class 10 hindi book notes – नौबतखाने में इबादत
class 10 hindi book notes
class – 10
subject – hindi
lessson 11 – नौबतखाने में इबादत
नौबतखाने में इबादत
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-यतीन्द्र मिश्र
*लेखक परिचय:- यतीन्द्र मिश्र का जन्म 1977 ई. में अयोध्या, उत्तर प्रदेश में हुआ था। इन्होंने हिन्दी भाषा और साहित्य में लखनऊ वि० वि० से एम० ए० किया। साहित्य, संगीत, सिनेमा, नृत्य और चित्रकला में इनकी गहरी रुचि है। ये मूलतः कवि हैं। इन्होंने कविता के अलावा इसकी
विधाओं में भी सृजन-कर्म किया है।
*रचनाएँ काव्य संग्रह:- (1) यदा-कदा, (2) अयोध्या तथा अन्य कविताएँ, (3) ज्योंही पर आलाप’ आदि प्रकाशित कृतियाँ हैं। (4) गिरिजा-संगीत पर पुस्तक, (5) देवप्रिया (भारतीय नृत्य कला पर), (6) आदि।
*संपादन:-(1) थाती (पत्रिका), कला संबंधी (2) सहित (अर्द्धवार्षिक), (3) कवि द्विजदेव ग्रंथावली, (4) यारे जुलाहे आदि। संचालन-विमला देवी फाउन्डेशन (एक सांस्कृतिक न्यास-1999 ई.)
*पुरस्कार:-भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार, भारतीय भाषा परिषद युवा पुरस्कार, राजीव गाँधी राष्ट्रीय एकता पुरस्कार, रजा पुरस्कार हेमंत स्मृति कविता पुरस्कार, ऋतुराज पुरस्कार, आदि कितने पुरस्कारों से सम्मानित।
केन्द्रीय संगीत नाटक अकादमी और नयी दिल्ली और सराय, नई दिल्ली की फेलोशिप भी मिली है।
*सारांश:-अमीरुद्दीन यानी उस्ताद शहनाई के शहंशाह बिस्मिल्ला खाँ का जन्म सन् 1916 में उस्ताद गबर बख्श खाँ के यहाँ सोन नदी के किनारे बिहार के डुमराँव में हुआ। इनकी माता का नाम मिट्ठन था। ये छह वर्ष की उम्र में ही अपने मामा सादिक हुसैन और अलीबख्श के पास काशी को गए। दोनों मामा जाने-माने शहनाईवादक थे और काशी स्थित घाट के बालाजी के मंदिर में शहनाई बजाने के अलावा अनेक रियासतों में जाकर शहनाई बजाते थे।
14 वर्ष की उम्र में बिस्मिल्ला खाँ रियाज के लिए बालाजी मन्दिर जाने लगे। रास्ते में रसूलनबाई और बतूलन बाई का मकान पड़ता था। इन बहनों के गाए ठुमरी टप्पे और दादरा इन्हें अच्छे लगते थे। दरअसल, संगीत के प्रति रुचि इन बहनों के गीतों के कारण ही हुई।
जिस शहनाई को बिस्मिल्ला खाँ बजाते हैं उसका उल्लेख वैदिक साहित्य में नही मिलता। इसे संगीतशास्त्र में सुषिर वाद्यों में गिना जाता है। अरबी में इसे ‘शाहनेय’ अर्थात् फूंककर बजाए जानेवाले वाद्यों का ‘शाह’ कहते हैं। तानसेन की रची बंदिश में इसका जिक्र आता है। अवधी
लोकगीतों में इसका उल्लेख मिलता है। इसे मंगल का परिवेश प्रतिष्ठित करनेवाला वाद्य माना जाता है। दरअसल यह प्रभाती की मंगल ध्वनि का संपूरक है।
शहनाई के शहंशाह बिस्मिल्ला जिन्दगी भर सुर की नेमत माँगते रहे। वे यही सोचते रहे जाते थे और दालमंडी में पहलाम के करीब आठ किलोमीटर की दूरी तक पैदल रोते हुए, नौहा बजाते थे। मुहर्रम के गमजदा माहौल में वे कभी-कभी, खाली समय में, जवानी के दिनों की याद
करते थे-कुलसुम हलवाइन की कचौड़ी और गीताबाली और सुलोचना की फिल्में। ऐसा करते हुए उनकी आँखों में चमक आ जाती थी।
काशी में संगीत-आयोजन की परंपरा है। संकटमोचन में होनेवाले आयोजन में खाँ साहब जरूर रहते थे। काशी विश्वनाथ में उनकी अगाध श्रद्धा थी। काशी से बाहर रहते हुए वे विश्वनाथ एवं बालाजी मंदिर की ओर मुँह कर जरूर शहनाई बजाते थे। वे गंगा, काशी, विश्वनाथ, बालाजी
को छोड़ कही नहीं जाना चाहते थे।
बिस्मिल्ला खाँ शहनाई के पर्याय थे। इधर शहनाई फूंकी फिर सुर उतरते गए। उनकी शहनाई में सरगम भरा था। उन्हें ख्याति मिली लेकिन सादगी भरी जिन्दगी जीते रहे। उन्हें देश ने ‘भारतरत्न’ से सम्मानित किया। एक बार फटी लुंगी पहनने पर एक शिष्या ने टोका तो बोले-भारतरत्न शहनाई पर मिला था, लुगिया पर नहीं। मालिक से दुआ है, फटा सुर न बख्शे। लुंगिया का क्या है, आज फटी है तो कल सिल जाएगी।’
जिन्दगी की शाम में उन्हें मलाल रहा कि महाल क्षेत्र के मलाईवाले चले गए। देशी घी की कचौड़ी पहले जैसी नहीं बनती। संगीत साहित्य और अदब की पुरानी परंपराएँ खत्म होती जा रही हैं।
बिस्मिल्ला खाँ सुरों को साधते-साधते 90 वर्ष की उम्र में 2006 के 21 अगस्त को विदा हो गए। लेकिन इससे क्या। ‘भारतरत्न’ खाँ साहब संगीत और शहनाई के अजेय नायक बने रहेंगे।
गद्याश पर आधारित अर्थ ग्रहण-संबंधी प्रश्न
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1. अमीरूद्दीन का जन्म डुमराँव, बिहार के एक संगीतप्रेमी परिवार में हुआ था। 5-6 वर्ष डुमराँव में बिताकर वह नाना के घर, ननिहाल काशी में आ गया। शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के लिए उपयोगी हैं। शहनाई बजाने के लिए रीड का प्रयोग होता है। रीड अंदर से पोली होती है जिसके सहारे शहनाई को फूंका जाता है। रीड, नरकट (एक प्रकार की घास) से बनाई जाती है जो डुमराँव के आसपास की नदियों के कछारों में पाई जाती है। फिर अमीरूद्दीन जो हम सबके
प्रिय हैं, अपने उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ साहब हैं। इनके परदादा उस्ताद सलार हुसैन खाँ डुमराँव निवासी थे। बिस्मिल्ला खाँ उस्ताद पैगंबरबख्श खाँ और मिट्ठन के छोटे साहबजादे हैं।
(क) यह अवतरण किस पाठ से लिया गया है ?
(क) नाखून क्यों बढ़ते हैं
(ख) नौबतखाने में इबादत
(ग) नागरी लिाप
(घ) श्रम विभाजन और जाति प्रथा
(ख) इस गद्यांश के लेखक कौन हैं ?
(क) महात्मा गाँधी
(ख) विनोद कुमार शुक्ल
(ग) भीमराव अंबेदकर
(घ) यतीन्द्र मिश्र
(ग) रीड किससे बनता है? इसका प्रयोग कहाँ होता है?
(घ) शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के लिए उपयोगी क्यों हैं?
उत्तर-(क)-(ख) नौबतखाने में इबादत
(ख)-(घ) यतीन्द्र मिश्र
(ग) रीड, नरकट (एक प्रकार की घास) से बनता है। इसका प्रयोग शहनाई में होता है। इसी के सहारे शहनाई को फूंका जाता है।
(घ) शहनाई बजाने के लिए रीड की आवश्यकता होती है। रीड नरकट से बनता है जो डुमराँव के आसपास की नदियों के कछारों में पाया जाता है। अतः शहनाई और डुमराँव एक दूसरे के उपयोगी हैं।
2. वैदिक इतिहास में शहनाई का कोई उल्लेख नहीं मिलता। इसे संगीत शास्त्रांतर्गत ‘सुषिर-वाद्यों’ में गिना जाता है। अरब देश में फूंककर बजाए जानेवाले वाद्य जिसमें नारी (नरकट या रीड) होती है, को ‘नय’ बोलते हैं। शहनाई को ‘शाहनेय’ अर्थात् ‘सुषिर-वाद्यों में शाह’ की उपाधि दी गई है। सोलहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में तानसेन के द्वारा रची बंदिश, जो संगीत राग कल्पद्रुम से प्राप्त होती है, में शहनाई, मुरली, वंशी, शृंगी एवं मुरछंग आदि का वर्णन आया है।
(क) यह अवतरण किस पाठ से लिया गया है?
(क) मछली
(ख) आविन्यो
(ग) नौबतखाने में इबादत.
(घ) शिक्षा और संस्कृति
(ख) इस गद्यांश के लेखक कौन हैं ?
(क) यतीन्द्र मिश्र
(ख) मैक्समूलर
(ग) महात्मा गाँधी
(घ) अमरकांत
(ग) तानसेन द्वारा रचित बंदिशों में किन-किन वाद्यों का वर्णन है?
(घ) शहनाई को कैसी उपाधि दी गई है?
उत्तर-(क)-(ग) नौबतखाने में इबादत
(ख)-(क) यतीन्द्र मिश्र
(ग) तानसेन द्वारा रचित बंदिशों में शहनाई, मुरली, वंशी, शृंगी, मुरछंग आदि वाद्यों का वर्णन मिलता है।
(घ) शहनाई को ‘सुषिर-वाद्यों में शाह’ की उपाधि दी गई है।
3. शहनाई की इसी मंगलध्वनि के नायक बिस्मिल्ला खाँ साहब अस्सी बरस से सुर माँग रहे हैं। सच्चे सुर की नेमत। अस्सी बरस की पाँचों वक्त वाली नमाज इसी सुर को पाने की प्रार्थना में खर्च हो जाती है। लाखों सजदे, इसी एक सच्चे सुर की इबादत में खुदा के आगे झुकते हैं।
वे नमाज के बाद सजदे में गिड़गिड़ाते हैं-‘मेरे मालिक एक सुर बख्श दे। सुर में वह तासीर पैदा कर कि आँखों से सच्चे मोती की तरह अनगढ़ आँसू निकल आएँ। उनको यकीन है, कभी खुदा यूँ ही उन पर मेहरबान होगा और अपनी झोली से सुर का फल निकालकर उनकी ओर उछालेगा, फिर कहेगा, ले जा अमीरूद्दीन इसको खा ले और कर ले अपनी मुराद पूरी।
(क) प्रस्तुत गद्यांश किस पाठ से लिया गया है ?
(क) बहादुर
(ख) नौबतखाने में इबादत
(ग) विष के दाँत
(घ) परम्परा का मूल्यांकन
(ख) इस गद्यांश के लेखक कौन हैं?
(क) गुणाकर मूले
(ख) रामविलास शर्मा
(ग) नलिन निलोचन शर्मा
(घ) यतीन्द्र मिश्र
(ग) बिस्मिल्ला खाँ किस बात को लेकर आशावान है?
(घ) विस्मिल्ला खाँ का सिर किसलिए झुकता है?
उत्तर-(क)-(ख) नौबतखाने में इबादत
(ख)-(घ) यतीन्द्र मिश्र
(ग) ईश्वर के प्रति अपने समर्पण को लेकर बिस्मिल्ला खाँ आशावान है कि एक दिन समय आएगा जब उनकी कृपा से स्वर में वह तासीर पैदा होगी जिससे हमारा (उनका) जीवन
धन्य हो जायेगा। ईश्वर अपनी झोली से सुर का फल निकालकर उनकी तरफ उछालते हुए कहेगा ले इसे खाकर अपनी मुराद पूरी कर ले।
(घ) बिस्मिल्ला खाँ का सिर सुर की इबादत में झुकत्ता है।
4. काशी संस्कृति की पाठशाला है। शास्त्रों में आनंदकानन के नाम से प्रतिष्ठित। काशी में कलाधर हनुमान व नृत्य-विश्वनाथ है। काशी में बिस्मिल्ला खाँ हैं। काशी में हजारों सालों का इतिहास है जिसमें पंडित कंठे महाराज हैं, विद्याधरौ हैं, बड़े रामदासजी हैं, मौजुद्दीन खाँ हैं व इन
रसिकों से उपकृत होनेवाला अपार जन-समूह है। यह एक अलग काशी है जिसकी अलग तहजीब है, अपनी बोली और अपने विशिष्ट लोग हैं। इनके अपने उत्सव हैं, अपना गम। अपना सेहरा-बन्ना और अपना नौहा। आप यहाँ संगीत को भक्ति से, भक्ति को किसी भी धर्म के कलाकार से, कजरी को चैती से, विश्वनाथ को विशालाक्षी से, बिस्मिल्ला खाँ को गंगाद्वार से अलग करके नहीं देख सकते।
(क) यह अवतरण किस पाठ से लिया गया है ?
(क) विष के दाँत
(ख) जित-जित मैं निरखत हूँ
(ग) मछली
(घ) नौबतखाने में इबादत
(ख) इस गद्यांश के लेखक कौन हैं ?
(क) यतीन्द्र मिश्र
(ख) बिरजू महाराज
(ग) अशोक वाजपेयी
(घ) भीमराव अंबेदकर
(ग) काशी में किन-किन लोगों का इतिहास है?
(घ) लेखक ने काशी को एक अलग नगरी क्यों माना है?
उत्तर-(क)-(घ) नौबतखाने में इबादत
(ख)-(क) यतीन्द्र मिश्र
(ग) काशी में पंडित कंठे महाराज, विधाधरी, रामदास, मौजुद्दीन आदि जैसे महापुरुषों का इतिहास है।
(घ) काशी संस्कृति की पाठशाला है। शास्त्रों में यह आनंदकानन के नाम से प्रतिष्ठित है। इसकी अलग तहजीब है, अपनी बोली और अपने विशिष्ट लोग हैं। यहाँ संगीत, भक्ति, धर्म आदि को अलग रूप में नहीं देख सकते हैं।
5. काशी में संगीत आयोजन की एक प्राचीन एवं अद्भुत परंपरा है। यह आयोजन पिछले कई बरसों से संकटमोचन मंदिर में होता आया है। यह मंदिर शहर के दक्षिण में लंका पर स्थित है व हनुमान जयंती के अवसर पर यहाँ पाँच दिनों तक शास्त्रीय एवं उपशास्त्रीय गायनवादन की उत्कृष्ट सभा होती है। इसमें बिस्मिल्ला खाँ अवश्य रहते हैं। अपने मजहब के प्रति अत्यधिक समर्पित उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ की श्रद्धा काशी विश्वनाथजी के प्रति भी अपार है।
(क) प्रस्तुत गद्यांश किस पाठ से लिया गया है?
(क) शिक्षा और संस्कृति
(ख) नौबतखाने में इबादत
(ग) जित-जित मैं निरखत हूँ
(घ) श्रम विभाजन और जाति प्रथा
(ख) इस गद्यांश के लेखक कौन हैं ?
(क) भीमराव अंबेदकर
(ख) मैक्समूलर
(ग) अशोक वाजपेयी
(घ) यतीन्द्र मिश्र
(ग) हनुमान जयंती के अवसर पर आयोजित संगीत सभा का परिचय दीजिए।
(घ) बिस्मिल्ला खाँ की काशी विश्वनाथ के प्रति भावनाएँ कैसी थीं?
(ङ) काशी में संकटमोचन मंदिर कहाँ स्थित है और उसका क्या महत्त्व है?
उत्तर-(क)-(ख) नौबतखाने में इबादत
(ख)-(घ) यतीन्द्र मिश्र
(ग) हनुमान जयंती के अवसर पर काशी के संकटमोचन मंदिर में पाँच दिनों तक शास्त्रीय और उपशास्त्रीय संगीत की श्रेष्ठ सभा का आयोजन होता है। इस सभा में बिस्मिल्ला खाँ का शहनाईवादन अवश्य ही होता है।
(घ) बिस्मिल्ला खाँ अपने धर्म के प्रति पूर्णरूप से समर्पित हैं। वे पाँचों समय नमाज पढ़ते हैं। इसके साथ ही वे बालाजी मंदिर और काशी विश्वनाथ मंदिर में भी शहनाई बजाते हैं। उनकी काशी विश्वनाथजी के प्रति अपार श्रद्धा है।
(ङ) काशी का संकटमोचन मंदिर शहर के दक्षिण में लंका पर स्थित है। यहां हनुमान-जयंती अवसर पर पाँच दिनों का संगीत सम्मेलन होता है। इस अवसर पर बिस्मिल्ला खाँ
का शहनाई वादन होता है।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
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1. बिस्मिल्ला खाँ का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर-बिस्मिल्ला खाँ का जन्म 1916 ई. में डुमराँव में हुआ था।
2. बिस्मिल्ला खाँ को संगीत के प्रति रुचि कैसे हुई?
उत्तर-बिस्मिल्ला खाँ को संगीत के प्रति रुचि रसूलनबाई और बतूलनबाई के टप्पे, ठुमरी और दादरा को सुनकर हुई।
3. शहनाई की शिक्षा बिस्मिल्ला खाँ को कहाँ मिली?
उत्तर-शहनाई की शिक्षा बिस्मिल्ला खाँ को अपने ननिहाल काशी में अपने मामाद्वय सादिक अलीबख्श से मिली।
4. बिस्मिल्ला खाँ बचपन में किनकी फिल्में देखते थे या बिस्मिल्ला खाँ बचपन में किनकी फिल्मों के दीवाने थे?
उत्तर-बिस्मिल्ला खाँ बचपन में गीताबाली और सुलोचना की फिल्मों के दीवाने थे।
5. अपने मजहब के अलावा बिस्मिल्ला खाँ को किसमें अत्यधिक श्रद्धा थी?
उत्तर-अपने मजहब के अलावा बिस्मिल्ला खाँ को काशी विश्वनाथ और बालाजी में अगाध श्रद्धा थी।
6. बिस्मिल्ला खाँ किसको जन्नत मानते थे?
उत्तर-बिस्मिल्ला खाँ शहनाई और काशी को जन्नत मानते थे।
7. बिस्मिल्ला खाँ किसके पर्याय थे?
उत्तर-बिस्मिल्ला खाँ शहनाई के पर्याय थे और शहनाई उनका।
8. बिस्मिल्ला खाँ को जिन्दगी के आखिरी पड़ाव पर किसका अफसोस रहा?
उत्तर-बिस्मिल्ला खाँ को जिन्दगी के आखिरी पड़ाव पर संगतियों के लिए गायकों के मन में आदर न होने, चैता कजरी के गायब होने और मलाई तक, शुद्ध घी थी की कचौड़ी न मिलने का अफसोस रहा।
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(हिन्दी-X (गद्य खंड)
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पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उत्तर
पाठ के साथ
प्रश्न 1. डुमराँव की महत्ता किस कारण से है?
उत्तर- डुमराँव की महत्ता शहनाईवादक भारतरत्न विस्मिल्ला खाँ के कारण है। इसी कारण शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के पूरक है, से जाने जाते हैं।
प्रश्न 2. ‘सुषिर वाद्य’ किसे कहते हैं? ‘शहनाई’ शब्द की उत्पत्ति किस प्रकार हुई है?
उत्तर-शहनाई को संगीतशास्त्र के अंतर्गत सुषिर वाद्य के रूप में गिना जाता है। ‘शहनाई’ का कोई उल्लेख वैदिक साहित्य में नहीं मिलता। अरब देश में फूंककर बजाए जानेवाले वाद्य जिसमें नाड़ी (नरकट या रीड) होती है को नय कहते हैं। शहनाई को ‘शाहनेय’ सुषिर वाद्यों में शाह
की उपाधि दी गयी है। 16वीं सदी के उत्तरार्द्ध में तानसेन के द्वारा रची बंदिश जो संगीत राग कल्पद्रम से प्राप्त होती है ये शहनाई, मुरली, वंशी, शृंगी, मुरछंग आदि का वर्णन आया है।
प्रश्न 3. बिस्मिल्ला खाँ सजदे में किस चीज के लिए गिड़गिड़ाते थे। इससे उनके व्यक्तिव का कौन-सा पक्ष उद्घाटित होता है?
उत्तर-विस्मिल्ला खाँ सजदे में सच्चे सूर की नेमत के लिए गिड़गिडाते हैं। इससे उनके व्यक्तित्व का उदार पक्ष उद्घाटित होता है। अस्सी बरस की पाँचों वक्त वाली नमाज इसी सूर
को पाने के लिए प्रार्थना में खर्च हो जाती है। वे नमाज के बाद सजदे में गिड़गिड़ाते हैं-मेरे मालिक एक सूर बख्श है। सूर में वह तासीर पैदा कर कि आँखों से सच्चे मोती की तरह अनगढ़ आँसू निकल आएँ। उनको विश्वास हैं कि कभी खुदा उनपर मेहरबान होगा और अपनी झोली से सूर
का फल निकालकर उनकी ओर उछालेगा फिर कहेगा कि ले जा अमीरूद्दीन इसको खा ले और कर ले अपनी मुराद पूरी।
प्रश्न 4. मुहर्रम पर्व से विस्मिल्ला खाँ के जुड़ाव परिचय पाठ के आधार पर दें।
उत्तर-विस्मिल्ला खाँ और शहनाई के साथ मुहर्रम पर्व को भी संबंध जुड़ा हुआ है। मुहर्रम के महीने में शिया मुसलमान हजरत इमाम हुसैन एवं उनके कुछ वंशजों के प्रति शोक मनाते हैं। पूरे दस दिनों तक शोक मनाता है। वे बताते हैं कि उनके खानदान का कोई व्यक्ति मुहर्रम के दिन न तो शहनाई बजाता है और न किसी संगीत समारोह में सटीक होता है। आठवीं तारीख उनके लिए महत्त्वपूर्ण हैं इस दिन खाँ साहब खड़े होकर शहनाई बजाते हैं तथा दालमंडी में फातमान के दिन करीब आठ किलोमीटर पैदल चलकर रोते हुए नौहा बजाते रहते हैं। उस दिन कोई राग नहीं बजाता है। राग-रागनियों की अदायगी का निषेध भी पूरे दिन रहता है।
प्रश्न 5. ‘संगीतमय कचौड़ी’ का आप क्या अर्थ समझते हैं?
उत्तर-कुलसुम की देशी घी वाली दुकान जहाँ खाँ साहब जाकर खाते थे। वहाँ की संगीतमय कचौड़ी को यादकर विस्मिल्ला खाँ प्रसन्न हो जाते थे। विस्मिल्ला खाँ उसे संगीतमय कचौड़ी इसलिए कहते थे कि जब कुलसुम कलकलाते घी में कचौड़ी डालती थी उस समय छन्न से उठनेवाली आवाज होती थी। उस आवाज में विस्मिल्ला खाँ को सारे आरोह-अवरोह दिख जाते थे। राम की याद कर कहते हैं कि पता नहीं ऐसी कचौड़ी कितने लोगों को खाने के लिए मिली होंगी। इस प्रकार खाँ साहब रियाजी और स्वादी दोनों रहे हैं।
प्रश्न 6.निस्मिल्ला खाँ जब काशी से बाहर प्रदर्शन करते थे तो क्या करते थे? इससे हमें क्या सीख मिलती है?
उत्तर-काशी में संगीत आयोजन काबर होता रहता है। इस आर्योजन में विस्मिल्ला खाँ अवश्य सरीक होते हैं। अपने मजहब के प्रति अत्याधिक समर्पित उस्ताद विस्मिल्ला खाँ को श्रद्धा काशी विश्वनाथजी के प्रति भी अपार है। वे जब भी काशी से बाहर रहते हैं तब बाबा विश्वनाथ व बालाजी मंदिर की दिशा की ओर मुँह करके बैठते हैं और थोड़ी देर ही सही, मगर उसी और शहनाई का प्याला घुमा दिया जाता है। और भीतर की आस्था रीड के माध्यम से बजती है। खाँ
साहब की रीड 15-20 मिनट में गीली हो जाती है तब वे दूसरी रीड का इस्तेमाल करते हैं।
इससे हमें सीख मिलती है कि धर्म किसी भी पूजा या इबादत में बाधक नहीं। अपनी आस्था निर्मल होनी चाहिए। विचार पवित्र होना चाहिए। जाति-धर्म उपासना और साधना में बाधक नहीं बन सकता। सारे मानव की जाति एक है-वह इंसान के रूप में भगवान की संतान है।
प्रश्न 7. ‘बिस्मिल्ला खाँ का मतलब बिस्मिल्ला खाँ की शहनाई’ एक कलाकार के रूप में बिस्मिल्ला खाँ का परिचय पाठ के आधार पर दें।
उत्तर-विस्मिल्ला खाँ एक सच्चे साधक थे। उनकी साधना अटूट थी। वे एकाग्रभाव से रियाज किया करते थे। वे अपने पूरखों के प्रति सम्मान का भाव रखते थे। उन्होंने शहनाईवादन की पहली शिक्षा अपने घर में ही अभिभावकों से ली। वे एक निष्ठावान शहनाईवादक थे। बचपन से ही उन्होंने शहनाई बजाने की कला का रियाज घंटों किया था। उनका जन्म ही एक संगीत- प्रेमी घराना में हुआ था। उनके घर का संगीत खानदानी पेशा था। उनके अब्बा जान भी ज्योंही पर शहनाई बजाया करते थे। शहनाई और डुमराँव एक-दूसरे के पूरक डुमराँव से 6 वर्ष के बाद वे काशी में अपने नाना के घर चले आए जहाँ पर बालाजी मंदिर के राह में रसूलबाई और बतूलन बाई का निवास था। इन दोनों बहनों से भी खाँ साहब ने संगीत-प्रेम की शिक्षा ली। इन
दोनों बहनों के संगीत सुनकर खाँ साहब झूम उठते थे।
काशी के बाबा विश्वनाथ और बालाजी मंदिर के प्रति भी विस्मिल्ला खाँ की आस्था थी।
वे शहनाई का वादन वहाँ के आयोजनों में सदा किया करते थे। विस्मिल्ला खाँ अपने पर्व मुहर्रम के अवसर शोक मनाया करते थे और दस दिनों तक न तो गायन होता और न वादन। वे घंटों बाबा विश्वनाथ से प्रार्थना करते हुए गिड़ागिड़ाते थे कि एक अच्छा सूर मेरी झोली में डाल दो।
उनमें धर्म को लेकर कोई भेदभाव नहीं था। वे सच्चे कलाकारे थे। शहनाई ही उनकी संजीवनी शक्ति थी। खाँ साहब शहनाई के पर्याय थे। उनके रियाज, सूर, लय, ताल से प्रभावित होकर भी भारत सरकार ने भारतरत्न से नवाजा था।
“वे बराबर कहा करते थे कि गंगा मइया, तुमको काशी को छोड़कर, बाबा विश्वनाथ और बालाजी को छोड़कर कहाँ जाए। तुम्हारे आश्रय में ही हमारे पूरखों ने शहनाई बजाई है। हमारे नाना भी बालाजी के बड़े शहनाईवादक रह चुके हैं। हम क्या करें? मरते दम तक न शहनाई छूटेगी न काशी। जिस जमीन ने हमें तालीम दी, जहाँ से अदब पाई वो कहाँ और मिलेगी? काशी और ‘शहनाई से बढ़कर काई जनमत नहीं इस धरती पर हमारे लिए।’
इस प्रकार विस्मिल्ला खाँ का सारा जीवन शहनाई के लिए समर्पित था और शहनाई उनके लिए संजीवनी शक्ति।
प्रश्न 8. आशय स्पष्ट करें-
(क) फटा सुर न बख्शे। लुंगिया का क्या है? आज फटी है, तो कल सिल जाएगी।
उत्तर-जब एक शिष्या ने डरते-डरते विस्मिल्ला खाँ से पूछा कि बाबा, आप फटी तहमद क्यों पहनते हैं? आपको तो भारतरत्न मिल चुका है। अब आप ऐसा न करें। यह अच्छा नहीं लगता है जब भी कोई आपसे मिलने आता है तो आप इसी दशा में सहज, सरल भाव से गि गते हैं।
इस प्रश्न को सुनकर सहज भाव से खाँ साहब ने शिष्या को कहा-अरे पगली भारतरत्न तो शहनाईवादन पर मिला है न। इस लुंगी पर नहीं न मिला है। अगर तुमलोगों की तरह बनावट- शृंगार में मैं लग जाता तो मेरी उमर ही बीत जाती और मैं यहाँ तक नहीं पहुँचता। तब मैं रियाज सत्य उनका सबसे बड़ा हथियार था। 1893 से 1914 ई. तक दक्षिण अफ्रीका में रहकर उन्होंने में बता देता हूँ कि मालिक यही दुआ दे यानी भगवान यही कृपा रखें कि फटा हुआ सूर नहीं दें। सकर क्या करूंगा। अतः, ईश्वर रहम करें और सूर की कोमलता बचायें रखें।
(ख) काशी संस्कृति की पाठशाला है।
उत्तर-काशी संस्कृति की पाठशाला है। शास्त्रों में इसकी महत्ता का वर्णन है। इसे आनंद कानन से जाना जाता है। काशी में कलाधर हनुमान व नृत्य विश्वनाथ हैं। काशी में विस्मिल्ला खाँ हैं। काशी में हजारों साल का इतिहास है। यहाँ कई महाराज हैं। विद्याधारी हैं। बड़े रामदास जो हैं। मौजुद्दीन खाँ हैं। इन रसिकों से उपकृत होनेवाला आपार-जन समूह है। यह एक अलग काशी है जिसकी अलग तहजीब है, अपनी बोली और अपने विशिष्ट लोग हैं। इनके अपने उत्सव हा अपना गम है। अपना सेहरा-बन्ना और अपना नौहा है। यहाँ संगीत को भक्ति से, भक्ति को
किसी धर्म भी धर्म के कलाकार से, कजरी को चैती से विश्वनाथ को विशालक्षी से, बिस्मिल्ला खाँ को गंगा द्वार से अलग करके नहीं देखा जा सकता।
इस प्रकार काशी सांस्कृतिक महानगरी है। इसकी अपनी महत्ता है।
प्रश्न 9. बिस्मिल्ला खाँ के बचपन का वर्णन पाठ के आधार पर करें।
उत्तर-विस्मिल्ला खाँ का बचपन डुमराँव में बीता था। उनका नाम अमीरूद्दीन था। वे छ: साल के थे। वे राग के बार में अनभिज्ञ थे। वे भीमपलासी और मुलतानी का अर्थ भी नहीं समझ पाते हैं। इनके दोनों मामा सादिक हुसैन और अली बख्श देश के जाने-माने शहनाईवादक हैं। ये देश के राजदरबार में शहनाई बजाते रहते हैं। विस्मिल्ला खाँ का जन्म बिहार के एक संगीत प्रेमी-परिवार में हुआ था। 5-6 वर्ष तक वे डुमराँव में रहे। उसके बाद नाना के घर काशी चले गए।
14 वर्ष की उम्र में बिस्मिल्ला खाँ पुराना बालाजी के मंदिर में, नौबतखाने में रियाज के लिए बराबर ज़ाते रहते हैं। उसी रास्ते में रसूलनवाई और बतूलनाबाई दो बहनें रहती हैं जिनके संगीत से खाँ साहब बराबर प्रभावित होते रहे और संगीत की प्रेरणा पाते रहे। बिस्मिल्ला खाँ को प्रारंभिक दिनों में इन्हीं बहनों से संगीत की प्रेरणा पाते रहे। बिस्मिल्ला खाँ को प्रारंभिक दिनों में इन्हीं बहनों से संगीत की प्रेरणा मिली। इनके परदादा डुमराँव के निवासी थे। उस्ताद सालार हुसैन इनके परदादा थे। ये शहनाई बजाने में रीड का प्रयोग करते थे। डुमराँव के नदी कछारों में यह खूब मिलता है। बिस्मिल्ला खां सबके प्रिय हैं।