bseb 10 class economics notes – मुद्रा , बचत एवं साख
मुद्रा , बचत एवं साख
bseb 10 class economics notes
class – 10
subject – economics
lesson 3 – मुद्रा , बचत एवं साख
मुद्रा , बचत एवं साख
वर्तमान युग में उत्पादन , उपभोग , विनिमय , वितरण इत्यादि से संबंधित क्रियाएँ मुद्रा के द्वारा ही संचालित होती हैं । आर्थिक तथा व्यवसायिक क्षेत्र में मुद्रा का स्थान बहुत ही महत्वपूर्ण है । प्रारम्भिक अवस्था में मनुष्य की आवश्यकताएँ सीमित थीं लेकिन आवश्यकताओं की वृद्धि के साथ – साथ लोग उनकी पूर्ति आपस में वस्तुओं के आदान – प्रदान से करने लगे लेकिन इसमें कठिनाई आने लगी । अत : मुद्रा का आविष्कार हुआ ।
मुख्यतः विनिमय के दो स्वरूप हैं
(i) वस्तु विनिमय प्रणाली – किसी एक वस्तु का किसी दूसरी वस्तु के साथ बिना मुद्रा के प्रत्यक्ष रूप से लेन – देन वस्तु विनिमय प्रणाली कहलाती है ।
वस्तु विनिमय प्रणाली की कठिनाईयाँ
1. वस्तु विनिमय प्रणाली की एक कठिनाई है एक की जरूरत का दूसरे से मेल खाना । लेकिन यह हमेशा संभव नहीं है ।
2. मूल्य के सामान्य मापक का अभाव — कोई ऐसा मापक नहीं था जिसकी सहायता से सभी प्रकार की वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्य को ठीक प्रकार से मापा जाए ।
3. मूल्य संचय का अभाव – व्यवहार में कुछ वस्तुएँ ऐसी हैं जिनका संचय नहीं हो सकता , जैसे — मछली , फल , सब्जी आदि ।
4. सह – विभाजन का अभाव – कुछ वस्तुएँ ऐसी होती हैं जिनका विभाजन नहीं हो सकता जैसे यदि गाय के बदले तीन – चार वस्तुएँ लेनी हों तो गाय के टुकड़े नहीं हो सकते ।
5. भविष्य के भुगतान की कठिनाई — इस प्रणाली में उधार लेन – देन में कठिनाई होती थी । अधिकांशतः उधार देने वाला नुकसान में तथा लेने वाला फायदे में रहता था ।
6. मूल्य हस्तांतरण की समस्या – इस प्रणाली में किसी स्थायी सम्पत्ति के हस्तांतरण में समस्या होती थी ।
( ii ) मौद्रिक विनिमय प्रणाली ( Monetary system ) कठिनाइयों को दूर करने के लिए मुद्रा का आविष्कार हुआ । इसके आविष्कार से मनुष्य के जीवन में सुविधापूर्वक आदान – प्रदान होने लगा । इस प्रणाली में पहले कोई व्यक्ति अपनी सेवा या वस्तु बेचकर मुद्रा प्राप्त करता है और फिर उस मुद्रा से अपनी जरूरतों की वस्तुएँ प्राप्त करता है ।
मुद्रा के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं
1. विनिमय का माध्यम – मुद्रा से विनिमय का कार्य आसान हो जाता है तथा विधि ग्राह्य ‘ होने के कारण इसे स्वीकार करने में भी कठिनाई नहीं होती l
2. मूल्य का मापक – मुद्रा के द्वारा किसी वस्तु के मूल्य का मूल्यांकन आसान हो जाता है । अत : वस्तुओं के विनिमय में आसानी होती है ।
3. विलबित भुगतान का मान – साख अथवा उधार आधुनिक व्यवसाय की रीढ़ की हड्डी है और मुद्रा के आविष्कार ने उधार लेन – देन को काफी सरल बना दिया । मुद्रा को सचित करके रखना संभव है ।
4. मूल्य का संचय – वस्तु विनिमय प्रणाली में वस्तुओं का संचय संभव नहीं था लेकिन मुद्रा को संचित करके रखना संभव है|
5. क्रय शक्ति का हस्तांतरण – मुद्रा में सामान्य स्वीकृति का गुण होता है । अत : कोई भी व्यक्ति किसी एक स्थान पर अपनी संपत्ति को बेचकर किसी अन्य स्थान पर नयी संपत्ति खरीद सकता है|
6. साख का आधार – वर्तमान में मुद्रा के कारण ही साख पत्रों का व्यवहार बड़े पैमाने पर होता है । वर्तमान समय में पत्र – मुद्रा एवं प्लास्टिक मुद्रा जिसे हम एटीएम सह डेबिट कार्ड तथा क्रेडिट कार्ड भी कहते हैं । कोर बैंकिंग के कारण कुछ ही क्षणों में देश या विदेश के एक से दूसरे भाग में मुद्रा का हस्तांतरण बिना किसी कठिनाई के हो सकता है ।
मुद्रा के निकास के विभिन्न चरण हैं –
( i ) वस्तु विनिमय इसमें वस्तुओं की अदला – बदली की जाती है ।
( ii ) वस्तु मुद्रा इसमें किसी एक वस्तु को मुद्रा के कार्य सम्पन्न करने के लिए चुन लिया जाता था
( iii ) धात्विक मुद्रा – इसमें मुद्रा के रूप में धातुओं का प्रयोग किया जाता है ।
( iv ) सिक्के इसमें सोने चाँदी से बने सिक्कों का प्रयोग किया जाता है जिस पर देश के सरकार की मुहर लगी होती है ।
( v ) पत्र मुद्रा – सिक्का – मुद्रा की परेशानियों को दूर करने के लिए पत्र मुद्रा का विकास किया गया । आज विश्व के अधिकांश देशों में पत्र मुद्रा ही प्रचलित है । ( vi ) साख मुद्रा आर्थिक विकास के साथ – साथ चेक , हुण्डी जैसे विभिन्न प्रकार के साख मुद्रा को भी चलन होने लगा है ।
( vii ) प्लास्टिक मुद्रा आज प्लास्टिक मुद्रा के रूप में एटीएम सह डेबिट कार्ड एवं क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल होता है । आधुनिक अर्थव्यवस्था में मुद्रा का बड़ा महत्व है । प्रो मार्शल के अनुसार , मुद्रा वह पुरी है जिसके चारों तरफ संपूर्ण आर्थिक विज्ञानं चक्कर काटता है । मुद्रा से हमें अनेक प्रकार के लाभ हैं –
( i ) मुद्रा से उपभोक्ता को लाभ – प्रत्येक उपभोक्ता मुद्रा से अपनी इच्छानुसार वस्तुएँ खरीद सकता है । ( ii ) मुद्रा से उत्पादक को लाभ – मुद्रा की सहायता से उत्पादक उत्पादों के साधनों को खरीदने तथा संचित करने में आसानी होती है ।
( iii ) मुद्रा एवं साख बैंक लोगों को बचतों को इकट्ठा करते हैं तथा उद्योगों को उधार देते हैं । इस प्रकार साख का आधार बनता है ।
( iv ) वस्तु विनिमय प्रणाली की कठिनाइयों को मुद्रा के आविष्कार ने दूर किया ।
( V ) मुद्रा के रूप में पूंजी को किसी भी प्रयोग / उपभोग में लगाया जा सकता है । अतः मुद्रा पूंजी तो तरलता प्रदान करती है ।
( vi ) मुद्रा के विकास में पूँजी को एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरण करना आसान है । मुद्रा ने पूँजी को गतिशीलता प्रदान की ।
( vii ) मुद्रा को बैंक में सुरक्षित रखा जा सकता है तथा इस पर ब्याज भी प्राप्त किया जा सकता है । अतः इससे पूंजी का निर्माण होता है ।
( viii ) मुद्रा की बजट से बड़े – बड़े उद्योगों की स्थापना तथा बड़े पैमाने पर उत्पादन संभव हो सका हैl
( ix ) मुद्रा किसी देश की आर्थिक प्रगति का सूचक है । समाज की कुल आय से जिस भाग को टिकाऊ वस्तुओं पर खर्च किया जाता है उसे बचत कहते हैं । यह दो प्रकार की होती है – नगद तथा वस्तु बचत । अर्थशास्त्र में साख का अर्थ होता है ऋण लौटाने की क्षमता में विश्वास । इसी विश्वास के आधार पर एक व्यक्ति या संस्था दूसरे व्यक्ति या संस्था को उधार देते हैं । साख में दो पक्ष होते हैं ऋणी जो उधार लेता है तथा ऋणदाता जो उधार देता है । साख के मुख्य आधार हैं|
( i ) साख का मुख्य आधार है एक – दूसरे पर विश्वास|( ii) ऋणी का चरित्रवान तथा ईमानदार होना ।
( iii ) ऋणी को ऋण चुकाने की क्षमता का होना । ( iv ) ऋणदाता पूंजी या संपत्ति की जमानत पर ऋण देता है ।
( v ) ऋण को अवधि भी महत्वपूर्ण होती है क्योंकि दीर्घकालीन ऋण में ऋणी की स्थिति में परिवर्तन हो सकता है । साख पत्र साख पत्र वैसे साधन होते हैं जिसका उपयोग साख मुद्रा के रूप में किया जाता है लेकिन इन्हें स्वीकार करने के लिए किसी को बाध्य नहीं किया जा सकता । ये कई प्रकार के होते हैं –
( i ) चेक – चेक लिखित आदेश होता है जो बैंक में रुपया जमा करने वाला बैंक को देता है कि उसमें लिखित रकम उसमें लिखे व्यक्ति को दी जाए ।
( ii ) बैंक ड्राफ्ट – इसमें एक बैंक अपनी किसी शाखा या अन्य बैंक को आदेश देता है कि उल्लिखित रकम उसमें लिखी व्यक्ति को दी जाए ।
( iii ) यात्री चेक यह किसी बैंक द्वारा जारी किया जाता है तथा इसे प्रस्तुत कर यात्री उस बैंक की किसी भी शाखा से रुपये प्राप्त कर सकता है ।
( iv ) प्रतिज्ञा पत्र —- इस पत्र में ऋणी की मांग पर या एक निश्चित अवधि पर उसमें ऑकत रकम व्याज सहित देने का वादा रहता है । आधुनिक समय में साख पत्रों का महत्व बहुत बढ़ गया है ।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
रिक्त स्थानों की पूर्ति करें ।
( i ) आधुनिक युग की प्रगति का श्रेय ….. को ही है । उत्तर- मुद्रा
( ii ) मुद्रा हमारी अर्थव्यवस्था की ….है ।
उत्तर – जीवन – शक्ति
( iii ) मुद्रा के विकास का इतिहास मानव – सभ्यता के विकास का……… है|
उत्तर – इतिहास
( iv ) एक वस्तु के बदले में दूसरी वस्तु के आदान – प्रदान को …….. प्रणाली कहा जाता है|
उत्तर – वस्तु – विनिमय
( v ) मुद्रा का आविष्कार मनुष्य की सबसे बड़ी …… है |
उत्तर – उपलब्धि
( vi ) मुद्रा , विनिमय का ………. है ।
उत्तर – माध्यम
( vii ) प्लास्टिक मुद्रा के चलते विनिमय का कार्य …..हो गया है ।
उत्तर – सरल
( vi ) मुद्रा एक अच्छा ……….. है । उत्तर – सेवक ( ix ) आय तथा उपभोग का अंतर …….कहलाता है । उत्तर – बचत
( x ) साख का मुख्य आधार ……..है|
उत्तर – विश्वास
लघु उत्तरीय प्रश्न
1. वस्तु – विनिमय क्या है ?
उत्तर – वैसी प्रणाली जिसमें एक वस्तु के बदले में दूसरी वस्तु का आदान – प्रदान होता है ” वस्तु विनिमय प्रणाली ” कहलाती है । दूसरे शब्दों में , बिना मुद्रा के किसी एक वस्तु का किसी दूसरी वस्तु के साथ प्रत्यक्ष रूप से लेन – देन वस्तु विनिमय प्रणाली कहलाती है । उदाहरण के लिए , सब्जी से चावल बदलना , गेहूँ से कपड़ा बदलना आदि ।
2. मौद्रिक प्रणाली क्या है ?
उत्तर – वैसी प्रणाली जिसमें किसी वस्तु के क्रय – विक्रय के लिए मुद्रा का प्रयोग किया जाता है , मौद्रिक प्रणाली कहलाती है । इसमें व्यक्ति अपनी वस्तुएँ या सेवा बेचकर मुद्रा प्राप्त करता है और उन मुद्राओं से आवश्यकताएँ पूरी करती है ।
3. मुद्रा की परिभाषा दीजिए ।
उत्तर – मुद्रा धातु अथवा कागज का बना वस्तु है जो हमारे दिनचर्या में आय उपलब्ध कराता है और वस्तु और सेवाओं के आदान – प्रदान में सुविधा उपलब्ध कराता है । विभिन्न अर्थशास्त्रियों ने मुद्रा की अलग – अलग परिभाषाएँ दी हैं जो इस प्रकार हैं
प्रो . हार्टले विट्स के अनसार , ” मुद्रा वह है जो मुद्रा का कार्य करती है ”
कोलबर्न के अनुसार ” मुद्रा वह है जो मूल्य का मापक और भुगतान का साधन है । ” प्रो ० मार्शल के अनुसार , ” मुद्रा वह धूरी है जिसके चारो तरफ संपूर्ण आर्थिक विज्ञान चक्कर काटता है ।
4. ATM क्या है ?
उत्तर – आर्थिक विकास के युग में बैंकिंग संस्थाओं के द्वारा प्लास्टिक के एक टुकड़े को मुद्रा के रूप में उपयोग किया जाने लगा है । एटीएम प्लास्टिक मुद्रा का ही एक रूप है । एटीएम का अर्थ होता है स्वचालित टेलर मशीन ( Automatic Teller Machine ) | यह मशीन हमें 24 घंटे रुपये निकालने और जमा करने की सेवा प्रदान करता है । भारत के सभी बड़े बैंक जैसे स्टेट बैंक , इलाहाबाद बैंक , आई॰सी॰आई॰सी॰आई॰ बैंक आदि ने अपने ग्राहकों को ये सुविधा प्रदान की है । ATM से पैसा निकालने के लिए ATM – Cum – Debit Card होना चाहिए । एटीएम कार्ड में एक गुप्त पिन नं होता है , जिसकी सहायता से ATH कार्ड को मशीन में डालने के बाद रुपया निकाला जा सकता है ।
5. Credit Card ( साख – पत्र ) क्या है ?
उत्तर — प्लास्टिक मुद्रा का ही एक रूप Credit Card भी है । विश्व में प्रचलित क्रेडिट कार्डों में टैपर मास्टर कार्ड , अमेरिकन एक्सप्रेस आदि प्रसिद्ध हैं । क्रेडिट कार्ड के अन्तर्गत बैंक अपने ग्राहक की वित्तीय स्थिति को देखते हुए उसकी साख की एक राशि निर्धारित कर देती है , जिसके अन्तर्गत वह अपने क्रेडिट कार्ड के माध्यम से निर्धारित की गई राशि के अन्दर तक वस्तुओं और सेवाओं को खरीद सकता है ।
6. बचत क्या है ?
उत्तर – समाज की कुल आय को वस्तुओं एवं सेवाओं पर खर्च किया जाता है । वस्तुओं को दो भागों में बाँटा जा सकता है । ( i ) चालू वस्तुएँ ( i ) टिकाऊ वस्तुएँ । वैसी वस्तुएँ जिनका हम क्षणिक या तत्काल उपयोग करते हैं , चालू वस्तुएँ कहलाती हैं और वैसी वस्तुएँ जिनका उपयोग उत्पादन कार्य में होता है , टिकाऊ वस्तुएँ कहलाती हैं । ‘ कुल आय का वह भाग जो चालू वस्तुओं पर खर्च किया जाता है , उसे उपभोग कहते हैं तथा कुल आय का वह भाग टिकाऊ वस्तुओं पर खर्च किया जाता है , उसे बचत कहते हैं । दूसरे शब्दों में , आय तथा उपभोग के अंतर को बचत कहते हैं । सूत्र – बचत ( Saving ) = आय ( Income ) – उपयोग ( Consumption ) बचत दो प्रकार का होता है । ( i ) नकद बचत ( ii ) वस्तु संचय । कुल आय का वह भाग जो किसी भी प्रकार की वस्तु पर व्यय नहीं किया जाता है , इसे संचय या नकद बचत कहते हैं , जबकि वस्तु संचय को विनियाग कहा जाता है । ‘ क्राउथर ‘ के अनुसार , ” किसी व्यक्ति की बचत उसकी आय का वह भाग है जहाँ उपभोग की वस्तुओं पर व्यय नहीं किया जाता है ।
7. साख क्या है ?
उत्तर – साख का अर्थ होता है – विश्वास या भरोसा । किसी व्यक्ति की साख उतनी ही अच्छी होती है , जितना अधिक उन पर विश्वास या भरोसा किया जाता है । अर्थशास्त्र में साखत का मतलब होता है , ऋण लौटाने या भुगतान करने की क्षमता में विश्वास होना । इसी विश्वास के ही आधार पर कोई व्यक्ति या संस्था किसी दूसरे व्यक्ति या संस्था को उधार देता है । प्रो . जीड के अनुसार , ” साख एक ऐसा विनिमय कार्य है , जो एक निश्चित अवधि के बाद भुगतान करने के बाद पूरा हो जाता है । ”
साख में दो पक्ष होते हैं- ( i ) ऋणदाता , ( ii ) ऋणी ।
ऋणदाता ऋणी को एक निश्चित अवधि के लिए कुछ वस्तुएँ या धन उधार देता है और अवधि के समाप्त होने पर वह वस्तु या धन ब्याज सहित लौटाने का ऋणी वादा करता काम विश्वास के आधार पर होता है ।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. वस्तु विनिमय प्रणाली की कठिनाईयों पर प्रकाश डालें ।
उत्तर – वैसी प्रणाली जिसमें एक वस्तु के बदले में दूसरी वस्तु का आदान – प्रदान होता है , वस्तु – विनिमय प्रणाली कहलाती है । उदाहरण के लिए , चावल से कपड़े बदलना , सब्जी से तेल बदलना आदि|
वस्तु – विनिमय प्रणाली की कठिनाइयाँ– वस्तु – विनिमय प्रणाली की निम्नलिखित कठिनाईयाँ हैं
( i ) आवश्यकता के दोहरे संयोग का अभाव – यह वस्तु विनिमय प्रणाली की सबसे प्रमुख कठिनाई है । आवश्यकता के दोहरे संयोग का अर्थ होता है किसी एक की जरूरत दूसरे की जरूरत से मेल खा जाए । लेकिन ऐसा संयोग से होता है , हमेशा नहीं जिससे विनिमय में काफी कठिनाई होती थी । उदाहरण के लिए , राम के पास जूते हैं और उसे कपड़े की आवश्यकता है , अब उसे किसी ऐसे व्यक्ति की खोज करनी होगी जिसके पास कपड़े हों और वह कपड़े के बदले में जूते लेने को तैयार हो जाए ।
( ii ) मूल्य के सामान्य मापक का अभाव – वस्तु विनिमय प्रणाली की दूसरी बड़ी कठिनाई थी मूल्य के सामान्य मापक का अभाव । ऐसा कोई सर्वमान्य मापक नहीं था , जिससे सभी प्रकार की वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य को ठीक से मापा जा सके । उदाहरण के लिए , एक सेर गेहूँ के बदले में कितना तेल दिया जाए ? एक गाय के बदले में कितनी बकरियाँ दी जाएँ ? इत्यादि ।
( iii ) मूल्य संचय का अभाव इस प्रणाली में लोगों के द्वारा उत्पादित वस्तुओं के संचय को असुविधा थी । कुछ ऐसी वस्तुएँ भी होती हैं , जो शीघ्र नष्ट हो जाती हैं । ऐसी शीघ्र नष्ट होने वाली वस्तुएँ जैसे – मछली , फल , सब्जी इत्यादि को लंबे समय तक संचय करके रखना कठिन था ।
( iv ) सह – विभाजन का अभाव – कुछ वस्तुएँ ऐसी होती हैं , जिनका विभाजन नहीं किया जा सकता है , जिनका विभाजन करने से उनकी उपयोगिता नष्ट हो जाएगी । वस्तु – विनिमय प्रणाली में कठिनाई उस वक्त होती है , जब किसी ऐसी वस्तु के बदले में हमें तीन – चार वस्तुएँ चाहिए , जिसका विभाजन नहीं किया जा सकता है । उदाहरण के लिए , राम के पास एक गाय है जिसके बदले में उसे तीन – चार वस्तुएँ लेनी है और वे अलग – अलग व्यक्तियों के पास थीं और गाय के तीन – चार टुकड़े नहीं किए जा सकते हैं , क्योंकि ऐसा करने से गाय की उपयोगिता नष्ट हो जाएगी ।
( v ) भविष्य के भुगतान की कठिनाई — इस प्रणाली में उधार लेने – देने में कठिनाई होती थी । उदाहरण के लिए , राम के पास एक गाय थी , जिसे मोहन ने एक वर्ष के उधार पर लिया और एक वर्ष बाद गाय राम को लौटा दी । लेकिन इस एक वर्ष के अन्दर मोहन ने गाय का दूध तथा उसके गोबर का उपयोग किया । इस तरह इस प्रणाली में उधार देने वाले को घाटा होता था , जबकि उधार लेने वाले को फायदा ।
( vi ) मूल्य हस्तांतरण की समस्या इस प्रणाली में मूल्य हस्तांतरण में कठिनाई होती थी । अगर कोई व्यक्ति किसी एक स्थान को छोड़कर दूसरे स्थान पर बसना चाहता था , तो उसे अपनी संपत्ति छोड़कर जाना पड़ता था क्योंकि उसे बेचना कठिन था ।
2. मुद्रा के कार्यों पर प्रकाश डालें ।
उत्तर – मुद्रा धातु अथवा कागज की बनी वस्तु है जो हमारे दिनचर्या में आय उपलब्ध कराता है और वस्तु तथा सेवाओं के आदान – प्रदान में सुविधा उपलब्ध कराता है । मुद्रा के कार्य निम्नलिखित प्रकार हैं ( i )विनिमय का माध्यम – मुद्रा विनिमय का एक माध्यम है । यह क्रय तथा विक्रय दोनों में मध्यस्थ का कार्य करती है । मुद्रा के आविष्कार से दोहरे संयोग के अभाव की कठिनाई उत्पन्न नहीं होती है । आज के समय में लोग अपनी वस्तु या सेवा बेचकर उससे मुद्रा प्राप्त करते हैं और मुद्रा से अपनी आवश्यकता की वस्तुएँ या सेवाएँ खरीदते हैं । चूँकि मुद्रा विधि ग्राह्य होती है , इसलिए इसे स्वीकारने में भी कोई कठिनाई नहीं होती है ।
( ii ) मूल्य का मापक मुद्रा मूल्य का मापक है । वस्तु – विनिमय प्रणाली में किसी वस्तु का सही तौर पर मूल्यांकन संभव नहीं हो पाता था , लेकिन मुद्रा के आविष्कार से अब वस्तुओं का मूल्यांकन आसान हो गया है । वस्तुओं के मूल्य को मापने का मापदण्ड मुद्रा ही है । मुद्रा के आविष्कार से विनिमय का कार्य आसान हो गया है , क्योंकि बिना मूल्यांकन के विनिमय का कार्य सही तरह से नहीं हो सकता है । ( iii ) विलंबित भुगतान का मान आधुनिक युग में बहुत से आर्थिक कार्य उधार पर होता है और उसका भुगतान बाद में होता है । मुद्रा विलंबित भुगतान का एक सरल साधन है । इसके द्वारा ऋण के भुगतान में सुविधा होती है ।
उदाहरण के लिए , मोहन ने सोहन से दो साल के लिए 500 रु ० उधार पर लिए और दो साल के बाद मोहन सोहन को 500 रु ० मुद्रा के रूप में वापस कर सकता है । इस तरह मुद्रा से ऋण के भुगतान तथा विलबित भुगतान आसान हो गया है ।
( iv ) मूल्य का संचय – मनुष्य अपनी वर्तमान आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ ही अपने भविष्य के लिए भी कुछ बचाकर रखना चाहता है । मुद्रा में यह गुण और विशेषता पाई जाती है कि इसे संचित या जमा करके रखा जा सके । वस्तु विनिमय प्रणाली में संचय करने में कठिनाई होती थी , वस्तुओं के सड़ – गल जाने या नष्ट हो जाने का डर रहता था । लेकिन मुद्रा ने इस कठिनाई को दूर कर दिया ।
( v ) क्रय – शक्ति का हस्तांतरण – मुद्रा का एक आवश्यक कार्य है कार्य – शक्ति का हस्तांतरण । मुद्रा के आविष्कार से आर्थिक क्षेत्र के साथ ही विनिमय के क्षेत्र का भी विस्तार हुआ । वस्तुओं का क्रय – विक्रय दूर – दूर तक होने लगा है । इस कारण क्रय – शक्ति को एक स्थान से दूसरे स्थान हस्तांतरित करने की भी आवश्यकता हुई । मुद्रा में सामान्य स्वीकृति का गुण होता है । मुद्रा के ही रूप में धन का लेन – देन होता है । अत : मुद्रा के माध्यम से क्रय – शक्ति को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को हस्तांतरित किया जा सकता है|
( vi ) साख का आधार – वर्तमान समय में मुद्रा साख के आधार पर कार्य करती है । साख पत्रों का बड़े पैमाने पर प्रयोग मुद्रा के कारण ही होता है । साख पत्र जैसे – चेक , ड्राफ्ट , हुण्डी आदि का प्रचलन बिना मुद्रा के नहीं हो पाता । उदाहरण के लिए , जमाकत्ता चेक का प्रयोग तभी कर सकता है , जब बैंक में उसके खाते में पर्याप्त मुद्रा हो । व्यापारिक बैंक भी साख का सृजन नगद कोष के आधार पर ही कर सकते हैं । नगद मुद्रा के कोष में कमी होने से साख की मात्रा भी कम हो जाती है ।
3. मुद्रा के विकास पर प्रकाश डालें ।
उत्तर – मुद्रा धातु का बना अथवा कागज का बना वस्तु है , जो हमारे दिनचर्या में आय उपलब्ध कराता है और वस्तुओं और सेवाओं के आदान – प्रदान में सुविधा उपलब्ध कराता है । मुद्रा के विकास को निम्नलिखित भागों में बाँटा गया है , जो इस प्रकार है
( i ) वस्तु – विनिमय — इस प्रणाली में वस्तु का वस्तु से लेन – देन होता था । उदाहरण के लिए , सब्जी से चावल बदलना , गेहूँ से तेल बदलना आदि ।
( ii ) वस्तु – मुद्रा – प्रारंभिक काल में किसी एक वस्तु को मुद्रा के कार्य के लिए चुन लिया जाता था । अलग – अलग युग में अलग – अलग वस्तुओं को मुद्रा के रूप में चुना गया । जैसे शिकारी युग में खाल या चमड़ा , पशुपालन युग में गाय या बकरी तथा कृषि युग में कोई अनाज जैसे कपास , गेहूँ आदि को मुद्रा के रूप में चुना गया ।
( iii ) धात्विक मुद्रा – वस्तुओं के द्वारा विनिमय करने में बहुत कठिनाई होती थी । इसलिए धातुओं का प्रयोग मुद्रा के रूप में होने लगा । वैसे मुद्रा , जो पीतल और ताँबा इत्यादि धातुओं से बना होता है , धात्विक मुद्रा कहलाता है ।
( iv ) सिक्के धातु मुद्रा के प्रयोग में कठिनाई होने पर सिक्के का प्रयोग किया जाने लगा । यह सिक्का सोना – चाँदी आदि से बना होता था और देश की सरकार की मुहर से चालित है ।
( v ) पत्र मुद्रा – सिक्के के उपयोग में भी कठिनाई होने लगी । इन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने में असुविधा होती थी । इसलिए पत्र मुद्रा का प्रचलन हुआ । वर्तमान समय में विश्व के सभी देशों में पत्र- मुद्रा का ही प्रचलन है । देश की सरकार तथा केन्द्रीय बैंक के द्वारा कागज का जो नोट प्रचलित किया जाता है , उसे पत्र – मुद्रा कहते हैं । पत्र – मुद्रा को कागजी मुद्रा भी कहा जाता है । भारत में एक रुपया के नोट अथवा सभी सिक्के केन्द्र सरकार के वित्त विभाग के द्वारा चलाया जाता है और दो रुपये या इससे अधिक के सभी कागजी नोट देश के केन्द्रीय बैंक – रिवर्ज बैंक ऑफ इंडिया ( RBI ) के द्वारा चलाए जाते हैं ।
( vi ) साख मुद्रा – आधुनिक समय में साख – मुद्रा का भी उपयोग होने लगा है । चेक , हुण्डी आदि विभिन्न प्रकार के साख – पत्र मुद्रा का कार्य करते हैं , इन्हें साख- मुद्रा कहा जा सकता है । अन्तर्राष्ट्रीय लेन – देन अधिकांश रूप से साख मुद्रा के द्वारा होता है । देश के आंतरिक व्यापार में भी साख – पत्रों का उपयोग होता है ।
4 . साख – पत्र क्या है ? कुछ प्रमुख साख – पत्रों पर प्रकाश डालें ।
उत्तर – साख – पत्र का अर्थ है , वैसे साधन जिनका उपयोग साख – मुद्रा के रूप में किया जाता है । साख या ऋण का आदान – प्रदान साख पत्र के आधार पर होता है । साख – पत्र वस्तुओं एवं सेवाओं के क्रय – विक्रय में विनिमय के माध्यम का कार्य करते हैं । साख पत्र मुद्रा की तरह ही कार्य करते हैं । लेकिन मुद्रा और साख पत्रों में एक अंतर यह है कि मुद्रा कानूनी ग्राह्य होते हैं , जबकि साख पत्रों को कानूनी मान्यता प्राप्त नहीं होती है । इसीलिए लेन – देन के कार्य में साख – पत्रों को स्वीकार करने के लिए किसी को बाध्य नहीं किया जा सकता है ।
कुछ प्रमुख साख पत्र इस प्रकार हैं ( i ) चेक , ( ii ) विनिमय बिल , ( iii ) बैंक ड्राफ्ट , ( iv ) हुण्डी , ( v ) प्रतिज्ञा पत्र , ( vi ) यात्री चेक , ( vii ) पुस्तकीय साख , ( viii ) साख प्रमाण पत्र ।
5. मुद्रा के आर्थिक महत्व पर प्रकाश डालें ।
उत्तर – वस्तु विनिमय प्रणाली की कठिनाइयों के कारण मुद्रा का आविष्कार हुआ । मुद्रा के आविष्कार से मनुष्य के व्यापारिक जीवन में सुविधापूर्वक आदान – प्रदान की स्थिति संभव हुई । सुप्रसिद्ध विद्वान क्राउथर के अनुसार ” जिस तरह यंत्रशास्त्र में चक्र , विज्ञान में अग्नि और राजनीतिशास्त्र में मत का स्थान है , वही स्थान मानव के आर्थिक जीवन में मुद्रा का है । अत : मनुष्य के सभी आविष्कारों में मुद्रा का आविष्कार एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है ।
मुद्रा के कारण हमें अनेक फायदे हुए हैं-
( i ) मुद्रा से क्रय – विक्रय अर्थात् विनिमय का कार्य आसान हो गया । ( ii ) मुद्रा के द्वारा वस्तुओं का मूल्यांकन आसान हो गया । ( iii ) मुद्रा के द्वारा उधार लेन – देन आसान हो गया । ( iv ) मुद्रा का संचय करना संभव है जिससे भविष्य की आवश्यकताओं के लिए इसे रखना संभव होता है । ( y ) मुद्रा के कारण क्रय शक्ति को एक स्थान से दूसरे स्थान को हस्तांतरित करने की सुविधा हो गई । ( vi ) मुद्रा के कारण साख के आधार पर कार्य करना संभव हो गया । ( vii ) मुद्रा से उपभोक्ताओं को अपनी इच्छानुसार वस्तुओं को खरीद सकता है । ( viii ) मुद्रा से उत्पादक , उत्पादन की सहायक वस्तुओं को जुटाने में सक्षम हो पाते हैं । ( ix ) आधुनिक व्यवसाय का सारा ढाँचा साख पर आधारित है । मुद्रा ने साख प्रणाली को संभव बनाया । ( x ) मुद्रा ने पूंजी की तरलता को संभव बनाया है । ( xi ) मुद्रा को बैंक में जमा रखकर पूँजी निर्माण भी किया जाता है । ( xii ) मुद्रा द्वारा किसी देश की राष्ट्रीय आय , प्रति व्यक्ति आय की माप हो सकती है जो देश की आर्थिक प्रगति का सूचक है ।
अत : आज के आर्थिक जीवन में मुद्रा का बहुत महत्व है । ।