हमारी नींद | 10th hindi notes
हमारी नींद
हमारी नींद
हमारी नींद
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-वीरेन डंगवाल
★कविता का सारांश:-
समसामयिक कवि वीरेन डंगवाल ने ‘हमारी नींद’ कविता में विभिन्न चित्रों के माध्यम से सुविधाभोगी जीवन और हमारी बेपरवाही के बावजूद बेहतर जिन्दगी के लिए चलने वाले संघर्ष का चित्रण बड़ी स्पष्टता से किया है।
कवि कहता है कि छोटी धरती के नीचे बीज अंकुरा और उस छोटे अंकुर ने अपने ऊपर की धरती को दरकाया और खुली हवा में उसने साँस ली। उसने अपने ऊपर के अवरोध को तोड़ा। पेड़ ने भी अपना कद ऊँचा किया।
प्रकृति के इस क्रम के बाद कवि समाज की ओर निहारता है । मक्खियों की तरह लोग जी रहे हैं और उनकी तरह ही बच्चे उत्पन्न कर रहे हैं। नतीजा है कि जीवन की इस अफरा-तफरी में ही रंगे हो रहे कुछ लोग आगजनी कर रहे हैं, बम फोड़ रहे हैं ताकि अपने लिए सुविधा का सामान जुटा सकें। कुछ की जिन्दगी जाती है तो जाए । हमें क्या ?
दूसरी ओर कुछ गरीब लोग हैं जो अपनी गरीबी को अपना नसीब मान चुके हैं, वे गरीबी से छूटकारा पाने के लिए लड़ने की अपेक्षा अपनी गाढ़ी कमाई में लाउडस्पीकर लगाकर, रात-रात भर देवी के भजन गा रहे हैं वे इस भ्रम में हैं कि देवी-पूजा से उनका जीवन बदल जाएगा।
वस्तुत: वे नींद में हैं। दरअसल भाग्य, पूजा-पाठ समाज के दुश्मनों के बिछाए हुए जाल हैं ताकि ये अत्याचारी आनन्द-सुख भोग सकें । किन्तु जीवन ऐसा है कि उनके लाख चाहने के बाद रूकता नहीं है। उपेक्षावृत्ति से उस पर कोई असर नहीं पड़ता।
कवि कहता है कि लाख कोशिशों के बावजूद कुछ लोग हैं जो अनाचार के आगे सिर नहीं झुकाते । वे दृढ़तापूर्वक अनुचित कार्य करने से मना कर देते हैं। उनकी ओर से आँख बन्द कर लेने पर भी वे रूकते नहीं, बढ़ते जाते हैं। यह संघर्ष ही उनकी ताकत है, मानव के विकास की
यही कहानी है।
★सरलार्थ:-
नई कविता के यशस्वी रचयिता हिन्दी साहित्य में अपनी अलग पहचान बनानवाल, वीरेन इंगवाल एक चर्चित कवि हैं। इनकी रचनाओं में यथार्थ का बहुत अलग, अनूटा और बुनियादी किस्म का वर्णन मिलता है। उन्होंने अपनी रचनाओं से समाज के साधारणजनों और हाशिये पर
स्थित जीवन को विशेष रूप से स्थान दिया है। उनकी कविता में जनवादी परिवान की मूल प्रतिज्ञा है और उसकी बुनावट में देशी किस्म के खास और आम तत्सम और तद्भव, क्लासिक और देशज अनुभवों की संशलिष्टता है।
प्रस्तुत कविता कवि की कविताओं के संकलन ‘दुष्चक्र में स्रष्टा से संकलित है। इस कविता में कवि सुविधाभोगी आराम पसंद जीवन अथवा हमारी बेपरवाहियों के बाहर विपरीत परिस्थितियों से लगातार लड़ते हुए बढ़ते जाने वाले जीवन का चित्रण है। हमारी नीद’ अनगनसा है। नोंद में भी सूत के पौधे कुछ बड़ते हुए नजर आते हैं। मक्खियों की मौत अल्पाचारी अपना जीवनयापन करते हैं। अत्याचारी बढ़ते हैं और मारे जाते हैं। आर्थिक स्थिति में कमजोर वाले भी धन के साथ जीवन जीना चाहते हैं। हम उन अत्याचारियों से डरते हैं फिर भी हमारी नींद में कोई परिवर्तन नहीं होता है । हम बेपरवाह जीवन जीते हैं। बहुत-से ऐसे लोग हैं जो अपने जीवन जीने की कला
से इंकार नहीं कर सकते हैं। वस्तुतः यहाँ कवि कहना चाहता है कि हम देखकर भी न देखने का भाव दिखाते हैं। नसोकर भी गहरी नींद का ढोंग करते हैं।
★पद्यांश पर आधारित अर्थ ग्रहण-संबंधी प्रश्न★
1.मेरी नींद के दौरान
कुछ इंच बढ़ गए पेड़
कुछ सूत पौधे
अंकुर ने अपने नाममात्र कोपल सींगों से
धकेलना शुरू की
बीज की फूली हुई
छत, भीतर से।
(i) उपर्युक्त पद्यांश के रचनाकार कौन हैं?
उत्तर-वीरेन डंगवाल ।
(ii) प्रस्तुत पंक्तियाँ किस कविता से उद्धत है?
उत्तर-हमारी नींद ।
(iii) कवि सपने (नींद) में क्या देखता है?
उत्तर-कवि सपने में, अपनी गाड़ी निद्रा में देखता है कि बीज करण के द्वारा फूल-फल-बीज पौधे-पंड के रूप में विकसित होकर हमारे सामने खड़े हैं। यहाँ पेड़ के विराट
रूप और सूक्ष्म चीज रूप के बीच के संबंधों को चित्रित किया गया है। कवि का कहना है कि बीज-वृक्ष का जीवनक्रम जैसा है, ठीक वैसा ही मानव का भी जीवनक्रम है। यहाँ प्रकृति की रचना-प्रक्रिया का सूक्ष्म चित्रण प्रस्तुत किया गया है।
(iv) कवि के कथनानुसार पौधे कैसे पेड़ का विराट रूप धारण करते है ?
उत्तर-कवि ने प्रकृति की सूक्ष्म रचना-प्रक्रिया को बीज वृक्ष के विकसित रूप के माध्यम से स्पष्ट रूप में दर्शाया है। कवि सपने में, अपनी नीद में बीज के अंकुरण को देखता है। अंकुरण का पौधे के रूप में, पौधे को भेड़ के रूप में विकसित होते देखकर प्रकृति के रहस्यों की ओर ध्यान आकृष्ट करता है। मानव जीवन-क्रम और बोज-वृक्ष का विकास क्रम दोनों में समानता है।
(v) कवि के “कोमल सौगों” से क्या समझते हैं?
उत्तर-कवि जब बीज के अंकुरण को देखता है तब उसे लगता है कि पतले मूते या धागे के रूप में बीज का अंकुरण रूप दिखायी पड़ता है। प्रतीत होता है कि ये उनके सींग है जो विकास क्रम में सहयोग कर रहे हैं। यहाँ पतले-पतले सूत के रूप में या धागे के रूप में उगते हुए अंकुरण
को ‘कोमल सींगों से संबोधित किया गया है।
2. एक मक्खी का जीवन-क्रप पूरा हुआ
कई शिशु पैदा हुए, और उनमें से
कई तो मारे भी गए
दंगे, आगजनी और बमबारी में।
(i) उपर्युक्त पद्यांश के रचनाकार कौन हैं ?
उत्तर-वीरेन डंगवाल ।
(ii) प्रस्तुत पंक्तियाँ किस कविता से उद्धत हैं ?
उत्तर-हमारी नोंद ।
(iii) एक मक्खी का जीवन-क्रम पूरा हुआ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर-उपर्युक्त काव्य पंक्तियों के माध्यम से कवि ने एक मक्खी के जीवन-क्रम सं मानव के जीवन-क्रम की तुलना करते हुए अपने मनोभावों को प्रकट किया है। आज मानव जीवन खतरों के दौर से गुजर रहा है। चारों तरफ दंगा, आगजनी, बमबारी से जन-जीवन अस्त-व्यस्त है।
अराजक स्थिति है। असुरक्षा और आतंक के साये में जीने के लिए मानव विवश है।
(iv) “कई शिशु पैदा हुए और उनमें से कई मारे गए” से क्या तात्पर्य है-स्पष्ट करें।
उत्तर-ठपर्युक्त काव्य पंक्तियों के माध्यम से कवि ने समाज में व्याप्त भयावह स्थितियों की ओर सबका ध्यान आकृष्ट किया है। आज चारों तरफ दंगा आगजनी और बमबारी हो रही है। हमारे अबोध शिशुओं की मृत्यु इन्हीं कारणों के बीच होती है। शिशुओं के जन्म सं मरण तक की व्यथा-काथा का सजीव एवं दारुण चित्रण कवि ने किया है।
(v) “दंगे, आगजनी और बमबारी से” उक्त काव्य पंक्तियों के बारे में मंतव्य स्पष्ट करें:-
उत्तर-कवि अत्यधिक संवेदनशील इन्सान है। वह अपनी नजरों से देखता है कि चारों तरफ भयावह स्थिति दिखायी पड़ती है। दंगा, आगजनी, बमबारी के बीच मानव जीने के लिए विवश है। वह खतरों से कैसे बचे, कैसे सुरक्षित रहे-आज की संकटकालीन स्थिति से कैसे निबटे-इसके
लिए चिन्तित है। इन पंक्तियों के द्वारा कवि सचेत करता है कि सृष्टि को विनाश से कैसे बचायें, इसपर चिंतन हो, मनन हो, सदुपाय ढूँढा जाय।
3. गरीब बस्तियों में भी
धमाके से
हुआ देवी जागरण
लाउडस्पीकर पर।
(i) उपर्युक्त पद्यांश के रचनाकार कौन हैं ?
उत्तर-वीरेन डंगवाल ।
(ii) प्रस्तुत पंक्तियाँ किस कविता से उद्धृत हैं ?
उत्तर-हमारी नींद ।
(iii) गरीब बस्तियों के बारे में कवि क्या कहता है?
उत्तर-कवि ने गरीब बस्तियों की अभावग्रस्तता, दीन-हीनता के साथ दिखावटीपन की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट किया है। गरीब लोग चेतना के अभाव में समय और शक्ति का अपव्यय करते हैं। अंधविश्वास के चक्कर में पड़कर देवी-पूजन, देवी-जागरण में सारी ऊर्जा, पैसा और समय खर्च करते हैं। उनमें कर्तव्यनिष्ठता और उत्तरदायित्व बोध नहीं है। अपने हालात से वे संघर्ष नहीं करते हैं। वे अंधविश्वास और झूठे आडम्बरों में जीने के लिए विवश है।
(iv) ‘देवी-जागरण’ से क्या अर्थ झलकता है, स्पष्ट करें।
उत्तर-देवी जागरण लोक-पूजा से संबंधित है। गरीब लोग जीवन के यथार्थ से कोसों दूर रहकर जीते हैं। उन्हें जीवन के सत्य का ज्ञान नहीं है। वे अंधविश्वास और झूठे आडम्बरों के बीच जीते है। वे झूठी शान और पूजा-पाठ, देवी-जागरण में अपनी ऊर्जा, समय और अर्थ का अपव्यय करते हैं। उनमें चेतना का अभाव मिलता है। यहाँ देवी-जागरण से मतलब देवी की पूजा से है। गरीबों के लिए देवी माँ ही सबकुछ है। आज भी वे अन्धविश्वास में जीने के लिए बाध्य हैं।
(v) लाउडस्पीकर पर धमाके के साथ क्या हुआ?
उत्तर-कवि अपनी कविता के माध्यम से यह बताने की चेष्टा किया है कि गरीब बस्तियों में त्योहारों, उत्सवों पर काफी धूम-धमाका किया जाता है लाउडस्पीकर बजाया जाता है
देवी-जागरण मनाया जाता है। अंधविश्वासों में, झूठे आडम्बरों में वे अपनी ऊर्जा खर्च करते हैं। समय का अपव्यय करते हैं। यथार्थ से कोसों दूर जीते हैं। चेतना के अभाव में वे अपनी गरीबी, बेबसी से निजात पाने के लिए संघर्ष, कड़ी मेहनत या उपाय नहीं करते।
4. याने साधन तो सभी जुटा लिए हैं अत्याचारियों ने
मगर जीवन हठीला फिर भी
बढ़ता ही जाता आगे
हमारी नींद के बावजूद
(i) उपर्युक्त पद्यांश के रचनाकार कौन हैं ?
उत्तर-वीरेन डंगवाल ।
(ii) प्रस्तुत पंक्तियाँ किस कविता से उद्धृत हैं ?
उत्तर-हमारी नींद ।
(iii) ‘साधन तो सभी जुटा लिये हैं अत्याचारियों ने इस पंक्ति का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर-कवि का कहना है कि समाज में अनेक बिसंगतियाँ विद्यमान है। अत्याचारियों के पास सारे संसाधन जमा हैं। शोषकों के पास शक्ति है। शोषित लाचार हैं, विवश हैं, बेकार हैं। ऐसी परिस्थिति में भी जो संघर्षशील हैं हठधर्मी हैं, दृढ़संकल्पी हैं उनकी जीवन यात्रा रुकती है क्या? अर्थात् कर्मनिष्ठ व्यक्ति जीवन से लड़ता है, हार नहीं मानता।
(iv) “मगर जीवन हठीला है, फिर भी बढ़ता जाता है आगे हमारी नींद के वाबजूद” इन पंक्तियों में कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर-उपर्युक्त काव्य पंक्तियों में कवि उन लोगों की चर्चा करता है जो मन के होते हैं हठीले होते हैं। एकनिष्ठ और कर्मनिष्ठ रूप में जीवन यात्रा को आगे बढ़ाते हैं। उनका लक्ष्य एकमात्र अपने ध्येय की प्राप्ति की ओर रहता है। नींद कितनी भी गाढ़ी हो, यात्रा का क्रम नहीं टूटता। जो कर्मवीर होते हैं वे सदैव जोखिम से लड़ते हुए भी जीवन यात्रा को गतिमान रखो हैं।
(v) कवि ने अपनी कविता में किसके लिए ‘अत्याचारियों’ शब्द का प्रयोग किया
उत्तर-कवि ने अपनी कविता में ‘अत्याचारियों शब्द का प्रयोग उन शोषकों, समाज के सफेदपोशों के लिए किया है जो सदियों से अपने षड्यंत्र द्वारा जन-जीवन को अशांत बनाये हुए हैं। सारी संपदा उनके हाथों में कैद है। सुख-सुविधा पर उनका कब्जा है। वे अपनी दुर्नीति के बल पर आम आदमी को शोषण, दमन, अत्याचार से प्रताड़ित करते हैं। वे समाज के नृशंस, क्रूर लोग हैं। जिनके भीतर संवेदना मर चुकी है।
5. और लोग भी हैं, कई लोग हैं
अभी भी
जो भूले नहीं करना
साफ और मजबूत
इनकार।
(i) उपर्युक्त पद्यांश के रचनाकार कौन हैं ?
उत्तर-वीरेन डंगवाल ।
(ii) प्रस्तुत पंक्तियाँ किस कविता से उद्धृत हैं ?
उत्तर-हमारी नींद ।
(iii) ‘और लोग भी हैं, कई लोग हैं’ इस पंक्ति का भाव स्पष्ट करें।
उत्तर- उपर्युक्त काव्य पंक्ति के द्वारा कवि ने समाज के उनलोगों की भी चर्चा किया है जो शोषकों के अलावा दूसरी कतार के लोग हैं। ये लोग राष्ट्र निर्माण, समाज सेवा में अपने नेक इरादों के साथ सदैव तत्पर रहते हैं। भूलों से सीख लेकर ये ईमानदारी और मजबूती के साथ अपनी नैतिक जिम्मेवारी का पालन करते हैं। ये समाज के कर्मवीर, कर्त्तव्यनिष्ठ एवं सच्चरित्रवान लोग हैं जिनपर राष्ट्र या समाज टिका हुआ है और गर्व करता है।
(iv) ‘अभी भी जो भूलें नहीं करना’ इस काव्य पंक्ति द्वारा कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर-उपर्युक्त काव्य पंक्ति द्वारा कवि समाज के नैतिकता और ईमानदारी से युक्त लोगों की चर्चा करता है और कहता है कि ये लोग अभी भी अगर भूलें करते हैं तो उससे इनकार नहीं करते बल्कि स्वीकार करते हैं। उनके भीतर आत्मबल होता है। वे अपने कर्त्तव्य पथ से विचलित नहीं होते। उनके भीतर साहस और अदम्य उत्साह भरा रहता है। वे जीवटता एवं कर्मठता की मूर्ति होते हैं। उनके भीतर इंसान बसता है वे सच्चे कर्मवीर होते हैं। कर्त्तव्य के प्रति जागरूक और तत्पर रहते हैं।
(v) “साफ और मजबूत इनकार।” काव्य पंक्ति में कौन-सा भाव छिपा हुआ है, स्पष्ट करें।
उत्तर-उपर्युक्त काव्य पंक्ति में वैसे लोगों की चर्चा है जो समाज के प्रबुद्ध और प्रखर प्रतिभासंपन्न लोग हैं, जिनके भीतर निर्मलता और मजबूत इरादे छिपे हुए हैं। वे भूलों को स्वीकार कर लेते हैं। इनकार कर पाना उनके लिए मुश्किल होता है। वे सत्यनिष्ठ और कर्मनिष्ठ होते हैं। वे कर्मवीर होते हैं। भूलें उन्हें पथ से विचलित नहीं कर पातीं। दुगुने उत्साह के साथ वे कर्तव्य पथ पर अग्रसर होते हुए यात्रा को अबाध गति देते हैं।
★बोध और अभ्यास★
*कविता के साथ :-
प्रश्न 1. कविता के प्रथम अनुच्छेद में कविं एक बिम्ब की रचना करता है। उसे स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-नींद के माध्यम से कवि ने जीवन की विसंगतियों को दर्शाया है। लाज के युग में नींद अधूरी है फिर भी हम कल्पना के भावों में बहते रहते हैं। नींद में पौधों का बढ़ना, बीज का अंकुरना आदि कुछ ऐसे मनोभाव हैं जो मानव जीवन की विसंगतियों को दशांते है। अंकुरित होनेवाला बीज भला विशाल वृक्ष की कल्पना कैसे कर सकता है। आर्थिक स्थिति से विपन्न भला और कुबेर होने की कल्पना कैसे कर सकता है। उनकी ये कल्पनाएँ उस नी की तरह हैं जो बिना पतवार की नौका हाती हैं। हमारी नींद एक प्रतीकात्मक रूप है। यह अपूर्ण जीवन के बीच
समग्र जीवन की कल्पना है।
प्रश्न 2. मक्खी के जीवन-चक्र का कवि द्वारा उल्लेख किए जाने का क्या आशय है?
उत्तर-यहाँ कवि ने मक्खी को प्रतीकात्मक रूप दिया है । मक्खियों की तरह अत्याचारी जन्म ले रहे हैं। वे अपना जीवन-क्रम पूरा नहीं कर पाते हैं । वे बमबारी, गोलीबारी आदि के शिकार हो जाते हैं। एक मक्खी से सैकड़ों मक्खियों का उद्भव होता है। एक अत्याचारी हजारों
अत्याचारियों को जन्म देता है। उनका जीवन-चक्र विनाश के लिए होता है ।
प्रश्न 3. कवि गरीब बस्तियों का क्यों उल्लेख करता है?
उत्तर-गरीब अपना जीवन-चक्र अजीबोगरीब की तरह यापन करता है। अभावों के बीच भी वह मिथ्या बड़प्पन को ढोने की चेष्टा करता है। पर्व-त्योहार अतिथि आगमन पर वह अपने सामर्थ्य से अधिक खर्च करता है । ‘बुभुक्षितः किं न करोति पापम्’ – के आधार पर वह कुकृत्य करने से भी नहीं हिचकता है।
प्रश्न 4. कवि किन अत्याचारियों का और क्यों जिक्र करता है ?
उत्तर-वैसे अत्याचारी जो अपने सामर्थ्य के नाम पर हजारों अत्याचारियों को पैदा करते हैं। आज अत्याचारियों के पास सर्व-सुलभ साधन हैं। वे असहायों को सताने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाते हैं। आज के समय में सर्वत्र विक्षुब्धता है। शोषित और कमजोर वर्ग के लोग किसी तरह जीवन जीने के लिए विवश हैं।
प्रश्न 5. ‘इंकार करना’ न भूलनेवाले कौन हैं ? कवि का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-हठीला जीवन जीनेवाले वैसे लोग जो त्रस्त होने पर भी अपने आत्मबल को कमजोर नहीं कर पाये हैं। अभावों के बीच भी अपने तेज को संजोये रखते हैं। हठयोगी एवं कर्मयोगी रहनेवाले वे विषम परिस्थितियों में भी अपनी जिज्ञासा और आत्मबल को मजबूत किये रहते हैं।
प्रश्न 6. कविता के शीर्षक की सार्थकता पर विचार कीजिए।
उत्तर-प्रस्तुत कविता का शीर्षक ‘हमारी नींद’ एक प्रतीकात्मक के रूप में अवतरित है। नींद कल्पनामूलक होती है । कल्पना के भावों में पहुंचकर जब यथार्थ की बातें आने लगती है तो कल्पना यूँ ही समाप्त हो जाती है। बीज के अंकुर में विशाल वृक्ष की कल्पना करते हैं । अभावों के बीच भी हम अपने आत्मबल को संजोये हुए हैं। समाज को कुरूप बनाने के लिए मक्खियों की तरह अत्याचारी जन्म ले रहे हैं। विविध व्यावधान के बावजूद हम हठीला जीवन जी लेते हैं। नींद आती है किन्तु जम्हाई नहीं। जीवन की सार्थकता अभावों के बीच भी गहरी नींद में सोना है।
प्रश्न 7. व्याख्या करें-
(क) गरीब बस्तियों में भी
धमाके से हुआ देवी जागरण।
लाउडस्पीकर पर।
(ख) याने साधन तो सभी जुटा लिए हैं अत्याचारियों ने।
(ग) हमारी नींद के बावजूद ।
उत्तर-(क) प्रस्तुत पंक्तियाँ वीरेन डंगवाल द्वारा रचित ‘हमारी नींद’ शीर्षक कविता से संकलित है। इसमें कवि अभावों के बीच जीवन जीनेवाले उन गरीबों की तरफ ध्यान आकर्षित
किया है जो मिथ्या जीवन जीने के लिए तरह-तरह के प्रदर्शन करते हैं। आज परिस्थिति बदल गई है। सुखी-सम्पन्न लोग घरों में बैठकर आराम का जीवन जीते हैं। अभावों के बीच जीनेवाले लोग पर्व-त्योहार आदि के नाम पर अपने सामर्थ्य से ऊपर उठकर खर्च करते हैं। उनकी स्थिति सुधरने के बजाय बिगड़ती चली जाती है। गरीबों की ऐसी सोच ही उनकी गरीबी का आधार है।
(ख) प्रस्तुत पंक्ति वीरेन डंगवाल द्वारा रचित ‘हमारी नींद’ शीर्षक कविता से संकलित है। इसमें कवि सर्वसुविधा सम्पन्न अत्याचारियों की तरफ ध्यान आकर्षित किया है। सामर्थ्यपूर्ण अत्याचारी अपने साम्राज्य विस्तार करने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाते हैं। फिर भी वे गहरी नींद नहीं सो पाते हैं। अभावों के बीच भी भद्र मनुष्य बेपरवाही से जीवन जी लेता है उसकी नींद जीवन के अंतर्मन को सुखे देती है।
(ग) प्रस्तुत पंक्ति वीरेन डंगवाल द्वारा संचत ‘हमारी नींद’ शीर्षक कविता से संकलित है।
इसमें कवि कहना चाहता है कि हमारा हठीला जीवन उन्माद एवं खामोशी में भी किंकर्तव्यविमूढ़ नहीं बना रहता है। जीवन-चक्र आगे बढ़ता ही जाता है। अभाव में भी पूर्णता है। सर्वसुलभ अत्याचारी गहरी नींद में भी नहीं सो पाते हैं जबकि अभावग्रस्त बेपरवाही, जीवन जीनेवाला मानव गहरी नींद में सो लेता है।
प्रश्न 8. कविता में एक शब्द भी ऐसा नहीं है जिसका अर्थ जानने की कोशिश करनी पड़े। यह कविता की भाषा की शक्ति है या सीमा ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-यह कविता भाषा की शक्ति है जो अपने साधारण अर्थ से सब-कुछ समझने में सफल हो जाती है । सीमा का रूपान्तर नहीं होता है । भाषा का रूपान्तर कविता की सौष्ठता को प्रदर्शित करने में समर्थ है।
★भाषा की बात★
प्रश्न 1. निम्नांकित के दो-दो समानार्थी शब्द लिखें-
पेड़, शिशु, दंगा, गरीब, अत्याचारी, हठीला, साफ, इनकार ।
उत्तर-
पेड़ — तना, वृक्ष
शिशु –बालक, बाल
दंगा — सांप्रदायिकता, सांप्रदायिक युद्ध
गरीब — दीन, निर्धन
अत्याचारी — दुराचारी
हठीला — अडिग रहनेवाला
साफ — एकदम, बेहिचक
इन्कार — मनाही, मना करना।