10th hindi

bihar board class 10th hindi notes – विष के दाँत

bihar board class 10th hindi notes – विष के दाँत

bihar board class 10th hindi notes

वर्ग – 10

विषय – हिंदी

पाठ 2 –  विष के दाँत

विष के दाँत
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-आचार्य नलिन विलोचन शर्मा

लेखक परिचय:-आचार्य नलिन विलोचन शर्मा हिन्दी साहित्य के विलक्षण प्रतिभा संपन्न साहित्यकार थे। इन्होंने हिन्दी कविता के क्षेत्र में ‘नकेनवाद’ यानी ‘प्रपद्यवाद’ का प्रवर्तन किया। आलोचना के क्षेत्र में नयी शैली का सूत्रपात किया। अपने पाण्डित्यपूर्ण लेखों, निबंधों से साहित्य को समृद्ध किया। हिन्दी-संस्कृत से एम० ए० करने के बाद हर प्रसाद दास. जैन कॉलेज आरा, राँची वि० वि०, पटना वि० वि० में प्राध्यापक बने तथा अंत में हिन्दी विभागाध्यक्ष (पटना वि० वि०) के पद पर मृत्युपर्यंत बने रहे।

रचनाएँ :-नलिनजी की अनेक प्रमुख कालजयी कृतियाँ हैं जिनसे हिन्दी संसार समृद्ध हुआ है-
1. दृष्टिकोण, 2. साहित्य का इतिहास दर्शन, 3. विष के दाँत (कहानी संग्रह), 4. हिन्दी उपन्यास विशेषतः प्रेमचंद, 5. साहित्य तत्त्व और आलोचना, 6. नकेन के प्रपद्य और नकेन-2 (काव्य संग्रह) 7.सदल मिश्र ग्रंथावली 8. अयोध्या प्रसाद खत्री स्मारक ग्रंथ, 9. संत परंपरा और
साहित्य आदि संपादित ग्रंथ हैं। साहित्यिक विशेषताएँ :-ये (नलिन विलोचन शर्मा) प्रयोगवाद के प्रारंभिक कवि थे जैसा कि कुछ आलोचक मानते हैं। इनकी कहानियों में मनोवैज्ञानिकता के प्रचुर तत्त्व विद्यमान दिखते हैं। आलोचना में ये नयी शैली के समर्थक थे। कथ्य, शिल्प, भाषा आदि सभी स्तरों पर ये नवीनता के आग्रही थे। उन्होंने परंपरागत दृष्टि और शैली का निषेध किया। आधुनिकता के पक्षधर रहे। पुराने शब्दों को नया रूप दिया। ये एक सिद्धहस्त आलोचक और महान कहानीकार थे।

सारांश:-‘विष के दाँत’ आचार्य नलिन विलोचन शर्मा द्वारा रचित एक मनोवैज्ञानिक कहानी है। इस कहानी में मध्यवर्ग के जीवन के अनेक अन्तर्विरोधों को रेखांकित किया गया है। इस कहानी का संदर्भ ठोस सामाजिकता को लिए हुए है। इसमें स्पष्ट मनोवैज्ञानिक अर्थ भी दिखता है। मध्य
वर्ग की आर्थिक स्थितियों का सफल चित्रण हुआ है। सेन जैसे मध्यवर्गीय लोगों की एक श्रेणी का चित्रण इतनी बारीकी से हुआ है कि पाठक यथार्थ से अवगत हो जाता है। सेन साहब जैसे सफेदपोश महत्त्वाकांक्षी लोगों के मानसिक और सामाजिक जीवन के विविध प्रसंगों, कुसंस्कारों का चित्रण इस कहानी में कहानीकार ने बड़ी बेबाकी से किया है। दूसरी ओर गिरधर जैसे निम्न मध्यवर्गीय सामान्य व्यक्ति की एक श्रेणी है जो अनेक तरह
की थोपी गयी बंदिशों के बीच अपने अस्तित्व को बहादुरी और साहस के साथ बचाये रखने के लिए सदैव संघर्षरत दिखता है।
इस कहानी में सामाजिक भेद-भाव, लिंग-भेद, आक्रामक स्वार्थ की छाया में पलते हुए लाड़-प्यार के कुपरिणामों को उभारा गया है। साथ ही सामाजिक समानता और मानवाधिकार की महत्त्वपूर्ण बानगी भी इस कहानी में स्पष्टतया दिखती है।

गद्यांश पर आधारित अर्थ ग्रहण-संबंधी प्रश्न
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1. लड़कियाँ तो पांचों बड़ी सुशील है, पान-पाँच ठहरी और सो भी लड़कियाँ, तहजीब और तमीज की तो जीती-जागती मूरत ही हैं। मिस्टर और मिसेज सेन ने उन्हें क्या करना चाहिए, यह सिखाया हो या नहीं, क्या-क्या नहीं करना चाहिए, इसकी उन्हें ऐसी तालीम दी है कि बस। लड़कियाँ क्या है, कठपुतलियाँ हैं और उनके माता-पिता को इस बात का गर्व है। वे कभी किसी चीज को तोड़ती-फोड़ती नहीं। वे दौड़ती हैं, और खेलती भी हैं, लेकिन सिर्फ शाम के और चूंकि उन्हें सिखाया गया है कि ये बातें उनकी सेहत के लिए जरूरी हैं। वे ऐसी मुस्कराहट अपने होठों पर ला सकती हैं कि सोसाइटी की तारिकाएँ भी उनसे कुछ सीखना चाहें, तो सीख लें, पर उन्हें खिलखिलाकर किलकारी मारते हुए किसी ने सुना नहीं।
सेन परिवार के मुलाकाती रश्क के साथ अपने शरारती बच्चों से खीझकर कहते हैं- “एक तुम लोग हो, और मिसेज सेन की लड़कियाँ हैं। अब, फूल का गमला तोड़ने के लिए बना है? तुम लोगों के मारे घर में कुछ भी तो नहीं रह सकता।”
(क) यह अवतरण किस पाठ से लिया गया है?
(क) मछली
(ख) आविन्यो
(ग) विष के दाँत
(घ) शिक्षा और संस्कृति

(ख) इस गद्यांश के लेखक कौन हैं?
(क) भीमराव अंबेदकर (ख) मैक्समूलर
(ग) नलिन निलोचन शर्मा (घ) अमरकांत

(ग) स्वास्थ्य लाभ के लिए पुत्रियों को क्या सिखाया गया है?
(घ) सेन साहब के मुलाकाती लोग अपने शरारती बच्चों से खीझकर क्या कहते थे?
(ङ) लेखक ने सेन साहब की पुत्रियों की तुलना कठपुतलियों से क्यों की है?
उत्तर-(क)-(ग) विष के दाँत
(ख)-(ग) नलिन निलोचन शर्मा
(ग) स्वास्थ्य लाभ के लिए खेलना जरूरी है। खेलने से शरीर चुस्त-दुरूस्त रहता है किन्तु खेल की भी समय-सीमा निर्धारित थी। खेलना-कूदना और दौड़ना शाम में ही ठीक होता है। अतः, समय पालन का पूरा-पूरा निर्देश दिया गया था।
(घ) सेन साहब से मिलने के लिए प्रायः लोग आया-जाया करते थे। वे सेन साहब की पुत्रियों के रहन-सहन से काफी प्रभावित हो जाते थे। मंद मुस्कान, बोली में मिठास आदि उन पुत्रियों के गुण थे। किन्तु मिलनेवालों के बच्चे इन चीजों के विपरीत थे। कभी गमला तोड़ देना, आपस में उलझ जाना उनकी ये आदत बन गयी थीं। अत: उनकी लड़कियों पर रीझकर, अपने बेटे-बेटियों से कहते, एक तुम लोग हो और एक सेन साहब की लड़कियाँ जिनकी चाल-ढाल प्रशंसनीय है।
(ङ) कठपुतलियाँ निर्देशन के आधार पर चलती हैं। उठना, बैठना, चलना आदि सभी क्रियाएँ निर्देश पर ही होती हैं। ठीक उसी प्रकार सेन साहब की बेटियाँ भी निर्देश पर ही काम करती थीं। जोर-से नहीं हँसना, चीजों को नहीं तोड़ना, शाम में खेलना-कूदना आदि सभी काम एवं कहने पर ही करती थीं। इसी कारण लेखक ने उन पुत्रियों की तुलना कठपुतलियों से की है।

2. वात ऐसी थी कि सीमा, रजनी, आलो, शेफाली, आरती-पाँचों हुई तो… उनके लिए घर में अलग नियम थे, दूसरी तरह की शिक्षा थी, और खोखा के लिए अलग, दूसरी। कहने के लिये तो सेनों का कहना था कि खोखा आखिर अपने बाप का बेटा टहरा, उसे तो इंजीनियर होना
है, अभी से उसमें इसके लक्षण दिखाई पड़ते थे, इसलिए ट्रेनिंग भी उसे वैसी ही दी जा रही थी। बात यह है कि खोखा के दुर्ललित स्वभाव के अनुसार ही सेनों ने सिद्धान्तों को भी बदल लिया था। अक्सर ऐसा होता है कि सेन परिवार के दोस्त आते हैं, भड़कीले ड्राइंग रूम में बैठते हैं और बातचीत के लिए विषय का अभाव होने पर चर्चा निकल पड़ती है कि किसका लड़का क्या करेगा। तब सेन साहब बड़ी मौलिकता और दूरदेशी के साथ फरमाते हैं कि वह तो अपने लड़के को अपने ढंग से ट्रेंड करेंगे, करेंगे क्या, कर रहे हैं।
(क) प्रस्तुत गद्यांश किस पाठ से लिया गया है ?
(क) शिक्षा और संस्कृति (ख) नौबतखाने में इबादत
(ग) जित-जित मैं निरखत हूँ
(घ) विष के दाँत

(ख) इस गद्यांश के लेखक कौन हैं ?
(क) नलिन निलोचन शर्मा (ख) मैक्समूलर
(ग) अशोक वाजपेयी (घ) यतीन्द्र मिश्र

(ग) सेन साहब के ड्राइंग रूम में किस तरह का विचार-विमर्श हुआ करता था?
(घ) खोखा कौन था? खोखा के प्रति सेन साहब का कैसा अनुभव था?

उत्तर-(क)-(घ) विष के दाँत
(ख)-(क) नलिन निलोचन शर्मा
(ग) सेन साहब ने अपनी संतान की शिक्षा-दीक्षा के सिद्धान्त के अनुरूप ही ड्राइंग रूम की व्यवस्था की थी। आनेवाले अतिथि भड़कीले ड्राइंग रूम में बैठते थे। कुछ साधारण बातें होती थीं परंतु विषय का अभाव होते ही अपनी-अपनी संतान की चर्चा शुरू हो जाती थी। किसका
लड़का क्या करेगा? ऐसा प्रश्न आते ही सेन साहब अपनी मौलिकता के आधार पर अपने बेटे की प्रशंसा शुरू कर देते थे। वे कहते थे मेरा बेटा इंजीनियर होगा। इसके लिए वे बहुत कुछ व्यवस्था कर रहे हैं।
(घ) खोखा सेन साहब का इकलौता बेटा था। पाँच बेटियों के बाद इसका जन्म उस समय में हुआ था जब सेन साहब को विश्वास नहीं था कि इस उम्र में भी बेटा पैदा ले सकता है। खोखा बुढ़ापे का बेटा था। बुढ़ापा का बेटा माता-पिता को पुत्रवान होने का गौरव प्रदान कर देता है। खोखा द्वारा गलतियाँ करने पर भी सेन साहब नजरअंदाज कर देते थे। अपने बेटे को खिले हुए फूल की तरह देखना चाहते थे।

3. पत्रकार महोदय चुप मुस्कुराते रहे। जब उनसे फिर पूछा गया कि अपने बच्चे के विषय में उनका क्या ख्याल है, तब उन्होंने कहा, “मैं चाहता हूँ कि वह जेंटिलमैन जरूर बने और जो कुछ बने, उसका काम है, उसे पूरी आजादी रहेगी।” सेन साहब इस उत्तर के शिष्ट और प्रच्छन्न व्यंग्य पर ऐंठकर रह गए।
(क) यह अवतरण किस पाठ से लिया गया है ?
(क) विष के दाँत
(ख) जित-जित मैं निरखत हूँ
(ग) मछली
(घ) श्रम विभाजन और जाति प्रथा

(ख) इस गद्यांश के लेखक कौन हैं?
(क) हजारी प्रसाद द्विवेदी (ख) नलिन निलोचन शर्मा
(ग) अशोक वाजपेयी
(घ) भीमराव अंबेदकर

(ग) प्रच्छन्न व्यंग्य से लेखक का क्या अभिप्राय है?
(घ) पत्रकार महोदय से क्या पूछा गया? इस पर उन्होंने क्या जवाब दिया?
उत्तर-(क)-(क) विष के दाँत
(ख)-(ख) नलिन निलोचन शर्मा
(ग) प्रच्छन्न व्यंग्य का ‘अभिप्राय’ सेन साहब की ओर इंगित है। सेन साहब का बेटा शोख (उदंड) तथा अशिष्ट मिजाज का था। उसका ध्यान पढाई-लिखाई में न लगकर खेलने-कूदने और शरारत करने में लगा रहता था। पत्रकार महोदय के बेटे में होनहार बिरवान के होत चीकने पात के लक्षण दिखाई पड़ते थे।
(घ) सेन साहब के एक दोस्त ने पत्रकार महोदय से पूछा कि आप अपने बेटे को क्या बनाना चाहते हैं? इस पर पत्रकार महोदय ने कहा कि मैं अपने बेटे को जेंटिलमैन बनाना चाहता हूँ और इसके लिए उसे पूरी आजादी है।

4. लेकिन दूसरे दिन तो बिल्कुल बेढब मामला हो गया। शाम के वक्त खेलता-कूदता खोखा बँगले के अहाते की बगल वाली गली में जा निकला। वहाँ धूल में मदन पड़ोसियों के आवारागर्द लड़कों के साथ लटू नचा रहा था। खोखा ने देखा तो तबीयत मचल गई। हंस कौओं की जमात में शामिल होने को ललक गया।
(क) प्रस्तुत गद्यांश किस पाठ से लिया गया है।
(क) शिक्षा और संस्कृति (ख) नौबतखाने में इबादत
(ग) विष के दाँत
(घ) श्रम विभाजन और जाति प्रथा

(ख) इस गद्यांश के लेखक कौन हैं?
(क) नलिन निलोचन शर्मा (ख) मैक्समूलर
(ग) अशोक वाजपेयी
(घ) यतीन्द्र मिश्र

(ग) क्या देखकर खोखा का मन मचल गया?

(घ) ‘हंस कौओं की जमात में शामिल होने के लिए ललक गया।’ का तात्पर्य स्पष्ट
कीजिए।
उत्तर-(क)-(ग) विष के दाँत
(ख)-(क) नलिन निलोचन शर्मा
(ग) गली में मदन और उसके साथियों को लटू खेलते हुए देखकर खोखा का मन मचल गया।
(घ) हंस मानसरोवर में रहता है और कौए सर्वत्र पाए जाते हैं। हंस विशिष्ट व्यक्ति का परिचायक है और कौआ सामान्य अथवा अवांछनीय व्यक्ति का। खोखा हंस है, मदन और उसके संगी कौए हैं। अर्थात् आम आदमी है। हंस के मचलने का तात्पर्य है, आम के साथ मिलने की इच्छा।

5. चोर-गुंडा-डाकू होनेवाला मदन भी कब माननेवाला था! वह झट काशू पर टूट पड़ा। दूसरे लड़के जरा हटकर इस द्वन्द्व युद्ध का मजा लेने लगे। लेकिन यह लड़ाई हड्डी और मांस की, बँगले के पिल्ले और गली के कुत्ते की लड़ाई थी। अहाते में यही लड़ाई हुई रहती, तो काशू शेर हो जाता। वहाँ से तो एक मिनट बाद ही वह रोता हुआ जान लेकर भाग निकला। महल और झोपड़ीवालों की लड़ाई में अक्सर महलवाले ही जीतते हैं, पर उसी हालत में, जब दूसरे झोपड़ीवाले उनकी मदद अपने ही खिलाफ करते हैं। लेकिन बच्चों को इतनी अक्ल कहाँ? उन्होंने न तो अपने दुर्दमनीय लीडर की मदद की, न अपने माता-पिता के मालिक के लाडले की ही। हाँ, लड़ाई खत्म हो जाने पर तुरन्त ही सहमते हुए तितर-बितर हो गए।
(क) यह अवतरण किस पाठ से लिया गया है ?
(क) नाखून क्यों बढ़ते हैं (ख) नौबतखाने में इबादत
(ग) विष के दाँत
(घ) श्रम विभाजन और जाति प्रथा

(ख) इस गद्यांश के लेखक कौन हैं ?
(क) महात्मा गाँधी
(ग) नलिन निलोचन शर्मा (घ) हजारी प्रसाद द्विवेदी
(ख) विनोद कुमार शुक्ल
(ग) महल और झोपड़ीवालों की लड़ाई में महलवाले ही क्यों जीतते हैं?
(घ) लड़ाई समाप्त होने पर क्या हुआ?
(ङ) मदन और काशू की लड़ाई में अन्य लड़के तमाशबीन क्यों बने रहे
उत्तर-(क)-(ग) विष के दाँत
(ख)-(ग) नलिन निलोचन शर्मा
(ग) झोपड़ीवाले महल के अत्याचार से भयभीत रहते हैं। उन्हें भय बना रहता का विरोध करना अपने आपको मृत्यु के मुँह में झोकना है। महलों के दया-करम प्र ही उनका
जीवन निर्भर है। झोपड़ीवाले अपने साथी को मदद करने में हिचकते हैं। यही कारण है , महलवाले हमेशा झोपड़ीवालों से जीत जाते हैं।
(घ) लड़ाई में जब काशू हार गया और रोता-बिलखता अपने घर में भाग या तो अन्य लड़के भी वहाँ से तितर-बितर हो गये। उन्हें भय हो गया कि कहीं काशू के तिाजी आकर हमलोगों को मार बैठे।
(ङ) मदन और काशू की लड़ाई को देखनेवाले लड़कों के बाप काशू के पिताजी के यहाँ ही नौकरी करते थे। उन्हें लगा कि यहाँ मौन रह जाना ही समझदारी है। किसी को मदद करने का मतलब अपने ऊपर होनेवाले जुर्म को न्योता देना है। इसी कारण वे तमाशबीन बने रहे।

6. गिरधर निस्सहाय निष्ठुरता के साथ मदन की ओर बढ़ा। मदन ने अपने दाँत भींच लिए। गिरधर मदन के बिल्कुल पास आ गया कि अचानक ठिठक गया। उसके चेहरे से नाराजगी का बादल हट गया। उसने लपककर मदन को हाथों से उठा लिया। मदन हक्का-बक्का अपने पिता को
देख रहा था। उसे याद नहीं, उसके पिता ने कब उसे इस तरह प्यार किया था, अगर कभी किया था, तो गिरधर उसी बेपरवाही, उल्लास और गर्व के साथ बोल उठा; जो किसी के लिए भी नौकरी से निकाले जाने पर ही मुमकिन हो सकता है, ‘शाबाश बेटे’। एक तेरा बाप है, और तूने तो, बे, खोखा के दो-दो दाँत तोड़ डाले। हा हा हा हा।
(क) प्रस्तुत गद्यांश किस पाठ से लिया गया है ?
(क) बहादुर
(ख) श्रम विभाजन और जाति प्रथा
(ग) विष के दाँत
(घ) मछली

(ख) इस गद्यांश के लेखक कौन हैं ?
(क) गुणाकर मूले
(ख) रामविलास शर्मा
(ग) नलिन निलोचन शर्मा (घ) भीमराव अंबेदकर

(ग) मदन हक्का-बक्का क्यों हो गया?
(घ) गिरधर ने बेटे मदन को शाबासी क्यों दी? मदन एकाएक गिरधर के लिए प्यारा
क्यों बन गया?

उत्तर-(क)-(ग) विष के दाँत
(ख)-(ग) नलिन निलोचन शर्मा
(ग) मदन अक्सर अपने पिता से पिटता था। किन्तु जब पिता ने उसे अपने हाथों में प्यार से उठा लिया तो पिता के इस स्वभाव परिवर्तन पर वह हक्का-बक्का हो गया।
(घ) गिरधर सेन साहब का कर्मचारी था और अक्सर डाँट-फटकार सुनता था। इससे उसमें हीन-भावना घर कर गई थी। जब बेटे के कारण नौकरी से हटाया गया तो सेन साहब का भय समाप्त हो गया और उनके प्रति आक्रोश उभर आया। चूँकि उसके दमित आक्रोश को, उसके
बेटे मदन ने सेन साहब के बेटे खोखा के दाँत को तोड़कर, व्यक्त कर दिया था, इसलिए मदन उसका प्यारा बन गया। जो काम गिरधर न कर सका था, उसके बेटे ने कर दिखाया।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
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1. आलोचकों के अनुसार प्रयोगवाद का प्रारंभ किसी कविताओं से हुआ।
उत्तर-आलोचकों के अनुसार प्रयोगवाद का आरंभ नलिन विलोचन शर्मा की कविताओं से हुआ?

2. सेन साहब अपने ‘खोखा’ को क्या बनाना चाहते थे?
उत्तर-सेन साहब अपने ‘खोखा’ को इंजीनियर बनाना चाहते थे।

3. गिरधर कौन था?
उत्तर-गिरधर सेन साहब की फैक्ट्री में किरानी था।

4. खोखा किन मामलों में अपवाद थी?
उत्तर-खोखा सेन साहब के घर के नियमों के मामले में अपवाद था।

5. सेन दंपति खोखा में कैसी संभावनाएँ देखते थे और उन संभावनाओं के लिए उन्होंने उसके लिए कैसी शिक्षा तय की थी?
उत्तर-सेन दंपति खोखा में इंजीनियर होने की संभावनाएँ देखते थे और इसके लिए ऐसी ही शिक्षा तय की थी।

6. मदन और ड्राइवर के बीच विवाद के द्वारा कहानीकार क्या बताना चाहता है?
उत्तर-मदन और ड्राइवर के बीच विवाद का कारण मदन द्वारा सेन साहब की गाड़ी छूना और ड्राइवर का इससे मना करना था। कहानीकार इसके द्वारा उच्च और निम्न वर्ग की लड़ाई में निम्न वर्ग के लोगों द्वारा उच्च वर्ग की तरफदारी करने की प्रवृत्ति दिखाना चाहता है।

7. आशू और मदन के बीच झगड़े का क्या कारण था? इस प्रसंग द्वारा लेखक क्या दिखाना चाहता है?
उत्तर-आशू और मदन के बीच आशू की लटू खेलने की ललक और मदन द्वारा उसे खेलाने से इनकार करना था। लेखक इसके द्वारा बच्चों की ईर्ष्या भावना दिखाना चाहता है।

8. आशू और मदन की लड़ाई कैसी थी?
उत्तर-आशू और मदन की लड़ाई हड्डी और मांस की बंगले के बिल्ले और गली के कुत्ते की लड़ाई थी।

9.झोपड़ी और महल की लड़ाई में अक्सर कौन जीतते हैं?
उत्तर-झोपड़ी और महल की लड़ाई में अक्सर महलवाले ही जीतते हैं।
10. रोज-रोज अपने बेटे मदन की पिटाई करनेवाला गिरधर मदन द्वारा आशू की पिटाई करने पर उसे दंडित करने की बजाय अपनी छाती से क्यों लगा लेता हैं।
उत्तर-गिरधर सेन साहब की तानाशाही वृत्ति का प्रतिकार करना चाहता था किंतु कर नहीं पाता था। यही काम जब मदन ने आशू को पीट कर किया तो दंडित इच्छा की पूर्ति होने के कारण उससे मदन को छाती से लगा लिया।

पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उत्तर
पाठ के साथ
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1. कहानी के शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-आचार्य नलिन विलोचन शर्मा द्वारा लिखित ‘विष के दाँत’ नामक कहानी हिन्दी जगत की एक प्रसिद्ध कहानी है।
कहानी का शीर्षक है-‘विष के दाँत’ कितना सार्थक नाम है। क्या विष के भी कहीं दाँत होते है? हाँ होते हैं। विष बड़ा ही घातक होता है। यह शरीर में धीरे-धीरे फैलता है और अपना प्रभाव दिखाता है। उसके दाँत दिखायी नहीं पड़ते। दाँतों द्वारा काटने पर जिस प्रकार उसकी विष विषाहट दिखायी नहीं पड़ती मात्र महसूस की जा सकती है, ठीक उसी प्रकार विष जब अपने दाँतों से यानी प्रभाव से किसी को घायल करता है तब हम उसे महसूस ही कर सकते हैं, देख नहीं सकते।
इस कहानी का शीर्षक भी सार्थक ही है क्योंकि इसके द्वारा समाज के विद्रूप चेहरे की झलक दिखायी पड़ती है। कथनी-करनी का अंतर दृष्टिगोचर होता है। ये सफेदपोश लोग मध्यम वर्ग की शान है, उनके आचार-विचार, नकली ढोंग, बनावटीपन अव्यावहारिक बातें सामाजिक विसंगतियों को चित्रित करती हैं। उनके जीवन के पोल को अपनी कहानी द्वारा संकेतों में बातों
में, व्यवहारों में कहानीकार ने प्रकट किया है। अतः, कहानी का शीर्षक ‘विष के दाँत’ सही है। सार्थक है।

प्रश्न 2. सेन साहब के परिवार में बच्चों के पालन-पोषण में किये रहे लिंग-आधारित भेद-भाव का अपने शब्दों में वर्णन कीजिए।
उत्तर-सेन साहब का परिवार मध्यमवर्गीय सफेदपोशों का परिवार है। यहाँ लिंग आधारित भेद-भाव दृष्टिगत होता है। सेन परिवार में पाँच लड़कियाँ हैं-सीमा, रजनी, आलो, शेफाली, आरती आदि। सेन परिवार में एक ही बेटा है। वह भी ढलते बुढ़ापे में पैदा हुआ। जब सेन दंपति को यह विश्वास हो गया कि लड़का नहीं होगा क्योंकि दोनों दंपति उम्र की ढलान की ओर थे। लेकिन उसी काल में खोखा की पैदाइश हुई थी जो पत्थर पर दूब जमने के रूप में सिद्ध हुआ।
इसी कारण परिवार में लड़कियों के लिए अलग नियम थे और खोखा के लिए अलग। लड़कियाँ तहजीब और तमीज के साथ जीती थीं जबकि खोखा स्वच्छंद रूप में। लड़कियों का जीवन कठपुतली की तरह था। खोखा मृग छौनों भी भाँति जीता था। खोखा बूढ़े दंपति के आँखों
का तारा था जबकि लड़कियाँ तमीज की जीती-जागती मूरत थी। खोखा जीवन के नियम का अपवाद था जबकि लड़कियाँ ऐसी नहीं थीं। उन्हें दायरे में जीना पड़ता था। उनपर पाबंदियाँ भी अनुशासित था, डाँट-फटकार थी लेकिन खोखा लाड़-प्यार का प्रतिक्रिया, उच्छृखल और बेपरवाह था।

प्रश्न 3. खोखा किन मामलों में अपवाद था?
उत्तर-खोखा जीवन के नियम का अपवाद तो था ही वह घर के नियमों का भी अपवाद था। वह शरारती और बेपरवाह था। लाड़-प्यार में पलनेवाला शरारती, बिगडैल बच्चा था।

प्रश्न 4. सेन दंपति खोखा में कैसी संभावनाएँ देखते थे और उन संभावनाओं के लिए उन्होंने उसकी कैसी शिक्षा तय की थी?
उत्तर-सेन दंपति को खोखा में इंजीनियर बनने की संभावनाएँ दिखती थी क्योंकि उन्हें अपनी नस्ल और खून पर गुमान था। वे सेनों के खानदान को महान मानते थे। इसलिए अक्सरहाँ कहा करते थे कि खोखा आखिर सेन का ही तो वंशज ठहरा। इसमें इंजीनियर बनने की अपार
संभावनाएँ हैं। इसी कारण उन्होंने बेसिक और ट्रेड शिक्षा से उसे दूर रखकर बढ़ई के साथ एक-दो घंटे ठोंकने-पीटने के लिए कर दिया। कारखाने में ही खोखा की शिक्षा बढ़ईगिरी से शुरू हुई। उन्होंने किंडरगार्टन स्कूल नहीं भेजा। खोखा को बिजनेसमैन और इंजीनियरिंग की पढ़ाई से बंचित
रखा।
सेन दंपति को विश्वास था कि बचपन में ही ऊँगलियाँ औजारों से वाकिफ हो जाएंगी। हिन्दुस्तानी लोग इस बात को ही नहीं समझते हैं-ऐसी गलत धारणा सेन दंपतियों की थी।
प्रश्न 5. सप्रसंग व्याख्या कीजिए-
(क) “लड़कियाँ क्या हैं; कठपुतलियाँ हैं और उनके माता-पिता को इस बात का गर्व है।
उत्तर-प्रस्तुत पंक्तियाँ नलिन विलोचन शर्मा द्वारा लिखित ‘विष के दाँत’ शीर्षक कहानी से ली गयी हैं। यह संदर्भ सेन परिवार में पाली-पोसी जानेवाली लड़कियों की चारित्रिक विशेषताओं से जुड़ा हुआ है।
सेन परिवार मध्यमवर्गीय परिवार है जहाँ की जीवन शैली कृत्रिमताओं से भरा हुआ है। सेन परिवार में लड़कियों को तहजीब और तमीज के साथ जीना सिखाया जाता है। उन्हें शरारत करने की छूट नहीं। वे स्वच्छंद विचरण नहीं कर सकती। जबकि बच्चा के लिए कोई पाबंदी नहीं है। सेन दंपति ने लड़कियों को यह नहीं सिखाया है कि उन्हें क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए? उन्हें ऐसी तालीम दी गयी है कि उन्हें क्या-क्या नहीं करना है, इसकी सीख दी गयी है। इस प्रकार सेन परिवार में लड़कियों के प्रति दुहरी मानसिकता काम कर रही है। जहाँ लड़कियाँ अनुशासन, तहजीब और तमीज के बीच जी रही हैं वहाँ खोखा सर्वतंत्र स्वतंत्र है।
लड़का-लड़की के साथ दुहरा व्यवहार विकास परिवार और समाज के लिए घातक है। अतः, लड़का-लड़की के बीच नस्लीय भेदभाव न पैदाकर उनमें समानता का विस्तार करना चाहिए।
प्रश्न 5.(ख) “खोखा के दुर्ललित स्वभाव के अनुसार ही सेनों ने सिद्धांतों को भी बदल लिया था।”
उत्तर-प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘विष के दाँत’ नामक कहानी से ली गयी है। इस कहानी के रचयिता आचार्य नलिन विलोचन शर्माजी हैं। यह पंक्ति सेन परिवार के लाडले बेटे के जीवन-प्रसंग से संबंधित है।
कहानीकार ने इन पंक्तियों के माध्यम से यह बताने की चेष्टा किया है कि सेन परिवार एक मध्यमवर्गीय सफेदपोश परिवार है। यहाँ कृत्रिमता का ही बोलवाला है। नकली जीवन के बीच जीते हुए सेन परिवार अपने बच्चों के प्रति भी दुहरा भाव रखते हैं।
सेन परिवार का बेटा शरारती स्वभाव का है। वह बुढ़ापे में पैदा हुआ है, इसी कारण सबका लाड़ला है। उसके लालन-पालन, शिक्षा-दीक्षा में कोई पाबंदी, अनुशासन नहीं है। वह बेलौस जीने के लिए स्वतंत्र है। उसके लिए सारे नीति-नियम शिथिल कर दिए गए थे। वह इतना उच्छृखल था कि उसके द्वारा किये गए बुरे कर्मों को भी सेन दंपति विपरीत भाव से देखते थे और उसकी
तारीफ करते थकते नहीं थे।
सेन दंपति बेटे को इंजीनियर बनाना चाहते थे, इसी कारण ट्रेनिंग भी वैसी ही दिलवा रहे थे। उसे किंडरगार्टन स्कूल की शिक्षा न देकर कारखाने में बढ़ई मिस्त्री के साथ लोहा पीटने, ठोंकने आदि से संबंधित काम सिखाया जाता था। औजारों से परिचय कराया जाता था। इस प्रकार सेन
परिवार शरारती अपने बेटे को स्वभाव को अनुरूप ही शिक्षा की व्यवस्था का दी थी और अपने सिद्धांतों को बदल लिया था।
5. (ग) “ऐसे ही लड़के आगे चलकर गुंडे, चोर और डाकू बनते हैं।”
उत्तर-प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘विष के दाँत’ शीर्षक कहानी से ली गयीं हैं। इसके रचयिता हैं-नलिन विलोचन शर्मा। इस पंक्ति का प्रसंग गिरधारी के बेटे मदन के साथ जुड़ा हुआ है। एक बार की बात है कि सेन की गाड़ी के पास मदन खड़ा होकर गाड़ी को छू रहा था।
जब शोफर ने उसे ऐसा करने से मना किया तो वह शोफर को मारने दौड़ा लेकिन गिरधारी की पत्नी ने बेटे को सँभाल लिया। ड्राइवर ने मदन को धक्के देकर नीचे गिरा दिया था जिससे मदन का घुटना फूट गया था।

शरारत की चर्चा ड्राइवर ने सेन साहब से की थी। इसी बात पर सेन साहब काफी क्रोधित हुए थे और गिरधारी को अपनी फैक्टरी से बुलवाकर डाँटते हुए कहा था कि देखो गिरधारी। आजकल मदन बहुत शोख हो गया है। मैं तो तुम्हारी भलाई ही चाहता हूँ। गाड़ी गंदा करने से मना करने पर वह ड्राइवर के मारने दौड़ पड़ा था और मेरे सामने भी वह डरने के बदले ड्राइवर की ओर मारने के लिए झपटता रहा। देखो, यह लक्षण अच्छा नहीं है, ऐसे ही लड़के आगे चलकर गुण्डे, चोर और डाकू बनते हैं। गिरधर लाल की दिशा तो जी हाँ, जी हाँ कहने में ही लगी हुई थी। ऐसी सीख देते हुए सेन साहब गिरधर लाल को बच्चे को सँभालने और शरारत छोड़ने की सीख देते हुए चले गए। यह प्रसंग उसी वक्त का है। इन पंक्तियों में सेन के चरित्र के दोगलापन की झलक साफ-साफ दिखती है। एक तरफ
अपने अनुशासनहीन बेटे को इंजीनियर बनाने का सपना पालनेवाले सेन को उसकी बुराई नजर नहीं आती लेकिन दूसरी ओर गिरधर लाल के बेटे में उइंडता और शरारत दिखाई पड़ती है। यह उस मध्यवर्गीय जीवन चरित्र की सही तस्वीर है। अपने बेटे को प्रशंसा करते हैं, भले वह कुलनाशक है लेकिन निर्धन, निर्बल गिरधर लाल के बेटे में कुलक्षण ही उन्हें दिखायी पड़ते हैं।

(घ) “हंस कौओं की जमात में शामिल होने के लिए ललक गया।”
उत्तर-प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘विष के दाँत’ नामक कहानी से ली गयी हैं जिसके रचयिता हैं-नलिन विलोचन शर्मा।
यह प्रसंग उस समय का है जब सेन दंपति का बेटा दूसरे दिन शाम के वक्त बँगले के अहाते के बगलवाली गली में जा निकला। वहाँ धूल में मदन गिरधर लाल का बेटा आवारागर्द लड़कों के साथ लटू नचा रहा था। खोखा ने जब यह दृश्य देखा तो उसकी भी तबीयत लटू नचाने के लिए ललच गयी। खोखा तो बड़े घर का था यानी वह हंसों की जमात का था जबकि मदन और वे लड़के निम्न मध्यमवर्गीय दलित, शोषित थे। इन्हें कौओं से संबोधित किया गया।
इसी सामायिक भेदभाव के कारण कहा गया कि हंस कौओं की जमात में शामिल होने के लिए ललक गया। यानी कहने का भाव यह है कि खोखा जो अमीर सेन परिवार का वंशज है, गरीबों के खेल में शामिल होकर खेलने के लिए ललच गया किन्तु यह संभव न हो सका। क्योंकि पहले दिन उसके पिता ने उसे और उसकी माँ के साथ पिता को भी प्रताड़ित किया था, उलाहना दी थी, सीख दी थी और औकात में रहने का पाठ भी पढ़ाया था। लेकिन आज तो मदन आवारागर्द लड़कों की जमानत का लीडर था। उसने अपने अपमान को यादकर छूटते ही खोखा से कहा-अबे, भाग जा यहाँ से। बड़ा आया है-लटू खेलनेवाला ! यहाँ तेरा लटू नहीं है। जा, जा, अपने बाबा
की मोटर में बैठ। इन पंक्तियों के द्वारा कहानीकार सामाजिक असमानता, भेदभाव, गैरबराबरी को दर्शाना
चाहता है।

प्रश्न 6. सेन साहब के और उनके मित्रों के बीच क्या बातचीत हुई और पत्रकार मित्र ने उन्हें किस तरह उत्तर दिया?
उत्तर-एक दिन की बात है कि ड्राइंग रुम में सेन साहब के कुछ दोस्त बैठकर गपशप कर रहे थे। उनमें एक साहब साधारण हैसियत के अखबार के पत्रकार थे। उस बैठक में सेने के दूर के कई रिश्तेदार भी थे। साथ में उनका लड़का भी था जो खोखा से भी छोटा लेकिन बड़ा समझदार और होनहार था। किसी ने उसकी हरकत देखकर उसकी तारीफ कर दी और उन साहब से पूछा तो जाता ही होगा? इसके पहले पत्रकार महोदय कुछ कहते, सेन साहब ने कहना शुरू कर दिया। मैं तो खोखा को इंजीनियर बनाने जा रहा हूँ। वे इसी बात को बार-बार दुहराते जाते थे और थकते भी नहीं थे। पत्रकार महोदय चुपचाप हँसते रहे। जब उनसे
उनके बेटे के बारे में प्रश्न किया गया तब उन्होंने कहा कि मैं तो अपने बेटे को भद्र पुरुष यानी कि बच्चा स्कूल सज्जन बनाना चाहता हूँ। वह जो कुछ जीवन में बनना चाहे बने, इसके लिए उसे पूरी आजादी है। सेन साहब इस उत्तर से जो कि शिष्टता पूर्ण था और असहज व्यंग्य था, ऐंठकर रह गए।

प्रश्न 7. मदन और ड्राइवर के बीच के विवाद के द्वारा कहानीकार क्या बताना चाहता है?
उत्तर-मदन और ड्राइवर के बीच जो विवाद हुआ उसके माध्यम से कहानीकार यह बताना चाहता है कि मदन एक किरानी का बेटा था जिसकी माली हालत सेन परिवार की
तुलना में शून्य थी। ड्राइवर सेन परिवार का था। उसका प्रतिरोध करने का अर्थ था परोक्ष रूप से सेन परिवार
और सेन का प्रतिरोध करना। मदन में जीवटता थी और थी प्रतिकार करने की क्षमता। वह अबोध बच्चा था। उसने भीतर सामयिक बुनावट की, सामाजिक हैसियत की जानकारी नहीं थी। वह तो अबोध था लेकिन किरानी का बेटा था। समाज में सेन के सामने उसकी विसात ही क्या थी कि वह ड्राइवर का प्रतिकार करने लगा। उसकी यह मजाल कि वह सेन परिवार के ड्राइवर के साथ उलझे, वाद-विवाद करे, झगड़ा करे। यहाँ दो परिवार की आर्थिक स्थिति, हैसियत मनोवैज्ञानिक भाव-दशा और सामाजिक विसंगतियों के बीच जीते हुए मनुष्य के यथार्थ का चित्रण है।

प्रश्न 8. काशू और मदन के बीच झगड़े का कारण क्या था? इस प्रसंग के द्वारा लेखक क्या दिखाना चाहता है?
उत्तर-काशू और मदन के बीच झगड़े का मूल कारण था कि उसके पिता सेन साहब ने मदन को गाड़ी छूने, गंदा करने का इल्जाम लगाकर प्रताड़ित किया था, उसके ड्राइवर ने मदन को धक्का देकर जख्मी किया था। साथ ही सेन साहब ने मदन की माँ और उसके पिता को उलाहना देते हुए प्रताड़ित किया था एवं बेटे को सुधारने की सीख दी थी। इन्हीं सब कारणों से मदन का अपमानित, प्रताड़ित मन काशू के प्रति द्वेष भाव रखा और लटू के खेल में मित्रों के चाहने पर भी खेल में शामिल होने से इन्कार कर दिया। इस प्रसंग के द्वारा लेखक अमानवीय व्यवहार को दर्शाकर बताना चाहता है कि समाज में व्याप्त गैर-बराबरी धन-संपदा आदमी-आदमी के बीच खाई पैदा करती है और वैमनस्य का बीज बोता है अमीरी-गरीबी के बीच पलते हुए आदमी शिष्टाचार और सद्भावना को खोकर कहीं का नहीं रह जाता। घृणा, द्वेष, नफरत के बीच जीकर वह चिर प्रसन और चिर सुखी नहीं रह सकता। यहाँ दो वर्गों के बीच मनोवैज्ञानिक दशा का भी चित्रण है।

प्रश्न 9. “महल और झोंपड़ी में लड़ाई में अक्सर महल वाले ही जीतते हैं, पर उसी हालत में जब दूसरे झोपड़ी वाले उनकी मदद अपने ही खिलाफ करते हैं।” लेखक के इस कथन को कहानी से उदाहरण देकर पुष्ट कीजिए।
उत्तर-काशू और मदन के बीच झगड़े में अक्सर महल वाले ही जीतते हैं पर उसी हालत में जब दूसरे झोपड़ी वाले उनकी मदद न कर महल के साथ हो जाते हैं।
लेखक ने अपनी कहानी ‘विष के दाँत’ में ऐसे प्रसंग का वर्णन किया है-जब मदन गाड़ी के पास खड़ा है और गाड़ी को छू रहा है। वहाँ शोफर ही उसका विरोध कर रहा है, जबकि शोफर भी झोपड़ी का ही बेटा है, संतान है। मदन का पिता भी तो गिरधर लाल सेन की फैक्ट्री का नौकर ही तो है। लेकिन सबके चरित्र में विभिन्नता है और सभी पात्र-दूसरे का विरोध करते हैं, प्रतिकार करते हैं। आपस में ही लड़ते हैं और सेन की तरफदारी में लगे रहते हैं। यहाँ कहानीकार की उक्ति सही साबित होती है कि अगर झोपड़ी वाले की मदद झोपड़ी वाले करें तो महल की
ही हार होगी लेकिन विडंबना देखने को मिलती है कि हर एक झोपड़ी वाला अपने ही खिलाफ खड़ा हो जाता है और महलों की तरफदारी करने लगता है।
इस प्रकार मदन और ड्राइवर भी दोनों झोपड़ी के वाशिंदे हैं लेकिन सेन की गाही के कारण आपस में ही विवाद पैदा कर मारपीट कर लेते हैं। धक्का-धुक्की द्वारा जख्मी हो जाते हैं।

प्रश्न 10. रोज-रोज अपने बेटे मदन की पिटाई करनेवाला गिरधर मदन द्वारा काशू की पिटाई करने पर उसे दंचित करने की बजाय अपनी छाती से क्यों लगा लेता है?
उत्तर-गिरधर रोज-रोज किसी न किसी बात पर अपने बेटे मदन को डाँटता-फटकारता रहता था। उसकी बात-बात पर पिटाई कर दिया करता था किन्तु जिस दिन लटू के खेल में काशू को नहीं खेलने दिया और उसे वहां से भाग जाने को कहा, तब काश् बेकाबू में होकर मदन से. उलझ गया और मारपीट करने लगा। लेकिन मदन पी आज मौका नहीं छोड़ा। उसके भीतर प्रतिशोध की ज्वाला धधक रही थी क्योंकि मात्र गाड़ो छूने, गंदा करने का इल्जाम लगाकर मदन को सेन साहब ने, उनके ड्राइवर ने प्रताड़ित किया था पक्के देकर जख्मी किया था। उसकी माँ एवं पिता को उलाहना देकर, सौख देकर, डॉटकर बेटे को सुधारने की नसीहतें दी थीं।
इन्हीं सब बातों का बदला आज कारों की पिटाई कर मदन ने अपनी मन की मुराद पूरी कर ली। लेकिन पिता के व्यवहार से वह वाकिफ था। वह इस भय से भयभीत था कि मार-पीट को बातें सुनकर कहीं माँ, पिताजी मुझे दौडत तो नहीं करेंगे। इसी कारण वह दिनभर इधर उधर समय काटकर रात में घर पहुंचा। लौटे से नोकर जब लगी तो माँ, पिताजी मदन के आने की आहट पा ली। मदन की बहादुरी से आज उसके पिताजी बहुत खुश थे। बरसों की साध आज पूरी हुई भी। उसने बेटे की हिम्मत की दाद दो। जो काम वह नहीं कर सकता था, उसे उसके बेटे ने कर दिखाया। उसनं काशू के दाँत तोड़ डाले, उन्हें पीट-पोटकर पराजित कर दिया। आज झोपड़ी खुश थी क्योंकि युगों युगों से प्रताड़ित, अपमानित जीवन जीने से बेटे ने मुक्ति दिलायी थी। बेटा ने कुल की मर्यादा रख ली। वह क्रांतिकारी निकला। उसने एक नयी दिशा दिखायी उसकी बहादुरी, हिम्मत और निर्माकता की पिता ने दाद दो और पिटने के बजाय छाती से लगा लिया।

11. (i) सेन का चरित्र-चित्रण करें।
उत्तर‘विध के दाँत’ कहानी में सेन एक अमीर वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है। यह मध्यम- वर्गीय सफेदपोश जमात का प्रतीक है। वह झूठी शान में, कृत्रिमता में जीवन जीता है। उसके चरित्र में अनेक विरोधाभास दिखते है। वह अपने ही घर में दोहरी नीति अख्तियार करता है। लड़कियों के लिए. अबब और तहजीब के बीच जीने की सीख देता है, जबकि बेटा को स्वच्छंद जीने के लिए। वह बेटे को उच्खल बनने में सहायता करता है। सारे नीति-नियम उसके लिए शिथिल कर देता है जबकि लड़कियों को पर में कठपुतली अनाकर रखता है। बच्चे की सही शिक्षा न देकर गवारु शिक्षा देता है। उसकी झूठी प्रशंसा करता है। बच्चे को इंजीनियर बनाने की कल्पना करता है और उसमें सीनियर बनने के गुण को देखता है जबकि वह निकम्मा शरारती और विवेकहीन है।
सेन के भीतर एक दुष्टात्मा का वास है। वह गैर-बराबरी का पोषक है। उसके भीतर शोषितों पीड़ितों के प्रति जरा सी भी दया नहीं है। उसके भीतर संवेदनशीलता का अभाव है। वह झुठो शान और सूने दिखाया में जीता है और आम आदमी के जीवन से घृणा करता है। उसे अपने बंटे में इंजीनियर को लक्षण दिखते हैं, जबकि गिरधर के बेटे में चार, गुडे, डाकू, के। वह समाज के बरिया दर्ग का प्रतीक है जिसका भीतर न कर्तव्यनिष्ठता है, न करुणा
वह गरीबों के रुदन को कौए को चिल्लाहट मानता है जबकि अपने नालायक बेटे का बड़ा आदमी बनाने का सपना पालता है। उसके भीतर लिंगदोह जैसे कुसंस्कार भी शिप है। यह महात्वाकाक्षी है। यह स्वाना आक्रमक है वह समाव का विषधर है जिसके देश से आम आदमी
बेचैन है।
(ii) मदन का चरित्र-चित्रण करें।
उत्तर-मदन गिरधारी का लड़का है। वह सीधा-सादा लड़का है। उसकी उम्र अभी पाँच-छ: साल की है। वह सेन साहब की नयी गाड़ी के पास खड़ा है। उसकी सुदंरता से मोहित
होकर वह उसे देख रहा है। ड्राइवर गाड़ी छूने, गंदा करने का उस पर इल्जाम लगाता है। वह इसपर ड्राइवर का प्रतिकार करता है। ड्राइवर उससे उलझ जाता है, धक्के देता है। वह जख्मी हो जाता है फिर भी ड्राइवर को मारने के लिए उद्यत होता है।
मदन के पिताजी लाड़-प्यार की जगह मदन की बराबर पिटाई करते हैं। सेन ने जब उलाहना दिया तब गिरधारी ने बेटे की काफी पिटाई की। वह रातभर रोया। उसकी चीख से सेन परिवार की नींद हराम हो गयी किन्तु सेन लोगों में तनिक भी ममता नहीं जगी।
सेन के बेटे काशू के साथ लटू के खेल में भेंट जब होती है और काशू भी खेलने की इच्छा व्यक्त करता है तब मदन उसे फटकारता है और वहाँ से चले जाने को कहता है। काशू और मदन में वहाँ मारपीट होती है। मदन काशू की दाँतें मार मार कर तोड़ देता है और घायल
कर देता है।
पिता की भय से मदन दिनभर घर नहीं जाता। रात में जब वह घर जाता है तब पिता की डाँट और पिटाई की जगह शाबासी पाता है। पिता अन्य दिनों की तुलना में आज उसे छाती से लगा लेते हैं। उसकी बहादुरी की दाद देते हैं। वह उससे कहते हैं-जो पिता नहीं कर सका उसे
बेटे न कर दिखाया। शाबाश बेटे! तुम्हारी इस विजय का मैं तहे दिल से स्वागत करता हूँ। इस प्रकार मदन एक बहादुर, अन्याय का प्रतिकार करने वाला स्वाभिमानी युवक है। वह सामाजिक भेद-भाव से अनभिज्ञ है। वह निडर है, न्यायी है और जीवट वाला है।

(iii) काशू का चरित्र-चित्रण करें।
काशू सेन दंपत्ति का एकलौता बेटा है। वह शरारती और गैर-जिम्मेवार है। उसकी पैदाइश सेन दंपति की कोख से बुढ़ापे में हुई। इसी कारण वह सबकी आँखों का तारा था। वह व्यवस्थित शिक्षा नहीं प्राप्त करता है। उल्टा-पुल्टा काम करता है। घर में भी वह शरारतें करता है। आगत अतिथियों की कार की हवा निकाल देता है। कार के शीशे फोड़ देता है। वह स्कूली शिक्षा नहीं पाता है। वह अपनी फैक्टरी में बढ़ई के साथ छेनी-हथौड़ी चलाना सीखता है। वह औजारों को पहचानता है। वह अमीर बाप का बिगडैल बेटा है। जीवन के व्यावहारिक पक्ष से रू-ब-रू नहीं है। बोलने-चलने की भी तमीज नहीं है। वह खेल में मदन से मार पीट कर लेता है। वहाँ से भागकर घर जाता है। वह दुष्ट प्रकृति का बालक है। वह जीवन के नियम का अपवाद तो है ही घर के नियमों का भी अपवाद है। वह बराबर मोटर कार को क्षति पहुँचाता रहता था। बड़ी बहनों से मार-पीट किया करता था। वह लाड-प्यार में बिगड़ चुका था। इस प्रकार काशू सेन दंपत्ति का निकम्मा, जिद्दी और बेवकूफ लड़का था।

(iv) गिरधर का चरित्र-चित्रण करें।
गिरधर समाज के निम्न वर्ग से आता है। वह सेन की फैक्टरी में किरानी का काम करता है। घर में उसकी बीवी है। उसका बेटा मदन है, जो होनहार और जीवटवाला है। गिरधर विश्वासी, आज्ञाकारी किन्तु डरपोक सेवक है। वह बराबर बेटा मदन की पिटाई और प्रताड़ित करता है।
गिरधर ईमानदार है। गिरधर मालिक के प्रति वफादार है। वह सेन साहब की हर बात पर जी हाँ, से उत्तर देता है। वह घर आकर सेन की बातों में आकर बेटे की निर्मम पिटाई करता है।
अंत में जब मदन काशू की पिटाई कर उसकी दाँत तोड़ देता है तब वह उससे गिरधर ‘बहुत प्रभावित होता है। वह पुत्र को प्रताड़ित न कर छाती से लगा लेता है। उसकी बहादुरी की दाद देता है। वह होनहार और बहादुर बेटे के कर्म से अति प्रसन्न है। वह बार-बार उसे शाबासी देता है। वह बेटे में सुखद भविष्य की कामना करता है। जो काम पिता नहीं कर सका, उसे पुत्र ने कर दिखाया। इस जीवटता पर वह अति प्रसन्न होकर पुत्र को हृदय में स्थान देता है और उसकी विजय पर गर्वोन्नत होता है।

प्रश्न 12. आपकी दृष्टि में कहानी का नायक कौन है? तर्कपूर्ण उत्तर दें।
उत्तर-अगर पैनी दृष्टि से अन्वेषण किया जाय तो इस कहानी का नायक मदन है क्योंकि उसमें प्रतिकार करने की क्षमता है। वह जीवटवाला युवक है। वह सूझ-बूझ वाला एवं होनहार है। उसके भीतर निर्भीकता, अन्याय के प्रति प्रतिशोध की भावना, अपमान को नहीं भूलनेवाला आदि
विशेष गुण छिपे हुए हैं। वह आज्ञाकारी पुत्र है। वह अपने पिता एवं माँ की बातों को चुपचाप सह लेता है लेकिन प्रतिकर नहीं करता। वह अत्यंत ही शिष्ट और सरल बालक है। वह सामाजिक व्यवहार, विचारों से अवगत नहीं है। कहानी के अंत में उसके वीरोचित्त भाव प्रकट होते हैं। वह
काशू की निर्भीकता के साथ पिटाई करता है। उसके भीतर तनिक भी भय नहीं है कि वह अमीर बाप के बेटे से लड़ाई कर रहा है। उसे यह भी परवाह नहीं है कि उसके पिता काशू के पिता की फैक्टरी में किरानी है। वह एक आजाद विचारों से लैस बालक है जिसके भीतर आत्म-सम्मान
भरा हुआ है। वह सेन साहब के सामने भी नहीं डरता और ड्राइवर के साथ उलझ जाता. है।
ड्राइवर के साथ उलझने, जवाब देने में भी वह नहीं डरता। ठीक उसी प्रकार वह काशू से भी लड़ जाता है और खेलने की मना ही करता है। मार-पीट में काशू की पिटाई कर उसकी दाँतें तोड़ देता है। उसे तनिक भी परवाह नहीं कि काशू के पिता उसके पिता के मालिक है। अमीर है। वह एक गरीब का बेटा है। समाज के निम्न वर्ग से आता है। वह दुनियादारी और सामाजिक गैर-बराबरी से अनभिज्ञ है। इसी प्रकार मदन ही इस कहानी का मूल नायक है जिसमें धीरता, प्रतिशोध की भावना अन्याय का प्रतिकार करने की क्षमता है।
आज के नये युग का वह महानायक है जो संघर्षों से नहीं डरता और अन्याय भी नहीं सहता बल्कि उसका प्रतिकार करने के लिए उद्दृत हो जाता है।

प्रश्न 13. आरंभ से ही कहानीकार का स्वर व्यंग्यपूर्ण है। ऐसे कुछ प्रकरण उपस्थित करें।
उत्तर-(i) लड़कियाँ क्या हैं, कठपुतलियाँ हैं और उनके माता-पिता को इस बात का गर्व हैं।
(ii) वे ऐसी मुस्कुराहट अपने होठों पर ला सकती हैं कि सोसाइटी की तारिकाएँ भी उनसे कुछ सीखना चाहें, तो सीख लें, पर उन्हें खिलखिलाकर किलकारी मारते हुए किसी ने सुना नहीं।
(iii) सेन परिवार के मुलाकौती रश्क के साथ अपने शरारती बच्चों से खीझकर कहते हैं-“एक तुम लोग हो, और मिसेज सेन की लड़कियाँ हैं।
(iv) अबे! फूल का गमला तोड़ने के लिए बना है? तुम लोग के मारे घर में कुछ भी तो नहीं रह सकता।
(v) कहने के लिए तो सेनों का कहना
था कि खोखा आखिर अपने बाप का बेटा ठहरा, उसे तो इंजीनियर होना है, अभी से उसमें इसके लक्षण दिखाई पड़ते थे, इसलिए ट्रेनिंग भी उसे वैसी ही दी जा रही थी।

प्रश्न 14. ‘विष के दाँत कहानी का सारांश लिखें।
उत्तर-देखें पाठ का सारांश।

पाठ के आस-पास
—————-
1. एक साहित्यकार के रूप में नलिन विलोचन शर्मा के महत्त्व के बारे में लिखें।
उत्तर-आचार्य नलिन विलोचन शर्मा हिन्दी साहित्य के प्रकाण्ड पंडित थे। इन्होंने अपनी साहित्य-साधना के द्वारा हिन्दी के विकास में अतुलनीय योगदान किया। इन्होंने हिन्दी कविता के क्षेत्र में एक नये अध्याय की शुरुआत की। आलोचना के क्षेत्र में भी इन्होंने नयी शैली का प्रवर्तन
किया। ये ‘प्रपद्यवाद’ यानि ‘नकेनवाद’ के प्रवर्तक कवि थे। साहित्यकार के रूप में इन्होंने हिन्दी की समृद्धि में अनेक उत्कृष्ट रचनाओं का सृजन कर अद्भूत सेवा प्रदान की।

गोधूलि, भाग-2
इनकी प्रमुख निम्नलिखित कृतियाँ हैं :-
1. दृष्टिकोण, 2. साहित्य का इतिहास, 3. दर्शन, 4. साहित्य तत्त्व और आलोचना, 6. विष
के दाँत’ (कहानी संग्रह),7. मकेन के प्रपद्य और नकेन’-2,8. सदलमिश्र ग्रंथावली, 9. अयोग्या
प्रसाद खत्री स्मारक ग्रंथ, 10. संत परंपरा और साहित्य (संपादित)।
इनकी कविताओं में प्रयोगवादी विचारों का प्रारंभिक दर्शन होता है। इनकी कहानियों में मनौवैज्ञानिकता के तत्त्व समग्रता से उभरकर आए हैं।
आलोचना के क्षेत्र में इन्होंने आधुनिक शैली का सूत्रपात किया। कथ्य, शिल्प, भाषा के स्तरों पर नवीनता के आग्रही, आलोचना में गठी हुई भाषा एवं संकेतात्मकता का प्रयोग, पुराने शब्दों की नये रूप में प्रयोग, परंपरागत दृष्टि एवं शैली का निषेध और आधुनिक दृष्टि के समर्थन आदि विशेषताएँ इनकी कृतियाँ में परिलक्षित होती हैं।

2. अपने शिक्षक की मदद से लेखक की पिता की रचनाओं की सूची तैयार करें और उनके बारे में जानकारी इकट्ठी करें।
उत्तर-आचार्य नलिन विलोचन शर्मा के पिता का नाम महामहोपाध्याय पं० रामावतार शर्मा था। वे संस्कृत और दर्शनशास्त्र के प्रकाण्ड विद्वान थे। वे भोजपुरी भाषा-भाषी थे। इनकी पत्नी रत्नावती शर्मा थी। आचार्य नलिन विलोचन शर्मा के व्यक्तित्व निर्माण में उनके पिता के पाण्डित्य के साथ उनकी प्रगतिशील दृष्टि की भी बहुत बड़ी भूमिका थी।
आचार्य पं. रामावतार शर्मा ने अपनी विलक्षण प्रतिभा से संस्कृत, दर्शन और साहित्य, के क्षेत्र में अतुलनीय योगदान किया। वे सदैव स्मरणीय रहेंगे। उनकी प्रतिभा, पैनी दृष्टि, गुरु-गम्भीरता, चिन्तन धारा में नवीनता, जीवन-दृष्टि में नवीनता के सभी कायल थे। वे प्रगतिशील विचारक और प्रतिभा संपन्न भारती पुत्र थे।

भाषा की बात
————-
प्रश्न 1. कहानी से मुहावरे चुनकर उनके स्वतंत्र वाक्य प्रयोग करें।
(i) आँखों का तारा-(अत्यधिक प्यार होना):-राम दशरथ के आँखों के तारा थे।
(ii) हिकमत जानना-(तरीका, उपाय जानना) :-दारा सिंह अपने से बलशाली
पहलवान को पछाड़ने का हिकमत जानते थे।
(iii) शरारत करना-(बदमाशी करना):-रमेश एक नटखट बालक था जो कक्षा में सदैव शरात किया करता था।
(iv) रुखसत होना-(विदा लेना):-विदाई समारोह की समाप्ति के बाद सभी मित्र रुखसत हो गए।
(v) खलल पड़ना-(विघ्न होना):-मंथरा की अदूरदर्शिता ने सुख-शांति में खलल डाल दी।
(vi) खाल उधेड़ना-(कुतर्क करना):-अपनी जिरह द्वारा अधिवक्ता ने बाल का खाल उधेड़ना शुरू किया।
(vii) तबीयत मचलना-(प्रसन्न होना):-पिता के आगमन का समाचार पाकर मिलने के लिए मोहन की माँ की तबीस्त नचल गयी।
(viii) ललकना-(अत्यधिक खुशी का इजहार करना):-सिनेमा देखने के लिए मित्रों के साथ रमेश का मन ललक गया।
(ix) नजरअन्दाज करना-(ध्यान न देना):-कभी-कभी अच्छी बातों से सीख न लेकर भले लोग भी उसे नजरअन्दाज कर देते हैं।
(x) एक चूंसा रसीद करना-(मारना):-हँसी-खेल में ही रमेश ने मोहन को एक घूसा रसीद कर दिया।
(xi) तितर-बितर होना-(छिन्न-भिन्न करना):-अश्रु-गैस छोड़कर पुलिस ने छात्रों की भीड़ को तितर-बितर कर दिया।
(xii) मारा-मारा फिरना-(इधर-उधरभटकना):-अभिभावक के अभाव में रमेश मारा-मारा फिर रहा है।
(xiii) आहिस्ता-आहिस्ता घुसना (धीरे-धीरे घुसना):-चीन भारतीय सीमा में आहिस्ता-आहिस्ता पैर पसार रहा है। यानी सीमा में घुस रहा है।
(xiv) मार खाना-(पीट जाना):-क्रिकेट के खेल में प्रतिद्वंदी दल ने विजय दल से मार खायी।
(xv) ताज्जुब होना-(अचरज होना):-अचानक इन्सपेक्टर के आगमन से गुरुजी को ताज्जुब हो गया।

प्रश्न 2. कहानी से पाँच मिश्र वाक्य चुनें।
1. सेन साहब की नई मोटर कार बँगले के सामने बरसाती में खड़ी है-काली चमकती हुई, स्ट्रीमल इंड, जैसे-कोयल घोंसले में कि कब उड़ जाए।
2. मिस्टर और मिसेज सेन उन्हें क्या करना चाहिए, यह सिखाया हो या नहीं, क्या-क्या नहीं करना चाहिए, इसकी इन्हें ऐसी तालीम दी है कि बस।
3. सेन परिवार के मुलाकाती रश्क के साथ। अपने शरारती बच्चों से खीझकर कहते हैं-“एक तुम लोग हो, और मिसेज सेन की लड़कियाँ हैं।”
4. सो जहाँ तक सेन परिवार की लड़कियों का सवाल है, उनसे मोटर की चमक-दमक को कोई खास खतरा नहीं था।
5. खोखा नाउम्मीद बुढ़ापे की आँखों का तारा है यह नहीं कि मिसेज सेन अपना बुढ़ापा को कोई ताल्लुक किसी हालत में मानने को तैयार हों और सेन साहब तो सचमुच बूढ़े नहीं लगते।

प्रश्न 3. वाक्य-भेद स्पष्ट करें
(क) इसके पहले की पत्रकार महोदय कुछ जवाब देते, सेन साहब ने शुरू किया-मैं तो खोखा को इंजीनियर बनाने जा रहा हूँ।
(मिश्र वाक्य)

(ख) पत्रकार महोदय चुप मुस्कुराते रहे।
(सरल वाक्य)

(ग) ठीक इसी वक्त मोटर के पीछे खट-खट की आवाज सुनकर सेन साहब लपके, शोफर भी दौड़ा।
(मिश्र वाक्य)

(घ) ड्राइवर, जरा दूसरे चक्कों को भी देख लो और पंप लें आकर हवा भर दो।
(सरल वाक्य)

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