10TH SST

bihar board 10 class economics notes – economics

अर्थव्यवस्था एवं इसके विकास का इतिहास

bihar board 10 class economics notes

class – 10

subject – economics

lesson 1 – अर्थव्यवस्था एवं इसके विकास का इतिहास

अर्थव्यवस्था एवं इसके विकास का इतिहास

भारतीय अर्थव्यवस्था की मूल जड़ें काफी गहरी हैं । आजादी से पहले भारत अंग्रेजों का गुलाम था । अंग्रेजों ने अपने शासन में भारत का भरपूर शोषण किया । अत : आजादी के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था का सामाजिक , आर्थिक , राजनीतिक , सांस्कृतिक पुनरुत्थान कर दुनिया के सामने प्रस्तुत करना एक चुनौती थी ।
भारतीय व्यवस्था – अंग्रेजों ने ” फूट डालो और शासन करो ” नीति के तहत भारत को अपना दास बनाकर रखा । ब्रिटिश शासन के पूर्व कृषि प्रधान होने के बावजूद उद्योग , व्यापार , यातायात , आधारभूत संरचना में भारत की स्थिति अच्छी थी लेकिन ब्रिटिश शासन काल में दमनकारी नीतियों के कारण भारत की स्थिति जर्जर हो गयी थी । प्रति व्यक्ति आय की स्थिरता , कृषि पर बढ़ती निर्भरता , हस्तशिल्प उद्योगों का पतन भारतीय अर्थव्यवस्था के पतन का परिणाम थी ।
अर्थव्यवस्था – हमारी वे सभी क्रियाएँ जिनसे हमें आय प्राप्त होती है , आर्थिक क्रियाएँ कहलाती हैं । अर्थव्यवस्था एक ऐसा तंत्र है जिसके अंतर्गत आर्थिक क्रियाएँ एक ओर तो विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ एवं सेवाओं का संपादन करती हैं तो दूसरी ओर लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान करती है ताकि वे अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वस्तुओं एवं सेवाओं का क्रय कर सकें । अत : अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से दो प्रकार का कार्य करती है ।
( i ) लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति करना ।
(ii) रोजगार प्रदान करना । अत : बिहार की अर्थव्यवस्था का अर्थ बिहार की संपूर्ण आर्थिक क्रियाओं के अध्ययन से है जिसके अंतर्गत बिहारवासियों की मानवीय आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए बिहार के संसाधनों का प्रयोग किया जाता है । आर्थिक क्रियाओं को मुख्यतः तीन भागों में बाँटा जाता है
( i ) प्राथमिक क्षेत्र — इसके अंतर्गत कृषि , पशुपालन , मछली पालन , जंगलों से वस्तुएँ प्राप्त करना जैसे व्यवसाय आते हैं ।
( ii ) द्वितीयक क्षेत्र – इसे औद्योगिक क्षेत्र भी कहा जाता है । इसके अंतर्गत खनिज व्यवसाय , निर्माण कार्य , जनोपयोगी सेवाएँ आदि आते हैं
( iii ) तृतीयक क्षेत्र – इसे सेवा क्षेत्र कहते हैं । इसके अंतर्गत बैंक एवं बीमा क्षेत्र , परिवहन , संचार एवं व्यापार आदि क्रियाएँ आती हैं । ये क्रियाएँ प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्रों को सहायता . प्रदान करते हैं । राष्ट्रीय आय में इन तीनों क्षेत्रों का योगदान है । अर्थव्यवस्था तीन प्रकार की होती हैं –
( i ) पूँजीवादी अर्थव्यवस्था — वैसी अर्थव्यवस्था जहाँ उत्पादन के साधनों का स्वामित्व निजी व्यक्तियों के हाथों में होता है , पूँजीवादी अर्थव्यवस्था कहलाती है । जैसे — अमेरिका , जापान आदि ।
( ii ) समाजवादी अर्थव्यवस्था — वैसी अर्थव्यवस्था जहाँ उत्पादन के साधनों का स्वामित्व देश की सरकार के पास होता है , समाजवादी अर्थव्यवस्था कहलाती है । जैसे – रूस , चीन
( iii ) मिश्रित अर्थव्यवस्था वैसी अर्थव्यवस्था जहाँ उत्पादनों के साधनों पर सरकार तथा निजी व्यक्तियों के पास है , मिश्रित अर्थव्यवस्था कहलाती है । जैसे — भारत । भारत में अर्थव्यवस्था के विकास की अपनी कहानी है ।
अर्थव्यवस्था का विकास मुख्यतः दो भागों में विभाजित है ।
आर्थिक विकास – आर्थिक विकास आवश्यक रूप से परिवर्तन की क्रिया है । इसके कारण प्रति व्यक्ति की आय बदलती है । आर्थिक विकास का मुख्य उद्देश्य अर्थव्यवस्था के समस्त क्षेत्रों में उत्पादकता का ऊँचा स्तर प्राप्त करना होता है । आर्थिक नियोजन का अर्थ एक समयबद्ध कार्यक्रम के अंतर्गत पूर्व निर्धारित सामाजिक एवं आर्थिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए अर्थव्यवस्था में उपलब्ध संसाधनों को नियोजित समन्वय एवं उपयोग करता है ।
भारत में नियोजन का उद्देश्य आर्थिक विकास की दर को बढ़ाना , कृषि एवं उद्योगों का आधुनिकीकरण करना , आत्मनिर्भरता को प्राप्त करना तथा सामाजिक न्याय को बढ़ावा देना है ।

मौद्रिक विकास — जब मुद्रा का विकास नहीं हुआ था तो लोग वस्तु से वस्तु का लेन – देन कुर अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करते थे । इस अवस्था को वस्तु विनिमय की प्रणाली कहते हैं । लेकिन बाद में जब मनुष्य की आवश्यकताएँ बढ़ने लगी तो मुद्रा का विकास हुआ । फिर बैंकों का निर्माण हुआ जिससे मुद्रा का हस्तांतरण किया जाने लगा । आज मानव मस्तिष्क का सारा कार्य एक मशीन करती है जिसे हम कम्प्यूटर कहते हैं । पैसे के लेन – देन में कोर बैकिंग प्रणाली का प्रयोग होता है । एटीएम ( ATM ) के अलावे हमें आज डेबिट कार्ड तथा क्रेडिट कार्ड की भी सुविधा भी प्राप्त है । हम अपने आर्थिक विकास को मापने के लिए कई प्रकार के सूचकांकों का उपयोग करते हैं जैसे राष्ट्रीय आय , प्रति व्यक्ति आय , मानव विकास सूचकांक इत्यादि ।
निर्धनता की स्थिति को जानने के लिए मानव निर्धनता सूचकांक से काफी मिलता – जुलता है । उपभोक्ता व्यय को आर्थिक विकास का सूचक मानते हुए राष्ट्रीय मानव विकास रिपोर्ट में बताया गया कि विगत कुछ वर्षों में देश की ग्रामीण जनता की व्यय क्षमता में कमी आई है जबकि शहरी क्षेत्रों में इसमें काफी वृद्धि हुई है ।
साधनों के मामले में धनी होते हुए भी बिहार की स्थिति दयनीय है । बिहार के पिछड़ेपन के कई कारण हैं जैसे — तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या , आधारित संरचना का अभाव , कृषि पर निर्भरता , बाढ़ से सूखा क्षति , औद्योगिक पिछड़ापन , गरीबी , खराब विधि व्यवस्था , कुशल प्रशासन व्यवस्था का अभाव इत्यादिl
पूर्व राष्ट्रपति ए . पी . जे . अब्दुल कलाम ने कहा था ” बिहार के विकास के बगैर देश का विकास संभव नहीं है । ” बिहार के पिछड़ेपन को दूर करने के निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं
( i ) राज्य की बढ़ती हुई जनसंख्या पर रोक लगाया जाए ।
( ii ) राज्य की आधारित संरचना अर्थात् सड़क , बिजली , सिंचाई का विकास किया जाए ।
( iii ) बिहार की अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है । अत : इसका विकास आवश्यक है ।
( iv ) बिहार में बाढ़ तथा सूखे से हर साल क्षति होती है । 2008 में कोशी जल प्रलय इसका उदाहरण है । इसका समाधान आवश्यक है ।
( v ) बिहार में औद्योगिक विकास न के बराबर है । झारखंड के अलग होने से राज्य लगभग उद्योग विहिन हो गया है । अत : उद्योगों का पुनर्विकास आवश्यक हैl
( vi ) बिहार में 42 % से अधिक लोग गरीबी रेखा से नीचे के हैं । इनके जीवन स्तर को सुधारने के लिए रोजगार की व्यवस्था करनी चाहिए ।
( vii ) शांति का माहौल कायम कर व्यापारियों में विश्वास की भावना जगानी चाहिए जिससे आर्थिक विकास में वृद्धि होती है ।
( viii ) प्रशासन स्वच्छ , कुशल तथा ईमानदार होना चाहिए ।
( ix ) बिहार को विकास के लिए केन्द्र से अधिक मात्रा में संसाधनों को प्राप्त करने की आवश्यकता है ।

बिहार देश का एक ऐसा राज्य है जहाँ अत्यधिक उर्वर भूमि है । यहाँ दक्ष मानव संसाधनों की भी कमी नहीं है । देश के सूचना प्रौद्योगिकी में तथा पंजाब के कृषि विकास में बिहार के मानव संसाधनों का प्रमुख योगदान रहा है । अत : यहाँ के कर्मठ मानव संसाधन के योगदान से बिहार का विकास किया जा सकता है । देश के नागरिकों के रहने के लिए मकान , खाने के लिए रोटी तथा शरीर ढंकने के लिए कपड़ा उनकी न्यूनतम मूलभूत आवश्यकता है । विकास की अवधारणा आवश्यकता के पश्चात् ही शुरू होती है । समुचित न्यायपूर्ण सार्वजनिक वितरण प्रणाली से लोगों को खाने के लिए रोटी उपलब्ध हो सकती है । यह योजना राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम शुरू की गई है । इसे विश्व का सबसे बड़ा रोजगार योजना माना जाता है । इस प्रकार के विकास से हम लोगों की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति होती है ।

वस्तुनिष्ठ

सही विकल्प चुनें –
(i)निम्न को प्राथमिक क्षेत्र भी कहा जाता है
( क ) सेवा क्षेत्र ( ख ) कृषि क्षेत्र ( ग ) औद्योगिक क्षेत्र ( घ ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर– ( ख )
( ii ) इनमें कौन – से देश में मिश्रित अर्थव्यवस्था है ? ( क ) अमेरिका ( ख ) रूस ( ग ) भारत ( घ ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर– ( ग )
( iii ) भारत में योजना आयोग का गठन कब किया गया था ?
( क ) 15 मार्च , 1950 ( ख ) 15 सितम्बर , 1950 ( ग ) 15 अक्टूबर , 1951 ( घ ) 15 मार्च , 1950 उत्तर– ( ग )
( iv ) जिस देश की राष्ट्रीय आय अधिक होती है वह देश कहलाता हैl
( क ) अविकसित ( ख ) विकसित ( ग ) अर्द्ध – विकसित ( घ ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर– ( ख )
( v )इनमें से किसे पिछड़ा राज्य कहा जाता है ? ( क ) पंजाब ( ख ) केरल ( ग ) बिहार ( घ ) दिल्ली उत्तर– ( ग )

रिक्त स्थानों की पूर्ति करें –
( 1 ) भारत अंग्रेजी शासन का एक …………… था । उत्तर – उपनिवेश
( ii ) अंग्रेजों ने भारतीय अर्थव्यवस्था का ……..किया|
उत्तर – शोषण
( iii ) अर्थव्यवस्था आजीविका अर्जन की…….है|
उत्तर – प्रणाली
( iv ) द्वितीयक क्षेत्र को …….. क्षेत्र कहा जाता है ।
उत्तर – औद्योगिक
( v ) आर्थिक विकास आवश्यक रूप से ……. की प्रक्रिया है उत्तर – परिवर्तन
( ज ) भारत में आर्थिक विकास का श्रेय …….. को दिया जा सकता है ।
उत्तर – नियोजन
( vii ) आर्थिक विकास की माप करने के लिए ……. को सबसे उचित सूचकांक माना जाता है ।
उत्तर – प्रतिव्यक्ति आय
( viii ) साधनों के मामले में धनी होते हुए भी बिहार की स्थिति ……है|
उत्तर – दयनीय
( ix ) बिहार में ……… ही जीवन का आधार है ।
उत्तर – कृषि
( x ) बिहार के विकास में ……..एक बहुत बड़ा बाधक है । उत्तर – बाढ़

लघु उत्तरीय प्रश्न

1. अर्थव्यवस्था किसे कहते हैं ?
उत्तर – समाज में रहने के लिए हम सभी को धन की आवश्यकता होती है और धन कनाने के लिए हम विभिन्न प्रकार के काम करते हैं , जो आर्थिक क्रियाएँ कहलाती हैं । दूसरे शब्दों में , वे सभी क्रियाएँ जिससे हमें धन अथवा आय प्राप्त हो , आर्थिक क्रियाएँ कहलाती हैं । विभिन्न प्रकार की आर्थिक क्रियाएँ , जिस तंत्र था ढाँचे के अंतर्गत सम्पादित की जाती हैं , अर्थव्यवस्था कहलाती है । इन आर्थिक क्रियाओं के द्वारा एक और विभिन्न प्रकार की वस्तुओं एवं सेवाओं का संपादन होता है और दूसरी ओर लोगों को रोजगार का अवसर प्रदान होता है ताकि वे अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए देश में उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं को क्रय कर सकें ।
इस प्रकार हम देखते हैं कि अर्थव्यवस्था में मुख्य रूप से दो कार्यों का संपादन होता है ।
( i ) विभिन्न प्रकार की वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन करना जिससे लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति करें ।
( ii ) लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान करना ।
ऑर्थर लेविस के अनुसार , ” अर्थव्यवस्था का अर्थ ” किसी राष्ट्र के संपूर्ण व्यवहार से होता है जिसके आधार पर मानवीय आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए वह अपने संसाधनों का प्रयोग करता है ।
ब्राउन के अनुसार , ” अर्थव्यवस्था आजीविका अर्जन की एक प्रणाली है ।

2. मिश्रित अर्थव्यवस्था क्या है ?
उत्तर – पूँजीवादी तथा समाजवादी अर्थव्यवस्था के मिश्रित रूप को मिश्रित अर्थव्यवस्था कहते हैं । दूसरे शब्दों में , वह अर्थव्यवस्था जहाँ उत्पादन के साधनों पर सरकार के साथ – साथ निजी व्यक्तियों के भो स्वामित्व हो , मिश्रित अर्थव्यवस्था कहलाती है । यह अर्थव्यवस्था पूँजीवादी अर्थव्यवस्था और समाजवादी अर्थव्यवस्था के बीच का रास्ता है । भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था है ।
3. सतत् विकास क्या है ?
उत्तर – वर्तमान समय में प्राकृतिक संसाधनों जैसे — कोयला , गैस , पेट्रोलियम जल , वन , सूर्य का प्रकाश आदि का प्रयोग जिस तरह से हो रहा है , अगर आने वाले समय में भी इनका प्रयोग इसी तरह से होता रहा तो हमारी आने वाली पीढ़ी को इन प्राकृतिक संसाधनों से वंचित होना पड़ेगा । वर्तमान उत्पादन तकनीक ने पर्यावरण प्रदूषण की समस्या को और बढ़ावा दिया है । अनेक उत्पादन तकनीक ने पर्यावरण प्रदूषण की समस्या को और बढ़ावा दिया है । अनेक उत्पादन क्रियाओं के द्वारा जल , वायु और भूमि प्रदूषित हो रही है , जो एक चिंता का विषय है । इन समस्याओं के कारण वर्तमान विकास की पद्धति तथा प्रक्रिया को जारी रखने में कठिनाई होती है । इन समस्याओं के विकल्प के रूप में सतत् विकास या पोषणीय विकास की अवधारणा का जन्म हुआ । सतत् विकास का शाब्दिक अर्थ होता है . ऐसा विकास जो जारी रह सके , टिकाऊ बना रहे । हुण्डलैंड आयोग के अनुसार सतत् विकास है , विकास की वह प्रक्रिया जिसमें वर्तमान की आवश्यकताएँ , बिना भावी पीढ़ी की क्षमता , योग्यताओं से समझौता किए , पूरी की जाती है ।
4. आर्थिक नियोजन क्या है ? इसके उद्देश्य क्या हैं ?

उत्तर – आर्थिक नियोजन एक निश्चित समय के अंतर्गत अर्थव्यवस्था में उपलब्ध संसाधनों का नियोजित समन्वय एवं उपयोग करके पूर्व निर्धारित सामाजिक एवं आर्थिक उद्देश्यों की प्राप्ति करना ही आर्थिक नियोजन कहलाता है । योजना आयोग के शब्दों में ” आर्थिक नियोजन का अर्थ राष्ट्र की प्राथमिकताओं के अनुसार देश के संसाधनों का विभिन्न विकासात्मक क्रियाओं में प्रयोग करना है । भारत में अभी ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना चल रही है । भारत में पहली पंचवर्षीय योजना की अवधि 1951-1956 थी और ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना की अवधि 2007-2012 है । आर्थिक नियोजन के उद्देश्य आर्थिक नियोजन के निम्नलिखित उद्देश्य हैं-
( i ) आर्थिक विकास की दर को बढ़ाना ।
( ii ) कृषि एवं उद्योगों का आधुनिकीकरण करना । ( iii ) सामाजिक न्याय को बढ़ावा देना ।
( iv ) आत्मनिर्भरता को प्राप्त करना ।

5. मानव विकास रिपोर्ट क्या है ?
उत्तर — भारत की पहली मानव विकास रिपोर्ट UNDP की मानव विकास के आधार पर अप्रैल , 2002 में जारी की गई । 23 अप्रैल , 2002 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी योजना आयोग द्वारा तैयार की गई इस रिपोर्ट को नई दिल्ली में जारी किया । योजना आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष के . सी . पंत ने इस रिपोर्ट को भारतीय लोकतंत्र के लिए एक महत्वपूर्ण दस्तावेज बताते हुए कहा था कि राज्यों के लिए योजना तय करते समय इसे आधार बनाया जा सकता है । इस पहली राष्ट्रीय मानव विकास रिपोर्ट ( NHDR ) में 1981 , 1991 तथा 2001 के लिए राज्यों तथा संघीय क्षेत्रों के मानव विकास रिपोर्ट ( HDI ) मूल्यों का अनुमान लगाया गया था । इस रिपोर्ट में विकास की दरें भिन्न – भिन्न थीं । इसमें केरल का रैंक सबसे ऊपर था जबकि बिहार , मध्य प्रदेश , आसाम , राजस्थान तथा उत्तर प्रदेश का रैंक सबसे नीचे था ।
6. आधुनिक संरचना पर प्रकाश डालें ।
उत्तर – वैसी सुविधाएँ तथा सेवाएँ जो देश के आर्थिक विकास के लिए सहायक होते हैं , आधारित संरचना के अंतर्गत आते हैं । वे सभी तत्व , जैसे — बिजली , संचार , परिवहन , स्कूल , कॉलेज , बैंकिंग , अस्पताल , कॉलेज आदि देश के आर्थिक विकास के आधार हैं , उन्हें देश का आधारित संरचना कहा जाता है । जिस देश का आधारित संरचना जितना अधिक विकसित होगा , वह देश उतना ही अधिक विकसित होगा ।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1. अर्थव्यवस्था की संरचना से क्या समझते हैं ? इन्हें कितने भागों में बांटा गया है ?
उत्तर – विभिन्न प्रकार की आर्थिक क्रियाएँ जिस तंत्र या ढाँचे के अन्तर्गत सम्पादित की जाती हैं , अर्थव्यवस्था कहलाती है । अर्थव्यवस्था में दो कार्यों का संपादन होता है
( i ) विभिन्न प्रकार की वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन करना जिससे लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके ।
( ii ) लोगों को रोजगार मिल सके । अर्थव्यवस्था को विभिन्न उत्पादन क्षेत्रों में बाँटा गया है , जिसे अर्थव्यवस्था की संरचना कहते हैं । अर्थव्यवस्था में विभिन्न प्रकार की आर्थिक क्रियाएँ सम्पादित की जाती हैं , जैसे कृषि , उद्योग , बैंकिंग , बीमा , संचार आदि । इन क्रियाओं को मोटे तौर पर तीन भागों में बाँटा जाता है ( i ) प्राथमिक क्षेत्र । ( ii ) द्वितीयक क्षेत्र । ( iii ) तृतीयक क्षेत्र या सेवा क्षेत्र ।
प्राथमिक क्षेत्र – कृषि क्षेत्र को प्राथमिक क्षेत्र कहा जाता है । इस क्षेत्र के अन्तर्गत कृषि , पशुपालन , मछली पालन , जंगलों से वस्तुओं को प्राप्त करना जैसे व्यवसाय आते हैं ।
द्वितीयक क्षेत्र – औद्योगिक क्षेत्र को द्वितीयक क्षेत्र कहते हैं । इसके अन्तर्गत खनिज व्यवसाय , निर्माण कार्य , जनोपयोगी सेवाएँ जैसे गैस और बिजली आदि के उत्पादन आते हैं ।
तृतीयक क्षेत्र – सेवा क्षेत्र को तृतीयक क्षेत्र कहा जाता है । इसके अंतर्गत बैंक एवं बीमा , संचार एवं व्यापार , परिवहन आदि क्रियाएँ आती हैं । इस क्षेत्र की क्रियाएँ प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्रों की क्रियाओं की सहायता प्रदान करते हैं । इस क्षेत्र को सेवा क्षेत्र कहते हैं ।

2. आर्थिक विकास क्या है ? आर्थिक विकास तथा आर्थिक वृद्धि में अंतर बतावें ।
उत्तर – आर्थिक विकास आर्थिक नियोजन के द्वारा सम्पन्न होता है । आर्थिक विकास की एक सटीक परिभाषा नहीं दी जा सकती है ।
प्रो . रोस्टोव के अनुसार , “ आर्थिक विकास एक और श्रम – शक्ति में वृद्धि की दर तथा दूसरी ओर जनसंख्या में वृद्धि के बीच का सम्बन्ध है । ”
प्रो . मेयर एण्ड बाल्डविन के अनुसार , ” आर्थिक विकास एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा दीर्घकाल में किसी अर्थव्यवस्था की वास्तविक राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है।
अतः आर्थिक विकास आवश्यक रूप से परिवर्तन की प्रक्रिया है । इसके चलते प्रति व्यक्ति वास्तविक आय बदलती है तथा आर्थिक विकास के निर्धारक बदलते रहते हैं ।
दूसरे शब्दों में , आर्थिक विकास का मुख्य उद्देश्य अर्थव्यवस्था के समस्त क्षेत्रों में उत्पादकता का ऊँचा स्तर प्राप्त करना होता है । आर्थिक विकास और आर्थिक वृद्धि में सामान्यतः कोई अंतर नहीं माना जाता है । दोनों शब्द एक – दूसरे के पूरक होते हैं इसके कारण दोनों शब्दों को एक – दूसरे के स्थान पर प्रयोग किया जाता है । लेकिन कुछ अर्थशास्त्री इन दोनों शब्दों के बीच अंतर बताते हैं-
श्रीमती उर्सला हिक्स के अनुसार , ” वृद्धि ” शब्द का प्रयोग आर्थिक दृष्टि से विकसित देशों के संबंध में किया जाता है जबकि ” विकास ” शब्द का प्रयोग अविकसित अर्थव्यवस्थाओं के संदर्भ में किया जा सकता है ।
मैड्डीसन- नामक एक अर्थशास्त्री के अनुसार , ” धनी देशों में आय का बढ़ता हुआ स्तर ” आर्थिक वृद्धि ” का सूचक होता है जबकि निर्धन देशों में आय का बढ़ता हुआ स्तर ” आर्थिक विकास ” का सूचक होता है ।
3. आर्थिक विकास की माप कुछ सूचकांकों के द्वारा करें ।
उत्तर – आर्थिक विकास आर्थिक नियोजन के द्वारा सम्पन्न होता है । इसके माप के सूचकांक निम्न प्रकार है ( i ) राष्ट्रीय आय , ( ii ) प्रतिव्यक्ति आय , ( iii ) मानव विकास सूचकांक ।
राष्ट्रीय आय – आर्थिक विकास का प्रमुख सूचक राष्ट्रीय आय को माना गया है । एक वर्ष की अवधि में किसी देश में उत्पादित सभी वस्तुओं एवं सेवाओं के मौद्रिक मूल्य के योग को राष्ट्रीय आय कहा जाता है । जिस देश का राष्ट्रीय आय अधिक होता है , वह देश विकसित कहलाता है और जिस देश का सष्ट्रीय आय कम होता है वह देश अविकसित कहलाता है ।
प्रति व्यक्ति आय — प्रति व्यक्ति आय को आर्थिक विकास की माप करने के लिए सबसे उचित सूचकांक माना जाता है । प्रति व्यक्ति आय देश में रहते हुए व्यक्तियों की औसत आय होती है । राष्ट्रीय आय को देश की कुल जनसंख्या से भाग देने पर जो भागफल आता है , वह प्रति व्यक्ति आय कहलाता है ।

सूत्र:-

प्रति व्यक्ति= राष्ट्रीय आय / कुल जनसंख्या

विश्व बैंक की विश्व विकास रिपोर्ट , 2006 के अनुसार जिन देशों की 2004 में प्रति व्यक्ति आय 4,59,000 रुपये प्रतिवर्ष था इससे अधिक है , वह विकसित देश कहा गया है और जिन देशों की प्रतिव्यक्ति आय 37000 रुपये प्रति वर्ष या इससे कम है उन्हें अविकसित देश या निम्न आय वाला देश कहा गया है । भारत को प्रतिव्यक्ति आय 2004 में केवल 28000 रुपये प्रतिवर्ष थी , भारत निम्न आय वर्ग के देश में आता है ।
मानव विकास सूचकांक — इस सूचकांक को संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के द्वारा महबूब – उल – हक के निर्देशन में तैयार की गई पहली मानव विकास रिपोर्ट में प्रस्तावित किया गया था । मानव विकास सूचकांक के तीन सूचक हैं ( i ) जीवन आशा , ( ii ) शिक्षा प्राप्ति , ( iii ) जीवन स्तर ।

सूत्र :

मानव विकास सूचकांक = जीवन आशा सूचकांक + शिक्षा प्राप्ति सूचकांक + जीवन स्तर सूचकांक ।

मानव विकास सूचकांक तीनों सूचकांकों का औसत होता है । सभी देशों की मानव विकास सूचकांक दर पैमाने पर शून्य से एक होती है ।

4. बिहार के आर्थिक पिछड़ेपन के क्या कारण हैं ? बिहार के पिछड़ेपन को दूर करने के लिए कुछ मुख्य उपाय बतावें ।
उत्तर – बिहार के पिछड़ेपन के कारण — बिहार आर्थिक दृष्टि से पिछड़ा हुआ है , इसके प्रमुख कारण इस प्रकार हैं
( i ) बढ़ती हुई जनसंख्या- बढ़ती हुई जनसंख्या बिहार के पिछड़ेपन का सबसे प्रमुख कारण है । बढ़ती हुई जनसंख्या के भरण – पोषण में अधिकांश साधन का उपयोग हो जाता है , जिस वजह से विकास के लिये साधन कम हो जाते हैं ।
( ii ) कृषि पर निर्भरता — बिहार की अधिकांश जनसंख्या अपने आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है । यहाँ की अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है । लेकिन यहाँ की कृषि भी काफी पिछड़ी हुई है जिसकी वजह से उपज कम होती है ।
( iii ) आधारिक संरचना का अभाव – आधारिक संरचना किसी देश या राज्य के विकास के लिए जरूरी होता है । लेकिन बिहार में इसका अभाव है । यहाँ सड़क , बिजली , सिंचाई का अभाव है । शिक्षा एवं अन्य सुविधाओं की भी कमी है ।
( iv ) औद्योगिक पिछड़ापन – उद्योगों का विकसित होना किसी भी देश या राज्य के लिए आवश्यक होता है । लेकिन बिहार में कार्यशील औद्योगिक इकाईयों की संख्या ना के बराबर है , क्योंकि यहाँ के सभी खनिज क्षेत्र एवं बड़े उद्योग तथा प्रतिष्ठित अभियांत्रिकी संस्थाएँ झारखण्ड में चले गए हैं ।
( v ) गरीबी – बिहार का प्रतिव्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत के आधे से भी कम है , जिस कारण यहाँ गरीबी बहुत अधिक है । बिहार के पिछड़ेपन का यह भी एक प्रमुख कारण हैं ।
( vi ) बाढ़ तथा सूखा से क्षति – बिहार में बाढ़ तथा सूखा दोनों से बहुत अधिक क्षति होती है । बिहार का उत्तरी हिस्से में नेपाल से आए जल से बाढ़ आती है । 2008 में कोशी नदी के बाद आने से बहुत नुकसान हुआ है । इसी तरह दक्षिण विहार को सूखे का सामना करना पड़ता है । इससे हमारे किसानों को बहुत अधिक नुकसान होता है , किसानों को अकाल जैसी स्थिति का सामना करना पड़ता है ।
( vii ) खराब विधि व्यवस्था – किसी भी देश या राज्य की उन्नति के लिए शांति तथा सुव्यवस्था का वहाँ होना आवश्यक है । बिहार में पिछले काफी दिनों से कानून व्यवस्था कमजोर स्थिति में होने के कारण यहाँ के नागरिक उद्योगों को शांतिपूर्ण ढंग से नहीं चला पा रहे थे । इस तरह खराब विधि व्यवस्था भी बिहार के पिछड़ेपन का कारण है ।
( viii ) कुशल प्रशासन का अभाव – बिहार की प्रशासनिक स्थिति में पारदर्शिता का अभाव है । बिहार के पिछड़ेपन को दूर करने के उपाय — बिहार में आर्थिक विकास की गति को तेज करके यहाँ की स्थिति को सुधारा जा सकता है ,
इसके निम्नलिखित उपाय हैं
( i ) जनसंख्या पर नियंत्रण — बिहार में तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या पर रोक लगाया जाए । परिवार नियोजन के कार्यक्रमों को लागू किया जाए और जनता खासकर महिलाओं में शिक्षा का प्रसार किया जाए ।
( ii ) कृषि का तेजी से विकास — यहाँ की अधिकांश जनसंख्या अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है । इसलिए कृषि का विकास होना आवश्यक है । इसके लिए कृषि में नए यंत्रों तथा आधुनिक तकनीकों का प्रयोग करना चाहिए । उत्तम खाद तथा बीज का प्रयोग करना चाहिए जिससे उपज बढ़ सके ।
( iii ) आधारित संरचना का विकास – बिहार में बिजली का उत्पादन बढ़ाना चाहिए क्योंकि यहाँ बिजली की कमी है । सड़क व्यवस्था में सुधार लाना चाहिए । शिक्षा एवं स्वास्थ्य की सुविधाओं में भी सुधार होना चाहिए ।
( iv ) उद्योगों का विकास -बिहार के अधिकतर उद्योग झारखण्ड में चले गए हैं , जिस कारण उद्योग न के बराबर है । यहाँ चीनी की मिलें हैं जो बंद हैं । इन उद्योगों का पुर्नविकास होना चाहिए ।
( v ) गरीबी दूर करना — बिहार में 42 प्रतिशत से अधिक लोग गरीबी – रेखा के नीचे जीवन बिता रहे हैं । इन लोगों के लिए रोजगार की व्यवस्था करनी चाहिए । इन्हें प्रशिक्षण देकर स्व – रोजगार को बढ़ावा देना चाहिए ।
( vi ) बाढ़ पर नियंत्रण बाढ़ के कारण बिहार के विकास में बहुत बाधा आती है । फसल का एक बहुत बड़ा भाग पानी में डूब जाता है , जानमाल की भी काफी क्षति होती है । नेपाल सरकार से बात कर के बाढ़ को रोकने के लिए उचित कदम उठाने चाहिए । बिहार में सूखे से निपटने के लिए सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए ।
( vii ) शांति व्यवस्था की स्थापना – यहाँ शांति का माहौल बनाया जाए , जिससे व्यापारी लोग शांतिपूर्ण ढंग से उद्योग चला सकें और विकास की गति को बढ़ाया जा सके ।
( viii ) स्वच्छ तथा ईमानदार प्रशासन आर्थिक विकास के लिए स्वच्छ कुशल तथा ईमानदार प्रशासन का होना जरूरी है ।
( ix ) केन्द्र से अधिक मात्रा में संसाधनों का हस्तांतरण — बिहार के विकास के लिए केन्द्र की ओर से अधिक मात्रा में संसाधनों का हस्तांतरण होना चाहिए ।

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