bseb 8th class hindi note | बिहारी के दोहे
बिहारी के दोहे
bseb 8th class hindi note
वर्ग – 8
विषय – हिंदी
पाठ 6 – बिहारी के दोहे
बिहारी के दोहे
( रीतिकाल के प्रतिष्ठित शृंगारिक कवि बिहारी के दोहे ……………शामिल हैं । )
मेरी भव बाधा …………………दुति होय ॥
अर्थ – इस दोहा में कवि बिहारी ने श्री राधा से प्रार्थना करते हैं कि राधा नागरि मेरी सांसारिक बाधा को दूर करें जिनके शरीर की छाया पड़ने से भगवान श्रीकृष्ण का श्यामला सौन्दर्य हरित वर्ण की आभा को प्राप्त कर लेता है ।
जयमाला , छापै तिलक , सरै …….साँचै राँचै रामु ॥
अर्थ – इस दोहा में कवि ने सत्य की महत्ता बताते हुए कहते हैं । माला पर जप करने से या माथे पर तिलक लगा लेने से एक भी कार्य नहीं होता जिसके मन में खोट होता है उसके सारे कार्य बेकार हो जाते हैं जो सच्चा व्यक्ति है उस पर ही राम भी प्रसन्न होते हैं ।
बतरस – लालच लाल……….. दैन कहे नटि जाई ॥
अर्थ – इस दोहा में भगवान श्रीकृष्ण और राधा के प्रेम को दिखाते हुए कवि ने कहा है श्री राधा भगवान श्रीकृष्ण से वार्तालाप रूपी आनन्द की प्राप्ति के लोभ में श्रीकृष्ण की मुरली छिपा देती है । श्रीकृष्ण को जब राधा पर शक होता है तो वह नहीं कहती है । जब श्रीकृष्ण राधा को शपत देते हैं तो वह हँसने लगती है और जब श्रीकृष्ण माँगते हैं तो राधा मुरली देने से मुकर जाती है ।
जब जब वै सुधि कीजिए, तब- तब …………।……………..
अर्थ — इस दोहा में कवि ने भक्त और भगवान की स्थिति का वर्णन करते हुए कहा है कि भगवान जब भवत की सुधि लेकर कृपा करते हैं तो भक्त उनके कृपा पाकर अचेत हो जाता जिससे भगवान की सुधि भक्त को समाप्त हो जाता है । जब भगवान भक्त को देखते हैं तो भक्त की आँख ही बंद हो जाती है ।
नर की अरू नल नीर…………।………..ते
अर्थ – इस दोहा में कवि बिहारी ने मनुष्य और नल के जल की तुलना उपमा अलंकार के माध्यम से देते हुए कहते हैं — मनुष्य और नल के जल की एक गति है । मनुष्य जितना ही विनम्र होता जाता है उतना ही वह समाज में ऊँचा स्थान प्राप्त करते जाता है । उसी प्रकार नल जितना नीचे रहता है उसके जल की स्थिति उतनी ही तीव्र होती है ।
संगति – सुमति न पावही ………. न होत सुगंध ।।
अर्थ — इस दोहा में बिहारी ने सत्संगति की ओर ध्यान दिलाने का प्रयास करते हुए कहा है कि मनुष्य अच्छे व्यक्तियों की संगति नहीं पाकर बुरे आचरण में लग जाता है । ऐसे लोगों को सुधारना मुश्किल हो जाता है । चाहे हम कितना ही प्रयास न कर लें । जैसे – हींग को कपुर में रख देने के बाद भी हींग में कपुर का सुगन्ध नहीं आ सकता है ।
बड़े न हूजै गुनन बिनु , बिरद……!………गहनो गढयो न जाय।।
अर्थ – इस दोहा में कवि ने गुणवान बनने को कहते हुए कहा है कि जिसके पास गुण नहीं है उसका गुण – गान कितना भी हम करें वह महानता को नहीं प्राप्त कर सकता है । जैसे – धतूरा को कनक की संज्ञा तो दे सकते हैं लेकिन उससे गहना नहीं बना सकते हैं ।
दीरघ साँस न ……..!…………..सु कबूलि ॥
अर्थ — इस दोहा में कवि ने मनुष्य को सुख – दु : ख में एक समान रहकर ईश्वर का स्मरण करने की सलाह देते हुए कहते हैं दुःख में आह भरते हुए लम्बी साँस मत लो और सुख में मालिक ( ईश्वर ) को भी मत भूलो । दु : ख के समय भगवान – भगवान क्यों करते हो जो भगवान ने दिया है चाहे सुख हो या दुःख उसे समान रूप से स्वीकार करो ।
शब्दार्थ –
सरै = निकलना , बनना । काँचै = कच्चा । वृथा =व्यर्थ , बेकार । साँचै – सच्ची । राँचै = प्रसन्न । नर = मनुष्य । नीर = पानी , जल । जेतो = जितना । तेतो = उतना सुमति अच्छी बुद्धि । धन्ध = रोजगार , काम । कुमति = खराब बुद्धि । गुनन = गुण । बिनु = बिना , रहित । कनक = सोना , धतूरा । दीरघ साँस = लंबी साँस । साईं हि = स्वामी को । कबूलि = स्वीकार करना । बतरस लालच = बातचीत करने के आनंद के लोभ से । लाल = कृष्ण । लुकाई = छिपाकर । सौहँ = शपथ । नटि जाई = मुकर जाना । सुधि =चेतना । जाँहि =जाती रहती है । सुधि कीजिए= स्मरण किए जाते हैं ।
प्रश्न – अभ्यास
पाठ से-
1. उन पदों को लिखिए जिनमें निम्न बातें कही गई हैं ।
( क ) बाह्याडंबर व्यर्थ है ।
उत्तर – जप माला छापै तिलक …….. साँचे राँचै रामु ॥
( ख ) नम्रता का पालन करने से ही मनुष्य श्रेष्ठ बनता है ।
उत्तर – नर की अरू नल नीर ऊँचो होय ।।
( ग ) बिना गुण के कोई बड़ा नहीं होता ।
उत्तर — बड़े न हूजै गुनन गहनो गढ़यो न जाय ।।
( घ ) सुख – दुःख समान रूप से स्वीकारना चाहिए ।
उत्तर – दीरघ साँस न लेहु दई सु कबुली ।।
2. दुर्जन का साथ रहने से अच्छी बुद्धि नहीं मिल सकती । इसकी उपमा में कवि ने क्या कहा है ?
उत्तर – दुर्जन की संगति पाकर या सत्संगति के अभाव में मनुष्य को अच्छी बुद्धि नहीं मिल सकती है इसके लिए उपमा देते हुए कवि ने कहा है कि हींग को कपुर में डाल देने से उसमें कपुर की सुगन्ध नहीं आ सकती है ।
3. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए ।
प्रश्नोत्तर-
( क ) नर की अरू नल नीर की गति एक करी जोय । जेतो नीची हवै चलै तो ऊँचो होय ।।
( ख ) जपमाला छापै , तिलक सरै न एकौ काम् । मन काँचै नाचै वृथा , साँचै राँचे रामु ।।
( ग ) बड़े न हूजै गुनन बिनु , बिरद बड़ाई पाय । कहत धतूरे सो कनक , गहनो गढ्यो न जाय ।।
( घ ) दीरघ साँस न लेहु दुख , सुख साईं हिन भूल । दई – दई क्यों करतू है , दई – दई सु कबूलि ।।
पाठ से आगे
1. गुण नाम से ज्यादा बड़ा होता है । कैसे ?
उत्तर – नाम से कोई गुणवान नहीं होता । जैसे – धतूरे को भी कनक कहा जाता है लेकिन उससे गहना नहीं बन सकता है ।
2 . ” कनक ” शब्द का प्रयोग किन – किन अर्थों में किया गया है ?
उत्तर– ” कनक ” शब्द का प्रयोग दो अर्थों में किया गया है । कनक = सोना और कनक – धतूरा ।
व्याकरण-
1. – पर्यायवाची शब्द लिखिए ।
उत्तर – भव = संसार । नर = मनुष्य । बाधा = विघ्न , दुख । तन = शरीर । नीर = जल । कनक = सोना । 2. निम्नलिखित शब्दों के आधुनिक / खड़ी बोली रूप लिखिए ।
उत्तर – अरू = और । जेतो = जितना । तेतो = उतना । हरौ = हरण करो । वृथा = व्यर्थ । गुनन = गुण । विनु = बिना ।
गतिविधि
1. रीतिकालीन अन्य कवि की रचनाओं को भी पढ़िए और वर्ग में सुनाइए ।
उत्तर – छात्र स्वयं करें ।
2. पाठ से संबंधित अलंकारों का परिचय अपने शिक्षकों से प्राप्त कीजिए ।
उत्तर – छात्र स्वयं करें । ।।