी नहीं कर सकते । हमारे देश में यह दूसरी स्थिति ही है ।
ऐसी स्थिति में जनसंख्या का नियंत्रण बहुत आवश्यक है । प्रसिद्ध दार्शनिक बट्रेण्ड रसेल ने ज्ञान ( Knowledge ) तथा बुद्धि ( Wisdom ) का अन्तर बताते हुए यह उदाहरण दिया है कि ज्ञान ने मृत्युदर पर बहुत नियंत्रण कर लिया है किन्तु उस अनुपात में मनुष्य के पास यह बुद्धि नहीं थी कि जनसंख्या पर भी नियंत्रण किया जाए । परिणामतः संसार के समक्ष सभी प्राकृतिक संसाधन कम पड़ने लगे । आज समस्त विश्व इस ओर जागरूक हो गया है कि जनसंख्या पर नियंत्रण किया जाय । हमारा पड़ोसी देश चीन अपनी विशाल जनसंख्या के लिए विश्वविख्यात था किन्तु उसके अधिकारियों ने बुद्धि का अद्भुत उदाहरण देते हुए जनसंख्या वृद्धि की दर लगभग शून्य तक पहुँचा दी है । हमारे देश में भी इसका अनुकरण करने के प्रयास हो रहे हैं किन्तु समुदाय की सदिच्छा के बिना यह कार्य असम्भव है ।
इस कथा के द्वारा दिखाया गया है कि छोटे परिवार का अपने संसाधनों से अच्छी तरह भरण – पोषण किया जा सकता है जिससे सभी सदस्य प्रसन्न रह सकते हैं । परिवार में संसाधन कितने भी हों उनका वितरण हो जाने पर वे कम पड़ जाते हैं ।।