10TH SST

bihar board 10 class geography syllabus – आपदा और अस्तित्व

आपदा और सह – अस्तित्व

bihar board 10 class geography syllabus

class – 10

subject – geography

lesson 6 – आपदा और सह – अस्तित्व

आपदा और सह – अस्तित्व

महत्वपूर्ण तथ्य —बाढ़ , सुखाडु , चक्रवात , भूकम्प , ज्वालामुखी विस्फोट , सुनामी , भूस्खलन , हिमस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाएँ स्वाभाविक है तथा हम इसे रोक नहीं सकते । हम आपदा पूर्व से ही बचाव की तैयारी करनी चाहिए ताकि कम से कम क्षति हो और अधिक से अधिक लोगों को जान माल की सुरक्षा मिल सके ।
भूकम्प एक बहुत बड़ी एवं विनाशकारी आपदा है । इसके आगमन का पूर्वानुमान नहीं किया जा सकता । अत : हमें एक ऐसा प्रबंधन करना चाहिए जिससे कम से कम क्षति हो । उदाहरण के लिए अमेरिका तथा जामान में हमेशा भूकम्प आते रहते हैं लेकिन यहाँ भूकम्म को अल्पकालिक आपदा के रूप में लिखा जाता है क्योंकि यहाँ के मकान भूकम्परोधी होते हैं तथा यहाँ लोगों को पता होता है कि सुरक्षित कैसे रहते हैं ।
भू – स्खलन के भी पाँच रूप होते
( i ) बारिश के पानी के साथ मिट्टी और कचड़े का नीचे आना । ( ii ) कंकड़ – पत्थरों का खिसकना | ( iii ) कंकड़ – पत्थर का गिरना । ( iv ) चट्टानों का खिसकना ! ( v ) चट्टानों का गिरना । इन सभी कारणों से मार्ग में पड़ने वाली चीजों की बर्बादी होती है तथा लोगों , पशुओं एवं पेड़ – पौधों को हानि पहुँचती है । अत : हमें कुछ खास बातों का ख्याल रखना चाहिए जिससे इसकी बारम्बारता को कम किया जा सके ।
26 दिसम्बर , 2004 ई . की घटना के बाद हम भलीभांति जानते हैं कि सुनामी कितनी विनाशकारी आपदा है । इसने कुछ ही क्षणों में दक्षिण पूर्व एशिया के देशों को तबाह कर दिया था ।
सुनामी द्वारा जान – माल को क्षति होती है , तटीय क्षेत्र के खेत बंजर हो जाते हैं । स्वास्थ्य संबंधी कई समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं , बंदरगाहों एवं तटीय नगरों को भी भारी क्षति पहुँचते हैं ।
इसी प्रकार बाढ़ भी एक विनाशकारी आपदा है लेकिन इसकी तबाही से भी बचा जा सकता है । अधिकतर बाढ़ सम्भावित क्षेत्रों का तथा बाढ़ के मौसम का पता है । आपदा की सूचना भी समय पूर्व मिल जाती है ।
इन क्षेत्रों में किसी भी बड़े विकास योजना की अनुमति देने के पूर्व बाढ़ से बचाव कार्य निर्धारित किया जाना चाहिए , शहरी क्षेत्रों में तालाबों , झीलों अथवा निचले क्षेत्रों में जलधारक क्षेत्रों का निर्माण किया जाता है और जलजमाव वाले क्षेत्रों में भवनों का निर्माण कंकरीट निर्मित खंभों पर किया जाना चाहिए । आवास के लिए ऊँचे स्थान का चुनाव करना चाहिए और भवनों का निर्माण कंकरीट निर्मित खंभों पर करना चाहिए |
1954 ई . में भारत सरकार ने बाढ़ नियंत्रण के लिए तीन आयाम निर्धारित किए गए हैं त्वरित , अल्पकालिक तथा दीर्घकालिक । इसमें कार्यान्वयन में आसानी होती है ।
सुखाड़ अचानक नहीं होता तथा संकेत देकर आता है । सुखाड़ तीन प्रकार के होते हैं सामान्य कृषि सुखाड तथा मौसमी सुखाड़ ।
इनमें सबसे खतरनाक कृषि सुखाड़ होता है । इस प्रकार की आपदा को रोकने के लिए हम सकते हैं जैसे – जल संसाधन का वैज्ञानिक विकास और प्रबंधन द्वारा जल की समस्या का समाधान किया जा सकता है क्योंकि सुखाड़ के समय जल के अभाव से प्राणियों की जान तक बचाना मुश्किल हो जाता है ।
प्राकृतिक आपदाओं को घटित होने से हम रोक नहीं सकते लेकिन हम पूर्व सतर्क रहकर एवं सह – अस्तित्व से संबंधित कार्य को करते हुए इसकी तबाही को कम कर सकते हैं । इसके लिए प्राकृतिक आपदाओं के बारे में जानकारी और इससे होने वाली विभीषिकाओं के  प्रति जन साधारण को जागृत करना , शिक्षित करना एवं आपदा शिक्षा को मुख्य धारा से जोड़ना आवश्यक है । सह अस्तित्व की सफलता आपसी सहयोग और गैर सरकारी संगठन , अर्द्ध सरकारी संगठन जैसे राष्ट्रीय सेवा योजना , होम गार्ड , नेहरू युवा केन्द्र , राष्ट्रीय कैडेट कोर एवं केन्द्र और राज्य सरकार के सहयोग पर निर्भर करता है ।

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न :

1. निम्नलिखित में कौन प्राकृतिक आपदा है ?
( क ) आग लगना ( ग ) भूकम्प । ( ख ) बम विस्फोट
( घ ) रासायनिक दुर्घटनाएँ
उत्तर- ( ग )
2.भूकम्प सम्भावित क्षेत्रों में भवनों की आकृति कैसी होनी चाहिए ?
( क ) अण्डाकार ( ख ) त्रिभुजाकार ( ग ) चौकोर ( घ ) आयताकार
उत्तर ( घ )
3.भूस्खलन वाले क्षेत्र में ढलान पर मकानों का निर्माण क्या है ?
( क ) उचित ( ख ) अनुचित ( ग ) लाभकारी ( घ ) उपयोगी
उत्तर- ( ख )
4. सुनामी प्रभावित क्षेत्र में मकानों का निर्माण कहाँ करना चाहिए ?
( क ) समुद्र के निकट ( ख ) समुद्र तट से दूर ( ग ) समुद्र तट से दूर ऊंचाई पर ( घ ) इनमें से कोई नहीं उत्तर- ( ग )
5. बाढ़ से सबसे अधिक हानि होती है |
( क ) फसल को ( ख ) पशुओं को ( ग ) भवनों को ( घ ) उपर्युक्त सभी को
उत्तर- ( घ )
6. कृषि सुखाड़ होता है –
( क ) जल के अभाव में ( ख ) मिट्टी की नमी के अभाव में ( ग ) मिट्टी के क्षय के कारण ( घ ) मिट्टी को लवणता के कारण
उत्तर ( क )

II .लघु उत्तरीय प्रश्न :

1. भूकम्प के प्रभावों को कम करने वाले चार उपायों को लिखिए ।
उत्तर – भूकम्प के प्रभाव को कम करने वाले चार उपाय ( i ) भवनों को आयताकार होना चाहिए और नक्शा साधारण होना चाहिए । ( ii ) लम्बी दीवारों को सहारा देने के लिए ईंट – पत्थर या कंक्रीट के कालम होने चाहिए । ( iii ) नींव को मजबूत एवं भूकम्प अवरोधी होनी चाहिए । ( iv ) दरवाजे तथा खिड़की को स्थिति भूकम्प अवरोधी होनी चाहिए ।

2. सुनामी सम्भावित क्षेत्रों में गृह निर्माण पर अपना विचार प्रकट कीजिए ।
उत्तर – सुनामी प्रभावित क्षेत्रों में मकान बचाने से पहले निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए ( i ) जहाँ सुनामी की लहरें प्रायः आती है वहाँ लोगों को तटीय भागों से दूर बसना चाहिए । ( ii ) सुनामी संभावित क्षेत्रों में ऐसे मकान का निर्माण करना चाहिए जो भूकम्प एवं सुनामी के प्रभाव को न्यून कर सके । ( iii ) सुनामी प्रभावित क्षेत्रों में मकान ऊँचे स्थानों पर और तट से करीब 100 मीटर की दूरी पर बनाना चाहिए ।
3. सुखाड़ में मिट्टी की नमी को बनाए रखने के लिए आप क्या करेंगे ?
उत्तर – सुखाड़ में मिट्टी की नमी को बनाए रखने के लिए हम जल विभाजक के विकास की योजना को अपना सकते हैं । जल विभाजक ऐसे क्षेत्र होते हैं जहाँ मानी एक सामान्य बिन्दु की ओर प्रभावित होता है । इस नीति को अपनाने से मृदा , पेड़ – पौधों , पानी तथा अन्य संसाधनों का प्रभावी प्रबंधन में मदद मिलती है । मिट्टी में उपलब्ध नमी के संरक्षण के लिए तथा तेज धूप से बचाने के लिए भूमि पर घास का आवरण रहने देना चाहिए ऐसी फसलों को उपजाना चाहिए जिन्हें कम जल की आवश्यकता होती है । सिंचाई को विकसित कर भी सुखा से बचा जा सकता है । सुखाड़ के प्रभाव को कम करने के लिए वैकल्पिक अर्थव्यवस्था के रूप में दुग्ध उद्योग को विकसित करना चाहिए । जिन क्षेत्रों में हमेशा सुखा पड़ता है वहाँ शुष्क कृषि पद्धति अपनानी चाहिए जिसकी विधियाँ निम्नलिखित हैं
( i ) खेतों की गहरी जुताई ताकि धरातल के नीचे की नमीयुक्त मिट्टी ऊपर आ जाए ।
(ii) ऐसे फसलों की बोआई जो सुख को सहने की क्षमता रखते हैं ।
( iii ) सामान्य सिंचाई विधि के स्थान पर ड्रिप ‘ तथा छिड़काव विधि से सिंचाई करना ।
( iv ) ऐसे बीजों का प्रयोग जो कम समय में उत्पादन देते हैं ।
( v ) जब वर्षा होती है तब उसके जल का अधिकतम उपयोग करना ।
( vi ) छोटे – छोटे बांध तथा जलाशय का निर्माण तथा ऐसे नहरों का निर्माण जिसके तल में कंक्रीट बिछा होl
( vii ) ढाल के समकोण पर बाँध बनाना तथा खेती को सीढ़ीनुमा बनाना जिससे जल का अधिकतम उपयोग हो सके ।

III . दीर्घ उत्तरीय प्रश्न :

1. भूस्खलन अथवा बाद जैसी प्राकृतिक विभषिकाओं का सामना आप किस प्रकार कर सकते हैं ? विस्तार से लिखिए ।
उत्तर – भूस्खलन भूस्खलन के भी पाँच रूप होते हैं ( i ) बारिश के पानी के साथ मिट्टी और कचड़े का नीचे आना ।
( ii ) कंकड़ – पत्थरों का नीचे खिसकना ।
( iii ) कंकड़ – पत्थर का गिरना ।
( iv ) चट्टानों का खिसकना ।
( v ) चट्टानों का गिरना ।
इस सुभी कारणों से मार्ग में पड़ने वाली सभी चीजें बर्बाद हो जाती हैं और लोगों , पशुओं तथा पेड़ – पौधों को हानि पहुँचती है । अतः आवागमन एवं परिवहन प्रभावित होता है ।
इससे बचने तथा इसकी बारंबारता में कमी लाने के लिए निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए —
( i ) मिट्टी की प्रकृति के अनुरूप नींव बनानी चाहिए । ( ii ) ढलवा स्थानों पर आवासों का निर्माण न करना । ( ii ) सामान्य एवं वैकल्पिक संचार प्रणालियों की समुचित व्यवस्था होना ।
( iv ) वनस्पित विहिन ऊपरी ढालों पर उपयुक्त वृक्ष प्रजातियों का सघन रोपण कार्य करना ।
( v ) सड़कों , नहरों निर्माण एवं सिंचाई के क्रम में इस बात पुरा ध्यान रखना कि प्राकृतिक जल की निकासी अवरुद्ध न हो ।
( vi ) भूस्खलन को रोकने के लिए दीवारों का निर्माण किया जाना चाहिए ।
( vii ) बारिश के पानी और झरनों के प्रवेश सहित भूस्खलनों के संचलन पर काबू पाने के लिए समतल जल निकासी नियंत्रण केन्द्र बनाना ।
( viii ) भूमि के नीचे बिछाए जाने वाले पाईप लाईन , केबल आदि लचीले होने चाहिए ताकि भूस्खलन से उत्पन्न दवाव का सामना कर सके ।
( ix ) कम – से – कम एक इंच की गहराई तक घास – पात , लकड़ी की छाजन या पेड़ों की छाल का प्रयोग वैसे क्षेत्रों में करना चाहिए जहाँ ढाल की प्रवणता मंद या सामान्य हो ।
इसके अतिरिक्त खड़ी ढलानों के तल पर बने मकानों के मालिक कुछ स्थितियों में ऐसे अवरोधक या जलग्रहण क्षेत्र का निर्माण कर सकते हैं जो छोटे – छोटे भूस्खलन को रोक सकते हैं । निर्माण का डिजाइन ऐसा होना चाहिए जो भूस्खलन होने की स्थिति में बहकर आने वाली सामग्री की मात्रा और उसके प्रभाव की गति के आगे टिक सके । डिजाईन ऐसा होना चाहिए जिससे वहाँ पर निक्षेपित सामग्री को हटाया जा सके । इन अवरोधकों में इमारत की ढलान वाली साईड में मजबूत दीवार का निर्माण किया जाना चाहिए ।
बाढ़ –बाढ़ एक विनाशकारी प्राकृतिक आपदा है लेकिन इससे होने वाली तबाही से भी बचा जा सकता है । अधिकांशत : बाढ़ सम्भावित क्षेत्रों तथा बाढ़ के मौसम का पता होता है । इन क्षेत्रों में किसी भी बड़े विकास योजना की अनुमति देने के पूर्व बाढ़ से बचाव कार्य निर्धारित किया जाना चाहिए । शहरी क्षेत्रों में तालाबों , झीलों अथवा निचले क्षेत्रों में जलधारक क्षेत्रों का निर्माण किया जाता है और जल – जमाव वाले क्षेत्रों में भवन – निर्माण का कार्य नहीं होना चाहिए । आवास के लिए ऊँचे सुरक्षित स्थानों का चुनाव करना चाहिए और भवनों का निर्माण कंक्रीट निर्मित खंभों पर किया जाना चाहिए!
मकान के चारों ओर नींव के पास रेत से भरी बोरियों को रखना चाहिए । बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में वनों के विकास करने से बाढ़ को प्रवणता तथा मृदा क्षय को भी नियंत्रित किया जा सकता है । नदियों के दोनों तटों पर तटं बांध का निर्माण करना चाहिए । इन क्षेत्रों में नली – नालों का विस्तार करना चाहिए जिससे पानी नहर से जल्द निकल जाए । पर्वतीय भागों में नदियों के ऊपर बांध और पृष्ठ भाग जलाशय का निर्माण , जल को नियंत्रित ढंग से छोड़ने एवं तली के जमाव को साफ करके भी बाढ़ की समस्याओं को कम किया जा सकता है ।
बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में नहरों का जाल बिछाकर सिंचाई का काम भी लिया जा सकता है ।बाढ़ से बचाव के लिए रिंग बांध भी सहायक होता है । ऐसे फसलों या प्रजातियों के पौधों का विकास करना चाहिए जो जलमग्न क्षेत्रों में भी पैदा किए जा सकें । बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में खाद्यान्न बैंक का भी विकास होना चाहिए ।
1954 ई ० में भारत सरकार ने बाढ़ नियंत्रण के लिए तीन आयात निर्धारित किए गए हैं – त्वरित , अल्प कालिक और दीर्घकालिक कार्रवाई । इससे समस्या के समाधान हेतु प्राथमिकता निर्धारित कर कार्यान्वयन में आसानी होती है ।

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