8th class history | राष्ट्रीय आन्दोलन (1885-1947)
8th class history | राष्ट्रीय आन्दोलन (1885-1947)
8th class history | राष्ट्रीय आन्दोलन (1885-1947)
राष्ट्रीय आन्दोलन (1885-1947)
पाठ का सारांश–ब्रिटिश शासन के शोषणकारी और दमनकारी नीतियों ने भारतीयों में भारी असंतोष भर दिया था। उनकी अनीतियों एवं विभेदकारी नीतियों ने 1857 के विद्रोह को जन्म दिया था जिसे उन्होंने दो वर्षों के दौरान बेहरमी से कुचल दिया था। पर, कुछ ही वर्षों बाद जागरूक भारतीयों ने क्षेत्रीय स्तर पर ही सही, संगठन बनाकर आजादी के लिए भारतीय जनता को जागरूक करना शुरू कर दिया था। राष्ट्रहित उनके लिए सर्वोपरि था।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस-28 दिसम्बर, 1885:–अंग्रेजों द्वारा रेलवे का विकास, समूचे भारत में एक तरह की न्यायिक एवं प्रशासनिक व्यवस्था स्थापित करने, सम्पूर्ण भारत को सड़क, तार एवं रेलवे के माध्यम से एक सूत्र में बाँधने और समाचारपत्रों के प्रकाशन से भारतीयों में विचार एक छोर से दूसरे छोर तक आसानी से फैलने लगे। इससे अंग्रेजों के शोषण एवं दमन के खिलाफ लोगों में राष्ट्रवादी भावना पनपने का मौका मिला।
समाचार पत्रों के माध्यम से अंग्रेजी राज्य के शोषण एवं दमन की नीतियों की कलई खुलने लगी तो सरकार ने वर्नाक्यूलर प्रेस ऐक्ट (1878) के माध्यम से समाचारपत्रों के प्रकाशन पर प्रतिबंध लगा दिया। फिर भी, प्रतिबंध के बावजूद समाचार पत्र लोगों तक छिपकर जनमत बनाने लगे और राष्ट्रीयता का प्रसार करने लगे।
इन राष्ट्रवादी विचारधारा पूर्ण परिस्थितियों ने भारत को स्वतंत्र करने के लिए एक राष्ट्रीय संगठन की आवश्यकता को अपरिहार्य बना दिया। फलत: 28 दिसम्बर, 1885 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना बम्बई के गोकुल दास कॉलेज के हॉल में भारत के विभिन्न भागों से. आए 72 प्रतिनिधियों के द्वारा की गयी। कांग्रेस के शुरुआती नेताओं में दादाभाई नौरोजी, फिरोज शाह मेहता, बदरुद्दीन तैयबजी, डब्लू. सी. बनर्जी, आर० सी० दत्त, सुरेन्द्रनाथ प्रमुख थे। इन नेताओं ने दूरदर्शिता का परिचय देते हुए ए. ओ. ह्यूम जैसे अवकाश प्राप्त अंग्रेज अधिकारी को अपना मुख्य संगठनकर्ता बना दिया ।
कांग्रेस के शुरुआती दिन:–अंग्रेज भारत को राष्ट्र नहीं मानते थे बल्कि अलग-अलग धर्मों, सम्प्रदायों, जातियों एवं भाषा-भाषियों का एक समूह भर मानते थे। कांग्रेसी नेताओं ने इसका खण्डन नहीं किया बल्कि, भारत को बनता हुआ राष्ट्र बताया।
शुरुआती दौर से ही राष्ट्रवादी नेता धर्मनिरपेक्षता के प्रबल पक्षधर थे। किसी भी प्रस्ताव को पारित करने में वे अल्पसंख्यकों के विचारों को ध्यान में रखते थे और ध्यान रखते थे कि कौन्सिल में उनके निर्वाचित प्रतिनिधियों की संख्या उनकी आबादी के अनुपात से कम न हो । कांग्रेस यह भी कोशिश करती रही कि बारी-बारी से देश के भिन्न-भिन्न हिस्सों में कांग्रेस के अधिवेशन आयोजित किए जाएँ ताकि राष्ट्रवादी विचार पूरे भारत को एक सूत्र में बाँध सके ।
कांग्रेस ने अपनी प्रारंभिक अवस्था में लोकतांत्रिक एवं धर्मनिरपेक्ष आन्दोलन की आधारशिला रखी । जनता में राजनीतिक चेतना पैदा की और उसे राजनीतिक रूप से शिक्षित किया । जनांदोलन व लामबंदी शुरू में मुश्किल था। अतः वे राजनीतिक चेतना और जनमत बनाने के लिए मध्यमवर्गीय लोगों से संपर्क शुरू किये जो धीरे-धीरे आम लोगों तक पहुँचा ।
स्वराज की चाहत:- 19वीं सदी के अंतिम दशक आते-आते कांग्रेस के कई नेता ब्रिटिशों से प्रार्थना और प्रतिवेदन की नीति से असहमत होने लगे। वे अंग्रेजों से लड़कर स्वराज जल्दी हासिल करना चाहते थे। इन नेताओं में प्रमुख थे—बंगाल के विपिनचन्द्र पाल, पंजाब के लाला लाजपत राय तथा महाराष्ट्र के बाल गंगाधर तिलक, जिन्होंने जोशपूर्ण नारा दिया-“स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा।” इन नेताओं ने गाँव-गाँव जाकर लोगों को संगठित किया तथा स्वराज्य के साथ-साथ स्वदेशी की महत्ता पर भी बल दिया।
बंग-भंग एवं स्वदेशी आंदोलन:— तब एकीकृत बंगाल जिसके अन्तर्गत बंगलादेश, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, बिहार और झारखण्ड के प्रदेश थे, कांग्रेस अथवा राष्ट्रीय आंदोलन का गढ़ था, जिसे कमजोर करने की नियत से लॉर्ड कर्जन के द्वारा अंग्रेजों ने सन् 1905 ई. में विभाजन कर दिया, बांट दिया। इस बंग-भंग की घटना जो 16 अक्टूबर, 1905 को हुई, के विरोध में समूचे बंगाल में शोक दिवस मनाया गया । बंगाल की गलियों में ‘वंदे मातरम्’ के नारे गूंज उठे और स्वदेशी आंदोलन तेजी से भड़क उठा । महिलाओं ने भी आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
बंगाल से बाहर स्वदेशी आंदोलन का नेतृत्व तिलक और लाला लाजपत राय के हाथों में था। अंग्रेजी सरकार ने दमन का सहारा लिया । तिलक को राजद्रोह के आरोप में फंसाकर 6 वर्षों के कारावास की सजा दी गई। आंदोलन धीरे-धीरे कमजोर पड़ने लगा।
साम्प्रदायिकता का बीजारोपण:- बंगाल विभाजन के बाद साम्प्रदायिकता की नीति को बढ़ाते हुए अंग्रेजों ने 1906 में मुसलमान जमींदारों एवं नवाबों द्वारा स्थापित ऑल इंडिया मुस्लिम लीग के गठन में भरपूर मदद की । लीग ने बंगाल विभाजन को जायज बताया । लीग ने मुसलमानों के लिए अलग निर्वाचक मंडल की मांग की जिसे 1909 में सरकार ने मान लिया। इसके विरोध में 1918 में पंजाब में हिन्दू महासभा गठित हुई। दोनों दलों के परस्पर विरोधी विचारधारा से आगे चलकर भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन साम्प्रदायिक विचारों से कमजोर पड़ गया।
अतिवादी क्रांतिकारी-अंग्रेजों के प्रति गुस्से में युवा अतिवादी क्रांतिकारी मार्ग अपनाने लगे। पूना की अव्यवस्था और अत्याचार के कारण प्लेग कमिश्नर की हत्या कर दी गई जबकि मुजफ्फरपुर में खुदीराम बोस ने मुजफ्फरपुर के जिला न्यायाधीश डी० एच० किंग्सफोर्ड की हत्या के लिए वम फेंका जो गलती से किंग्सफोर्ड की जगह प्रिंगले केनेडी की बग्घी पर गिरी-30 अप्रैल, 1908 को हुए इस बम कांड में केनेडी की बेटी और पत्नी मारी गई। खुदीराम बोस पकड़े गये। मुकदमा चलाकर इन्हें 11 अगस्त, 1908 को फाँसी दे दी गई। मुजफ्फरपुर की घटना का कारण बंगाल के विभाजन से उपजा क्रोध था।
गांधी का आगमन:- दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह का सफल प्रयोग करने के बाद महात्मा गाँधी 1915 में भारत लौटे । वे भारत का दौरा कर यहाँ की परिस्थिति समझना शुरू किये। वे सिर्फ सत्याग्रह में विश्वास रखते थे और किसी भी संगठन में अपनी शर्तों पर शामिल होना चाहते थे।
भारत में सत्याग्रह का प्रथम प्रयोग-चंपारण: 19वीं सदी के प्रारम्भ में अंग्रेजों ने बिहार के चंपारण में किसानों को बीघे में तीन कठे (3/20) में नील की खेती करने को बाध्य किया था। इसे ‘तीनकठिया पद्धति’ भी कहते थे। लेकिन 19वीं सदी के अंत में जर्मनी के रासायनिक रंगों में नील की मांग घटने से अंतर्राष्ट्रीय बाजार में नील की मांग घट जाने से, नील की खेती किसानों के लिए घाटे का सौदा हो गयी थी । पहले भी नील की खेती के कारण धान की फसल न उपजा पाने का वे घाटा सह रहे थे। लेकिन अंग्रेज बगान मालिक ने किसानों को इस समझौते से मुक्त करने के लिए कई अनुचित शर्त रखी थीं । किसानों के विरोध एवं तंगहाली के बावजूद अंग्रेज जमींदार किसानों को लूट रहे थे।
मुक्त इसके विरोध में गांधीजी ने अपना सत्याग्रह आंदोलन चलाया और किसानों के खेतों को कराया। गांधीजी का भारत में यह प्रथम सफल सत्याग्रह आंदोलन था। फिर उन्होंने अहमदाबाद के मजदूरों के पक्ष में भूख हड़ताल कर मिल मालिकों से मजदूरों का वेतन बढ़वाया। खेड़ा में भी आंदोलन का नेतृत्व किया।
रॉलेट सत्याग्रह :- अंग्रेजों ने 1919 में रॉलेट ऐक्ट नामक कानून बनाया जिसमें सन्देह के आधार पर किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जा सकता था। 6 अप्रैल, 1919 को गाँधीजी ने इस कानून के विरोध में ‘राष्ट्रीय अपमान दिवस’ मनाया । राष्ट्रव्यापी विरोध एवं प्रदर्शन हुए। पंजाब के लोग विरोध प्रदर्शन के लिए 13 अप्रैल, 1919 (वैशाखी के दिन) बड़ी संख्या में जालियाँवाला बाग (अमृतसर) में जमा हुए। पुलिस ने वहाँ अंधाधुंध गोली चला हजारों लोगों को मौत के घाट उतार दिया जिससे सारा देश आंदोलित हो गया।
खिलाफत और असहयोग:–अगस्त, 1920 को गांधीजी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन चलाने का निर्णय लिया। इसकी पृष्ठभूमि जालियांवाला बाग में हुआ जनसंहार था। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने ‘नाइट’ एवं महात्मा गांधी ने ‘केसरे-हिन्द’ की उपाधि त्याग दी। वकीलों से न्यायालय छोड़ने का, सरकारी पदवियों को त्यागने का आह्वान किया गया । मोतीलाल नेहरू, सी. आर. दास, राजगोपालाचारी एवं आसफअली ने वकालत छोड़ दी। विद्यार्थियों ने स्कूल-कॉलेज छोड़ दिये। विदेशी वस्तुओं का लोगों ने बहिष्कार किया। विदेशी वस्त्रों की होली जलाई गई। पूरा देश आंदोलित हो गया।
जनभागीदारी:-देश के विभिन्न भागों में जन-आंदोलन भड़क उठा। असहयोग आंदोलन अपने चरमोत्कर्ष पर आते-आते हिंसक हो उठा। 5 फरवरी, 1922 को आंदोलनकारियों की भीड़ ने चौरी-चौरा पुलिस थाना (उत्तर प्रदेश) पर हमला करके 22 पुलिसकर्मियों को जिन्दा जला दिया । गाँधीजी इस हिंसक आंदोलन के खिलाफ थे फलतः इन्होंने 6 फरवरी, 1922 को आंदोलन समापित की घोषणा कर दी।
झंडा सत्याग्रह:- झंडा सत्याग्रह का प्रारंभ 13 अप्रैल, 1923 से शुरू हुआ जब अंग्रेजी प्रशासन ने लोगों को तिरंगा झंडा लेकर चलने से रोक दिया। देशभर में सत्याग्रह आंदोलन 109 दिनों तक चला। 1560 सत्याग्रहियों को सजा हुई। धीरे-धीरे सरकार का रुख नरम हुआ और लोगों को तिरंगा लेकर चलने की आज्ञा मिल गयो। इस आंदोलन में बिहार के शहीद हरदेव ने तिरंगे के सम्मान में शहादत दी थी।
अगली लड़ाई की तैयारी में:- असहयोग आंदोलन की समाप्ति (1922) के बाद गाँधीजी ने अपने अनुयायियों को गया (बिहार) अधिवेशन में सुदूर देहातों में रचनात्मक कार्य करने का संदेश दिया । फरवरी, 1923 में स्वराज दल का गठन किया गया। इसी बीच भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी एवं राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आर एस. एस.) का गठन हुआ। भगत सिंह जैसे क्रांतिकारी राष्ट्रभक्तों ने हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक आर्मी का गठन किया। इसी दशक के अतिम वर्ष में जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव पारित हुआ और 26 जनवरी, 1930 को लाहौर के रावी नदी के तट पर स्वतन्त्रता दिवस मनाया गया। 9 नवम्बर, 1932 को बिहार के सपूत बैकुण्ठ शुक्ल ने भगत सिंह, राजगुरु एवं सुखदेव को फांसी की सजा अपनी गवाही से दिलवाने वाले बेतिया (बिहार) निवासी फनीन्द्रनाथ घोष पर घातक हमला किया जिससे 17 नवम्बर, 1932 को वह मर गया। बाद में बैकुण्ठ शुक्ल को भी अंग्रेजों ने 14 मई, 1934 को जेल में फांसी दे दी।
दाण्डी मार्च : – जब गाँधीजी निकल पड़े नमक कानून तोड़ने के लिए सरकार का नमक के उत्पाद एवं बिक्री पर एकाधिकार था। गाँधीजी ने नमक कानून के खिलाफ 6 अप्रैल, 1930 को दाण्डी पहुंचकर अपने 79 साथियों के साथ सार्वजनिक रूप से नमक बनाकर ‘नमक कानून को तोड़ा। यह आंदोलन देशभर में फैल गया। सरकार जनता का दमन न रोक पायी फलतः 1935 में प्रांतीय स्वायत्तता अधिनियम के द्वारा प्रांतों में लोकप्रिय सरकार का गठन किया गया ।
11 प्रांतों में से 7 प्रांतों में 1937 में कांग्रेस की चुनी हुई सरकार बनी । दो वर्ष बाद द्वितीय विश्वयुद्ध छिड़ गया । कांग्रेस ने युद्ध के बाद भारत को आजाद करने की शर्त पर युद्ध में सहयोग की बात की। अंग्रेजी सरकार द्वारा यह शर्त न माने जाने पर 1939 में कांग्रेसी सरकारों ने इस्तीफा दे दिया।
अंग्रेजों भारत छोड़ो:-1942-गाँधीजी ने द्वितीय विश्वयुद्ध से उपजी परिस्थितियों के बीच अंग्रेजों को भारत छोड़ने की चेतावनी देते, जनता को ‘करो या मरो’ का नारा दिया। फिर तो पूरे देश में उग्र प्रदर्शन हुए । सत्ता और संचार के प्रतीक चिह्नों पर कब्जा कर लोगों ने अपनी सरकार का गठन कर लिया।अंग्रेजों ने दमन का सहारा लेकर 90,000 लोगों को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया ।
हजारों लोग पुलिस की गोली से मरे । बहुत जगहों पर हवाई जहाज से भी गोलियां बरसाई गईं। पर, अंग्रेजी सरकार को आंदोलन ने झुकने पर बाध्य कर दिया।
बिहार में भारत छोड़ो:- 8 अगस्त को भारत छोड़ो प्रस्ताव पारित होने के बाद अगले दिन ही डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को गिरफ्तार कर लिया गया। 11 अगस्त को विद्यार्थियों के एक समूह ने जुलूस बना सचिवालय भवन के सामने विधानमंडल के भवन पर राष्ट्रीय झंडा फहराने के क्रम में शहादत दी जहाँ बाद में शहीद स्मारक बना। इसका अनावरण देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ.
राजेन्द्र प्रसाद ने किया।
आजाद हिन्द फौज:–नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने जुलाई 1943 में आजाद हिन्द फौज की स्थापना कर आजाद हिन्द सरकार की स्थापना की। इस फौज ने 250 वर्गमील जमीन को आजाद करा लिया पर कई कारणों से इसे पीछे हटना पड़ा । नेताजी एक दुर्घटना में मारे गये । सेना के अफसरों
को बंदी बनाया गया। मुकदमा चला पर देश के वातावरण को देख इन्हें आजाद कर दिया गया ।
जनता राज का लक्ष्य:- जनता राज का स्पष्ट लक्ष्य था अधिकार का उपयोग इस ढंग से करना कि जनता संतुष्ट दिखे, सबल बने और क्रांति की साधना करें।
स्वतंत्रता के साथ-साथ विभाजन:-अंग्रेजों ने भारत को आजादी तो दी पर साथ ही फूट डालो और राज करो की नीति से भारत को दो भागों में बांट दिया-भारत और पाकिस्तान । कुछ समय तक दंगों और नफरत का माहौल बना रहा। फिर अपनी सूझ-बूझ से भारत एक समृद्ध, सशक्त एवं आदर्श लोकतंत्र की ओर कदम बढ़ाने लगा । आज भारत का लोकतंत्र परिपक्व होकर विश्व में एक आदर्श प्रस्तुत कर रहा है ।
पाठ के अन्दर आए प्रश्नों के उत्तर
1. प्रार्थना एवं प्रतिवेदन की नीति क्या है ? शिक्षकों से चर्चा करें।
उत्तर-कांग्रेस अंग्रेजी सरकार से अपनी मांगों को मनवाने के लिए आंदोलन की जगह प्रार्थना करती थी। अपनी मांगों को लिखित तौर पर प्रतिवेदन के जरिए आग्रहपूर्वक रखती थी।
2. पृथक् निर्वाचक मंडल क्या है?
उत्तर-किसी खास धर्म और जाति के लोगों का चुनाव अपने जाति या धर्म के लोगों द्वारा किया जाना ।
3. साम्प्रदायिकता क्या है ?
उत्तर–किसी सम्प्रदाय द्वारा अपने राजनैतिक स्वार्थों की प्राप्ति के लिए धार्मिक भावनाओं का इस्तेमाल ।
4. सत्याग्रह क्या है?
उत्तर-शोषण एवं अन्याय के विरुद्ध अहिंसक तरीके से न्याय की मांग, सत्याग्रह कहलाता है।
5. नस्ल भेद क्या है?
उत्तर-शरीरिक रंग एवं बनावट के आधार पर लोगों के बीच भेदभाव किया जाना नस्ल भेद कहा जाता है।
6. खलीफा किसे कहा गया?
उत्तर-मुसलमानों का धार्मिक एवं राजनीतिक रूप से प्रधान व्यक्ति को खलीफा कहा गया ।
5. प्रांतीय स्वायत्तता से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-संघ के अन्दर रहते हुए अपने राज्य क्षेत्र में जनहित में स्वतंत्र निर्णय लेने के अधिकार को प्रांतीय स्वायत्तता कहा जाता है।
अभ्यास
आइए फिर से याद करें-
1. सही विकल्प को चुनें।
(i) कांग्रेस की स्थापना में किन तत्वों ने महत्वपूर्ण भूमिका नहीं निभायी?
(क) शुरुआती राजनीतिक संगठनों ने
(ख) एक राष्ट्रीय संस्था की गठन की जरूरत ने
(ग) अंग्रेजों की शोषणकारी नीति से
(घ) अंग्रेजों का स्वच्छ प्रशासन ने
(ii)राष्ट्रीयता की भावना का विकास हुआ-
(क) प्रशासनिक एवं न्यायिक एकरूपता के कारण
(ख) संचार साधनों के विकास के कारण
(ग) उपरोक्त दोनों के कारण
(घ) इनमें से किसी के कारण नहीं
(iii) आई. सी. एस. की परीक्षा में शामिल होने के लिए उम्र अवधि 21 वर्ष से घटाकर कितना किया गया?
(क) 18 वर्ष (ख) 19 वर्ष (ग) 20 वर्ष (घ) नहीं घटाई गई
(iv) समाचार पत्रों ने किन-किन विचारों को लोकप्रिय बनाया-
(क) प्रतिनिधियात्मक व्यवस्था (ख) स्वतंत्रता एवं लोकतांत्रिक व्यवस्था
(ग) सिर्फ क को
(घ) क एवं ख दोनों को
(v) वाक्यूलर प्रेस ऐक्ट के माध्यम से क्या किया गया ?
(क) अंग्रेजी समाचार पत्रों पर प्रतिबंध लगाया गया
(ख) भारतीय भाषा के समाचार पत्रों पर प्रतिबंध लगाया गया
(ग) शोषण की खुली छूट दी गयी
(घ) क और ख दोनों पर प्रतिबंध लगाया गया
(vi) बंग-भंग के बाद पूरे बंगाल में क्या हुआ?
(क) शोक दिवस मनाया गया (ख) लोगों ने उपवास रखा
(ग) विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया
(घ) उपरोक्त सभी
(vii) महात्मा गाँधी ने भारत में सत्याग्रह का प्रथम प्रयोग कहाँ किया?
(क) अहमदाबाद (ख) चंपारण
(ग) खेडा
(घ) दिल्ली
(viii) रॉलेट ऐक्ट के विरोध में सभा कहाँ हो रही थी?
(क) जालियाँवाला बाग में
(ख) गाँधी मैदान में
(ग) रामलीला मैदान में
(घ) प्रगति मैदान में
(ix) केसरे-हिन्द की उपाधि का किसने त्याग किया?
(क) रवीन्द्रनाथ टैगोर ने
(ख) महात्मा गाँधी ने
(ग) जवाहरलाल नेहरू ने
(घ) सी० आर० दास ने
(x)’करो या मरो’ का नारा गाँधीजी ने दिया-
(क) असहयोग आंदोलन के दौरान (ख) चंपारण में
(ग) भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान (घ) सविनय अवज्ञा आंदोलन में
उत्तर-(i) (क) व (घ), (ii) (ग), (iii) (ख), (iv) (घ), (v) (ख), (vi) (घ),
(vii) (ख), (viii) (क), (ix) (ख), (x) (ग)।
आइए विचार करें।
(i). कैबिनेट मिशन ने क्या सुझाव दिया ?
उत्तर-अंग्रेजी सरकार ने पाकिस्तान की मांग और भारत की स्वतंत्रता के संबंध में अध्ययन करने के लिए तीन सदस्यीय कैबिनेट मिशन भारत भेजा। कैबिनेट मिशन ने मुस्लिम बहुल क्षेत्र को कुछ स्वायत्तता प्रदान करते हुए ढीले-ढाले महासंघ के रूप में अविभाजित भारत का सुझाव दिया ।
(ii) प्रत्यक्ष कार्रवाई दिवस क्यों मनाया गया ?
उत्तर-कैबिनेट मिशन के कुछ सुझावों पर लीग और कांग्रेस को आपत्ति थी। इन परिस्थितियों में अब देश का विभाजन नहीं टाला जा सकता था। मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की मांग के समर्थन में जनता से ‘प्रत्यक्ष कार्रवाई दिवस’ 16 अगस्त 1946 को मनाने का आह्वान किया। इसी दिन कलकत्ता में साम्प्रदायिक हिंसा भड़क गयी। जो पूरे देश में फैली और करोड़ों लोग शरणार्थी हो गए। हजारों लोग मारे गये ।
(iii) राष्ट्रीयता के उत्थान में किन-किन तत्वों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ?
उत्तर-अंग्रेजों ने संपूर्ण भारत को अपने हित में एकीकृत किया था। राजनीतिक एकता स्थापित करने के साथ ही प्रशासनिक, एकरूपता भी कायम की। समूचे भारत में एक ही तरह की न्यायिक एवं प्रशासनिक व्यवस्था स्थापित की। उन्होंने पूरे भारत को सड़क, तार एवं रेलवे के माध्यम से एकसूत्र में बांध दिया था। परिवहन के साधनों एवं समाचार पत्रों के प्रसार व उनके माध्यम से राष्ट्रीय विचारधारा व भावना के प्रसार से लोगों को आपस में मिलने-जुलने, विचार-विमर्श करने का पूरा मौका मिला। इन सारे तत्वों ने राष्ट्रीयता के उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
(iv) कांग्रेस के गठन ने राष्ट्रीयता के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कैसे?
उत्तर–कांग्रेस के गठन होने पर उसके नेताओं ने भारत की सांस्कृतिक विभिन्नताओं को देखते हुए सावधानीपूर्वक राष्ट्रीय एकता की कोशिश की। उसके कार्यकर्ता संगठित होकर अखिल भारतीय स्तर पर राजनीतिक गतिविधियाँ चलाए। इन्होंने राजनीतिक चेतना जगाने और जनमत बनाने के लिए मध्यमवर्गीय लोगों से संपर्क शुरू किया जो धीरे-धीरे आम लोगों तक पहुंचा। अतः इन सारे कार्यों के कारण कांग्रेस के गठन ने राष्ट्रीयता के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
(v) बंग-भंग ने पूरे भारत को आंदोलित कर दिया। कैसे?
उत्तर-लॉर्ड कर्जन ने राष्ट्रीय भावना को कमजोर करने के लिए 1905 में एकीकृत बंगाल के विभाजन का आदेश निकाला। तब बंगाल भारत की राजनीतिक गतिविधियों का केन्द्र था।
16 अक्टूबर, 1905 को विभाजन के खिलाफ समूचे बंगाल में ‘शोक दिवस’ मनाया गया । लोगों ने उपवास रखे । बंगाल की गलियों में ‘वंदे मातरम्’ का नारा गूंज उठा। लोगों ने विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार एवं स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग का संकल्प लिया। छात्रों ने स्कूल-कॉलेजों तथा वकीलों ने न्यायालयों का बहिष्कार किया। इसके विरुद्ध अंग्रेजों ने आंदोलन को दमन करने का सहारा लिया। इससे बंग-भंग ने पूरे भारत को आंदोलित कर दिया।