bihar board class 10 hindi | माँ
bihar board class 10 hindi | माँ
माँ
―――――
-ईश्वर पेटलीकर
*बोध और अभ्यास:-
1. मंगु के प्रति माँ और परिवार के अन्य सदस्यों के व्यवहार में जो फर्क है। उसे अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर-मंगु जन्म से पागल और गूंगी बालिका थी। माँ के लिए कोई कैसी भी संतान हो उसकी वात्सल्यता फूट ही पड़ती है। मंगु की देख-रेख करनेवाली माँ को अपनी पुत्री एवं ईश्वर से कोई शिकायत नहीं है। ममता की प्रतिमूर्ति माँ स्वयं अपना सुख को भूलकर पुत्री के लिए समर्पित हो जाती है। उसकी नींद उड़ गई है। रात-दिन अपनी असहाय बच्ची के लिए सोचती रहती है। मंगु के
अलावा माँ के लिए तीन संतानें थीं। वे भी अपनी माँ के व्यवहार से अनमने सा दुखी रहते हैं। माँ में ऐसी बात नहीं कि मंगू के अतिरिक्त अन्य संतानों से लगाव नहीं है परन्तु परिस्थिति ऐसी है कि मंगु के बिना उसका जीवन अधूरा है। दो बेटे के साथ-साथ घर में उनकी बहुएँ और पोते-पोतियाँ भी हैं। एक अन्य पुत्री जो ससुराल चली गई है वह भी है। छुट्टियों में जब भी पोते-पोतियाँ आते
हैं तो आस लगाते हैं कि उन्हें दादी माँ का भरपूर प्यार मिलेगा किन्तु माँ का समग्र मातृत्व मंगु पर निछावर हो गया है। मातृत्व के स्नेह में खिंची बहुएँ माँजी के प्रति अन्याय कर बैठती हैं। माँ के अतिरिक्त परिवार के अन्य सदस्य मंगु को पागलखाना में भर्ती कराकर निश्चित हो जाना चाहते हैं
किन्तु माँ बराबर इसका विरोध करती रहती है। माँजी अस्पताल को गोशाला समझती थीं। इसलिए माँजी घर में ही डॉक्टरों को बुलाकर इलाज कराती है। लोगों के बहुत कहने-सुनने के बाद वह मुगु को अस्पताल में भर्ती कराकर लौटती तो है किन्तु वह भी मंगु की तरह व्यवहार करने लगती है।
2. माँ मंगु को अस्पताल में क्यों नहीं भर्ती कराना चाहती? विचार करें।
उत्तर-माँ अस्पताल की व्यवस्था से मन ही मन काँप जाती थी। वह लोगों को अस्पताल के लिए गोशालाओं की उपमा देती थीं। मंगु बिस्तर पर पखाना-पेशाब कर देती थी। वह खिलाने पर ही जाती थी। माँजी में आत्मविश्वास था कि अस्पताल में डॉक्टर नर्स आदि सभी अपना कोरम पूरा करेंगे।
वस्तर भींगने पर कौन उसके कपड़े और बिस्तर बदलेगा। माँजी के मन में इसी तरह के विविध प्रश्न
ठा करते थे। इन्हीं कारणों से वह मंगु को अस्पताल में भर्ती नहीं कराना चाहती थी।
3. कुसुम के पागलपन में सुधार देख मंगु के प्रति माँ परिवार और समाज की प्रतिक्रिया को अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर-कुसुम एक पढ़ने-लिखनेवाली लड़की है। उसकी माँ चल बसी है। अचानक वह भी पागल की तरह आचरण करने लगती है। उसे भी टट्टी-पेशाब का ध्यान नहीं रहता है। कुसुम को अस्पताल में भर्ती की बात सुनकर माँजी को लगा कि यदि उसकी माँ जीवित होती तो अस्पताल में भर्ती न करने देती। कुसुम अस्पताल में भर्ती कर दी जाती है। डॉक्टर, नर्स आदि की देख-देख
में कुसुम धीरे-धीरे ठीक होने लगती है। कुसुम ठीक होने पर घर आती है। सभी उससे मिलने के लिए आती हैं। माँजी उससे विशेष रूप से मिलती हैं। कुसुम की बातों से माँजी का हृदय बदल जाता है। उन्हें भी अस्पताल के प्रति श्रद्धा उत्पन्न हो गई। गाँव के लोगों ने माँजी को समझा कि एक बार अस्पताल में भर्ती कराकर तो देख लो। यदि ठीक नहीं हुई तो मंगु को वापस बुला लेना। अंत में माँजी ने भर्ती कराने का निर्णय लिया। उन्होंने अपने बड़े पुत्र के पास पत्र भेजा। पत्र मिलते ही बड़ा
पुत्र आ गया और माँजी के साथ मंगु को लेकर अस्पताल गया। अस्पताल में भर्ती कराकर माँजी
घर लौट आती हैं।
4. कहानी के शीर्षक की सार्थकता पर विचार करें।
उत्तर-किसी भी कहानी का शीर्षक धुरी होता है जिसके ईर्द-गिर्द कहानी घूमती रहती है। किसी भी कहानी के शीर्षक की सफलता, औचित्य एवं मुख्य विचार, लघुता, भाव, व्यंजना आदि पर निर्भर करती है।
आलोच्य कहानी का शीर्षक इस कहानी के मुख्य कृत्तित्व में छाया-छितराया हुआ है। समग्र मातृत्व का बोझ सहनेवाली माँजी इस कहानी की मुख्य पात्र हैं। जन्म से पागल और गूंगी लड़की की सेवा तन-मन से करती है। जन्मदात्री होने का वह अक्षरशः पालन करती हैं। माँ को अपनी पुत्री और ईश्वर से कोई शिकायत नहीं है। ममता की प्रतिमूर्ति माँ स्वयं अपना सुख को भूलकर पुत्री के लिए समर्पित हो गई है। घर में बेटी-बेटे, बहू, पोता-पोतियों के साथ उसका संबंध बुरा नहीं है
फिर वे माँजी से खुश नहीं रहते हैं। वे समझते हैं कि माँजी पागल बेटी के लिए स्वयं पागल हो गई हैं। पढ़ने-लिखनेवाली कुसुम भी जब पागल की तरह आचरण करने लगती है और उसे अस्पताल में भर्ती कराया जाता है तो वह मन-ही-मन दुःखी हो जाती है। वह सोचती है कि मातृहीन कुसुम आज विवश हो गई है। यदि उसकी माँ होती तो शायद अस्पताल में भर्ती नहीं कराने देती। कुसुम के ठीक होने एवं गाँव के लोगों के कहने-सुनने पर माँजी भी अंततः मंगु को अस्पताल में भर्ती करातो देती हैं किन्तु स्वयं पागल हो जाती हैं। एक माँ ही अपनी संतान को समझ सकती है। संतान
कैसी भी हो, किन्तु उसकी ममता में कहीं कोई कमी नहीं आती है। वस्तुतः इन दृष्टान्तों से स्पष्ट होता है कि प्रस्तुत कहानी का शीर्षक सार्थक और समीचीन है।
5. मंगु जिस अस्पताल में भर्ती की जाती है, उस अस्पताल के कर्मचारी व्यवहार- कुशल हैं या संवेदनशील? विचार करें।
उत्तर-मंगु जिस अस्पताल में भर्ती की जाती है उस अस्पताल के कर्मचारी संवदेनशील हैं। अस्पतालकर्मियों का काम मरीजों के साथ अच्छे से व्यवहार करना और सेवा करना है किन्तु इस अस्पताल के कर्मी व्यवहार-कुशल ही नहीं संवेदनशील भी हैं। अस्पताल में अनेक मरीज आते हैं। उन्हें परिजनों से क्या प्रयोजन! मंगु उनका मरीज अवश्य है किन्तु वे भी माँजी की वात्सल्यता और ममत्व से वे प्रभावित हो जाते हैं। वे माँजी को आश्वस्त कर घर भेजना चाहते हैं कि उनकी बेटी को कोई कष्ट नहीं होगा। माँजी के रूदन को देखकर डॉक्टर, मेट्रन और परिचारिकाओं के हृदय
भर गये। वे मन-ही मन सोचने लगे कि किसी पागल का ऐसा स्वजन अभी तक कोई नहीं आया है। एक अधेड़ परिचारिका उसे अपनी बेटी मानने लगती है। ऐसा व्यवहार कोई कर्मचारी नहीं संवेदनशील ही कर सकता है।
6. कहानी का सारांश प्रस्तुत करें।
उत्तर-गुजराती साहित्य के धनी ईश्वर पेटलीकर एक लोकप्रिय कथाकार हैं। इनके कथा- में गजरात का समय और समाज, नये-पुराने मूल्य, दर्शन और राग आदि रच-पचकर एक प्रस्तुत कहानी में माँ की वात्सल्यता और ममत्व का सजीवात्मक चित्रण किया गया है। जब से पागल और गूंगी बेटी को माँजी जिस तरह पाल-पोस रही हैं वह अकथनीय है। अपना समस्त
भूलकर बेटी का सुख ही उसका अपना सुख है ऐसी बातें सोचनेवाली कोई साधारण माँ मंगु बेटा-बेटी, पोता पोती और बहुएँ हैं। माँजी को ऐसा नहीं है कि अन्य सदस्यों से लगाव नहीं है वह तो मंगु समर्पिता हैं। अन्य सदस्य माँजी को, दूसरी नजरों से देखते हैं फिर भी उन पर कोई प्रभाव एवं लोगों के कहने सुनने पर वह मंगु को अस्पताल में भर्ती कराने जाती हैं। अस्पतालकर्मियों की संवदेनशीलता से वे प्रभावित हो जाती हैं। वह मंगु को अस्पताल में भर्ती कराकर लौट आती हैं।
माँजी की आँखों के सामने मंगु का प्रतिबिम्ब झलकने लगता है। रात्रि में उन्हें नींद नहीं आती है।
माँ की सिसकियों से बेटे की आँखों से अश्रुधारा बहने लगी। माँ के प्रति बेटे के मन में विविध भाव उठने लगे। माँ को सोता समझ कर बेटा भी अपनी पलक गिरा ली। माँजी अचानक मंगु की तरह आचरण करने लगती हैं। मंगु की सहकर्मिणी आज स्वयं मंगु बन गई थीं। वस्तुतः इस कहानी में लेखक ने माँ की ममता का सजीवात्मक विश्लेषण किया है।