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एक वृक्ष की हत्या | 10th hindi notes

एक वृक्ष की हत्या

एक वृक्ष की हत्या

एक वृक्ष की हत्या
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-कुँवर नारायण नागर
★कविता का सारांश:-
इस कविता में कवि कुँवर नारायण ने एक वृक्ष के काटे जाने से उत्पन्न परिस्थिति, पर्यावरण संरक्षण और मानव सभ्यता के विनाश की आशंका से उत्पन्न व्यथा का उल्लेख किया है।
कवि वृक्ष की कथा से शुरू होकर, घर, शहर, देश और अंतत: मानव के समक्ष उत्पन्न संकट तक आता है। चूंकि मनुष्य और वृक्ष का संबंध आदि काल से है, इसलिए वह वृक्ष से ही शुरू करता हुआ कहता है कि इस बार जो वह घर लौटा ता दरवाजे पर हमेशा चौकीदार की तरह तैनात रहनेवाला वृक्ष नहीं था। ठीक-जैसे चौकीदार सख्त शरीर, झुर्सदार चेहरा, लम्बी-सी राइफल लिए, फूल-पत्तीदार पगड़ी बाँधे, पाँव में फटा-पुराना चरमराता जूता पहने,
मजबूत, धूप-वर्षा में, खार्की वर्दी पहने और हर आनेवाले को ललकारता और फिर ‘दोस्त’ सुनकर आने देता है, वैसे ही वह वृक्ष था-बहुत पुराना, मजबूत तने वाला, पाटी छाल श्री कामकी । जी की तरह जड़ें फैली थीं, मटमैला रंग था और उसकी डालें राइफल की तरह लम्बी श्री के ऊपर पत्तियाँ, पगड़ी जैसी फैली थीं। जाड़ा, गर्मी और बरसात में सीधा रहता था और 11 कर उसकी शाखाएँ, हवा बहने पर हरहराती थीं मानों आनेवाले से, पख्ता हो कौन और फिर पात हो जाता था। शान्ति से बैठते थे हम सब । अच्छा लगता था।
लेकिन एक डर था। हुआ भी वही । गफलत हुई या नादानी कहे पैड कट गया। किन्तु यह सिलसिला रहा तो और भी बहुत कुछ होगा। अब सचेत रहना है । घर को बचाना होगा लूटा से, शहर को बचाना होगा हत्यारायों से देश को बचाना होगा देश के दुश्मनों से । इतना ही नही
खतरे और भी हैं। नदियों को नाला बनाने से बचाना होगा, उसमें डाले जानेवाले कचरा और रसायनों को रोकना होगा। वृक्षों को काटने से जो हवा में धुआँ बढ़ता जा रहा है, उसे रोकना होगा और जमीन में रासायनिक उर्वरकों को डालने से रोकना ताकि अनाज जहर न बनें । दरअसल, जंगल को रेगिस्तान नहीं बनने देना होगा । जंगल रेगिस्तान बने कि आफत आई । किन्तु सोचना होगा कि क्यों कर रहा है मनुष्य यह सब? मनुष्य की सोच में जो खोट पैदा हो गयी है, जिससे ये समस्याएँ पैदा हुई हैं उस खोट को निकालना होगा। मनुष्य को जंगली बनने से रोकना होगा,
उसे सही अर्थों में मनुष्य बनाना होगा, तभी मानवता बचेगी।
★सरलार्थ:-
नई कविता काल के प्रखर कवि कुँवर नारायण नागर संवेदना के कवि हैं। उनकी रचनाओं में वैयक्तिक और सामाजिक ऊहापोह का तनाव पूरी व्यंजकता के साथ प्रकट होती है। आज का समय और उसकी यांत्रिकता जिस तरह हर सजीव के अस्तित्व को मिटाकर उसे अपने लपेटे में ले लेना चाहती है, कुँवर नारायण की कविता वहीं से आकार ग्रहण करती है और मनुष्यता और सजीवता के पक्ष में संभावनाओं के द्वार खोलती है। भाषा और विषय की विविधता उनकी कविताओं के विशेष गुण माने जाते हैं।
प्रस्तुत कविता में कवि तुरंत काटे गये वृक्ष के बहाने पर्यावरण, मनुष्य और सभ्यता के विनाश की अंतर्व्यथा को अभिव्यक्त किया है। कवि के धर के सामने ही वर्षों पुराना एक बड़ा पेड़ था जो काट दिया गया है । कभी यह पेड़ दूसरों को छाया देकर उसकी थकान दूर करता था। उसके
घर की रखवाली करता था किन्तु आज वह निर्जीव बना पड़ा है। पुराना होने के कारण उसके छाल धूमिल हो गये थे। उसकी डालियाँ राइफल की तरह तनी हुई रहती थीं । अक्खड़पन उसके नस-नस में था, धूप, वर्षा, सर्दी, गर्मी में वह सदा चौकन्ना रहता था किन्तु आज वह बेजान हो
गया है । दूर से परिचय पूछकर दोस्तों को एक नई ताजगी देकर मन की व्यथा को हरण करनेवाला वृक्ष दुश्मनों के द्वारा काट लिया गया। वस्तुतः यहाँ कवि बताना चाहता है कि गाँव, शहर के वातावरण को बचाना है तो पहले पेड़ को बचाना होगा। वृक्ष हमारे मित्र हैं। मित्र को दुश्मन समझकर उसका विनाश करना मानव जाति का विनाश करना है।

★पद्यांश पर आधारित अर्थ ग्रहण संबंधी प्रश्न★
1. अबकी घर लौटा तो देखा वह नहीं था-
वही बूढ़ा चौकीदार वृक्ष
जो हमेशा मिलता था घर के दरवाजे पर तैनात।

(i) उपर्यक्त पद्यांश के रचनाकार कौन हैं?
उत्तर-कुंवर नारायण ।

(ii) प्रस्तुत पंक्तियाँ किस कविता से उद्धृत हैं ?
उत्तर-एक वृक्ष की हत्या ।

(iii) घर लौटने पर कवि ने क्या देखा?
उत्तर-घर लौटने पर कवि ने देखा कि उसके घर के सामने एक चौकीदार और आभभावक के रूप में जो बूढ़ा वृक्ष था, उसकी हत्या हो गयी है। कहने का मूल भाव यह है कि उस बूढ़े वृक्ष का अस्तित्व समाप्त हो चुका था। उसे न पाकर कवि का संवेदनशील मन तड़प उठा और उसने बूढ़े वृक्ष की स्मृति में काव्य-रचना कर डाली। बूढ़ा वृक्ष इस कविता में हमारे लिए एक “अभिभावक चौकीदार के रूप में चित्रित है। उसने युगों-युगों से हमारी संस्कृति की रक्षा की है। अपने अस्तित्व को खोकर भी आज उसने हमारी समृद्धि की सुरक्षा ही किया है। एक बूढे वृक्ष के माध्यम से कवि अपनी संस्कृति की जड़ों की ओर लौटना चाहता है। कवि को अफसोस और पीड़ा भी है कि बूढ़ा वृक्ष हमारे लिए कितना उपयोगी था। वह हमारी संस्कृति और इतिहास
का संरक्षक तथा पोषक था। उसको खोकर हमने बहुत कुछ खो दिया है।

(iv) वृक्ष को किस रूप में कवि ने चित्रित किया है?
उत्तर-कवि ने अपनी कविता में बूढे वृक्ष को चौकीदार के रूप में चित्रित किया है। बूढ़ा वृक्ष हमारी संस्कृति का रक्षक था, पहरेदार था। वह हमारा अभिभावक था। उसका बराबर दर्शन करते हुए कवि को लगता था कि वह हमारे घर की रखवाली कर रहा है। वह बूढ़ा वृक्ष सचमुच में उसका (कवि) सच्चा अभिभावक था। उसे खांकर कवि ने अपना रक्षक, पोषक, संरक्षक खा दिया है।

(v) घर के दरवाजे पर बूढ़ा वृक्ष किस तरह मिलता था?
उत्तर-जब कवि अपने घर लौटता था तब बूढ़ा वृक्ष दरवाजे पर चौकीदार के रूप में तैनात
मिलता था। वह सच्चा पहरेदार था।
2. “पुराने चमड़े का बना उसका शरीर
वही सख्त जान
झुर्रियोंदार खुरदुरा तना मैला-कुचैला
राइफिल-सी एक सूखी डाल,
एक पगड़ी फूल-पत्तीदार,
पाँवों में फटा पुराना जूता,
चरमराता लेकिन अक्खड़ बल-बूता”।

(i) उपर्युक्त पद्यांश के रचनाकार कौन हैं ?
उत्तर-कुँवर नारायण ।

(ii) प्रस्तुत पंक्तियाँ किस कविता से उद्धृत हैं ?
उत्तर-एक वृक्ष की हत्या ।

(iii) बूढ़े वृक्ष की शारीरिक संरचना का वर्णन करें।
उत्तर-बूढा वृक्ष हमारे (कवि) घर के बूढ़े अभिभावक सदृश है। उसके तन और चेहरे पर झुर्रियाँ ही झुर्रियाँ दिखलाई पड़ती है। चमड़े में खुरदुरापन आ गया है। मैला-कुचैला कपड़ा पहने वह खड़ा है। उसकी पत्तियाँ और फूल पगड़ी के रूप में दिखते हैं। जड़ों में यानी पाँवों में फटा-पुराना जूता है जो चरमर-चरमर करता है। बूढ़े वृक्ष में अक्खड़ता है। अपना बल है। अपनी शक्ति है। बूढ़ा वृक्ष बहुत पुराना है। इसी कारण बूढ़े आदमी जैसा दिखता है। यहाँ कवि ने बूढ़े
वृक्ष को घर का अभिभावक जैसा माना है।

(iv) बूढ़े वृक्ष की एक सूखी डाल कैसी दिख रही है?
उत्तर-बूढ़े वृक्ष की एक सूखी डाल राइफिल-सी लग रही है। वृक्ष काफी पुराना हो चुका है, इसी कारण उसकी डालियाँ सूखने लगी हैं। उनमें सूखापन दिख रहा है।

(v) पुराना वृक्ष कैसे खड़ा है?
उत्तर-पुराना वृक्ष अपनी जगह पर अक्खड़ता के साथ अपने बल-बूते खड़ा है। वह हमारी संस्कृति का पोषक और संरक्षक भी है। वह तनकर खड़ा है लेकिन समय के कारण चेहरे और तन का रूप परिवर्तित हो गया है।

3. ‘धूप में बारिश में
गर्मी में सर्दी में
हमेशा चौकन्ना
अपनी खाकी वर्दी में

(i) उपर्युक्त पद्यांश के रचनाकार कौन हैं ?
उत्तर-कुँवर नारायण ।

(ii) प्रस्तुत पंक्तियाँ किस कविता से उद्धृत है ?
उत्तर-एक वृक्ष की हत्या ।

(iii) धूप में, बारिश में कौन खड़ा रहता था?
उत्तर-धूप हो या बारिश कवि के घर के सामने जो बूढ़ा वृक्ष था, वह सदा खड़ा रहता था। यहाँ वृक्ष का मानवीकरण किया गया है।

(iv) गर्मी में, सर्दी में कौन चौकन्ना रहता था?
उत्तर-कवि के घर के सामने जो बूढ़ा वृक्ष था वह गर्मी हो चाहे सर्दी, हमेशा चौकन्ना रहता था। यहाँ भी वृक्ष का सजीव चित्रण किया गया

(v) ‘अपनी खाकी वर्दी’ में कौम खड़ा मिलता था?
उत्तर-कवि जब भी अपने घर लौटता था, दरवाजे पर स्थित बूढ़ा वृक्ष ऐसा लगता था, मानो खाकी वर्दी में कोई चौकीदार या सिपाही पहरा दे रहा हो। यहाँ वृक्ष का मानवीकरण किया गया है। वह पहरूआ का काम करता था। उसका सजीव चित्रण कवि ने अपनी कविता में किया है।

4. “दूर से ही ललकारता, “कौन?”
मैं जवाब देता, “दोस्त!”
और पल भर को बैठ जाता
उसकी ठंढी छाँव में

(i) उपर्युक्त पद्यांश के रचनाकार कौन हैं ?
उत्तर-कुँवर नारायण ।

(ii) प्रस्तुत पंक्तियाँ किस कविता से उद्धृत हैं ?
उत्तर-एक वृक्ष की हत्या ।

(iii) घर लौटने पर कवि को
से कौन ललकारता था?
उत्तर-कवि जब भी, किसी भी मौसम में अपने घर लौटता था, तब घर के सामने का
बूढ़ा वृक्ष एक चौकीदार की तरह ललकारता था-“कौन?”
यहाँ वृक्ष को एक चौकीदार, अभिभावक या पहरेदार के रूप में चित्रित किया गया है।
जब कभी लेखक घर लौटता था उसे ऐसा अहसास होता था कि बूढ़ा वृक्ष दूर से ही टोकता है, ठहरो! पहले परिचय दो तब आगे बढ़ो।

(iv) कवि बूढ़े वृक्ष के ललकारने और प्रश्न पूछने पर क्या जवाब देता था?
उत्तर-जब कभी कवि अपने घर को लौटता था तब घर के सामने का बूढ़ा वृक्ष एक चौकीदार की भाँति कवि से कहता था-ठहरो! परिचय दो तब आगे बढ़ो। इस वाक्य पर कवि
‘दोस्त’ कहकर जवाब देता था और तब आगे कदम बढ़ाता था। यहाँ बूढ़े वृक्ष और कवि के बीच जो आत्मीय संबंध है, उसे रेखांकित किया गया है।

(v) कौन पल भर के लिए बूढ़े वृक्ष की छाँव में बैठ जाता था?
उत्तर-जब भी कवि थका-हारा, सर्दी-गर्मी, धूप-बारिश में घर लौटता था, तब वह बूढ़े वृक्ष की ठंडी, शीतल छाँव में विश्राम करता था, बैठकर थकावट मिटाता था। यहाँ आत्मीय और
संवेदनशील भाव को उकेरा गया है।

5. ‘दरअसल शुरू से ही था हमारे अन्देशों में
कहीं एक जानी दुश्मन
कि घर को बचाना है लुटेरों से
शहर को बचाना है नादिरों से
देश को बचाना है देश के दुश्मनों से।”

(i) उपर्युक्त पद्यांश के रचनाकार कौन हैं ?
उत्तर-कुंवर नारायण ।

(ii) प्रस्तुत पंक्तियाँ किस कविता से उद्धृत हैं ?
उत्तर-एक वृक्ष की हत्या ।

(iii) कवि ने घर को किनसे बचाने को कहाँ है?
उत्तर-कवि ने लुटेरों से घर को बचाने को कहा है। घर लुट गया तो सब कुछ लुट गया, अस्तित्व और अस्मिता-दोनों। अतः, भीतरी लुटेरों से घर की रक्षा करनी जरूरी है।

(iv) कवि शहर को किनसे बचाने को कहता है?
उत्तर-कवि ने शहर को नादिरों से बचाने का संकेत किया है। नादिरशाही लूट-पाट से भारत के अनेक शहर भलीभाँति परिचित हैं। जो लोग इतिहास की जानकारी रखते हैं उन्हें
नादिरशाह के बारे में अच्छी तरह पता है कि उसने जब भारत पर आक्रमण किया था तो लूट-पाट करते हुए समृद्ध नगरों शहरों को तबाह और मटियामेट कर दिया था। अतः, नादिरशाह के वंशजों से सावधान रहकर ही राष्ट्र की रक्षा की जा सकती है।

(v) प्रस्तुत कविता का भावार्थ लिखें।
उत्तर-प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘एक वृक्ष की हत्या’ नामक काव्य-पाठ
से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का प्रसंग कवि और एक बूढ़े वृक्ष की हत्या से संबंधित है। कवि
मन ही मन कल्पना करता है कि यह बूढ़ा वृक्ष हमारा पहरूआ है। वह उसे सजीव मानव के रूप
में देखता है, चित्रित करता है। कवि के मन में पूर्व से ही संशय बैठा हुआ है कि हमारे चारों
ओर शत्रुओं की तादाद अच्छी है, उनसे अपनी सुरक्षा के साथ घर, शहर और देश को भी बचाना
है क्योंकि बाह्य शत्रुओं से तो देश की रक्षा जरूरी ही है। देश के भीतर जो शत्रु हैं उनसे भी
लड़ते हुए अस्तित्व की रक्षा करनी है।
कवि यहाँ आंतरिक शत्रुओं की ओर इंगित करते हुए उनसे सावधान रहने की सलाह देता
है। कवि का मन पारखी है, वह अपनी पैनी नजर से घर में, शहर में, देश में, रह रहे शत्रुओं
को पहचानने की क्षमता रखता है, उनसे दूर रहकर, सचेत रहकर सावधानीपूर्वक अस्तित्व और
अस्मिता की रक्षा की जा सकती है। भीतरी शत्रुओं से बचाव सर्वाधिक जरूरी है। वे अपने स्वार्थ
और संकीर्णताओं के चलते हमारी संस्कृति, प्रगति और आपसी शांति को भंग कर देंगे। कवि की
पीड़ा, सोच अत्यंत ही प्रासंगिक है। देश तभी सबल, सुरक्षित रहेगा, शहर सुरक्षित तभी रहेगा जब
घर शांतिमय, सुविकसित रूप में रहेगा। यहाँ कवि ने सूक्ष्म रूप से हमारी राष्ट्रीय समस्याओं पर
ध्यान केन्द्रित करते हुए भीतरी शत्रुओं से सावधान रहने को कहा है।
6. “बचाना है-
नदियों को नाला हो जाने से
हवा को धुआँ हो जाने से
खाने को जहर हो जाने से”

(i) उपर्युक्त पद्यांश के रचनाकार कौन हैं ?
उत्तर-कुँवर नारायण ।

(ii) प्रस्तुत पंक्तियाँ किस कविता से उद्धृत हैं ?
उत्तर-एक वृक्ष की हत्या ।

(iii) ‘नदियों को नाला’ होने से बचाना है, कवि का भाव स्पष्ट करें।
उत्तर-उपर्युक्त पंक्तियों में कवि को आशंका है कि हमारी बदलती जीवन-शैली से कहीं अस्तित्व ही संकट में न पड़ जाय। अगर समय रहते हम सतर्क नहीं हुए तो नदियाँ नाला के रूप में बदल जाएँगी जो संस्कृति के लिए, पर्यावरण के लिए खतरा पैदा करेगी। अतः, आनेवाले संकटों से उबरने के लिए हमें सदैव सतर्क और जागरूक रहना होगा।

(iv) कवि ने हवा को धुआँ होने से बचाने को कहा है? भाव स्पष्ट करें।
इस धरती पर शुद्ध हवा ही जीवनी शक्ति है। इसलिए जब हवा दूषित या समाप्त हो जाएगी तो सृष्टि ही खतरे में पड़ जाएगी। इसी कारण कवि ने समयानुकूल ही हवा को शुद्ध रूप में रखने की वकालत की है। शुद्ध हवा कहीं हमारी अदूरदर्शिता से जहरीली गैस न बन जाये और अस्तित्व
ही संकट में पड़ जाय। अतः, आने वाले संकट से बचने के लिए कवि हमें सचेत करता है।

(v) कवि खाना को जहर होने से बचाने की सिफारिश करता है-क्यों?
कवि का कहना है कि बढ़ती महँगाई, बढ़ती आबादी, बदलती जीवन शैली ने हमें कहीं का नहीं रहने दिया है। पर्यावरण और खाद्य-पदार्थ अत्यंत ही दूषित हो गये है जिससे हमारा स्वास्थ्य खतरे में पड़ गया है। स्वास्थ्य ही राष्ट्र का धन होता है। अस्वस्थ नागरिक देश पर बोझ स्वरूप
होता है। वह स्वयं न अपन और न दूसरे की, न घर-समाज, राष्ट्र की सेवा ही कर सकता है। अतः, कवि ने संकेतों में सूक्ष्म बातों की ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए समय रहते सचेत और जागरूक रहने का संदेश दिया है।

7. बचाना है-जंगल को मरुस्थल हो जाने से,
बचाना है-मनुष्य को जंगल हो जाने से।

(i) उपर्युक्त पद्यांश के रचनाकार कौन हैं ?
उत्तर-कुवर नारायण ।

(ii) प्रस्तुत पंक्तियाँ किस कविता से उद्धृत हैं ?
उत्तर-एक वृक्ष की हत्या ।

(iii) कवि कहता है कि जंगल को मरुस्थल होने से बचाना आवश्यक है-क्यों?
उत्तर-कवि अपनी कविताओं द्वारा मनुष्य जाति को सतर्क और जागरूक होने का संदेश देता है। वह चेतावनी भी देता है कि जंगल के अस्तित्व पर आज खतरा पैदा हो गया है उसकी रक्षा करना बहुत जरूरी है। जंगल अगर मरुस्थल में बदल गया तो इतिहास, अस्तित्व और अस्मिता सब कुछ खतरे में पड़ जाएगी। जंगल हमारे लिए साधनास्थली है, कर्मस्थली है। जीवन-पोषण, सृजन के केन्द्र जंगल आदिकाल से हैं और आगे भी रहेंगे। अतः, इन्हें बचाना मानव का परम धर्म बनता है।

(iv) जंगल और मनुष्य में क्या संबंध है, स्पष्ट करें।
उत्तर-जंगल और मनुष्य दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। दोनों में किसी एक का अगर अस्तित्व मिटा तो सृष्टि का विनाश हो जाएगा। दोनों अनादि काल से एक-दूसरे के विकास में
सहायक रहे हैं। जहाँ जंगल ने मानव की मंगल कामना में स्वयं को तहे दिल से उत्सर्ग कर दिया वहीं मानव ने भी साधनास्थली, कर्मस्थली के रूप में उसे स्थापित किया। महातीर्थ का स्थान जंगल को सदियों से प्राप्त रहा है। जंगल में मानव रहेगा तभी मंगल-गीत गूंजेंगे।

(v) “मनुष्य को जंगल हो जाने से” क्या तात्पर्य है-भाव स्पष्ट करें।
उत्तर-उपर्युक्त काव्य पंक्तियों में कवि चेतावनी के साथ सतर्क करना चाहता है कि ऐ मानवों! तुम जंगल मत बनो तुमने जंगल से मानव का जो रूप धारण किया है-यह सदियों की साधना का सुफल है, तुम्हारी कर्मठता का प्रतिफल है। अतः, असभ्यावस्था या क्रूरावस्था की ओर
मत जाओ। करुणा, दया, आत्मीयता के साथ लोकहित के लिए जीओ। जंगल की ओर पुन: स्वयं को ले गए तो तुम्हारा निश्चित विनाश हो जाएगा और सृष्टि संकट में पड़ जाएगी।

★बोध और अभ्यास★
* कविता के साथ :-
प्रश्न 1. कवि को वृक्ष बूढ़ा चौकीदार क्यों लगता है ?
उत्तर-बूढ़े चौकीदार में फुर्तीलापन और चमक-दमक समाप्त हो जाती है। अपनी कर्तव्यनिष्ठा के बल पर अपने स्वामी का कृपापात्र बना रहता है। कवि के घर के सामने बड़ा पुराना वृक्ष उसके घर, गाँव, वातावरण आदि की रखवाली करता था। यही कारण है कि कवि को वह बूढ़ा वृक्ष चौकीदार-सा लगता था।

प्रश्न 2. वृक्ष और कवि में क्या संवाद होता था?
उत्तर-वस्तुतः यहाँ कवि संवाद कां कल्पनात्मक रूप देकर यथार्थ को प्रकट करना चाहता है। वृक्ष हमारे मित्र हैं। घर के सामने खड़ा बूढ़ा वृक्ष कवि से पहले परिचय पूछता था। कवि अपने-आपका दोस्त कहकर उसके मन के व्यथा को कम कर देता था। वृक्ष भी उसे दोस्त समझकर उसको अपनी छाया देकर अकान दूर कर देता था।

प्रश्न 3. कविता का समापन करते हुए कवि अपने किन आदशों का जिक्र करता है और क्यों?
उत्तर-इस भौतिक युग में मनुष्य स्वार्थी बन गया है। दूसरों के सुख-दुःख से उसका कार्ड लेना-देना नहीं है। वातावरण को शुद्ध रखनेवाला वृक्ष स्वयं असुरक्षित हो गया है। मनुष्य को मित्र समझने वाला वह स्वयं असहाय बन गया है। वृक्ष से ही घर, नगर, देश सुरक्षित है, किन्तु दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु हम वृक्ष को धुआँधार काटते जा रहे हैं। यदि ऐसी स्थिति रही तो वह दिन दूर नहीं है जब जीव जगत का अस्तित्व स्वयं मिट जाएगा।

प्रश्न 4. घर, शहर और देश के बाद कवि किन चीजों को बचाने की बात करता है और क्यों?
उत्तर-घर, शहर और देश के बाद कवि नदी, हवा आदि को बचाने की बात करता है बदलते परिवेश में प्रदूषण की समस्या गंभीर होती जा रही है.। वातावरण के प्रदूषित होने से जन जीवन प्रभावित हो रहा है। नदियों का जलस्तर घट रहा है। हवा में जहरीली गैसें घुल-मिल रही । जंगल कटने से मरुस्थल फैलता जा रहा है।

प्रश्न 5. कविता की प्रासंगिकता पर विचार करते हुए एक टिप्पणी लिखें।
उत्तर-प्रस्तुत कविता में बदलते हुए परिवेश में दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु जिस तरह प्रकृति का दोहन हो रहा है उससे लगता है कि सारी दुनिया प्रकृति का स्वतः शिकार हो जायेगी। वृक्षों की अंधाधुंध कटाई, बढ़ती हुई जनसंख्या, समुद्र का जलस्तरी, ऊपर उठना ये सब इसके
सूचक हैं। वृक्ष हमारे मित्र है फिर भी हम इसको निष्ठुरता से काटते जा रहे हैं। अतिवृष्टि अनावृष्टि, मौसम का बदलता चक्र, पर्यावरण संकट के संकेत कर रहे हैं। आज मानव आँख होते हुए भी अंधा हो गया है। कवि इस समस्या से बहुत चिंतित है। उसे लगता है कि दुनियाँ जल्द की समाप्त हो जायेगी। वृक्ष को काटना अपने-आप को मृत्यु की गोद में झोंकना है। ठंडी हाँव देनेवाले वृक्ष मनुष्य को निष्ठुरता के कारण काटे जा रहे हैं। अंत में कवि कहना चाहता है कि
यदि समय रहते इस समस्या से निजात पाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया तो जीव जगत समाप्त हो जायेगा। ‘मुड़ी प्रकृति की और’ इसका अर्थ मानव को समझना चाहिए।

प्रश्न 6. व्याख्या करें-
(क) दूर से ही ललकारता, कौन? मैं जवाब देता, दोस्त !

(ख) बचाना है-जंगल को मरुस्थल हो जाने से बचाना है-मनुष्य को जंगल हो जाने से।
उत्तर–(क) प्रस्तुत पक्ति ‘कँवर नारायण’ द्वारा रचित एक वृक्ष की हत्या शौर्षक कविता से संकलित है। तुरंत काटे गये एक वृक्ष के माध्यम से कवि ने पर्यावरण मनुष्य और सभ्यता के विनाश की अंतर्व्यथा को दर्शाया
किवि लोगों की थकान दूर कर देता है। जब कभी कयि अपने गाँव जाता और उस पेड़ के करीब घर के सामने खड़ा वृक्ष अपनी छाया में पहुँचता तो वृक्ष कड़ककर पूछता कौन ? कवि उस दोस्त कहकर अपना परिचय देता था। दोस्त सुनते ही वृक्ष गद्गद् होकर अपना सर्वस्व सुख समर्पण कर देता था। वस्तुत: यहाँ कवि कहना बाहना है कि वृक्ष हमारे मित्र हैं। उसे निष्ठुरतापूर्वक काटना अपने जीवन की गति को रोकना है।

(ख) प्रस्तुत पंक्ति कुंवर नारायण द्वारा रचित ‘एक वृक्ष की हत्या’ शीर्षक कविता से संकलित है । प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवि अपनी अंतव्यथा को प्रदर्शित किया है। बदलते परिवेश में जिस तरह वृक्षों की अंधाधुंध कटाई हो रही है उससे लगता है कि प्रकृति इसका बदला लेने के लिए कमर कसकर बैठी हुई है। मौसम का बदलता चक्र इसी का परिणाम है। मरुस्थल का फैलना, नदियों का जलस्तर ऊपर उठना आदि इसी का कुपरिणाम है। अतः, जंगल को बचाना है, मरुस्थल को रोकना है तो अपने विकास की गति को रोकना होगा । वृक्ष हमारे मित्र इसका हमें पाठ पढ़ना होगा। मनुष्य को जंगल काटने से बचाना होगा।

प्रश्न 7. कविता के शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-वस्तुतः किसी भी कहानी, कविता आदि का शीर्षक वह धुरी होता है जिसके इर्द-गिर्द कथावस्तु घूमती रहती है। प्रस्तुत कविता का शीर्षक एक वृक्ष की हत्या के माध्यम से मानवीय संवेदनाओं को सीख देने के लिए रखा गया है। वृक्ष पुराना होने पर भी पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाता है । उसका फल, छाया अपने लिए नहीं औरों के लिए होता है । अपना दोस्त समझने वाला वृक्ष दूसरों के लिए सर्वस्व सुख समर्पित कर देता है। घर, शहर, राष्ट्र और दुनिया को
बचाने से पहले वृक्ष को बचायें। बदलता हुआ मौसम चक्र का सूचक है। हमारा जीवन-मरण, युवा-जरा आदि सभी प्रकृति के गोद में ही बीतता है । फिर भी हम प्रकृति का दोहन करते जा रहे हैं । अतः, उपर्युक्त दृष्टांतों से स्पष्ट होता है कि प्रस्तुत कहानी का शीर्षक सार्थक और समाचीन है।

प्रश्न 8. इस कविता में एक रूपक की रचना हुई है । रूपक क्या है और यहाँ उसका क्या स्वरूप है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-जहाँ रूप और गुण की अत्यधिक समानता के कारण उपमेय में उपमान का आरोप कर अभेद स्थापित किया जाता है वहाँ, रूपक होता है। इसमें साधारण धर्म और वाचक शब्द नहीं होते हैं। इस कविता में ‘वही बूढ़ा चौकीदार वृक्ष’ रूपक है। यहाँ चौकीदार वृक्ष है। उपमान का आरोप कर अभेद स्थापित किया गया है।

★भाषा की बात★
प्रश्न 1. निम्नलिखित अव्ययों का वाक्य में प्रयोग करें:
अबकी, हमेशा, लेकिन, दूर, दरअसल, कहीं
उत्तर-
अबकी– अबकी समस्या गंभीर है।
हमेशा—हमेशा सत्य बोलना चाहिए।
लेकिन —वह आनेवाला था लेकिन नहीं आया।
दूर — यहाँ से दूर नदी बहती है
दरअसल— दरअसल ये बातें झूठी हैं।
कहीं —- वह कहीं नहीं जायेगा।

प्रश्न 2. कविता से विशेषणों का चुनाव करते हुए उनके लिए स्वतंत्र विशेष्य पद दें।
उत्तर-
बूढ़ा — चौकीदार,
खुरदरा — तना,
पुराने– चमड़े,
सूखी — डाल,
फूल–पत्तीदार
फटा-पुराना–जूता
ठंडी–छाँव।

प्रश्न 3. निम्नांकित संज्ञा पदों का प्रकार बताते हुए वाक्य-प्रयोग करें-
घर, चौकीदार, दरवाजा, डाल, चमड़ा, पगड़ी, बल-बूता, बारिश, वर्दी, दोस्त, पल, छाँव, अन्देशा, नादिरों, जहर, मरुस्थल, जंगल ।
उत्तर- घर –(जातिवाचक संज्ञा)–घर बड़ा है।
चौकीदार (जातिवाचक संज्ञा) चौकीदार ईमानदार है।
दरवाजा (जातिवाचक संज्ञा) दरवाजा खोल दो।
डाल (जातिवाचक संज्ञा) वृक्ष की डाल टूट गयी।
चमड़ा (जातिवाचक संज्ञा) चमड़ा सड़ गया।
पगड़ी (जातिवाचक संज्ञा) गड़ी नई है।
बल-बूता (भाववाचक संज्ञा) अपने बल-बूता पर कार्य करो।
बारिश (जातिवाचक संज्ञा) बारिश हो रही है।
वर्दी (जातिवाचक संज्ञा) वर्दी नयी ।
दोस्त (जातिवाचक संज्ञा) – दोस्त पुराना है।
पल (भाववाचक संज्ञा)- एक-एक पल का सदुपयोग करो।
छाँव (भाववाचक संज्ञा) छाँव ठंढी है।
अन्देशा (भाववाचक संज्ञा) – अन्दशा समाप्त गया।
नादिरों (जातिवाचक संज्ञा) नादिरों से बचना है।
जहर (जातिवाचक संज्ञा) उसने जहर पी लिया।
मरुस्थल (जातिवाचक संज्ञा) मरुस्थल फैल रहा है।
जंगल (जातिवाचक संज्ञा) जंगल घना है।

प्रश्न 4. कविता में प्रयुक्त निम्नांकित पदों के कारक स्पष्ट करें-
चमड़ा, पाँव, धूप, सर्दी, वर्दी, अन्देशा, शहर, नदी, खाना, मनुष्य ।
उत्तर- चमड़ा : संबंध कारक
अन्देशा : अधिकरण कारक
पाव : अधिकरण कारक
धूप : कर्मकारक
नदी : कर्मकारक
सर्दी : अधिकरण कारक
खाना : कर्मकारक
वर्दी : अधिकरण कारक
मनुष्य :कमकारक।

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